पंडित प्रेम बरेलवी
म्यांमार में भूकंप ने हज़ारों लोगों की जान ले ली, लाखों लोगों को बर्बाद कर दिया और अरबों की संपत्ति तहस-नहस कर दी। प्रकृति से खिलवाड़ का ख़ामियाज़ा इंसान को कितनी भयंकर मौत का दर्द झेलकर चुकाना पड़ता है, इसका इस दु:खद तबाही से बड़ा उदाहरण आज दूसरा कोई नहीं है। फिर भी इंसान अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहा है। बहुत-से लोग महज़ चार दिन की अपनी इस एक ज़िन्दगी में ख़ुशियाँ भरने के लिए दूसरों की ख़ुशियाँ छीनने में लगे हैं। दुनिया पर शासन करने के लिए तबाहियों के इंतज़ामात में लगे हुए हैं। सत्ता और धन के नशे में इतने मदमस्त हैं कि उन्हें पाप भी पाप नहीं लगता।
युद्ध, दंगे, अपराध, अकड़, षड्यंत्र, पाखंड, राजनीति, कुकर्म, अधर्म, धूर्तता, नफ़रत आदि सब वे ख़तरनाक हथियार हैं, जिन्हें चंद स्वार्थी इंसानों ने अपने सुख के लिए ईज़ाद किया है। लोगों की जेब काटने से लेकर जंगलों और पहाड़ों के कटान तक ऐसे ही स्वार्थी लोगों का हाथ है। ये लोग अपने अपराधी चेहरों को छिपाने के लिए झूठ और दिखावे के मुखौटे लगाये घूमते हैं। अहंकार ऐसे लोगों की वह नस है, जिसे छूते ही उनका क्रोध जाग जाता है। सत्ता और पैसे की ताक़त के दम पर यह हिमाक़त करने का प्रयास करने वाले को किसी भी आरोप में फँसा दिया जाता है। उनकी हत्या करवा दी जाती है। मगर जब मामला टक्कर का हो, तो ये लोग कसमसाकर रह जाते हैं।
मौज़ूदा केंद्र सरकार में शीर्ष पर बैठे कुछ लोग इसी कसमसाहट के दौर से गुज़र रहे हैं। हिंडनबर्ग से जैसे-तैसे छुटकारा पाने वाली केंद्र सरकार और उसकी पार्टी भाजपा की नींद अब एलन मस्क की जनरेटिव आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस (एक्सएआई) की चैटबॉट ग्रोक ने उड़ा रखी है। हालात यहाँ तक पहुँच गये हैं कि दोनों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ मुक़दमे दर्ज करा दिये हैं। केंद्र सरकार की शक्तियों का इस्तेमाल करके सत्तासीन भाजपा नेता ग्रोक का मुँह बंद करना चाहते हैं। मुँह न बंद करने पर उन्होंने ग्रोक को ही बंद कराने के प्रयास शुरू कर दिये हैं। हालाँकि वे ऐसा करने में अभी तक पूरी तरह नाकाम हैं, तो उन्होंने सरकार, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, भाजपा, संघ के बारे में सवाल पूछने वाले भारतीयों को ही धमका डाला। सवाल पूछे, तो सज़ा होगी। ग्रोक और केंद्र सरकार के बीच बढ़ी इस तनातनी में भाजपा के सत्तासीन नेता ग्रोक से नहीं निपट सके, तो सवाल पूछने वालों के कान ऐंठने पर आमादा हैं।
इस बीच कुणाल कामरा ने भाजपा नेताओं की दु:खती रगों को छू लिया है। जैसे ही पूरी भाजपा लॉबी कुणाल कामरा के पीछे पड़ी कि उनके ख़िलाफ़ कई आपराधिक मामले दर्ज करा दिये। कुणाल को आतंकवादी कहा जाने लगा। कुणाल को अपनी अग्रिम जमानत करानी पड़ी। इस बीच सर्वोच्च न्यायालय ने सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के ख़िलाफ़ दर्ज एफआईआर मामले में लोगों के मौलिक अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता को लेकर केंद्र सरकार को नसीहत दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हमारा संविधान लागू होने के 75 साल बाद भी प्रवर्तन तंत्र या तो इस महत्त्वपूर्ण मौलिक अधिकार से अनजान है या इसकी परवाह नहीं करता। साहित्य, जिसमें कविता, नाटक, फिल्में, स्टेज शो, स्टैंड-अप कॉमेडी, व्यंग्य और कला शामिल हैं; मानव जीवन को और अधिक सार्थक बनाते हैं। न्यायालय भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को बनाये रखने और लागू करने के लिए बाध्य हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इस फ़ैसले ने कुणाल कामरा, विपक्षी नेताओं और ग्रोक से सवाल पूछने वालों को राहत पहुँचायी है। लेकिन क्या भारत में लोकतंत्रिक मूल्यों की सत्ता के नशे में चूर नेताओं को परवाह है?
सत्ता के नशे में चूर नेताओं ने सवालों के तीरों और प्रकृति के प्रकोप को हमेशा शासन करने की चाह में ख़ुद ही आमंत्रित किया है। उन्होंने मरते दम तक सत्ता पर आसीन रहने के लिए लोगों के अधिकारों और प्रकृति का हनन करके अपनी ताक़त को बढ़ाने का काम किया है। लेकिन वे भूल गये कि जब तबाही होती है, तो अमीर-ग़रीब नहीं देखती। जो भी उसकी चपेट में आता है, या तो मारा जाता है या तबाह हो जाता है। फिर दूसरों को लूटकर इतना धन इकट्ठा करने का क्या फ़ायदा? और इसकी ज़रूरत भी क्या है? इस एक ज़िन्दगी के लिए आख़िर दूसरों को लूटकर अमीर बनने के बाद अगर नींद नहीं आये और लोगों के सवाल सारा सुख-चैन हराम कर दें, तो इस सबका अर्थ क्या? कहावत है- खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे। लेकिन इंसान जब खिसियाता है, तो वह दूसरों के बाल नोचना चाहता है। यह काम वे लोग पहले करते हैं, जो ग़लत होते हैं।
आज के दौर में सब एक-दूसरे के बाल नोचने में ही लगे हुए हैं। जो जितना ज़्यादा धूर्त और चालाक है, दूसरे के बाल नोचने में उतना ही कुशल है। इस मामले में ग्रोक को भी कम नहीं समझा जाना चाहिए। भविष्य में इंसानों की ज़िन्दगी में तबाही लाने वालों में से आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस भी एक ख़तरनाक हथियार साबित होगा। यह आज चंद ग़लत नेताओं के बाल नोचकर जनता को ख़ुश कर रहा है, तो सिर्फ़ इसलिए, क्योंकि उसे जनता को मानसिक रूप से अपना ग़ुलाम बनाना है।