दिल्ली चुनाव में उम्मीदों के विपरीत नतीजे आने पर एक बार फिर चुनाव आयोग कथित घपलेबाज़ी के आरोपों से घिर गया है। इससे पहले भी कई बार लोगों ने चुनाव आयोग को उसकी निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए कटघरे में खड़ा किया है। चुनाव आयोग हर बार सफ़ाई देता रहा है कि उसने बिलकुल निष्पक्ष चुनाव कराये हैं। अब सर्वोच्च न्यायालय ने यह 2024 के लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा को लेकर ईवीएम में पड़े मतों और चुनाव आयोग द्वारा बताये गये डेटा में मेल न खाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग ईवीएम में कोई डेटा डिलीट न करने और नया डेटा रीलोड भी न करने का आदेश दिया, तो भाजपा को चुनाव जितवाने के कथित आरोपों से घिरे मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता की दुहाई देकर कहने लगे कि लाखों अधिकारी डेटा फीडिंग में शामिल होते हैं। किसी भी गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं है।
1984 बैच के आईएएस अधिकारी राजीव कुमार देश के 25वें चुनाव आयुक्त हैं और जल्द ही अपने पद से सेवानिवृत्त होने वाले हैं। लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद सरकारों से लाभ लेने वाले दूसरे कई भ्रष्ट अधिकारियों की तरह ही लाभ की आकांक्षा के आरोपों से वह भी नहीं बच सके। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में फ़र्ज़ी मत पड़ने और चुनाव के बाद मत प्रतिशत बढ़ने से लेकर दिन भर मतदान की हुई ईवीएम की बैटरी का 95 से 99 प्रतिशत तक चार्ज रहने जैसे आरोप चुनाव आयोग पर लगे। स्थिति यहाँ तक पहुँची कि हरियाणा में 20 प्रतिशत से ज़्यादा सीटों पर भाजपा नेताओं की जीत को चुनौती देने लोग पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट पहुँच गये, तो महाराष्ट्र में गड़बड़ी को लेकर मामला दिल्ली तक पहुँच गया। चुनाव आयोग पर भाजपा के लिए गड़बड़ी करने के आरोप लगाने के बाद जब महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले के मरकरवाड़ी गाँव के लोगों ने दोबारा बैलेट पेपर पर चुनाव की तरह मतदान करके यह जाँच करनी चाही कि उस क्षेत्र में कितने लोगों ने किसे मतदान किया है, तो चुनाव आयोग तिलमिला उठा और महाराष्ट्र पुलिस ने जाँच के लिए लोगों द्वारा बनाये गये मतदान केंद्र पर जाकर मतदान बंद कराकर अनेक लोगों को गिरफ़्तार कर लिया। 200 लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की और उस क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया। इससे चुनाव आयोग की भूमिका संदेह के घेरे में आ गयी। गुजरात के विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद भी बहुत लोगों ने गड़बड़ी के आरोप लगाये थे। तीन गाँवों के लोगों ने तो ईवीएम के विरोध में मतदान ही नहीं किया था।
गुजरात चुनाव, लोकसभा चुनाव, हरियाणा चुनाव, महाराष्ट्र चुनाव, जम्मू-कश्मीर चुनाव, झारखण्ड चुनाव के बाद हुए दिल्ली के चुनाव तक भाजपा नेताओं, विशेषकर भाजपा के सबसे बड़े चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों और जनसभाओं में जितने लोग जुटे, उससे भी कहीं-से-कहीं तक संभव नहीं लगा कि भाजपा को सत्ता पाने लायक जीत मिल सकेगी। ऐसे भी वीडियो सामने आये, जिनमें भाजपा के झंडे उठाने वालों ने यहाँ तक कहा कि वे दिहाड़ी पर आये हैं। दिल्ली में खुलेआम पैसे बाँटने, साड़ियाँ और दूसरे तोहफ़े बाँटने का सिलसिला चुनाव वाले दिन भी जारी रहा। कई शिकायतें मिलीं कि लोगों को मतदान नहीं करने दिया जा रहा है। लोकसभा चुनाव से लेकर इन सभी राज्यों के विधानसभा चुनावों में लाखों की संख्या में नये मतदाता बढ़ने, पुराने मतदातओं के नाम काटे जाने के आरोप भी लगते रहे। दिल्ली में भाजपा के सांसदों, मंत्रियों, नेताओं और कई सरकारी आवासों के पतों पर दज़र्न-दज़र्न भर के क़रीब लोगों के मतदाता पहचान पत्र बने मिले, जिस पर चुनाव आयोग चुप्पी साधे रहा।
लगता है कि चुनाव आयोग में वर्तमान में कार्यरत अधिकारी या तो लोकतंत्र का अर्थ नहीं समझते या उन्होंने किसी लालच अथवा दबाव में किसी विशेष पार्टी से कोई क़रार कर रखा है। लेकिन इस सबका ख़ुलासा तो तभी हो सकता है, जब चुनाव आयोग के सभी अधिकारियों को कुछ दिन का अवकाश देकर पिछले तीन-चार साल में हुए सभी चुनावों की गहन जाँच हो। सर्वोच्च न्यायालय ने ठीक ही आदेश दिया है कि चुनाव आयोग ईवीएम के डेटा से छेड़छाड़ न करे। क्योंकि चुनाव किसी पार्टी के लिए नहीं, बल्कि जनता के लिए चुनी हुई सरकार द्वारा पाँच साल तक व्यवस्थित ढंग से विकास कार्य करने के लिए कराये जाते हैं। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और यहाँ की चुनावी प्रक्रिया में लोकतंत्र की रक्षा करना ही चुनाव आयोग की पहली ज़िम्मेदारी है। उसे हर हाल में यह ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए। दिल्ली में लंबे समय से वकील, पूर्व सैनिक और अन्य लोग ईवीएम को प्रतिबंधित करके बैलेट पेपर से चुनाव कराने की माँग कर रहे हैं। विश्व के विकसित देश भी बैलेट पेपर से चुनाव करवाते हैं। लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनाव आयोग लगातार ईवीएम से चुनाव कराने वकालत करने की इच्छा से सफ़ाई दे रहा है। पार्टियों, सत्ताओं और चुनाव आयोग से अपील है कि वे सफ़ाई देने की बजाय भारत के इस लोकतंत्र को ज़िन्दा रहने दें।