22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत के बाद नई दिल्ली ने आतंकवाद को समर्थन देने की पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करने के प्रयास तेज़ कर दिये हैं। पाकिस्तान का यह समर्थन आतंकी प्रशिक्षण और संभार-तंत्र से आगे सतत वित्तीय सहायता तक विस्तृत है। 33 देशों में शुरू किये गये कूटनीतिक अभियान के बीच पाकिस्तान का मुक़ाबला करने के राष्ट्र के संकल्प के अनुरूप ‘तहलका’ द्वारा की गयी एक हालिया पड़ताल से पता चला है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हाई अलर्ट पर रहने के बावजूद अवैध विदेशी मुद्रा व्यापार का अवैध विनिमय (लेन-देन) फल-फूल रहा है।
इस बार ‘तहलका’ की आवरण कथा ‘विदेशी मुद्रा रैकेट और आतंकवाद’ में ‘तहलका’ रिपोर्टर ने पाया कि दिल्ली के निज़ामुद्दीन क्षेत्र में मुद्रा डीलर नियामकीय निगरानी को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए खुलेआम मुद्रा बदलने का काम कर रहे हैं; फिर भी क़ानून प्रवर्तन एजेंसियाँ आँखें मूँदे बैठी हैं। यह स्मरणीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘नो मनी फॉर टेरर’ कॉन्फ्रेंस के दौरान पाकिस्तान की तरफ़ इशारा करते हुए कहा था कि कुछ देश आतंकवाद को विदेश नीति के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इसके अतिरिक्त कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने पनामा की यात्रा के दौरान पिछले दो दशकों में न्यूयॉर्क और मैड्रिड से लेकर मुंबई तक हुए हमलों के पैटर्न का हवाला देते हुए पाकिस्तान पर ‘आतंकवाद को बढ़ावा देने की नीति’ चलाने का आरोप लगाया था।
बता दें कि 26/11 के हमलों के बाद प्रस्तुत किये गये ठोस सुबूतों के बावजूद पाकिस्तान ने एक भी आतंकवादी को दोषी नहीं ठहराया है। आतंकवाद को लेकर बढ़ती चिन्ताओं के बीच भारत द्वारा विदेश में इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी गयी है कि पाकिस्तान अक्टूबर, 2022 में वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की ग्रे सूची से हटाये जाने के बावजूद आतंकवाद के वित्तपोषण पर अंकुश लगाने की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहा है। भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए भी आग्रह कर रहा है। क्योंकि भारत को आशंका है कि विदेशी सहायता का उपयोग आतंकवाद को वित्तपोषित करने और प्रतिबंधित आतंकवादी समूहों को समर्थन देने में किया जा रहा है। पाकिस्तान का उच्च रक्षा व्यय उसके राष्ट्रीय बजट का लगभग 18 प्रतिशत है, जो कि हथियारों के आयात में वृद्धि, विशेष रूप से आईएमएफ सहायता की अवधि के दौरान; विदेशी सहायता को सैन्य तथा संभावित रूप से आतंकवाद-सम्बन्धी उद्देश्यों की ओर पुनर्निर्देशित करने का संकेत करता है।
विशेषज्ञों ने काले बाज़ार में मुद्रा विनिमय की भूमिका पर भी प्रकाश डाला है, जो लंबे समय से टैक्स चोरी से जुड़ा हुआ है और स्लीपर सेल को बढ़ावा देने, आतंकियों को हथियार मुहैया कराने तथा चरमपंथी बुनियादी ढाँचे को समर्थन देने में भी भूमिका निभा रहा है। भारत की वित्तीय ख़ुफ़िया इकाई (एफआईयू) ने पहले भी हवाला नेटवर्क, अवैध विदेशी मुद्रा गतिविधि, तस्करी और आतंकवाद के बीच सम्बन्धों पर नज़र रखी है। हालाँकि प्रवर्तन एजेंसियों की सुस्ती से ये गतिविधियाँ अनियंत्रित रूप से बढ़ रही हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल ने इस वित्तीय सहायता को आतंकवाद की जीवन-रेखा कहा है।
यह विचार हाल ही में भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान भी दोहराया गया। लेकिन अंतरराष्ट्रीय ध्यान पाकिस्तान की बाहरी भागीदारी पर केंद्रित है, जबकि आंतरिक वित्तीय रिसाव की बढ़ती समस्या को नज़रअंदाज़ करना कठिन होता जा रहा है। आतंकवाद का वित्तपोषण किसी भी समाज में आतंकवाद को बनाए रखने वाले तीन सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्वों में से एक है। इसके साथ ही इससे ग़लत मानसिकता और हथियारों का प्रवाह भी होता है। धन के बिना आतंकवादियों की भर्ती करना, उनके लिए प्रशिक्षण शिविर चलाना या हथियारों की आपूर्ति सुनिश्चित करना असंभव है। जैसा कि अधिकारी और जाँचकर्ता तेज़ी से स्वीकार कर रहे हैं कि आतंकवाद सिर्फ़ विचारधारा पर नहीं पनपता है, बल्कि वह नक़दी पर चलता है, जो अवैध तरीक़े से संचरित होती है। और इस नक़दी के अधिकांश हिस्से का लेन-देन आतंक की छत्रछाया में होता है।