भारत ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र का 1945 में तैयार किया गया तंत्र अपनी सदस्यता की व्यापक चिंताओं को सामने रखने में अक्षम हो रहा है। भारत के विदेश मंत्री इस जयशंकर ने कहा कि कुछ शक्तियां अपने लाभ पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं और जब जी20 की बात करें तब अपनी सदस्यता के स्वरूप को देखते हुए इसके अपने विषय है और इसलिए हम बदलाव की मांग कर रहे हैं।
विदेश मंत्री ने यह बात वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ डिजिटल शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन के एक सत्र को संबोधित करते हुए कही। अपने संबोधन में उन्होंने अवहनीय कर्ज, कारोबारी बाधा, अनुबंधित वित्तीय प्रवाह और जलवायु दबाव जैसी चुनौतियों का भी उल्लेख किया जिनका विकासशील देशों को सामना करना पड़ रहा है।
जयशंकर ने इस अवसर पर एक नये वैश्वीकरण प्रारूप की दिशा में सामूहिक रूप से काम करने का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा – ‘एक अधिक लोकतांत्रिक और समतामूलक विश्व का निर्माण वृहद विविधीकरण और क्षमताओं के स्थानीयकरण के आधार पर ही हो सकता है।’
यूक्रेन संघर्ष के प्रभावों का उल्लेख करते हुए विदेश मंत्री ने कहा – ‘इसके कारण आर्थिक स्थिति और जटिल हो गई है क्योंकि ईंधन, खाद्य और उर्वरकों की कीमतें और उपलब्धता हमारे लिये महत्वपूर्ण चिंताओं के रूप में उभरी हैं। इससे कारोबार और वाणिज्यिक सेवाएं बाधित हुई हैं, हालांकि वैश्विक परिषदों में इन विषयों को जितनी तवज्जों मिलनी चाहिए थी, उतनी नहीं मिली।’
जयशंकर ने कहा कि जी20 की भारत की अध्यक्षता में जी20 समूह के नेताओं के बीच हरित विकास समझौते पर आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाएगा। यह सम्पूर्ण विश्व में अगले दशक में हरित विकास को मजबूती प्रदान करने का खाका होगा। विदेश मंत्री ने कहा कि यह टिकाऊ जीवन शैली में निवेश, जलवायु कार्रवाई के लिये हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा और टिकाऊ विकास लक्ष्य को गति प्रदान करके होगा।
उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब अलग अलग देश विकास के विभिन्न स्तरों पर है और डाटा प्रेरित नवाचार की तैयारी में जुटे हैं, तब हम डाटा के लिये विकास पर चर्चा को आगे बढ़ा रहे हैं। विदेश मंत्री ने डाटा से जुड़ी क्षमताओं, नवाचार और प्रौद्योगिकी में अंतरराष्ट्रीय सहयोग खास तौर पर वैश्विक दक्षिण के देशों में सहयोग पर जोर दिया ताकि सभी के लिये अवसर सृजित किये जा सकें।