नेताओं ने शिक्षा को बनाया निजी उद्योग

हिंदुस्तान में शिक्षा की जितनी कालाबाज़ारी होती है, शायद ही किसी दूसरे देश में होती हो। यहाँ शिक्षा को कुछ पूँजीपतियों और नेताओं ने कमायी का धंधा बना लिया है। हिंदुस्तान में ज़्यादातर प्राइवेट स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी माफ़िया के क़ब्ज़े में हैं, जिनमें ज़्यादातर नेता हैं। सिर्फ़ उत्तर प्रदेश में ही क़रीब 60 फ़ीसदी प्राइवेट शिक्षा संस्थानों के मालिक नेता हैं। वहीं यहाँ के सरकारी शिक्षा संस्थानों की हालत उतनी अच्छी नहीं है। सरकार ने शिक्षा में सुधार करने की जगह उसे राम भरोसे छोड़ रखा है। कहीं अध्यापक कम हैं। कहीं बिल्डिंग जर्जर है। कहीं उचित टॉयलेट की सुविधा नहीं है। कहीं-कहीं तो बिल्डिंग इतनी जर्जर है कि स्कूल के बाहर छात्र-छात्राएँ खुले में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। बहुत-से स्कूलों में एक-एक कमरे में क्षमता से ज़्यादा बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। इन सरकारी शिक्षा संस्थानों में शिक्षा से लेकर व्यवस्था तक में सुधार करने की ज़िम्मेदारी भी सरकार, उसके मंत्रियों, विधायकों और सांसदों की ही है। लेकिन ये सरकारी शिक्षा संस्थानों में कभी कोई सुधार या काम नहीं करना चाहते; क्योंकि अगर सरकारी शिक्षा व्यवस्था अच्छी होगी, तो फिर इनका शिक्षा की कालाबाज़ारी का धंधा तो चौपट ही हो जाएगा। इसलिए आज सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में अव्यवस्था बढ़ रही है। या फिर उन्हें धीरे-धीरे बंद करने की साज़िशें चल रही हैं, जिससे इन नेताओं के अपने प्राइवेट शिक्षा संस्थान चल सकें।

बहरहाल उत्तर प्रदेश के प्राइवेट स्कूलों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज के मालिक मोटी फीस और तमाम तरह के ख़र्चे अच्छी पढ़ाई के नाम पर छात्रों से वसूलने के साथ-साथ ड्रेस से लेकर पूरी स्टेशनरी उन्हें बेचकर लाखों से करोड़ों रुपये महीने की कमायी कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर पार्टियों के नेता कई-कई स्कूलों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज के मालिक हैं। ऐसा भी नहीं है कि इनके शिक्षा संस्थानों में बच्चों के भविष्य यानी करियर की बहुत अच्छी संभावनाएँ हों।

दरअसल इन नेताओं को स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी चलाने का लाइसेंस काफ़ी आसानी से मिल जाता है। ग़रीब की तो बात ही इस मामले में नहीं कर सकते; लेकिन किसी मध्यम वर्गीय आम आदमी के लिए लाइसेंस लेना तक़रीबन नामुमकिन है। क्योंकि पहली बात तो यह है कि अब स्कूलों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटी को खोलना ही बहुत महँगा है; और दूसरी बात यह है कि सरकारी शिक्षा विभाग की इन संस्थानों को चलाने के लिए लाइसेंस देने की प्रक्रिया बहुत कठिन है। इसलिए अगर लाइसेंस लेने की चाहत रखने वाले की किसी नेता या शिक्षा मंत्रालय तक अच्छी पकड़ न हो, तो उसे लाइसेंस शायद न मिले। लेकिन वहीं नेताओं के पास न सिर्फ़ भरपूर पैसे हैं, बल्कि पहुँच भी है। जो नेता सीधे सरकार में ही हैं, उनके लिए किसी स्कूल या कॉलेज या यूनिवर्सिटी का लाइसेंस लेना बाएँ हाथ का खेल है। या यह कहें कि ऐसे नेताओं की फाइल कहीं नहीं अटकती। इसलिए उत्तर प्रदेश में प्राइवेट स्कूलों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज की संख्या पिछले कुछ ही वर्षों में तेज़ी से बढ़ी है।

बहरहाल, अकेले उत्तर प्रदेश में 74,000 से ज़्यादा प्राइवेट स्कूल हैं। इसमें 50,000 स्कूलों के मालिक नेता हैं, जिसमें लगभग सभी पार्टियों के नेता हैं। इसके अलावा 20,000 प्राइवेट इंटर कॉलेज और 7,000 से ज़्यादा प्राइवेट डिग्री कॉलेज और 35 प्राइवेट यूनिवर्सिटीज भी हैं। कई नेताओं के तो 50 से 100 स्कूल और कॉलेज तक हैं। 35 प्राइवेट यूनिवर्सिटीज में पाँच भाजपा और तीन सपा नेताओं की हैं, जबकि एक यूनिवर्सिटी बसपा नेता के पास है। इसी प्रकार से फ़िरोज़ाबाद के शिकोहाबाद में जेएफ यूनिवर्सिटी के प्रमुख डॉ. सुकेश यादव हैं। एफएफ यूनिवर्सिटी के मालिक डॉ. दिलीप यादव हैं। जौहर यूनिवर्सिटी के मालिक आज़म ख़ान हैं, जिसे बनाने के बाद उन पर ज़मीन क़ब्ज़ाने के गंभीर मामले दर्ज हुए। आज भी यह मामला कोर्ट में चल रहा है। देश की 35 यूनिवर्सिटीज में से तीन यूनिवर्सिटी मथुरा में ही हैं। गोरखपुर की महायोगी गोरखनाथ यूनिवर्सिटी है, जो गोरक्षा पीठ ट्रस्ट के अधीन है। अगर सरकारी शिक्षा संस्थानों की बात करें, तो उत्तर प्रदेश में कुल 172 राजकीय कॉलेज हैं। इसके अलावा सहायता प्राप्त कॉलेजों की संख्या 331 है। लेकिन प्राइवेट कॉलेजों की संख्या 7,372 है। इसी प्रकार से सरकारी यूनिवर्सिटीज में छ: सेंट्रल यूनिवर्सिटी, 34 स्टेट यूनिवर्सिटी, 35 प्राइवेट यूनिवर्सिटी, आठ डीम्ड यूनिवर्सिटी हैं। इस प्रकार से उत्तर प्रदेश में कुल यूनिवर्सिटीज की संख्या 83 हैं, जबकि कुल डिग्री कॉलेजों की संख्या 7,875 है। उत्तर प्रदेश में 22 ऐसी यूनिवर्सिटीज हैं, जिनके प्रमुख या तो व्यवसायी हैं या फिर शिक्षा क्षेत्र से ही जुड़े हुए हैं। ये सभी लोग पैसे वाले हैं और नेताओं के काफ़ी क़रीबी हैं। हालाँकि बताया जाता है कि ये फ़ौरी तौर पर सीधे-सीधे किसी भी पार्टी से नहीं जुड़े हैं।

नेताओं के स्कूलों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज की संख्या की बात करें, तो महिला पहलवानों से छेड़छाड़ और अन्य के आरोपों से घिरे भाजपा नेता और पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह के गोंडा और बहराइच में 54 स्कूल और कॉलेज चल रहे हैं। भाजपा नेता और इसी पार्टी के पूर्व विधायक जय चौबे के संतकबीरनगर में 50 से ज़्यादा स्कूल और कॉलेज हैं। फ़तेहपुर के ज़िला पंचायत अध्यक्ष और भाजपा नेता अजय प्रताप सिंह के निजी स्कूल और कॉलेज 18 से ज़्यादा हैं। अमेठी के भाजपा नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री संजय सिंह के पास क़रीब 13 स्कूल और कॉलेज हैं। भाजपा नेता मनोज सिंह नौ कॉलेजों के मालिक हैं, जिनमें से उनके पास आठ निजी डिग्री कॉलेज, दो इंटर कॉलेज और एक आईटीआई कॉलेज है। हरदोई के भाजपा नेता और एमएलसी अवनीश प्रताप सिंह के पास भी हरदोई ज़िले में ही 10 से ज़्यादा स्कूल और कॉलेज हैं। भाजपा विधायक अनुराग सिंह के पास भी मिर्जापुर में पाँच डिग्री कॉलेज हैं। भाजपा नेता अजय कपूर फैमिली के पास भी कानपुर में केडीएमए चेन में 10 से ज़्यादा स्कूलों और कॉलेजों का मालिकाना हक़ है। भाजपा के ही एक अन्य नेता और मिर्जापुर से ज़िला सहकारी बैंक के चेयरमैन जगदीश सिंह पटेल के पास मिर्जापुर में सात स्कूलों और कॉलेजों का मालिकाना हक़ है। आगरा से विधायक भाजपा नेता छोटे लाल वर्मा पाँच स्कूलों और कॉलेजों के मालिक हैं। मिर्जापुर से विधायक और भाजपा नेता अनुराग सिंह पाँच निजी कॉलेज मिर्जापुर में चला रहे हैं। भाजपा नेता और पूर्व एमएलसी संजयन त्रिपाठी गोरखपुर में 10 से ज़्यादा स्कूलों और कॉलेजों के मालिक बने बैठे हैं। भाजपा नेता और पूर्व विधायक संजय गुप्ता के पास कौशांबी में चार इंटर कॉलेज हैं, एक डिग्री कॉलेज है और बोर्डिंग स्कूल भी है। भाजपा नेता और सुल्तानपुर से विधायक विनोद सिंह के पाँच स्कूलों और कॉलेजों के मालिक हैं। भाजपा नेता अरविंद बंसल के शामली में चार से ज़्यादा स्कूल और कॉलेज हैं। भाजपा नेता और सिद्धार्थनगर से सांसद जगदंबिका पाल के सूर्य ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूशन्स के नाम से कई स्कूल और कॉलेज हैं, जिनमें डिग्री कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज तक शामिल हैं। भाजपा नेता और जालौन से ज़िला पंचायत अध्यक्ष घनश्याम अनुरागी के जालौन में तीन कॉलेज हैं और इनका एक स्कूल भी है। संभल के भाजपा नेता अजीत यादव भी पास चार स्कूलों और कॉलेजों के मालिक हैं।

इसी प्रकार से बसपा नेता और पूर्व सांसद प्रत्याशी शिव प्रसाद यादव के पास मैनपुरी और इटावा ज़िलों में 100 से ज़्यादा स्कूल और कॉलेज हैं। शिव प्रसाद ने 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर मैनपुरी से चुनाव लड़ा था। इसके अलावा बसपा के पूर्व विधायक लखीमपुर ज़िले के राजेश गौतम के पास चार स्कूल और कॉलेज हैं। सहारनपुर में बसपा नेता हाजी इक़बाल भी द ग्लोकल यूनिवर्सिटी के मालिक हैं। इसके अलावा सपा के प्रदेश सचिव डॉक्टर जितेंद्र यादव के पास 20 से ज़्यादा स्कूलों और चार कॉलेजों का मालिकाना हक़ है। उनके ज़्यादातर स्कूल फ़र्रुख़ाबाद में हैं। वहीं प्रतापगढ़ के सपा सांसद एस.पी. सिंह पटेल भी 13 स्कूलों और कॉलेजों के मालिक हैं। एलपीएस ग्रुप इन्हीं का है। एसपी सिंह पटेल लखनऊ में भी एक पब्लिक स्कूल के मालिक हैं।

सपा सरकार में मंत्री रहे सिद्धार्थनगर के माता प्रसाद पांडेय के पास भी पाँच स्कूल और कॉलेज हैं। सपा के दिग्गज नेता आज़म ख़ान के पास भी तीन स्कूल और एक यूनिवर्सिटी है। सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह के अमेठी में तीन स्कूल-कॉलेज चल रहे हैं। सपा नेता और पूर्व ब्लॉक प्रमुख चंद्रमणि यादव के मऊ में चार स्कूल-कॉलेज चल रहे हैं। इसी प्रकार से प्रतापगढ़ से कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी के प्रतापगढ़ में छ: से ज़्यादा स्कूल और कॉलेज हैं। वाराणसी के कांग्रेस नेता राजेश्वर पटेल के पास भी पाँच से ज़्यादा स्कूल-कॉलेज हैं। कानपुर के कांग्रेस नेता आलोक मिश्रा के कानपुर में ही डीपीएस ग्रुप के चार स्कूल चल रहे हैं। प्रयागराज की बारा सीट से अपना दल के विधायक वाचस्पति के 15 से ज़्यादा स्कूल-कॉलेज चल रहे हैं। बदायूँ के डीपी यादव के पास आठ स्कूल-कॉलेज हैं। वह सपा, बसपा और भाजपा समेत कई पार्टियों में रह चुके हैं। अभी उन्होंने राष्ट्रीय परिवर्तन दल बना लिया है। इसके अलावा जनसत्ता दल के प्रतापगढ़ के रहने वाले एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह भी तीन स्कूलों के मालिक हैं।

हैरत की बात यह है कि स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी खोलने के नियम बहुत सख़्त हैं। लेकिन जिनकी पहुँच अच्छी है या जो ख़ुद ही सीधे सरकार में दख़ल रखते हैं, उन्हें लाइसेंस आसानी से मिल जाता है। इन लोगों के स्कूलों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज में भी नियमों को ताक पर रखकर बहुत कुछ होता है; लेकिन फिर भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। क्योंकि इन शिक्षा संस्थानों से होने वाली अंधी कमायी में हिस्सेदारी भी होती ही होगी।

दरअसल, स्कूल या कॉलेज खोलने के लिए क़रीब 17 तरह के दस्तावेज़ ज़रूरी होते हैं, जिनमें ज़मीन की ख़रीद का एफिडेविट, बिल्डिंग का फिटनेस सर्टिफिकेट, कंप्लीशन सर्टिफिकेट, जल बोर्ड से जल परीक्षण रिपोर्ट, बिल्डिंग का साइट प्लान, बैंक से बनवाया गया एफडी के बदले में नो-लोन सर्टिफिकेट के साथ-साथ कई और दस्तावेज़ चाहिए होते हैं। इसके अलावा प्राइवेट स्कूल या कॉलेज या यूनिवर्सिटी चलाने के लिए शिक्षा विभाग के द्वारा जारी सख़्त दिशा-निर्देश और कई सख़्त नियमों का पालन करना होता है। मसलन अगर किसी को शहरी क्षेत्र में 5वीं तक का स्कूल खोलना है, तो उसके लिए स्कूल की बिल्डिंग के अलावा 500 वर्ग गज़ का खेल का मैदान होना ही चाहिए। इसी प्रकार से गाँव में स्कूल खोलना है, तो स्कूल की बिल्डिंग के अलावा 1,000 वर्ग गज़ का खेल का मैदान होना चाहिए। दोनों ही जगह पर कम से कम 270 वर्ग फुट के तीन क्लासरूम, 150 वर्ग फुट का एक स्टाफ रूम और 150 वर्ग फुट का एक प्रिंसिपल रूम होना चाहिए। इसी प्रकार से 8वीं तक के स्कूल में इन सबसे अलग 600 वर्ग फुट की एक विज्ञान प्रयोगशाला भी अनिवार्य है। इसके अलावा इन दोनों प्रकार के स्कूलों में एक 400 वर्ग फुट का अलग कमरा होना चाहिए। इसी प्रकार से शहर में कॉलेज खोलने के लिए 3,000 वर्ग मीटर और गाँव में कॉलेज खोलने के लिए मालिक या ट्रस्ट या कम्पनी या सामाजिक संगठन के पास कम-से-कम 6,000 वर्ग मीटर ज़मीन होनी चाहिए। सभी प्रकार के स्कूलों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज में बड़ी पार्किंग, बच्चों की सुरक्षा के पूरे इंतज़ाम होने चाहिए। प्री मेडिकल की व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन खेल के मैदान तो दूर की बात, उत्तर प्रदेश में ज़्यादातर स्कूल-कॉलेज छोटी-छोटी बिल्डिंगों में चल रहे हैं, जहाँ न कोई सुरक्षा इंतज़ाम है और न ही पार्किंग की ही व्यवस्था। कई स्कूल और कॉलेज तो भीड़भाड़ वाले इलाक़ों में बिलकुल सड़क पर बने हैं, जहाँ से तेज़ रफ़्तार से दिन भर वाहन गुज़रते हैं। उत्तर प्रदेश में क़रीब 80 फ़ीसदी से ज़्यादा स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में सरकारी मानकों पर खरे नहीं उतर रहे है; लेकिन फिर भी धड़ल्ले से चल रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)