कंगना, आपने परिवार के खिलाफ जाकर फिल्मों की तरफ रुख किया था. अब जबकि आप राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता बन चुकी हैं तो परिवार की क्या प्रतिक्रिया है?
पापा बेहद खुश हैं. उन्होंने कहा है कि यह मेरे जन्मदिन का सबसे बड़ा तोहफा है. मेरा जन्म 23 मार्च को हुआ था और मुझे यह खबर भी उसी दौरान मिली थी. तो इससे बड़ा तोहफा और क्या होगा. ऐसा नहीं था कि मेरे पैरेंट्स मुझसे प्यार नहीं करते थे या मुझ पर ज्यादती किया करते थे. मैं जिस जगह से आई हूं. वाकई वहां कभी किसी ने ऐसा काम नहीं किया था. तो उनके लिए यह सबकुछ अजीबोगरीब था. और वे मुझे लेकर चिंतित थे. इसलिए साथ नहीं दिया. लेकिन धीरे-धीरे मैंने पहचान बनानी शुरू की तो उन्हें भी एहसास हो गया कि मैं समझदार हूं, सही कदम उठाऊंगी. हां, शुरुआती दौर में चूंकि परिवार साथ नहीं था तो सलाह की कमी में मैंने बहुत सारे पैसे बर्बाद किए, लेकिन अब सब ठीक है.
राष्ट्रीय पुरस्कार क्या मायने रखता है?
मेरे जैसी लड़की जिसे कुछ भी पता नहीं था कि वह मुंबई जाकर करेगी क्या, कैसे रहेगी. जब मेहनत-लगन से इतना महान पुरस्कार मिलता है तो जाहिर-सी बात है यह बहुत मायने रखता है. आत्मविश्वास बढ़ता है और ऐसा लगता है कि मेरी जैसी छोटे शहर की बाकी लड़कियां जो यह सोचकर बैठ जाती हैं कि उनका जन्म तो सिर्फ पति की सेवा करने के लिए हुआ है. वह कहीं न कहीं मेरे से प्रभावित होती हैं और उन्हें हौसला मिलता है. वे उदाहरण दे सकती हैं कि कंगना भी छोटे शहर की थी. उसने इतना सब कर दिया तो हम भी कर सकते हैं.
अपनी बातों में आप अपने छोटे शहर की लड़की होने का जिक्र जरूर करती हैं. इसकी कोई खास वजह?
हां, चूंकि हो सकता है कि ये बात बड़बोली लगे. लेकिन हकीकत ये है कि यह इंडस्ट्री नए खासतौर से छोटे शहर से आए लोगों को तुरंत स्वीकार नहीं लेती. लोग आपका मजाक उड़ाते हैं. आपकी बातचीत के ढंग, भाषा, पहनावे-ओढ़ावे, हर चीज पर कटाक्ष होते हैं. हमसे उम्मीद की जाती है कि हम उनके अनुयायी बनें, जो बाकियों ने किया है. इस तरह के लोग आपको पीछे की तरफ खींचने की कोशिश करते हैं. अगर आप इंडस्ट्री का हिस्सा नहीं हैं तो आपको भी इस दुनिया को समझने में वक्त लगता है, ढलने में वक्त लगता है, मुझे भी लगा. मैंने सब कुछ सीखा किया. सीखने की यह प्रक्रिया आज भी जारी है. और इसलिए मुझे उस छोटे से शहर से प्यार है, जहां से मैं हूं. मेरा शहर मेरे साथ चलता है.
नए लोग जो इस क्षेत्र में आना चाहते हैं, उन्हें आप क्या सलाह देना चाहेंगी?
देखिए मैंने अपनी राह खुद बनाई क्योंकि मैं इस बात को लेकर स्पष्ट थी कि मुझे सिर्फ दिल की बात सुननी है और किसी की सलाह मानकर आगे नहीं बढ़ना. तो जब मैंने किसी दूसरे की सलाह नहीं मानी तो किसी और को कैसे अपने को फॉलो करने को कहूं. यह तो गलत होगा. हर किसी की जिंदगी के अलग अनुभव होते हैं और उन्हें उसी तरह, उसी आधार पर अपने लिए उद्देश्य तय करने पड़ते हैं. हां, मगर इतना जरूर कहूंगी कि सोच कर आएं कि कोई काम छोटा नहीं होता. बड़ा ब्रेक शुरुआत में ही मिल जाए जरूरी नहीं. कुछ न कुछ करते रहना चाहिए. और हमेशा सीखने की प्रक्रिया में विश्वास रखें.
नाकामयाबी का मुकाबला कैसे किया?
मैं यह नहीं कहूंगी कि मैं बाकी लोगों की तरह डिप्रेशन में नहीं गई. मुझे चिंता नहीं हो रही थी कि आगे मेरा क्या होगा. एक दौर में मेरे पास सिर्फ चरित्र भूमिकावाले किरदार करने के ऑफर आ रहे थे. या फिर ऐसी फिल्में जिसमें मुझे सिर्फ नाममात्र के लिए रखा गया है. कई सह-कलाकार तो मेरा मजाक भी उड़ाते थे. मैं नाम नहीं लूंगी. फब्तियां कसते थे. कई लोगों ने कहा कि मेरे पैकअप का टाइम आ गया है. अब मुझे बैग पैक कर चले जाना चाहिए. लेकिन मैंने उस वक्त भी मन में ये बात रखी थी कि वापस नहीं जाऊंगी. चाहे जो हो जाए. फिर मुझे ‘तनु वेड्स मनु’ जैसी फिल्म मिली और मैं वापस से ट्रैक पर आ गई. इसके बाद तो मुझे केंद्रीय भूमिकावाले किरदार निभाने का मौका मिलने लगा. भले ही ‘रज्जो’ और ‘रिवॉल्वर रानी’ बॉक्स ऑफिस पर नहीं चलीं, लेकिन मेरे दिल के बेहद करीब हैं ये फिल्में.
तीनों खान अभिनेताओं के साथ काम करने का कोई इरादा?
ऐसा नहीं है कि मानकर बैठी हूं कि उनके साथ फिल्में नहीं करनी. लेकिन मुझे अपने लिए मजबूत किरदारों वाली भूमिका ही चाहिए. अब पीछे मुड़कर नहीं देखूंगी. काफी संघर्ष कर लिया है. अब जो समय आया है, उसमें मुझे अच्छी और बेहतरीन फिल्में करनी हैं. ‘क्वीन’ से लोगों ने मुझमें जो विश्वास जगाया है, उससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया है. मुझे दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतरना है.