‘हम चाहते हैं कि दुनिया देखे कि पाकिस्तानी तंगनजर नहीं हैं, वे हीरो का एहतराम करते हैं, चाहे वह किसी भी मजहब से क्यों न हो’

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लाहौर का शादमान चौक जहां भगत सिंह को फांसी हुई थी, का नाम बदलकर शहीद भगत सिंह चौक करने की मांग की जा रही है.
फोटो साभार : न्यूयॉर्क टाइम्स

भगत सिंह को निर्दोष साबित करने का विचार कहां से आया? इसकी शुरुआत कैसे हुई?

देखिए, भगत सिंह निर्विवाद रूप से आजादी के सबसे बड़े हीरो हैं. मेरे पूर्वजों ने भी आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी. वे आपके हरियाणा के सिरसा में रहते थे. वहां हमारे पूर्वज बाबा गुलाब शाह का मजार है. हिंदू और मुसलमान उन्हें बड़ा मानते हैं. इस मामले में हमारे परिवार का माहौल बहुत ही अच्छा है. वालिद और दादा अक्सर आजादी के दीवानों की कहानियां सुनाया करते थे. ऐसे ही एक दिन भगत सिंह का जिक्र आया. तभी हमने फैसला किया कि भगत सिंह की फांसी का सच पता लगाएंगे. इसके बाद हमने पीआईएल लगाने का फैसला किया. मेरे वालिद एडवोकेट हैं. मैंने अर्जी लगाई, उन्होंने पैरवी की. पहली सुनवाई 24 मई, 2013 को हुई.

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इम्तियाज राशिद कुरैशी

भगत सिंह को आप किस तरह का इंसाफ दिलाना चाहते हैं? आपका मकसद क्या है?

अदालत में हमें शुरुआती तौर पर सफलता मिली है. 2014 में हम वो एफआईआर निकाल लाए, जिस केस में भगत सिंह को फांसी दी गई थी. पता चला कि उस एफआईआर में तो भगत सिंह का नाम ही नहीं था. और तो और, रजिस्ट्रार के फैसले पर ही फांसी दे दी गई. जबकि रजिस्ट्रार के पास ऐसा कोई अधिकार होता ही नहीं है. हमने अपने केस में यही दलीलें दी हैं. वैसे भी भगत सिंह की न्यायिक हत्या की गई थी. हम चाहते हैं कि ब्रितानी हुकूमत इसके लिए भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के परिवार से माफी मांगे व इसके लिए हर्जाना दे. वह भारत और पाकिस्तान से भी माफी मांगे. जैसे महारानी विक्टोरिया ने जलियांवाला बाग के लिए माफी मांगी थी. वैसे ही इनसे भी मांगें. इसके अलावा दोनों देशों को ब्रिटिश हुकूमत हर्जाना भी दे. हम चाहते हैं कि दुनिया देखे कि पाकिस्तान में लोकतंत्र है. यहां भी न्यायिक प्रक्रिया बेहतर ढंग से चल रही है और यहां की अदालतें भी इंसाफ करती हैं. इसके अलावा दुनिया यह भी देखे कि पाकिस्तानी तंगनजर नहीं हैं. वे हीरो का एहतराम करते हैं, फिर चाहे वह हीरो किसी भी मजहब से ताल्लुक क्यों न रखता हो.

पाकिस्तान में भगत सिंह के लिए इंसाफ की यह लड़ाई कितनी आसान रही?

यह लड़ाई हमारे लिए काफी मुश्किलों भरी रही है. सबसे पहले हमने जब मुकदमा दायर किया तो हमारे ही लोग सामने आए. उन्होंने धमकियां दीं. हमे गोलियों से भून देने की बात कही. हालांकि हम इससे नहीं डरे. हमने भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन बनाया और पूरे पाकिस्तान में रैलियां कीं. जब लोगों को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने हमारे काम की सराहना शुरू की. देश और दुनिया भर से बहुत-से लोगों ने इसकी तारीफ की. केस दाखिल करने के बाद मैं दो बार भारत गया. भगत सिंह के परिवार से मिला. उन्होंने भी हमारे काम की तारीफ की है.