इजरायल के साथ भारत के संबंधों में पहली बार एक अलग रणनीतिक बदलाव दिख रहा है. आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब केंद्र में किसी सरकार ने इजरायल के गाजा पट्टी क्षेत्र में आक्रामक कार्रवाई पर अपना पक्ष रखने से मना कर दिया. हालांकि इससे पहले भारत की नीति फलस्तीन के पक्ष में झुकी रही है. लेकिन अब ऐसा नहीं है. यूपीए-एक और दो के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार में यह और साफ हो चला है. और इसकी बुनियाद में हैं भारत और इजरायल के बीच बढ़ते रक्षा संबंध.
पिछली फरवरी में इजरायल के अखबार हारेत्ज में एक रिपोर्ट आई थी. इसके मुताबिक, ‘इस समय इजरायल की आयुध कंपनियों के लिए भारत सबसे बड़ा आयातक है हालांकि दोनों देश रक्षा सौदों की प्रकृति और मात्रा के बारे में जानकारी सार्वजनिक नहीं करते… भारत एक से डेढ़ अरब डॉलर के बीच आयात करता है, आगे इसमें और भी गुंजाइश है.’ नई खबरों के मुताबिक इजरायल के मिसाइल प्रतिरोधी तंत्र (आयरन डोम) के निर्यात के लिए भी भारत में संभावना देखी जा रही हैं. हाल ही में फलस्तीन-इजरायल संघर्ष के दौरान आयरन डोम की काफी चर्चा हुई है. यह रक्षा तंत्र इजरायल की तरफ अब तक दागे गए 90 फीसदी रॉकेटों को हवा में ही नष्ट कर चुका है. कहा जा रहा है कि इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्री (आईएआई) और राफेल को इजरायली सरकार के माध्यम से यह संदेश भेजा गया है कि क्या आयरन डोम का एक उन्नत संस्करण भारत के लिए भी डिजाइन किया जा सकता है. हालांकि यह मुश्किल है फिर भी इजरायल से एक सूत्र बताते हैं, ‘सवाल यह नहीं है कि इजरायल ऐसा उन्नत सिस्टम बना सकता है या तकनीकी हस्तांतरण कर सकता है. असल सवाल है कि क्या वह भारत के सैन्य तकनीकी विशेषज्ञों को मिसाइल ट्रैक करना और डोम की प्रतिरोधी मिसालों से उसे भेदने का प्रशिक्षण दे सकता है.’
भारत में जिस आयरन डोम को लेकर इतनी चर्चा है उसके बारे में ज्यादातर लोगों को यह जानकारी नहीं है कि यह प्रणाली स्वचालित या ऑटोमैटिक नहीं है. इसके एंटी मिसाइल रॉकेटों को इजरायली सेना के उन उच्च प्रशिक्षित जवानों के द्वारा दागा जाता है जो हमास के रॉकेट और छोटे एयरक्राफ्ट के बारीक अंतर को पहचान सकें. इसमें एक छोटी-सी चूक भी भयानक अंतरराष्ट्रीय विवाद का कारण बन सकती है.
फिलहाल एशिया में दो देश अपनी जरूरतों के मुताबिक उन्नत किए गए आयरन डोम को खरीदने में सबसे ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं. सिंगापुर में यह प्रणाली लगाई जा रही है. वहीं 2013 के आखिरी महीनों के दौरान भारत के रक्षा मंत्रालय ने काफी सतर्क रवैय्या अपनाते हुए इस प्रणाली में दिलचस्पी जाहिर की थी. वहीं अमेरिका भी अपनी वायु सीमा को सुरक्षित बनाने के लिए इस तरह की प्रणाली विकसित करने के लिए इजरायल से तकनीकी सहयोग पर विचार कर रहा है. हालांकि इन दोनों देशों के बीच संबंध रक्षा सौदों से कहीं आगे हैं. जबकि भारत के पास आयरन डोम और तकनीक के बदले सिवाय पैसा देने के और कोई विकल्प नहीं है.
इजरायल की अपनी जरूरतों के लिए यह सौदा काफी जरूरी है. पिछले कई सालों से वहां के सैन्य प्रतिष्ठानों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है और भारत उसे इस तंगी से उबार सकता है. भारत अरबों रुपये सैन्य साजो ने सामान और कई देशों से हथियार खरीद पर खर्च करता हैै. अंतरराष्ट्रीय स्तर भारत की खरीद प्रक्रिया पर आम धारणा है कि ये कछुआ चाल से चलती है और इसमें भारी कुप्रबंधन है. दूसरे देशों के रक्षा प्रतिष्ठान यह भी मानते हैं कि भारत में ज्यादातर हथियार पुराने हैं और कई तो जुगाड़ तकनीक से चल रहे हैं. ऐसे में भारत की उन्नत संस्करण वाले आयरन डोम में दिलचस्पी से इजरायल भ्रम की स्थिति में है.
एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या आयरन डोम से भारतीय आकाश को सुरक्षित किया जा सकता है. इजरायल में इस प्रणाली से सिर्फ 20,770 वर्ग किमी की सुरक्षा की जाती है. इस भौगोलिक क्षेत्र को भी मोटे तौर पर चार भागों में विभाजित किया जा सकता है. इसकी तुलना भारत से करें तो इस प्रणाली के हवाले 3,28,7590 वर्ग किमी क्षेत्र होगा यानी इजरायल से 158 गुना ज्यादा. दुनिया में जितने मौसम हो सकते हैं उन सबके बीच इस प्रणाली को काम करना पड़ेगा.
आयरन डोम प्रणाली मुख्य रूप से रॉकेट लॉन्चर वाले वाहनों पर आधारित है. इन्हें जरूरत के हिसाब से कुछ किमी की दूरी पर तुरंत भेजा जा सकता है. इनके जरिए कम दूरी (5-70 किमी) से दागे गए रॉकेटों को भेदा जा सकता है. सुरक्षा तंत्र को सेटेलाइट से हमलावर रॉकेट या मिसाइल का पता चलता है और उसके बाद तुरंत ही ये उस पर सटीक निशाने के लिए तय जगह पर पहुंच जाते हैं. इजरायल के किसी भी पड़ोसी देश के पास इतनी उन्नत प्रणाली नहीं है. वहां के सूत्र बताते हैं कि भारत का अति विविध मौसम तो इजरायल के लिए चुनौती है ही, साथ ही इस प्रणाली की तैनाती पाकिस्तान के खिलाफ होगी जो खुद सैटेलाइट तकनीक से संपन्न है.
आयरन डोम का उन्नत संस्करण एक सपना है- भारत के लिए एक रणनीतिक सपना तो इजरायल के लिए आर्थिक तंगी से उबरने का सपना.
इसके अलावा छोटे हथियारों की खरीद में भी भारत-इजरायल की निकटता बढ़ी है. 2013 की शुरुआत में भारत सरकार ने घोषणा की थी कि वह उस साल तकरीबन 7-8 अरब डॉलर छोटे हथियारों के आयात और देश में ही उनके निर्माण के लिए खर्च करेगा. इसी के तहत भारतीय सेना ने तकरीबन 2372 टवोर टीएआर-21 गन खरीदी थीं. ये गन इजरायल की आईएमआई कंपनी बनाती है. इससे पहले भारतीय नौ सेना के विशेष दस्ते ‘मारकोस’ के लिए ऐसी ही 500 गन दिसंबर, 2010 में खरीदी गई थीं. 2011 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को 12,000 एक्स 95/माइक्रो टवोर गन दी गई थीं.
भारत पहले भी इजरायल से ड्रोन आयात कर चुका है लेकिन इतनी संख्या में नहीं जिसकी संभावना अब व्यक्त की जा रही है
तहलका को यह भी जानकारी मिली है कि भारत सरकार मध्य प्रदेश और पुणे में ऐसी जगह तलाश रही है जहां ऊजी गनों की निर्माण इकाई लगाई जा सके. ऊजी को भी आईएमआई बनाती है. इजरायल सहित दुनिया के कई देशों में सेना इस गन का इस्तेमाल करती है. भारतीय सेना के तकरीबन 11.3 लाख जवानों, अर्ध सैन्य बलों के एक लाख 13 हजार और रिजर्व बलों के 11.5 लाख जवानों में हो सकता है सभी को ऊजी न दी जाए लेकिन यदि इनकी संयुक्त संख्या के तीसरे हिस्से को भी इस हथियार की जरूरत हुई तो इजरायल के लिए यह खजाना पूरा भर जाने जैसा सौदा होगा.
इजरायल ने भारत के माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में भी मदद का प्रस्ताव सरकार को दिया है. इसके तहत इन क्षेत्रों के लिए अर्द्ध स्वचालित ड्रोन दिए जा सकते हैं. सूत्र बताते हैं कि भारत सरकार ने इस प्रस्ताव पर सकारात्मक रुख दिखाया है और हो सकता है दो-तीन सालों के भीतर ऐसे तकरीबन 100 ड्रोनों का आयात कर लिया जाए. हालांकि भारत पहले भी इजरायल से ड्रोन आयात कर चुका है लेकिन इतनी संख्या में नहीं जिसकी संभावना अब व्यक्त की जा रही है. दिसंबर, 2013 में रक्षा मामलों की कैबिनेट कमिटी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में 15 हेरॉन ड्रोनों की खरीद को मंजूरी दी थी. इनकी कीमत 30 करोड़ डॉलर थी.
रक्षा संबंधों के अलावा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार का इजरायल की तरफ झुकाव की अपनी भी वजहें हैं. गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी के संबंध इजरायल से काफी गर्मजोशी भरे थे. उन्होंने राज्य में जल नवीनीकरण और सिंचाई की ड्रिप तकनीक पर इजरायल के सहयोग को काफी समर्थन दिया था. मोदी सरकार के सत्ता में आने के चालीस दिन पहले सुषमा स्वराज ने दोहराया था कि इजरायल भारत का ‘भरोसेमंद सहयोगी’ है. वे अप्रैल में भारत-इजरायल संसदीय मैत्री समूह के प्रमुख के रूप में इजरायल की तीन दिन की यात्रा पर थीं. तब कांग्रेस ने भी स्वराज का समर्थन किया था. जाहिर है जब दोनों मुख्य दलों का रवैय्या एक जैसा हो तो भविष्य में भारत के इस नीति से पलटने की संभावना और कम ही होगी.