‘मेरी लड़ाई किसी मजहब या मर्द जाति से नहीं, एक व्यक्ति से है’

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तारा शाहदेव से 26 और 27 नवंबर को हुई दो मुलाकातें बहुत निराश और उदास माहौल में हुईं, 26 को शूटिंग रेंज में और 27 को अहले सुबह उनके घर पर. लेकिन तारा उम्मीद का दामन पकड़े हुए थीं, शूटिंग में अपने भविष्य की उम्मीदों का दामन. दो दिन में हुई दो मुलाकातों के दौरान बातों-बातों में वह रोना चाहती हैं लेकिन खुद को जज्ब किए रहती हैं. यह वही तारा हैं जो दो माह पहले राष्ट्रीय चेतना के केंद्र में थीं. उन्हें एक नए किस्म के कथित जेहाद का शिकार बताया जा रहा था- लव जेहाद. इसी नाम को केंद्र में रखकर झारखंड की राजधानी रांची के बड़ा तालाब इलाके के पास एक टूटे-फूटे मकान के बाहर ओबी वैनों की कतार कई दिनों तक लगी रही थी. दिल्ली-पटना-रांची से आए मीडियावालों का हुजूम लगा रहता था. भीड़ को चीरते हुए सायरन बजाती गाड़ियां भी दिन-भर आती-जाती रहती थीं तारा के घर. हर मिनट खबरिया चैनलों पर डरावने पार्श्वसंगीत के साथ खबरें एक-दूसरे से टकरा रही थीं- लव जेहाद की शिकार तारा.

इस दौरान तारा से दुनिया-जहान के वायदे भी किए गए. किसी ने कहा, 2016 तक निश्चिंत रहो, सारा खर्चा देंगे. राजनाथ सिंह ने कहा था कि बस दिल्ली जा रहा हूं, सीबीआई जांच शुरू हो जाएगी. लेकिन दो माह का समय गुजर चुका है, जांच होनी बाकी है. वह तारा अपनी राइफल के साथ तनहा पीछे छूट चुकी हैं. न तो उनके अकाउंट में 2016 तक निश्चिंत रहने के लिए पैसे हैं, न उनके और रंजीत कोहली उर्फ रकीबुल के बीच के विवाद की सीबीआई जांच शुरू हुई है और न ही कोर्ट में मामला आगे बढ़ रहा है.

तारा अपने भाई द्वैत के साथ 15 दिसंबर से पुणे में होने वाली नेशनल चैंपियनशिप की तैयारी में लगी हैं. हर सुबह उठकर अपने घर का काम निपटाती हैं, नौ बजे तक शूटिंग रेंज में पहुंचती हैं, दिन उधर ही गुजारती हैं, शाम सात बजे तक वापस घर आती हैं, फिर वकीलों के चक्कर लगाती हैं और अगली सुबह फिर वही दिनचर्या. तारा अपने घर से मोटरसाइकिल से निकलती हैं, तो छह पुलिसवाले भी पीछे-पीछे बाइक पर चलते हैं, जो उन्हें गार्ड के तौर पर मिले हैं.

तारा की कहानी सबको पता है. उन्होंने एक कथित कारोबारी रंजीत सिंह कोहली से जुलाई 2014 में शादी की थी. बकौल तारा, शादी के अगले दिन रंजीत सिंह कोहली और उसकी मां ने तारा को निकाह करने को कहा और बताया कि उसका इस्लामिक नाम रकीबुल है. तारा अचानक पेश आई इस चुनौती को स्वीकार नहीं कर सकीं. उन्होंने आनाकानी की. इस पर उनकी प्रताड़ना का दौर शुरू हो गया, उन्हें मारा-पीटा गया, दागा-जलाया गया. अगस्त महीने में वह उस घर से भागने में सफल रहीं और बाहर निकलकर उन्होंने मीडिया और पुलिस के सामने अपने साथ हुई घटना बयान की. तारा की बातों के बाद रंजीत के किस्सों की पड़ताल शुरू हुई. जो कही-सुनी बातें अब तक सामने आ रही हैं, उनके मुताबिक रंजीत कई तरह के गैर कानूनी धंधों में शामिल रहा है. अनजान स्रोतों से उसने अथाह पैसा कमाया है. फिलहाल रंजीत अपनी मां के साथ जेल में है. तारा का केस हाईकोर्ट में है.

सामने पड़ी पहाड़-सी जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिए 22 साल की तारा एक बार फिर हिम्मत जुटाकर शूटिंग रेंज में हैं. पढ़ाई जारी रखने के लिए वह ग्रेजुएशन में एडमिशन ले चुकी हैं. भारी तनाव के बावजूद वह शूटिंग में अपना भविष्य तलाश रही हैं. अपनी ओर से बताने के बजाय सीधे तारा की ही जुबानी सुनते हैं उनकी कहानी
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अोझल: अचानक देश की चेतना में शामिल हुई तारा शाहदेव फिलहाल गुमनाम जिंदगी बसर कर रही हैं. फोटो: अमित
अोझल: अचानक देश की चेतना में शामिल हुई तारा शाहदेव फिलहाल गुमनाम जिंदगी बसर कर रही हैं. फोटो: अमित

दो माह पहले तक आप इतने किस्म के लोगों से दिन-रात घिरी रहती थीं, अब अकेली हैं.
पता नहीं कहां से इतने लोग इकट्ठा हो गए थे. संगठन वाले, मीडियावाले, राजनीतिवाले. लेकिन मैं जानती थी कि यह कुछ दिनों की ही बात है. फिर कोई नहीं आएगा.

यानी आपको पहले से इसका अहसास था.
हां, अहसास था. कुछ मीडियावालों ने बताया भी था कि तारा, ये सब कुछ दिनों तक ही रहेगा. मैं भी आग्रह करती थी मीडियावालों से कि बस उस आदमी को जेल भिजवा दो, जिसे अपनी ऊंची पहुंच और ताकत का भ्रम है.

बाहर से भी बहुत लोग आए थे उस दौरान और बहुत से वायदे कर गए थे. वे अब भी याद करते हैं?
हां, बहुत सारे लोग आए थे, अब उनमें से नूतन ठाकुर से अक्सर बात होती रहती है. वह कोर्ट का मामला जानती-समझती हैं. वह कहती हैं कि हाईकोर्ट का फैसला आने दो उसके बाद देखेंगे. हाईकोर्ट का फैसला आए, तब आगे की योजना बनाएंगे.

हाईकोर्ट में क्या चल रहा है?
वहां तो अभी सिर्फ तारीख पर तारीख आ रही है. एक-डेढ़ माह में दो तारीख पड़ती है. सुनवाई का टाइम आता है, तो टाइम खत्म हो गया रहता है.

आपको लगता है कि वहां भी टालमटोल हो रहा है?
पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है. देख ही रहे हैं कैसे-कैसे लोगों के नाम रंजीत कोहली से जुड़े हुए हैं. हाईकोर्ट के जजों के ही नाम हैं तो और क्या कहा जा सकता है. शायद फैसला लेने में भी हिचक हो रही हो. अब देखिए कि 20 नवंबर को सुनवाई का दिन था. मेरा केस नंबर 54 था, लेकिन कोर्ट की कार्यवाही 25 पर ही आकर रुक गई.

एक खबर यह भी आई थी कि तारा और रंजीत का मामला सिर्फ दहेज उत्पीड़न का मामला है.
कोर्ट से ऐसा कोई फैसला नहीं आया है. यह बात सिर्फ मीडिया में आई थी, पुलिस डायरी के आधार पर. पुलिस ने चार्जशीट में जो लिखा था, उसे मैंने भी पढ़ा. उसमें दहेज का कोई मामला था ही नहीं. हो भी नहीं सकता. कोई चाहकर बना भी नहीं सकता. मेरा मामला दहेज का है ही नहीं.

फिर यह बात आई कहां से?
पता नहीं कहां से आई. पत्रकारों ने बताया कि ऐसी रिपोर्ट आ रही है. उन्होंने सुनी-सुनाई बातों पर कह दिया, इसलिए अगले दिन से कुछ लिखा भी नहीं.

आपने विरोध दर्ज नहीं कराया कि ऐसी मनमर्जी क्यों कर रहे हैं पत्रकार?
नहीं, मैंने कुछ नहीं पूछा. अब मैं कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही हूं. अभी तो मैं जिंदा हूं और मुझे कोर्ट से उम्मीद है.

‘मुझे ईद की सेवईं आज भी पसंद है. अगर वह खुद इस्लाम मानता और मुझे फोर्स नहीं करता तो भी मुझे कोई समस्या नहीं थी’

अभी तो जिंदा हूं मतलब, जान का खतरा भी है क्या आपको?
आप तो देख ही रहे हैं कि जिनसे मेरी लड़ाई है वे कौन लोग हैं. छह गार्ड की बटालियन मेरे आगे पीछे किसलिए खड़ी है. लेकिन मैं अब मौत से नहीं डरती. जितना बुरा हो चुका है मेरे साथ, उससे ज्यादा बुरा नहीं हो सकता कुछ.

सीबीआई जांच की भी बात थी, वह भी नहीं हुई. राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा था.
हां, लेकिन कह रहे हैं कि अगली सुनवाई तक तय हो जाएगा. राजनाथ सिंह ने भी कहा था कि हो जाएगा छह-सात दिनों में. केंद्रवाले कह रहे हैं कि राज्य ने भेजा नहीं. राज्यवाले कह रहे हैं कि भेज दिया गया है. दोनों के बीच क्या मामला लटका है, क्यों लटकाया गया है, क्या कहें.

आप को राजनीति में भी ले जाने की बात की जा रही थी, कई राजनीतिक दल पहुंचे भी थे आपके पास.
वह तो इलेक्शन का टाइम था तो बातें हुईं. कई लोगों ने कहा कि आपको भाजपा ने चुनाव से पहले खड़ा किया है कि बवाल मचाओ. कुछ लोग कह रहे थे कि क्या चुनाव के पहले भाजपा ने आपको सामने लाकर राजनीति की है. मेरी तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि मेरे साथ जिंदगी में बुरा हो रहा है और लोग कैसे-कैसे सवाल पूछ रहे हैं. वैसे मेरी तो उम्र ही अभी 22 है तो मैं चुनाव में कैसे जा सकती हूं.

इतने तनाव में शूटिंग की प्रैक्टिस कैसे कर रही हैं. शूटिंग के लिए तो बहुत एकाग्रचित होना पड़ता है.
मैं रोजाना सुबह नौ बजे शूटिंग रेंज में जाती हूं, घर का सारा काम करके. सात बजे शाम तक वहीं रहती हूं. उसके बाद वकील के पास जाती हूं. तनाव तो रहता है, लेकिन मैं सब भूलकर हिम्मत जुटा रही हूं. लेकिन जब घर से निकलती हूं तो पहले की तरह फ्री होकर नहीं निकलती. अब वैसी बात तो रही नहीं. अब तो शाम सात बजे से ज्यादा समय हुआ तो घर से फोन आने लगते हैं. भाई हमेशा रहता है मेरे साथ.

एकाग्रचित: बिखरी हुई जिंदगी को पटरी पर लाने की जद्दोजहद में तारा शाहदेव. फोटो: अमित
एकाग्रचित: बिखरी हुई जिंदगी को पटरी पर लाने की जद्दोजहद में तारा शाहदेव. फोटो: अमित

आपके साथ दो तरह का छल हुआ है. एक तो आपके पति ने ही आपको धोखा दिया, दूसरा आपके साथ मजहब को भी जोड़ दिया गया यानी लव जेहाद. दोनों के बारे में आप क्या राय रखती हैं?
सच कहूं तो मुझे किसी से भी नफरत नहीं है. उस इंसान ने बेवजह मजहब को बीच में घसीटा. मजहब का इससे क्या लेना-देना था. मुझे ईद की सेवईं आज भी पसंद है. अगर वह खुद इस्लाम मानता और मुझे फोर्स नहीं करता तो भी मुझे कोई समस्या नहीं थी. धर्म को मानना न मानना तो आप पर निर्भर करता है. मेरे साथ जब यह सब चल रहा था और इस्लाम और लव जेहाद की बातें आ रही थीं, तो मेरे पास कई मुसलमान दोस्त आए और कहने लगे कि दीदी अब तो आप बात नहीं करोगी हमसे. तब मैंने उनसे यही कहा कि मुझे किसी व्यक्ति ने दगा दिया है, प्रताड़ना दी है, इसका मजहब से क्या लेना-देना.

हिंदू संगठन वाले भी आए थे? उन्होंने धरना-प्रदर्शन भी किया था.
उस समय विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और पता नहीं क्या-क्या नाम होता है, सब कह रहे थे कि आप हिंदू हैं, इसलिए इस्लाम कबूल न करके अच्छा किया.

कुछ लोगों ने आप पर यह कहकर सवाल उठाया था कि खुद को हिंदू कह रही हैं और लव जेहाद का शिकार बता रही हैं, लेकिन अपनी मां के गुजरने के तुरंत बाद आपने शादी कर ली थी.
बहुत सामान्य बात थी. मां का देहांत अचानक हुआ था. पिताजी की भी तबीयत खराब थी. लड़कियों को समाज में बोझ माना जाता है. लड़का 40 साल तक कुंवारा रहे तो कोई बुरा नहीं मानता, लड़की ने 22 पार किया तो बोझ बनने लगती है. पिता भी गुजर जाते तो कौन होता मेरा मालिक. इसलिए मैंने शादी कर ली.

इस पूरे प्रकरण में सबसे बुरा क्या लगता है आज आपको.
सबसे बुरा यही लगा कि लड़कियों को बोझ समझकर जल्दी शादी करने का दबाव रहता है. परिवार ने अपनी तरफ से जांच-परख कर ही शादी की थी. यह मेरी बदकिस्मती थी कि मेरा जीवन बर्बाद हो गया. लड़कियों की शादी करने में जल्दबाजी क्यों? बेटी होने की सजा भुगतनी पड़ी मुझे.

सबक क्या रहा?
सबक यह रहा कि सपना आपने देखा है, तो खुद पूरा करना होगा. किसी पर सपने को पूरा करने का विश्वास नहीं करना है.

अब तक पता नहीं चला कि शादी का प्रस्ताव कैसे आया था?
रंजीत के यहां से प्रस्ताव आया था. मुश्ताक अहमद नाम के विजिलेंस ऑफिसर आते थे रेंज में. उन्होंने ही भाई से बात की कि रंजीत शादी करना चाहता है. फिर घर पर बात चली तो यह राय बनी कि कहीं न कहीं तो करनी ही है.

इतनी कम उम्र में शादी करते वक्त करियर का खयाल नहीं आया?
मुझे नेशनल चैंपियनशिप खेलकर शादी करनी थी, लेकिन रंजीत की मां ने दबाव बनाना शुरू किया कि बेटा पता नहीं कब मेरे साथ क्या हो जाए. इस तरह सात जुलाई 2014 को शादी हो गई.

यह पता नहीं चला पाया है कि रंजीत का धंधा क्या था?
मुझे या मेरे घरवालों को इतना ही पता था कि वह कौशल बायोटेक में सीएमडी है, लेकिन अब तो पता चल चुका है कि वह लड़कियों का सेक्स रैकेट चलाता था. उसके यहां मिनिस्टर आते थे, बड़े लोग आते थे. बोरे में भरकर नोट आते थे. 19 अगस्त को जब मैं वहां से निकली, तब तक पूरा नहीं समझ सकी थी कि उसके क्या-क्या धंधे हैं.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आपकी मदद का आश्वासन दिया था.
उन्होंने कुछ नहीं किया, सिर्फ इतना ही कहा कि कोई परेशानी हो तो बताना.

अगर अब जीवनसाथी की तलाश करेंगी तो क्या ध्यान रखेंगी?
अब तो शादी का सवाल ही नहीं उठता. मैं अकेले जिंदगी गुजार लूंगी. मुझे बस शूटिंग करनी है. मुश्किलें बहुत हैं. दिल्ली में एक माह की ट्रेनिंग फीस ही 40 हजार रुपये है, रहने का खर्च अलग से. मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं, लेकिन मैं खुद के बूते शूटिंग में ही अपनी पहचान बनाऊंगी.