संयुक्त राष्ट्र में हुए एक अहम प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान भारत ने अपनी विदेश नीति से सबको चौंका दिया। मौका था फिलिस्तीन से जुड़ा एक प्रस्ताव, जिसमें राष्ट्रपति महमूद अब्बास को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संयुक्त राष्ट्र के सत्र को संबोधित करने की इजाज़त देने की बात थी। जब इस प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो भारत ने इसके समर्थन में वोट डाला — और यही बात चर्चा में आ गई। सबसे बड़ी बात ये रही कि जब इजरायल और अमेरिका इस प्रस्ताव के खिलाफ खड़े थे, भारत ने फिलिस्तीन का साथ दिया। भारत आम तौर पर इजरायल का करीबी माना जाता है, ऐसे में ये स्टैंड सभी को हैरान कर गया।
दरअसल, अमेरिका ने फिलिस्तीनी नेताओं को वीजा देने से मना कर दिया था, जिस वजह से वे खुद संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में शामिल नहीं हो सकते थे। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र की 193 सदस्यीय महासभा में ‘फिलस्तीन राष्ट्र की भागीदारी’ नाम से प्रस्ताव लाया गया। इस पर 145 देशों ने समर्थन में वोट दिया, 5 देश खिलाफ रहे और 6 देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
भारत भी उन 145 देशों में शामिल था जिन्होंने फिलिस्तीन के पक्ष में मतदान किया। इससे यह साफ हो गया कि भारत अपनी नीति में संतुलन बनाकर चल रहा है — एक तरफ इजरायल के साथ गहरी साझेदारी और दूसरी तरफ फिलिस्तीन के हक की आवाज भी। इस पूरे घटनाक्रम ने दुनिया के सामने भारत की कूटनीतिक समझदारी को फिर साबित कर दिया है। अब सवाल उठ रहे हैं — भारत कैसे इजरायल के साथ दोस्ती भी निभा रहा है और फिलिस्तीन के अधिकारों की भी वकालत कर रहा है, वो भी बिना किसी रिश्ते को नुकसान पहुंचाए?
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र महासभा का 80वां सत्र 23 सितंबर से शुरू हो रहा है, जिसमें राष्ट्रपति महमूद अब्बास 25 सितंबर को दुनिया के नेताओं को वर्चुअली संबोधित करेंगे। भारत के इस कदम ने यह भी दिखा दिया कि वो किसी का पक्ष लेकर नहीं, बल्कि मुद्दों की अहमियत को देखकर फैसले करता है। यही वजह है कि आज भारत को वैश्विक मंच पर एक भरोसेमंद और संतुलित ताकत के रूप में देखा जा रहा है।