कश्मीर में सिर्फ़ कश्मीरी रहेंगे?

अनुच्छेद-370 निरस्त होने के बाद भी घाटी में नहीं खुले हैं ग़ैर-कश्मीरी लोगों के बसने के रास्ते!

केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 के निरस्त करने और ग़ैर-अधिवासित भारतीय नागरिकों द्वारा सम्पत्ति ख़रीद पर प्रतिबंध हटाने के बावजूद कश्मीर में ग़ैर-कश्मीरी यानी अन्य राज्यों के भारतीय नागरिक सम्पत्ति ख़रीदकर वहाँ नहीं रह सकते (कश्मीरी लोगों के मुताबिक)। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि कश्मीर के निवासी अपनी (आवासीय, व्यावसायिक) ज़मीनें आदि बाहरी लोगों को किसी भी क़ीमत पर बेचने के इच्छुक नहीं हैं। हालाँकि केंद्र सरकार ने राज्यसभा में दावा किया है कि कश्मीर में ग़ैर-कश्मीरी लोगों ने ज़मीनें ख़रीदी हैं।

तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-

‘अगर कश्मीर में कोई अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद लालच में ग़ैर-कश्मीरियों, जिन्हें अक्सर बाहरी कहा जाता है; को ज़मीन बेचने का विकल्प चुनता है, तो ज़मीन बेचने वाले को अपने साथी कश्मीरियों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा जो बाहरी लोग कश्मीर में ज़मीन ख़रीदेंगे, उन्हें भी कश्मीर के लोगों के विरोध का सामना करना पड़ेगा; क्योंकि वे बाहरी लोगों को कश्मीर में बसने की अनुमति देने के लिए तैयार नहीं होंगे।’ कश्मीर के एक टूर ऑपरेटर गुलज़ार अहमद भट ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से बातचीत में कश्मीर के हालात कुछ इस तरह बयाँ किये। 

गुलज़ार ने बताया कि अगर बाहरी लोग उन्हें (कश्मीरियों को) ज़मीन की दोगुनी क़ीमत भी दे दें, तो भी वे उन्हें (बाहरियों को) अपनी ज़मीन नहीं बेचेंगे। गुलज़ार ने दलील दी कि अनुच्छेद-370 हटाये जाने के बाद अगर कश्मीर के लोग अपनी ज़मीन बाहरी लोगों को बेचना शुरू कर देते हैं, तो बाहरी लोगों की बाढ़ आ जाएगी और वे (बाहरी लोग) घाटी में बस जाएँगे। गुलज़ार ने कहा कि इससे न केवल घाटी की जनसांख्यिकी बदलेगी, बल्कि कश्मीरी लोगों की पहचान गुम होने का एक गम्भीर ख़तरा भी पैदा होगा।

दरअसल 5 अगस्त, 2019 को संविधान के अनुच्छेद-370 के तहत जम्मू-कश्मीर विशेष दर्जा वापस लेने के बाद केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी की, जिसमें कहा गया था कि कोई भी भारतीय नागरिक अब जम्मू-कश्मीर के नगरपालिका क्षेत्रों में कृषि भूमि को छोडक़र भूमि ख़रीद सकता है, भले ही वह राज्य का निवासी न हो। इस अधिसूचना के बाद केंद्र सरकार ने अप्रैल, 2023 में राज्यसभा में देश को बताया कि पिछले तीन वर्षों में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में बाहर के 185 लोगों ने ज़मीन ख़रीदी है।

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में राज्य के बाहर के कुल 185 व्यक्तियों ने वर्ष 2020, 2021 और 2022 के दौरान ज़मीन ख़रीदी है। इनमें से एक व्यक्ति ने सन् 2020 में, 57 लोगों ने सन् 2021 में और 127 ने सन् 2022 में ज़मीन ख़रीदी। लेकिन सन् 2021 में कश्मीर घाटी में ‘तहलका’ द्वारा ज़मीनी स्तर पर की गयी एक वास्तविक जाँच से संकेत मिले कि कश्मीर के मूल निवासी ग़ैर-कश्मीरी भारतीयों को किसी भी क़ीमत पर अपनी ज़मीन बेचने के लिए तैयार नहीं हैं। केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद-370 हटाये जाने के बाद सन् 2021 में कश्मीर की एक यात्रा के दौरान ‘तहलका’ रिपोर्टर ने इस बारे में श्रीनगर के एक ट्रांसपोर्टर गुलज़ार अहमद भट से इस बारे में बातचीत की थी।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने गुलज़ार को यह कहते हुए एक काल्पनिक सौदा दिया कि वह कश्मीर में ज़मीन ख़रीदना चाहते हैं। गुलज़ार शुरू में हमारे लिए ज़मीन की व्यवस्था करने के लिए सहमत हुए; लेकिन बाद में यह कहते हुए इनकार कर दिया कि बाहरी लोगों को घाटी में ख़रीदने के लिए ज़मीन नहीं मिलेगी। हालाँकि गुलज़ार के अनुसार, अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद बाहरी लोग क़ानूनी रूप से कश्मीर में ज़मीन ख़रीद सकते हैं। लेकिन कोई भी कश्मीरी दोगुनी क़ीमत मिलने पर भी अपनी ज़मीन ग़ैर-कश्मीरी को नहीं बेचेगा।

गुलजार

रिपोर्टर : ये बताइए, 370 हटने के बाद में इस इलाक़े में, यहाँ ज़मीन लेना चाहता हूँ। मिल जाएगी?

गुलज़ार : क़ानूनन तो आप ले सकते हैं, क्योंकि 370 तोड़ दिया ये लोग। मगर हम कश्मीरी आपको ज़मीन बेचने के लिए नहीं तैयार हैं। चाहे आप हमको डबल क़ीमत दें। क्योंकि इससे हमारी पहचान ही नहीं रहेगी। इतना बड़ा मुल्क हिन्दुस्तान, हमारी पॉपुलेशन (जनसंख्या) एक करोड़ 30 लाख है- जे एंड के (जम्मू और कश्मीर) की, उसमें 70-80 लाख टोटल कश्मीर में हैं। इसमें अगर बाहर से एक करोड़ लोग बसने आ गये, तो हमारी पहचान कहाँ रही? हम तो फिर गुम हो जाएँगे।

रिपोर्टर : मैं तो मुस्लिम हूँ। आप तो कह रहे थे, आपको बेच देंगे कश्मीरी?

गुलज़ार : नहीं, वो तो मैंने आपको ऐसे ही बोला। मुस्लिम हो, हिन्दू हो, सब इंसान ही हैं। मुझे नहीं लगता कोई बेचने को तैयार होगा। यह तो फोर्स (दबाव) के बल पर टूटा ना! हमारी तो रज़ामंदी नहीं है।

रिपोर्टर : तो आप यह कह रहे हैं, कश्मीर में कोई भी अपनी ज़मीन नॉन-कश्मीरी (ग़ैर-कश्मीरी) को नहीं बेचेगा?

गुलज़ार : नहीं बेचेगा। जहाँ तक मेरा सोचना है, मेरा तजुर्बा है, नहीं बेचेगा।

गुलज़ार ने हमें बताया कि वह एक ड्राइवर है, और अगर हम उसे उसकी ज़मीन के बाज़ार मूल्य का 10 गुना भी ऑफर करते (देते) हैं, तो भी वह ज़मीन हमें नहीं बेचेगा। गुलज़ार का कहना है कि कोई भी ईमानदार कश्मीरी व्यक्ति अपनी ज़मीन बाहरी लोगों को नहीं बेचेगा, चाहे वे (बाहरी) उसे कितनी भी ऊँची क़ीमत क्यों न दें। कश्मीरी ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जिससे अगली पीढ़ी का भविष्य ख़राब हो।

रिपोर्टर : आप इतनी बेहतरीन जगह घुमा रहे हैं, पहलगाम में; यहाँ दिलवा दीजिए।

गुलज़ार : मैं तो यही कह रहा हूँ, अगर 10के (10 हज़ार) की चीज़ के आप एक लाख दोगे, तो नहीं बेचेगा जिसके पास जमीर है। सीरियसली तो कोई नहीं बेचेगा। मैं एक ड्राइवर हूँ। अगर मेरे पास एक लाख की ज़मीन है, आप कहोगे 10 लाख दूँगा, मैं तो नहीं बेचूँगा। मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा कि आने वाली जनरेशन यह बोलेगी कि हमारे पुरखों ने ये किया।

गुलज़ार ने तर्क दिया कि ग़ैर-कश्मीरी भारत में और कहीं भी जाकर बस सकते हैं। इसके लिए कश्मीर में ही क्यों? उन्होंने कहा कि अगर किसी कश्मीरी ने लालच आकर में घाटी में अपनी ज़मीन बाहरी लोगों को बेचने का फ़ैसला किया, तो उसे स्थानीय लोगों के ग़ुस्से का सामना करना पड़ेगा। और बाहरी लोगों को भी यहाँ कठिन समय का सामना करना पड़ेगा; क्योंकि स्थानीय लोग उन्हें बसने की अनुमति नहीं देंगे।

रिपोर्टर : तो आप ये चाहते हैं कि हम यानी नॉन कश्मीरी कहीं भी जाकर बस जाएँ, मगर कश्मीर में नहीं?

गुलज़ार : बिलकुल, हम तो नहीं देंगे। मुझे नहीं लगता जिसका ज़मीन होगा, अच्छी सोच होगी, वो यह करेगा। बाकी लालच वाले लोगों की कमी नहीं है। फिर भी अगर कोई करेगा, तो उसको अपने लोगों का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि वो उसका विरोध करेंगे। सपोज करो, यह इलाक़ा हो गया; यहाँ आपको कोई ज़मीन बेच दे। …तो पहले तो आप ही नहीं आ पाओगे। मगर फिर भी अगर आप आ गये, तो लोग आपको अलग नज़र से देखेंगे। आप सेटल (स्थापित) नहीं हो पाओगे।

गुलज़ार ने कहा कि बाहरी लोगों के लिए कश्मीर में आकर बसना बहुत मुश्किल होगा। स्थानीय क्षेत्र के लोग उन्हें घाटी में नहीं बसने देंगे। अगर कुछ कश्मीरी लोग ग़ैर-कश्मीरियों को अपनी ज़मीन बेच भी देते हैं, तो नये लोग (अनिवासी) $खुद को सैकड़ों स्थानीय लोगों के बीच रहने में परेशानी महसूस करेंगे; क्योंकि कश्मीर के लोग उनके साथ किसी हाल में घुल-मिल नहीं सकते। वहीं बाहरी लोग अपनी बातें और समस्याएँ उनसे साझा नहीं कर सकेंगे। स्थानीय कश्मीरी लोगों का प्रतिरोध उनका रहना बहुत कठिन बना सकता है। गुलज़ार यह भी बताते हैं कि यहाँ तक कि कश्मीरी पंडित, जो मूल रूप से कश्मीर के हैं; वापस नहीं आना चाह रहे हैं। इससे क्षेत्र में बाहरी लोगों की स्वीकृति के बारे में संदेह पैदा होता है।

रिपोर्टर : क्यों सेटल नहीं हो पाएँगे?

गुलज़ार : आप तो 2-3 लोग देख रहे हो, जो लालच में आपको बेच दें। पर 100 लोगों के बीच में आप कैसे रहोगे, जो इसका विरोध करते हैं? नहीं रह पाओगे ना!

रिपोर्टर : अच्छा, वो उनको रहने नहीं देंगे?

गुलज़ार : जब उनका विरोध होगा आपकी तरफ़, तो आप कैसे रह पाओगे? जब 100 लोगों में से 95 ऐसे होंगे, जो आपको एक्सेप्ट (स्वीकार) नहीं करेंगे अपने इलाक़े में, वो एक्सेप्ट नहीं करेंगे आउट ऑफ स्टेट (बाहरी राज्य) के आदमी को यहाँ बसना। जैसे कश्मीरी पंडित हैं, वो यहाँ के अपने लोग हैं। उनकी ज़मीनें हैं। वो आ सकते हैं। हम तो कहते (हैं) उनसे- आप आ जाओ। पर जब वो नहीं आ रहे हैं, तो आउट ऑफ दि स्टेट (बाहर के राज्य) का कोई आकर कैसे बसेगा यहाँ पर? …370 तोड़ा, क़ानूनी तो आप कुछ भी ले सकते हो। आपके डाक्यूमेंट्स (दस्तावेज़) भी बन सकते हैं। मसला ये है यहाँ आकर रहने का। वो बहुत मुश्किल है।

सन् 2021 में गुलज़ार से मिलने के बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर ने 2023 में कश्मीर के एक और रियलिटी एस्टेट एजेंट आसिफ़ शेख़ से बात की। यह पूछे जाने पर कि क्या हम अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद कश्मीर में सम्पत्ति ख़रीद सकते हैं? आसिफ़ शेख़ ने जवाब दिया कि उन्होंने कश्मीर में बाहरी लोगों की कोई रजिस्ट्री नहीं देखी है। वे (मंत्री) केवल ख़बरों में प्रचार करते हैं; लेकिन वास्तविकता बिलकुल अलग है। आसिफ़ ने कहा कि कश्मीर के आधार कार्ड के बिना कश्मीर में सम्पत्ति की रजिस्ट्री सम्भव नहीं है। 

आसिफ़ : समझ नहीं आ रहा, प्रॉपर्टी नाम हो रही है या नहीं?

रिपोर्टर : नॉन-कश्मीरी की रजिस्ट्री नहीं हो रही?

आसिफ़ : मैंने नहीं देखी होते हुए। न्यूज में तो ये (मंत्री) बोलते हैं, मगर पेपर्स (कागज) आने चाहिए ना हाथ में! …पेपर्स तो नहीं आ रहे।

रिपोर्टर : मतलब रजिस्ट्री नहीं हो रही है?

आसिफ़ : रजिस्ट्री का अभी कुछ समझ नहीं आ रहा; …नहीं हो रही है। जो उसमें मेन चीज़ें माँगते हैं, वो तो बाहर वाले के पास हैं नहीं। कश्मीरी जो बाहर रहता है, अगर उसके पास आधार कार्ड बाहर का है, तो वो नहीं ले पा रहा है। हाँ, बीइंग अ कश्मीरी (कश्मीरी होने पर भी) वो नहीं ले पा रहा, क्योंकि उसका आधार कार्ड बाहर का है।

रिपोर्टर : मतलब, अगर कश्मीर में प्रॉपर्टी (सम्पत्ति) लेनी है, तो आधार कार्ड होना चाहिए कश्मीर का?

आसिफ़ : नहीं मिलेगी।

आसिफ़ ने हमें बताया कि जहाँ तक उनकी जानकारी है, किसी भी बाहरी व्यक्ति ने कश्मीर में सम्पत्ति नहीं ख़रीदी है। उसने कहा कि उसे इस क्षेत्र में बाहरी (लोगों के) सम्पत्ति पंजीकरण का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है। आसिफ़ ने दावा किया कि कश्मीर में सम्पत्ति के लेन-देन के लिए जम्मू-कश्मीर का आधार कार्ड होना सख़्त ज़रूरी है। उसने गोवा में रहने वाले कुछ कश्मीरियों में से एक का मामला भी साझा किया, जिनके पास गोवा का आधार कार्ड था; लेकिन वे कश्मीर में सम्पत्ति ख़रीदने में असमर्थ थे। उन्हें इसके बजाय जम्मू-कश्मीर आधार कार्ड प्राप्त करने की सलाह दी गयी थी। आसिफ़ ने तर्क दिया कि अगर जम्मू-कश्मीर आधार कार्ड के बिना कश्मीरियों को भी सम्पत्ति की ख़रीद में बाधाओं का सामना करना पड़ता है, तो यह सवाल उठाता है कि कश्मीर आधार कार्ड के बिना बाहरी लोग भी ऐसा कैसे कर रहे हैं? उसने कहा कि अनुच्छेद-370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त करने के ख़िलाफ़ एक याचिका उच्चतम न्यायालय में लंबित है।

रिपोर्टर : लेकिन आधार कार्ड पूरे इंडिया में वैलिड है, कहीं भी ख़रीद सकते हैं?

आसिफ़ : जनाब! जो कश्मीरी है, ख़रीद पाते हैं? न। मेरे पास तीन कश्मीरी आये हैं; मैंने बोला पहले आधार कार्ड बनवाओ, उसके बाद।

रिपोर्टर : अच्छा! जो कश्मीरी है, उसको मिल जाएगी? उसकी रजिस्ट्री हो जाएगी?

आसिफ़ : मैं ये बोल रहा हूँ, उसको कश्मीरी होकर नहीं मिल रही। यार! समझ नहीं रहे हो बात। क्लाइंट (ग्राहक) है एक मेरा। वो गोवा में रहता है तीन साल से। कश्मीरी है वो, उसका आधार कार्ड गोवा का है। उसकी रजिस्ट्री ही नहीं हो रही।

रिपोर्टर : लेकिन मैं ये पूछ रहा हूँ- अगर कश्मीरी आधार कार्ड हो, तो रजिस्ट्री हो जाएगी?

आसिफ़ : उस आधार पर तो हो जानी चाहिए।

रिपोर्टर : जी!

आसिफ़ : हाँ-हाँ।

रिपोर्टर : अभी कोई नॉन कश्मीरी की रजिस्ट्री नहीं हुई है आपके हिसाब से?

आसिफ़ : हमारे हिसाब से तो नहीं हुई है। हमने पूछा भी था बहुत लोगों से। क्योंकि इसका तो कुछ केस (मुक़दमा) चल ही रहा है ना! सुप्रीम कोर्ट कुछ ऑर्डर (आदेश) देगा। अभी नहीं हुई वो ऑर्डर।

आसिफ़ ने कहा कि जहाँ तक वह जानते हैं, बाहरी लोगों ने कश्मीर में सम्पत्ति नहीं ख़रीदी है। उसने सम्पत्ति लेन-देन के लिए जम्मू-कश्मीर आधार कार्ड की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। आसिफ़ ने उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट वर्तमान में कई अनुच्छेद-370 याचिकाओं की समीक्षा कर रहा है, और कश्मीर में सम्पत्ति ख़रीदने वाले बाहरी लोगों के बारे में परिणाम उन फ़ैसलों पर निर्भर करेगा। उसने यह भी बताया कि उचित पंजीकरण के बिना कश्मीर में सम्पत्ति में चार करोड़ रुपये का निवेश करने में बहुत जोखिम है, और इतनी बड़ी मात्रा में धन लगाना पानी में (बेकार) जा सकता है।

रिपोर्टर : हाँ, 370 की सुनवाई तो अभी चल रही है कश्मीर की?

आसिफ़ : हाँ, तो वो तो अभी चल ही रहा है ना! देखो वो पेपर्स सब लागू होते हैं; रजिस्ट्री तब होती है, जब वो केस टोटली (पूरी तरह) बन्द हो जाएगा। केस तो अभी चल ही रहा है ना!

रिपोर्टर : 370 हटने का कुछ फ़ायदा नहीं हुआ नॉन-कश्मीरी को? नहीं ख़रीद सकता कश्मीर में प्रॉपर्टी?

आसिफ़ : फ़िलहाल तो नहीं। वो (ग़ैर-कश्मीरी) न्यूज में बोलता है ख़रीदेगा; मगर बात है ना- ऑन अ ब्रॉडर लेवल (व्यापक स्तर पर)। मैं भी बोल रहा हूँ ख़रीदूँगा मैं। मगर पैसे तो मेरी जेब से निकल रहे हैं ना! गवर्नमेंट (सरकार) की जेब से थोड़ी निकल रहे हैं। और जब पैसे मेरी जेब से निकल रहे हैं, तो पेपर मुझे मिलने चाहिए ना! वहाँ जब पेपर की बात है, तो हर आदमी ये बोलता है- हमें नहीं पता। इसमें तो बंदा फँस ही जाएगा। जो चार करोड़ लेकर आएगा, या 10 करोड़ इनवेस्ट करेगा, वो तो फँस ही जाएगा ना!

अब, आसिफ़ ने ज़ोर देकर कहा कि बाहरी लोगों को ज़मीन बेचने की कश्मीरियों की इच्छा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होती है। उसने कहा कि अगर सरकार बड़े उद्योगों को ज़मीन बेचने में कामयाब नहीं हुई है, तो यह सम्भावना नहीं है कि कश्मीरी आसानी से ग़ैर-कश्मीरियों को अपनी सम्पत्ति दे देंगे।

रिपोर्टर : वैसे, अगर ये सब नॉर्मली (सामान्य) हो, जाता है, तो कश्मीरी बेच देगा ज़मीन नॉन-कश्मीरी को या नहीं?

आसिफ़ : ऐसे तो नहीं बेचेगा। अल्लाह बेहतर जाने, क्योंकि यू डोंट नाउ दि फ्यूचर, वट (आप भविष्य को नहीं जानते हैं, लेकिन) ऐसे तो नहीं बेचेगा।

रिपोर्टर : कोई कश्मीरी नॉन-कश्मीरी को ज़मीन नहीं बेचेगा?

आसिफ़ : ऐसे तो नहीं बेचेगा। हाँ, जहाँ अभी तक गवर्नमेंट (सरकार) नहीं बेच पायी है, तो कश्मीरी कहाँ बेचेगा। …गवर्नमेंट अभी इंडस्ट्री (उद्योग जगत) को नहीं बेच पायी है। सुना आपने अभी तक कुछ हुआ, बड़ी इंडस्ट्री को बेचा? नहीं ना! वो तो गवर्नमेंट के पास है, वो तो कश्मीर के पास नहीं है। अभी कुछ समझ नहीं आ रहा; क्या किया इन्होंने, क्या नहीं किया? नॉर्मली (सामान्यत:) तो कोई कश्मीरी नॉन-कश्मीरी को ज़मीन नहीं बेचेगा। मगर दैट डिपेंड्स पर्सन टू पर्सन ( मगर ये व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है।)

रिपोर्टर : समझ गया मैं आपकी बात आसिफ़ साहब!

कश्मीरी रियल एस्टेट एजेंट आसिफ़ ने अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद हमें इस क्षेत्र में किसी भी सम्पत्ति की पेशकश करने से परहेज़ किया। आसिफ़ से बातचीत के बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर ने एक कश्मीरी एमबीबीएस डॉक्टर अज़हर इब्राहिम से बातचीत की। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने कश्मीर में सम्पत्ति ख़रीदने का एक काल्पनिक सौदा प्रस्तुत किया और इसके लिए अज़हर से मदद माँगी। जवाब में अज़हर इब्राहिम ने दृढ़ता से कहा- ‘कश्मीरी अपनी सम्पत्ति बाहरी लोगों को नहीं बेचेंगे।’

अज़हर

रिपोर्टर : अच्छा, यह बताओ कश्मीर में कोई ज़मीन मिल जाएगी?

अज़हर : बाहर वालों को तो नहीं बेचेंगे। …नहीं बेचते।

रिपोर्टर : नॉन-कश्मीरी को?

अज़हर : नहीं-नहीं, मुश्किल है।

रिपोर्टर : नहीं, अब तो 370 हट गया है ना! अब तो कोई नॉन कश्मीरी भी कश्मीर में ज़मीन ख़रीद सकता है ना!

अज़हर : अब कोई बेचना ही नहीं चाहेगा, तो उसको क्या बोलेंगे? वो मसला है।

रिपोर्टर : देना क्यूँ नहीं चाहेगा, वजह क्या है उसकी?

अज़हर : कश्मीरी, कश्मीरी को ही देता है शुरू से; ट्रस्ट इश्यू ( विश्वास के मसले) होते हैं।

रिपोर्टर : मतलब नॉन-कश्मीरी पर ट्रस्ट (विश्वास) नहीं है?

अज़हर : बहुत सारे नहीं करते। वो प्रेफर (पसन्द) करते हैं अपनी साइड (तरफ़) के लोगों को।

अज़हर ने कहा कि उसे इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद किसी बाहरी व्यक्ति ने कश्मीर में कोई सम्पत्ति ख़रीदी है या नहीं। हालाँकि उसने कश्मीर घाटी में सम्पत्ति हासिल करने की सम्भावना के बारे में हमारी ओर से पूछताछ करने की पेशकश की।

रिपोर्टर : अभी तक 370 हटने के बाद किसी ने, नॉन-कश्मीरी ने ज़मीन ली है कश्मीर में?

अज़हर : कोई आइडिया (अंदाज़ा) नहीं है।

रिपोर्टर : मुझे दिलवा दो ज़मीन।

अज़हर : पूछना पड़ेगा किसी से, ऐसे तो आइडिया नहीं है।

रिपोर्टर : किसी से पूछोगे?

अज़हर : किसी से बोलूँगा, वो आगे पूछेगा।

रिपोर्टर : बोल देना, मुस्लिम है। और नॉन-कश्मीरी है।

अज़हर : ठीक है।

अज़हर के बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर ने ग़ुलाम मुस्तफ़ा से बात की, जो कश्मीर घाटी का ही रहने वाला है। ग़ुलाम मुस्तफ़ा एक समाजसेवी है और एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी भी है।

जब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने ज़मीन के एक काल्पनिक सौदा देते हुए ग़ुलाम से कहा कि वह कश्मीर घाटी में एक सम्पत्ति ख़रीदना चाहते हैं, तो उसने अन्य लोगों द्वारा व्यक्त की गयी भावनाओं को भी व्यक्त किया। ग़ुलाम ने कहा कि अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के सरकार के फ़ैसले ने कश्मीरी लोगों की भावनाओं को आहत किया है। उन्होंने (कश्मीरियों ने) अभी भी इस फ़ैसले को स्वीकार नहीं किया है और ग़ुस्से में हैं। इसलिए जो कोई भी कश्मीर में अपनी सम्पत्ति ग़ैर-कश्मीरियों को बेचने का फ़ैसला करता है, वह अन्य कश्मीरियों से सम्भावित सामाजिक बहिष्कार से बचने के लिए गुप्त रूप से ही ऐसा करे, तो अलग बात।

ग़ुलाम ने बताया कि उसकी जानकारी में किसी कश्मीरी द्वारा बाहरी लोगों को सम्पत्ति बेचने का कोई मामला नहीं मिला है; कम-से-कम अपने इलाक़े में तो नहीं। ग़ुलाम ने बताया कि अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद ग़ैर-कश्मीरियों को वास्तव में क़ानूनी रूप से कश्मीर में सम्पत्ति ख़रीदने की अनुमति है। इसके अतिरिक्त जिन कश्मीरियों को बाहरी लोगों से अपनी सम्पत्ति के अच्छे दाम के प्रस्ताव मिलते हैं, तो वे भी उन्हें (बाहरियों को) उसे बेचने के लिए स्वतंत्र हैं। हालाँकि जो लोग इस तरह की बिक्री करेंगे, तो उन्हें साथी कश्मीरियों से सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ सकता है।

बहरहाल, अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद कश्मीर घाटी में ग़ैर-अधिवासित भारतीय नागरिकों द्वारा सम्पत्ति ख़रीद पर प्रतिबंध को हटाने के विवाद के बीच ‘तहलका’ रिपोर्टर ने ज़मीनी स्तर पर इस हक़ीक़त की जाँच करने के लिए कश्मीरी आबादी के अलग-अलग लोगों से बात की, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या कश्मीर के लोग अपनी सम्पत्ति बाहरी लोगों को बेचने के लिए तैयार हैं? हमने जिन लोगों से बात की, उन सभी ने ज़ोर देकर कहा कि कश्मीरी अपनी सम्पत्ति बाहरी लोगों को नहीं बेचेंगे। एक ने तो यहाँ तक कह दिया कि जो भी अपनी सम्पत्ति बाहरी लोगों को बेचेगा, उसे स्थानीय स्तर पर सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ेगा और बाहरी लोगों को भी कश्मीर में बसने की अनुमति नहीं दी जाएगी।