– देश में ड्रग्स और शराब की तस्करी बढ़ी, 1.58 करोड़ से ज़्यादा बच्चों को लगी नशे की लत
कुछ साल पहले उड़ता पंजाब फ़िल्म काफ़ी चर्चा में आयी थी, जो कि पंजाब के युवाओं के ड्रग्स की लत को लेकर बनी थी। लेकिन गुजरात पर ऐसी कोई फ़िल्म बनाने की हिम्मत किसी फ़िल्म डायरेक्टर में आज तक नहीं आ सकी है; जबकि सच्चाई यह है कि गुजरात ड्रग्स तस्करी और नशे का अड्डा बना हुआ है। जबकि इस राज्य में शराबबंदी 01 मई, 1960 से लागू है। लेकिन गुजरात में शराब और ड्रग्स की तस्करी नहीं रुकी है। इन दोनों नशीले पदार्थों की तस्करी ने गुजरात की क़रीब एक-चौथाई आबादी का जीवन बुरी तरह बर्बाद कर रखा है। अब तो हालत यह है कि ड्रग्स स्कूलों तक पहुँच चुकी है और स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे बड़ी संख्या में इसकी गिरफ़्त में आ रहे हैं। गुजरात विधानसभा में गुजरात में ड्रग्स और शराब की तस्करी को लेकर कई बार गहमागहमी हो चुकी है; लेकिन तस्करी पर प्रतिबंध नहीं लग सका है और नशा करने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है।
हाल ही में सिलवासा में स्कूल यूनिफार्म में झंडा चौक स्थित पंड्या टॉवर के पीछे स्थित आलीशा अपार्टमेंट की पार्किंग से स्कूल के दो नाबालिग़ बच्चे साइकिल चुराते हुए पकड़े गये थे। जब पुलिस ने उनके अभिभावकों को बुलाकर उनके सामने पूछताछ की, तो बच्चों ने चोरी की वजह ड्रग्स की तलब और उसे ख़रीदने के लिए पैसों की ज़रूरत बतायी। इससे पहले अक्टूबर में ही अहमदाबाद के मध्यम वर्गीय परिवारों के दो बच्चों के यूरिन में कोकीन की मात्रा पायी गयी, जिसके बाद पता चला कि दोनों बच्चे कोचिंग से आते समय कहीं कॉफी पीते थे और घर आते ही सो जाते थे। दोनों बच्चों के परिवार वालों ने बताया कि कुछ महीने से उनके बच्चे घर में किसी से सही व्यवहार नहीं कर रहे थे। पढ़ाई भी ठीक से नहीं करते थे और खाना भी ठीक से नहीं खाते थे। कोई उनसे बात करता था, तो चिढ़ जाते थे। इसके बाद उन्होंने एक डॉक्टर को दिखाया, जिसने उन्हें मनोचिकित्सक के पास भेजा, जिसने यूरिन टेस्ट लिखे। इसके बाद उन्हें पता चला कि बच्चे पिछले कई महीने से ड्रग्स ले रहे हैं। कई स्कूलों में बच्चों द्वारा ड्रग्स लेने की शिकायतें पहले भी गुजरात के अलग-अलग शहरों से आती रही हैं। सवाल यह उठता है कि आख़िर इन बच्चों को ड्रग कहाँ से मिलती है? स्कूल के किशोर बच्चों को ड्रग्स कौन दे रहा है?
बचपन बचाओ आन्दोलन एनजीओ की एक याचिका पर साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने ड्रग्स और दूसरी तरह का नशा करने वाले बच्चों की बढ़ती तादाद को लेकर केंद्र सरकार से सवाल पूछे थे। केंद्र सरकार ने तब सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि देश में 10 से 17 साल की उम्र के 1.58 करोड़ किशोर ड्रग्स लेने के आदी हो चुके हैं। एक सर्वेक्षण के आँकड़े रखते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया था कि 16 करोड़ भारतीय शराब का नशा करते हैं, जो नशा करने वालों में सबसे बड़ी तादाद है। देश में 5.7 करोड़ लोगों को अफ़ीम की गंभीर लत लगी हुई है और 3.1 करोड़ लोग भाँग और भाँग से बनी दूसरी चीज़ों का नशा करते हैं।
साल 2020 में भी केंद्र सरकार ने ख़ुलासा किया था कि 10 से 17 साल के क़रीब 1.48 करोड़ नाबालिग़ बच्चे ड्रग्स और शराब का सेवन कर रहे हैं। यानी सिर्फ़ दो वर्षों में ड्रग्स लेने वाले बच्चों की तादाद 10 लाख बढ़ गयी। हो सकता है कि यह तादाद और ज़्यादा हो। क्योंकि देखा जाता है कि स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे, जिनमें लड़के और लड़कियाँ दोनों ही शामिल हैं; तेजी से नशे की गिरफ़्त में आते जा रहे हैं। इस मामले में न तो पुलिस कुछ ख़ास कर पा रही है और न सरकारें नशा मुक्ति की नीयत से काम करना चाहती हैं। नारकोटिक्स विभाग भी नशीले पदार्थों की तस्करी रोकने में नाकाम ही है। कहने को केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें तक नशा मुक्ति अभियान चलाती हैं। 15 अगस्त, 2020 को केंद्र सरकार ने नशा मुक्त भारत अभियान की शुरुआत देश के सबसे ज़्यादा नशे की गिरफ़्त वाले 272 ज़िलों से की गयी थी। साथ ही 26 जून को नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय दिवस के अलावा सन् 2015 से हर साल 02 अक्टूबर को राष्ट्रीय नशा मुक्ति दिवस मनाया जाता है। इन सभी अभियानों के आयोजनों में हर साल करोड़ों रुपये ख़र्च किये जाते हैं; लेकिन इसके बाद भी ड्रग्स और शराब का सेवन कर करने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है, जिसमें बच्चों की तादाद बढ़ना बहुत चिन्ताजनक है। नशा करने वालों की बढ़ती तादाद का अंदाज़ा इस बात से भी लगता है कि नशा मुक्ति केंद्रों पर आने वाले मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
अगर सिर्फ़ गुजरात में नशा करने वालों की पड़ताल की जाए, तो इस अकेले राज्य में नशा करने वालों की तादाद क़रीब-क़रीब 80 प्रतिशत तक निकल सकती है। इनमें शराब पीने वालों की संख्या कम से कम 30 प्रतिशत और ड्रग्स लेने वालों की तादाद कुछ नहीं तो 20 प्रतिशत होगी। नाबालिग़ बच्चों का ड्रग्स की लत में पड़ना और उनकी तादाद बढ़ते जाना गुजरात के विकास मॉडल एवं नशा मुक्त गुजरात जैसे अभियानों पर कलंक है। गुजरात में ड्रग्स और शराब तस्करी का आलम यह है कि यहाँ किसी-न-किसी ज़िले में पुलिस हर महीने अवैध शराब या ड्रग्स बरामद करती है। अभी 20-21 अक्टूबर, 2024 की रात को भरूच ज़िले के एशिया के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र अंकलेश्वर में पुलिस ने क़रीब 14.10 लाख रुपये क़ीमत की 141 ग्राम प्रतिबंधित मेथामफेटामाइन बरामद की थी। इसके अलावा इसी क्षेत्र से पुलिस ने 427 किलो दूसरी प्रतिबंधित संदिग्ध दवाइयाँ बरामद कीं। इस मामले में पुलिस ने कुछ गिरफ़्तारियाँ भी कीं। पुलिस ने यह छापेमारी स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) के तहत की थी। इससे पहले 13 अक्टूबर, 2024 को भी अंकलेश्वर से ही केंद्र सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति और नशा मुक्त भारत अभियान के तहत दिल्ली पुलिस और गुजरात पुलिस ने संयुक्त अभियान चलाकर क़रीब 5,000 करोड़ रुपये की 518 किलो कोकीन ज़ब्त की थी।
दिल्ली और गुजरात पुलिस की स्पेशल सेल की छापेमारी में इसी महीने 21 अक्टूबर तक 1,289 किलो कोकीन और 40 किलो हाइड्रोपोनिक थाईलैंड की मारिजुआना ड्रग्स बरामद हो चुकी है। पुलिस ने अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इस ड्रग्स की क़ीमत 13,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा बतायी है। इससे पहले सूरत में ड्रग्स की एक फैक्ट्री पकड़ी गयी थी। इससे पहले 27 फरवरी, 2024 को पोरबंदर में समुद्र के रास्ते आ रही 3,089 किलोग्राम चरस, 158 किलोग्राम मेथम्फेटामाइन और 25 किलोग्राम मॉर्फीन भारतीय नौसेना, एनसीबी और गुजरात पुलिस संयुक्त रूप से ज़ब्त की, जिसके लिए देश के गृहमंत्री अमित शाह ने इस उपलब्धि के लिए जवानों को बधाई भी दी थी। गुजरात के एक तट से फरवरी, 2022 में भी 221 किलोग्राम मेथम्फेटामाइन ज़ब्त की गयी थी। इसके बाद साल मई में एनसीबी ने पाकिस्तान से आ रहे एक जहाज़ से 12,000 करोड़ की क़ीमत की 2,500 किलोग्राम मेथम्फेटामाइन ज़ब्त की थी। कच्छ के मुंद्रा पोर्ट पर तो कई बार ड्रग्स की बड़ी-बड़ी खेपें बरामद हुई हैं। अडानी के इस मुंद्रा पोर्ट पर सितंबर, 2021 में तो राजस्व ख़ुफ़िया निदेशालय और एक केंद्रीय जाँच एजेंसी ने गुजरात पुलिस की एक टीम के साथ छापेमारी करके दो कंटेनरों से क़रीब 3,000 किलो से ज़्यादा हेरोइन बराबर की थी। लेकिन इस मामले में किसी भी प्रकार की कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई।
ड्रग्स की इस बड़ी-बड़ी बरामदगी के अलावा गुजरात पुलिस और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने भोपाल की एक फैक्ट्री से 05 अक्टूबर को 907 किलो मेफेड्रोन (एमडी) ड्रग्स बरामद की थी। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इस ड्रग्स की क़ीमत क़रीब 1,814 करोड़ रुपये आँकी गयी थी। इधर 11 अक्टूबर, 2024 को दिल्ली में भी क्राइम ब्रांच ने अंतरराष्ट्रीय ड्रग्स गिरोह का पर्दाफाश करते हुए तीन करोड़ रुपये से ज्यादा की कोकीन बरामद करके तीन दो विदेशी तस्करों सहित तीन तस्करों को गिरफ़्तार किया था। इससे पहले 5,600 करोड़ रुपये की कोकीन और 2,000 करोड़ रुपये की कोकीन बरामद की गयी थी। दिल्ली के अलावा हर राज्य में ड्रग्स तस्करी और नशाख़ोरी के मामले सामने आते रहे हैं।
बता दें कि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से बड़ी मात्रा में भारत में ड्रग्स तस्करी होने की बात कई बार सामने आयी है। अब तक ड्रग्स की सबसे बड़ी खेपें गुजरात में ही पकड़ी गयी हैं। पिछले दो वर्षों में गुजरात में देश की सबसे ज़्यादा ड्रग्स की खेपें ज़ब्त की गयी हैं। जाँच एजेंसियों और पुलिस की छापेमारी के आँकड़ों के मुताबिक, सिर्फ़ साल जनवरी, 2021 से 31 दिसंबर, 2022 तक अकेले गुजरात में ही 4,058.01 करोड़ रुपये मूल्य की ड्रग्स और 211.86 करोड़ की शराब बरामद हुई थी। इन दो वर्षों में वडोदरा ज़िले से 1,620.70 करोड़ रुपये की ड्रग्स और शराब, भरूच ज़िले से 1,389.91 करोड़ रुपये की ड्रग्स और शराब तथा कच्छ ज़िले से 1,040.57 करोड़ रुपये की ड्रग्स और शराब बरामद हुई थी। यह जानकारी पिछले साल विधानसभा सत्र में गुजरात सरकार ने दी थी।
आज देश में जिस तरह ड्रग्स और शराब का सेवन करने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है, उससे यह नहीं लगता कि केंद्र सरकार द्वारा चलाये जाने वाले नशा मुक्ति अभियानों का कोई असर हो रहा है। राज्य सरकारें भी अपने-अपने राज्यों के लोगों को नशे से मुक्ति दिलाने के मामले में फेल ही दिखती हैं। सोचना होगा कि हर साल नशा मुक्ति अभियानों पर करोड़ों रुपये की बर्बादी का क्या मतलब है? जब देश में नशा तस्करी और नशाख़ोरी का चलन बढ़ता ही जा रहा है? ऐसा लगता है कि कहीं-न-कहीं ड्रग्स और शराब की तस्करी करने वालों के सिर पर कोई वरदहस्त है, जिसका पता तभी चल सकता है, जब जाँच एजेंसियाँ पूरी ईमानदारी से इसके तार छोटे ड्रग्स तस्करों को एक तरफ़ से गिरफ़्तार करके खँगालें। हर साल गुजरात में ड्रग्स और शराब के सेवन से लोग मरते हैं।
हाल ही में 17 अक्टूबर, 2024 को बिहार के सिवान और छपरा ज़िलों में ज़हरीली शराब पीने से 20 लोगों की मौत हो गयी थी। बिहार में भी 01 अप्रैल, 2016 से शराबबंदी लागू है। शराबबंदी वाले राज्यों में इस तरह की घटनाएँ बताती हैं कि इन राज्यों की सरकारें नशाख़ोरी रोकने में नाकाम हैं। वहीं दूसरी तरफ़ दिल्ली जैसे राज्यों में शराब की खुली बिक्री के बावजूद शराब से एक भी मौत का न होना यह बताता है कि नशाख़ोरी रोकना संभव नहीं है, इसलिए शराब की बिक्री अगर इतनी ही ज़रूरी है, तो सरकारों के द्वारा ही वैध रूप से करायी जानी चाहिए, न कि अवैध रूप से तस्करों से मोटी रिश्वत लेकर ज़हरीली शराब और ख़तरनाक ड्रग्स को बढ़ावा देना चाहिए।