विश्व में नैतिक मूल्यों पर अक्सर भारी पड़ती रणनीतिक सुविधा के दौर में भारत ने दृढ़ और निडर रुख़ अपनाया है कि जो लोग आतंकवाद का समर्थन करते हैं, उन्हें कभी भी पुरस्कृत नहीं किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में जी-7 शिखर सम्मेलन में अमेरिका को एक अप्रत्यक्ष; लेकिन स्पष्ट संदेश दिया कि उसने पाकिस्तान के सेना प्रमुख को सम्मान देकर ठीक नहीं किया और अमेरिका के इस व्यवहार की आलोचना की। उनके शब्दों ने भारत की बढ़ती हताशा को रेखांकित किया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय संतुलन की तलाश में कभी-कभी आतंकवाद के अपराधियों और उनके पीड़ितों के बीच की रेखा को धुँधला करने को तैयार हो जाता है। मोदी का यह कहना कि आतंकवादियों और पीड़ितों को कभी समान नहीं माना जा सकता, केवल बयानबाज़ी नहीं, बल्कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक संकेत था। और भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस पर कार्रवाई की। चीन की धरती पर आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में राजनाथ सिंह ने संयुक्त विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। अपने चीनी और पाकिस्तानी समकक्षों के सामने बैठे राजनाथ सिंह ने सीमा पार आतंकवाद के बारे में बताने में एससीओ की अनिच्छा की आलोचना की और इस मुद्दे पर दोहरे मानदंड को ख़ारिज कर दिया।
यह क़दम इस वर्ष एससीओ की अध्यक्षता कर रहे चीन द्वारा पहलगाम नरसंहार- भारतीय धरती पर एक क्रूर आतंकवादी हमले को संयुक्त वक्तव्य में शामिल करने पर कथित रूप से रोक लगाने के बाद उठाया गया है। इस मुद्दे से अंतरराष्ट्रीय ध्यान हटाने के लिए ही आतंकवाद की बजाय बीजिंग और इस्लामाबाद ने बलूचिस्तान और जम्मू-कश्मीर की स्थिति जैसे मुद्दों को शामिल करने पर ज़ोर दिया, जिसे भारत ने ध्यान भटकाने के लिए जानबूझकर किया गया प्रयास माना। इस बीच वैश्विक आतंकवाद कूटनीति का दोहरापन एक बार फिर पूरी तरह से सामने आया, इस बार इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल थे। भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम समझौते का श्रेय लेने के मात्र छ: सप्ताह बाद ट्रंप ने इजरायल और ईरान के बीच कथित अमेरिकी मध्यस्थता वाले शान्ति समझौते के सम्बन्ध में भी ऐसा ही दावा किया। लेकिन वास्तविकता ने जल्दी ही बयानबाज़ी को पकड़ लिया।
‘तहलका’ की आवरण कथा ‘युद्ध-विराम पर सवाल’ बताती है कि कैसे संदिग्ध ईरानी परमाणु स्थलों पर अमेरिकी हवाई हमलों ने आग में घी डालने का काम किया है। तेहरान ने इस क़दम का पूर्वानुमान लगाया था और संवर्धित यूरेनियम को अज्ञात स्थानों पर स्थानांतरित किया था। जवाबी कार्रवाई में ईरान ने क़तर स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे पर मिसाइल हमला किया। यह एक आक्रामक जवाबी हमला था, जिसने वाशिंगटन को स्तब्ध कर दिया और यह सिद्ध कर दिया कि यह क्षेत्र कितना नाज़ुक और विस्फोटक बना हुआ है। इससे ट्रंप का दाँव उलटा पड़ गया और अमेरिका की कूटनीति और पारस्परिक सम्मान की माँग वाले मामलों में क्रूर बल की निरर्थकता उजागर हो गयी। सबक़ स्पष्ट है कि स्थायी शान्ति ऊपर से तय नहीं की जा सकती। इसके लिए सुसंगत सैद्धांतिक कूटनीति की आवश्यकता है, जिसे भारत अन्य देशों की तुलना में बेहतर समझता है। जबकि अमेरिका एक के बाद एक विदेश नीति सम्बन्धी ग़लतियाँ कर रहा है और भारत चुपचाप; लेकिन दृढ़ता से विश्व मंच पर अपनी नैतिक सत्ता का दावा कर रहा है।
इन वैश्विक तनावों के बीच भारत के लिए भी जश्न मनाने का अवसर है। ग्रुप कैप्टन सुधांशु शुक्ला और तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर स्पेसएक्स ड्रैगन अंतरिक्ष यान सफलतापूर्वक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से जुड़ गया है। यह मील का पत्थर न केवल अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की गहरी भागीदारी को दर्शाता है, बल्कि नैतिकता, विज्ञान और शान्ति के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता पर आधारित एक वैश्विक नेता के रूप में भारत के बढ़ते क़द का भी प्रतीक है।