पर आप लोगों ने पहले बहुत व्यवस्थित तरीके से जिला स्तर की कमेटियां गठित की थीं. रिजनल ऑबसर्बर बनाया, एक सेंट्रल ऑबसर्बर उसकी निगरानी कर रहा था. तो वह सब अचानक से भंग हो गया…
मिशन बुनियाद के तहत मैंने ही उसका ढांचा तैयार किया था. आप जो कह रहे हैं कि भंग हुआ वह सही नहीं है. किसी आदमी ने बैठक में विचार रखा कि कमेटियां भंग कर देनी चाहिए. कुछ लोगों ने उस पर काउंटर विचार रखे.
ताजा हालात पर एक सवाल है. आपका कहना है कि भाजपा और कांग्रेस मिलकर सरकार बनाने जा रहे थे. आप ने समय रहते उन्हें एक्सपोज कर दिया शायद इसी वजह से उन्होंने सरकार बनाने का विचार त्याग दिया है. ऐसा ही एक आरोप आप के ऊपर भी लग रहा है कि आप लोग भी कांग्रेस के कुछ विधायकों के साथ संपर्क में थे और सरकार बनाने की मंशा रखते थे. लेकिन समय रहते उन्होंने भी आपका खेल बिगाड़ दिया. यहां तक कि आपको मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा भी चल रही थी.
देखिए, यह राजनीति है. यहां सारा खेल विश्वसनीयता का है. आसिफ कुछ कहेंगे, मैं कुछ कहूंगा. जनता उसकी बात मानेगी जो ज्यादा विश्वसनीय होगा. दोनों अपना पक्ष रख रहे हैं. फैसला जनता को करना है.
मैंने योगेंद्र भाई से जो कुछ कहा वह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है. मैंने उन्हें कोई पत्र नहीं लिखा था. वह 35 लोगों के बीच चल रहा गूगल टॉक था. उसका लीक होना दुर्भाग्यपूर्ण है
हाल ही में जगह-जगह आपके लोगों ने पोस्टर लगवाकर कहा कि आपके विधायकों को 20 करोड़ रुपये में खरीदने की कोशिश हो रही है. आप अभी भी उस बात पर कायम हैं. आपके नेता अरविंद केजरीवाल ने शपथग्रहण के मंच से कहा था कि अगर कोई घूस मांगे तो उसका स्टिंग कर दीजिए. यह बताइए आपने खुद उन लोगों का स्टिंग क्यों नहीं किया जो आपके विधायकों को खरीदना चाहते थे. आपके पास तो आशीष खेतान के रूप में सबसे बड़ा स्टिंग करनेवाला पत्रकार भी है.
हम अपनी बात पर कायम हैं. देखिए क्या होता है कि जब कोई आता है तब हमे पता नहीं होता कि वह किस मकसद से आ रहा है. तो कैसे हम उसका स्टिंग कर दें.
पर बातों में आप उसे फंसा सकते थे.
हां हम कर सकते थे पर नहीं किया. हम नहीं करेंगे. यह जरूरी नहीं है कि हम स्टिंग करें. पर लोगों के सामने तो रखेंगे ही. मेरे पास एक आदमी आया और बोला कि वह मुझे खरीदना चाहता है. मैं इंतजार नहीं करूंगा. आप कह रहे हैं कि पहले स्टंग करो फिर चिल्लाना लेकिन मैं तो तुरंत ही चिल्लाना शुरू कर दूंगा. अगर वह दोबारा आएगा तो हो सकता है कि मैं स्टिंग भी कर लूं.
अब सामने आ रहा है कि आप लोग हरियाणा का भी चुनाव नहीं लड़ेंगे. इस पर आखिरी फैसला आ चुका है क्या?
हमारी नेशनल एक्जक्युटिव की बैठक होगी उसमें आखिरी फैसला होगा. उस पर अभी कुछ कहना थोड़ा जल्दबाजी होगी.
आज की तारीख में दिल्ली का चुनाव लड़ने पर ही ज्यादातर लोग एकमत हैं?
फिलहाल हमारा फोकस है कि दिल्ली में मेहनत करके सरकार बनाई जाय. इसके बाद पंजाब हमारा बहुत उपजाऊ इलाका है. वहां हम फोकस करेंगे.
पार्टी के भीतर कहीं यह सोच है कि दिल्ली सरकार से इस्तीफा देना बहुत बड़ी भूल थी.
देखिए एक बात है कि सैंद्धांतिक रूप से क्या सही था. उस लिहाज से इस्तीफा देना एकदम सही कदम था. लेकिन उससे पहले लोगों से बात भी कर लेते तो ज्यादा अच्छा रहता. अगर हम लोगों के बीच जाते तो बहुत संभव है कि लोग हमें उसूलों के आधार पर इस्तीफा देने के लिए ही कहते पर गलती यह हुई कि हमने लोगों से पूछा नहीं.
अरविंद केजरीवाल ने बनारस के चुनाव के बाद कहा कि उनसे कुछ भूले हो गईं. तो वे कौन सी भूलें थीं.
एक भूल तो यही हो गई कि लोगों से नहीं पूछा हमने. सरकार गिराना भूल नहीं थी, लोगों से न पूछना एक बड़ी चूक थी. सरकार गिराने के फैसले में लोगों की सहमति भी शामिल हो जाती तो हमारा फैसला बहुत क्रेडिबल हो जाता. मेरी व्यक्तिगत समझ यह है कि सरकार गिराकर दोबारा से बहुमत की सरकार लाना सही कदम था.
तो अबकी बार दिल्ली से क्या उम्मीद है
इस बार पांच साल पूरी सरकार चलेगी. हमारी उम्मीद यही है कि कम से कम 50 विधायक आएंगे हमारे. जिस तरह से अच्छे दिन का गुब्बारा फूट रहा है उससे हमारे पक्ष में एक लहर बन रही है.
किसी उचित मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल या किसी वरिष्ठ नेता से सवाल पूछने की गुंजाइश पार्टी के भीतर है या नहीं. क्योंकि हमने नवीन जयहिंद या कुछ अन्य मसलों में देखा कि जो भी कुछ सवाल खड़े करता है पार्टी उसके ऊपर भाजपा का एजेंट, कांग्रेस का एजेंट, टिकट का लालची जैसे आरोप लगाकर बाहर कर देती है.
अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बोलना कोई अपराध नहीं है लेकिन एंटी पार्टी एक्टिविटी करना तो अपराध है. अगर पार्टी आपके लिए कोई जिम्मेदारी तय करती है और आप दूसरे के काम में टांग अड़ाते हैं, वहां कोई असहज हालात पैदा करते हैं तो आपके लिए पार्टी में जगह नहीं है. मैं आपको तमाम ऐसे उदाहरण बता सकता हूं जिसमें अरविंद खिलाफ थे उसके बावजूद वे काम हुए हैं. जैसे चार सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का जो फैसला था अरविंद उसके लिए कभी तैयार नहीं थे लेकिन पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना था कि हमें लड़ना चाहिए तो हम लड़े. योगेंद्र जी भी उनमें से एक थे. ये जो परसेप्शन बनाने की कोशिश की जा रही है कि अरविंद के खिलाफ कोई बोल नहीं सकता वह गलत है.
आपके सीमित संसाधनों को देखते हुए 400 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला कहीं से भी समझदारी भरा नहीं था.
यह अपने देखने का नजरिया है. दूसरी पार्टियां संगठन बनाकर चुनाव लड़ती हैं हमने चुनाव लड़कर संगठन खड़ा करने का काम किया है. आज त्रिपुरा में भी हर कार्यकर्ता को पता है कि वहां आप का प्रतिनिधि कौन है, उम्मीदवार कौन है. तो इस फैसले ने हमें देश-भर में पहुंचाने का काम किया है.
आप कह रहे हैं कि चुनाव लड़कर आपने संगठन खड़ा कर लिया. चार सौ सीटों को छोड़िए आपकी सबसे महत्वपूर्ण सीट बनारस को लेते हैं. वहां आपके कार्यालय पर ताला लटका हुआ है. कार्यकर्ताओं को पता ही नहीं है कि वहां आप का प्रतिनिधि कौन है या उन्हें किसके सामने अपनी बात रखनी है.
बनारस की बात अलग है.
चलिए आगे बात करते हैं. जब आप इतने कम समय में चार सौ से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं तो आपके अपने ही मानकों पर खरा उतरने वाला उम्मीदवार ढूंढ़ना कैसे संभव है. इस तरह के लोग तो आपकी छवि को और खराब करने का काम करेंगे.
देखिए हो सकता है कि चार सौ में से सौ-सवा सौ लोग गड़बड़ हों. पर तीन सौ लोग तो ठीक होंगे. तीन में से सौ लोग और हटा दीजिए कम से कम दो सौ लोग तो होंगे जो आप के लिए पूरी तरह से समर्पित होंगे. तो इन दो सौ लोगों को जोड़ पाना भी तो अपने आप मे एक बड़ी सफलता है.
अन्ना आंदोलन के समय आप बहुत व्यस्त थे. पर उस समय भी आप वॉलेंटियर और मीडिया को आसानी से उपलब्ध रहते थे. दिल्ली में सरकार बनाने के बाद आप पूरी तरह से गायब हो गए. आप लोगों से बात करना दूभर हो गया.
मैं आपको एक घटना बताता हूं. अरविंद मेरे घर आए हुए थे. तो हम दोनों लोग परिवार के साथ यहीं पास में खाना खाने के लिए चले गए. वहां हमारे मुहल्ले के ही एक आदमी मिले. उन्होंने मुझसे कहा, ‘विधायक जी थोड़ा इलाके में दिखो.’ मेरी पत्नी ने उनसे एक दिलचस्प सवाल किया- ‘भैया आप कह रहे हैं इलाके में दिखो, मैं कहती हूं घर में दिखो. जब ये इलाके में नहीं दिखते, घर में भी नहीं दिखते तो फिर ये जाते कहां है.’ आप देखिए कि दो फोन हैं मेरे पास. सुबह से ही बजने लगते हैं. यह संभव नहीं है कि सारे फोन अटेंड कर पाऊं तो बेहतर है कि उसे डायवर्ट कर दिया जाय और बाद में उनसे संपर्क कर लिया जाय. अन्ना आंदोलन के समय हम राजनीति में नहीं थे. किसी ने दस फोन किया और एक भी हमने उठा लिया तो उसे लगता था कि अच्छा है बात तो हो जाती है. आज कोई एक फोन भी करता है और अगर फोन नहीं उठा तो वह सीधे कहता है कि अच्छा राजनीति में आकर बदल गए. पर यह समस्या व्यावहारिक है कि मैं सारे फोन नहीं उठा सकता. खासकर पत्रकार यह आरोप लगाते हैं. एक सच यह भी है हमने भी पत्रकारों का फोन उठाना थोड़ा कम कर दिया है.
क्यों आप पत्रकारों से इतना नाराज क्यों हैं?
मैं नाराज नहीं हूं. वजह ये है कि इतने सारे टीवी चैनल, इतने अखबार और इतनी पत्रिकाएं है कि अगर मैं सबसे बात करना शुरू करूं तो सुबह से शाम हो जाएगी मैं यहीं बैठा रह जाऊंगा. फिर मैं पार्टी का काम कब करूंगा और विधायक की जिम्मेदारी कब निभाऊंगा.
आखिर में पार्टी की आगे की राह और भविष्य को लेकर क्या योजनाएं हैं?
हम लोग उत्साह से भरे हुए हैं. एक बात हमारे दिमाग मे साफ है कि हम अपने लिए कुछ नहीं कर रहे हैं. जब तक देश के लोगों को लगेगा कि यह लड़ाई देश की लड़ाई है तब तक हम लड़ेंगे जिस दिन हमें लगेगा कि यह करियर है तब मैं पहला आदमी होऊंगा जो इसे छोड़ दूंगा. हम यहां करियर बनाने नहीं आए हैं.
अन्ना हजारे को लोकसभा चुनाव से पहले जोड़ने की कोशिश की थी आपने.
नहीं कोई कोशिश नहीं की हमने.
क्यों, इतनी नाराजगी आप लोगों के बीच क्यों हो गई?
ये तो अन्नाजी बताएंगे. हम तो चाहते थे कि वो हमसे जुड़ें.
पर आप तो कह रहे हैं आपने कोई कोशिश ही नहीं की जोड़ने की.
उन्होंने खुद ही इतने सारे बयान दे दिए, उसके बाद हमारे सामने कोई विकल्प ही नहीं बचा था.
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