आवारा जानवरों का बढ़ता संकट: गायों, कुत्तों और बंदरों की बढ़ती संख्या ने मचाया हाहाकार
ब्रज क्षेत्र में सड़कें बनीं मैदान-ए-जंग, सरकारी कोशिशें नाकाफी
सड़कों पर अब सिर्फ गाड़ियाँ नहीं दौड़तीं, मौत के साए भी बेखौफ मंडराते हैं!! जानलेवा कुत्तों के झुंड, उग्र सांड, आक्रामक बंदर और आवारा गायें शहरों की शांति को निगल चुके हैं। कहीं स्कूल से लौटता बच्चा कुत्ते के हमले में घायल होता है, तो कहीं बाइक सवार सांड की टक्कर से सड़क पर गिरकर जान गंवा बैठता है। छतों पर उछलते बंदर न सिर्फ लोगों को घायल करते हैं, बल्कि घरों और फसलों को भी तबाह कर रहे हैं। हर मोड़ पर खतरा घात लगाए बैठा है, लेकिन प्रशासन अब भी आंख मूंदे बैठा है।
बृज खंडेलवाल
बाकी शहर तो छोड़िए, ताज महल क्षेत्र तक में आवारा कुत्तों, बंदरों और कई बार लड़ते झगड़ते साँड़ और गायों ने पर्यटकों को आतंकित कर रखा है।
ब्रज मंडल में आवारा जानवरों—गायों, कुत्तों और बंदरों—का सैलाब सड़कों और खेतों को मैदान-ए-जंग में तब्दील कर रहा है।
गोवंश, कुत्तों और बंदरों की बढ़ती संख्या ने योगी आदित्यनाथ सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, जिससे जान-माल का नुकसान और सार्वजनिक सुरक्षा खतरे में पड़ गई है।
मथुरा और वृंदावन में आवारा गायों के झुंड सड़कों पर कब्जा जमाए हुए हैं, जहाँ आक्रामक सांड वाहनों और पैदल चलने वालों पर हमला कर रहे हैं। पिछले हफ्ते, वृंदावन के एक मंदिर के पास एक आवारा सांड ने एक 62 वर्षीय महिला को जख्मी कर दिया। वहीं, राज्यभर में अनुमानित 8.5 लाख आवारा कुत्तों ने काटने की घटनाओं में बढ़ोतरी की है—सिर्फ आगरा में ही अस्पताल रोजाना 200 मामले दर्ज कर रहे हैं। शहरी इलाकों में बंदरों का आतंक भी बढ़ा है; हाल ही में गोवर्धन में एक बंदरों के झुंड ने किराना दुकान का सारा सामान तबाह कर दिया।
मथुरा के गाँवों में किसान आवारा गायों के हमलों से परेशान हैं, जो खेतों को रौंदकर प्रति एकड़ 75,000 रुपये तक का नुकसान पहुँचा रही हैं। बंदरों के झुंड बागों को उजाड़ रहे हैं। “काँटेदार तार लगाने से खर्चा बढ़ रहा है,” कुत्तों के हमलों ने भी पशुओं को निशाना बनाया है—पिछले महीने बरसाना के पास एक गाँव में 15 बकरियों को कुत्तों ने मार डाला।
2025-26 के बजट में आवारा जानवरों के प्रबंधन के लिए 2,500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जिसमें 200 करोड़ नए गौशालाओं, 150 करोड़ कुत्तों की नसबंदी और 50 करोड़ बंदरों को हटाने के लिए हैं। मुख्यमंत्री निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना के तहत अब गोद ली गई गाय के लिए 60 रुपये प्रतिदिन दिए जाते हैं, लेकिन संकट इन कोशिशों पर भारी पड़ रहा है।
8,000 से ज्यादा गौशालाओं में 14 लाख गायें हैं, मगर जगह और दवाइयों की कमी से जूझ रही हैं। “हमारे पास न जगह बची है, न दवाइयाँ—कई जानवर बीमार पड़े हैं,” मथुरा की एक गौशाला के प्रबंधक ने बताया। कुत्तों की नसबंदी का लक्ष्य (सालाना 2 लाख) भी पिछड़ रहा है, जबकि बंदरों को जंगलों में भेजने की योजना पर वन्यजीव संगठनों ने सवाल उठाए हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के मुताबिक, 2025 में यूपी की सड़कों पर गायों से जुड़े 120 हादसे हुए। कुत्तों के काटने से स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है—10 जिलों में एंटी-रेबीज वैक्सीन की कमी बताई गई है। बंदरों के हमलों ने तीर्थयात्रियों को पर्यटन स्थलों से दूर कर दिया है, वृंदावन के होटल व्यवसाय को आमदनी में गिरावट का सामना करना पड़ा है।
मंदिरों के आसपास जानवरों को खिलाने की आदत ने शहरी इलाकों में इनकी तादाद बढ़ा दी है। “प्रसाद चढ़ाने के बाद जानवर बाजारों में घुस आते हैं,” एक पुजारी ने कहा।
गोबर और गोमूत्र आधारित उत्पादों को बढ़ावा देने की कोशिशें भी बाजार की मांग के अभाव में धीमी पड़ गई हैं। कुत्तों को गोद लेने और बंदरों को जंगलों में भेजने की मुहिम को जनसमर्थन नहीं मिल रहा।
विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ बजट बढ़ाने से काम नहीं चलेगा। नसबंदी अभियानों को तेज करने, जानवरों को खिलाने पर नियंत्रण और बेहतर आश्रयों के निर्माण पर जोर देना होगा। बिना सख्त और नवाचारी कदमों के, उत्तर प्रदेश में यह संकट और गहरा सकता है।