आज की लड़कियाँ हर क्षेत्र में सशक्त बनती जा रही हैं, जिसके चलते वो अपनी शर्तों पर अपनी ज़िन्दगी जीना चाहती हैं। हालाँकि सदियों से अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाली लड़कियाँ शादी के बाद मनचाही आज़ादी से अपनी ज़िन्दगी नहीं जी पाती हैं, जिसके चलते तलाक़ के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन जिस प्रकार की आज़ादी लड़कियाँ शादी के बाद चाहती हैं, वो न तो इतनी आसान है और न ही उन्हें इसके लिए वक़्त ही मिल पाता है। शादी के बाद घर से लेकर बच्चों को सँभालने की ज़िम्मेदारी जितनी महिलाएँ निभा पाती हैं, उतनी पुरुष नहीं निभा पाते। आज की 20 प्रतिशत लड़कियाँ घर-गृहस्थी सँभालने और बच्चे पैदा करने को झंझट मानती हैं।
एक अनुमान के मुताबिक, तक़रीबन 24 प्रतिशत लड़कियाँ अपना करियर बनाने के बाद ही शादी करना चाहती हैं। कई मायनों में हर क्षेत्र में काफ़ी आगे बढ़ चुकी लड़कियाँ करियर बनने के बाद अपने से बेहतर करियर वाला जीवन-साथी चुनना चाहती हैं। लेकिन उनकी कई शर्तों या करियर बनने में देरी के चलते उनकी शादी बालिग़ होने के काफ़ी समय बाद हो पाती है। सरकार ने लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल रखी है; लेकिन करियर बनाने और अच्छा रिश्ता ढूँढने के चक्कर में लड़कियों की शादी मामूली तौर पर 20 से लेकर 40 साल तक में हो रही है। हालाँकि 18 साल से 26 साल तक भी लड़कियों की शादी हो जाए, तो उनकी गृहस्थी अच्छी चलती है; लेकिन इसके बाद शादी होने पर उन्हें कई तरह की शारीरिक, मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बच्चे होने में भी समस्याएँ आती हैं। इससे चिड़चिड़ापन, तनाव, एक्स्ट्रा अफेयर जैसी समस्याएँ पैदा होती हैं। लंबे समय तक कुँवारा रहना भी लड़कियों के लिए बर्दाश्त से बाहर होता है, जिससे उनके शारीरिक रिश्ते बनने शुरू हो जाते हैं। इससे उनका शादीशुदा जीवन ख़ुशहाल नहीं होता।
दरअसल, शादी हर लड़की का सबसे ख़ास और ख़ूबसूरत सपना होता है। लड़की को बेल की तरह बढ़ने वाला बताया जाता है और भारत में लड़कियों को पराया धन बोला जाता है, जिसके चलते लड़कियाँ भी किशोर अवस्था से ही अपने पार्टनर के बारे में सोचने लगती हैं। अपनी शादी के सपने हर लड़की देखती है; लेकिन ज़्यादातर लड़कियाँ शादी में होने वाले ख़र्च और उस ख़र्च के चलते क़र्ज़ के बोझ के नीचे अपने माँ-बाप के सपने मरते हुए देखने के अलावा उनके क़र्ज़ में डूब जाने के डर से कमाने के बारे में सोचती हैं और इसी के चलते ज़्यादातर लड़कियाँ शादी से पहले नौकरी करने का विचार बनाती हैं। यही वजह है कि चाहते हुए भी बड़ी संख्या में आजकल की लड़कियाँ शादी के नाम से भी दूर भागने लगती हैं। यानी कहीं शादी का मोटा ख़र्च, कहीं मनचाहा लड़का मिलने की इच्छा और कहीं करियर बनाने जैसी इच्छाएँ तक़रीबन 24 प्रतिशत लड़कियों को समय पर शादी करने से रोक देती हैं। इसके चलते ज़्यादातर लड़कियाँ तरह-तरह के बहाने बनाकर अपनी शादी टालने की कोशिश करती हैं, तो कुछ लड़कियाँ साफ़-साफ़ शादी से मना कर देती हैं।
आज भारत में तक़रीबन 7.2 प्रतिशत ऐसी महिलाएँ हैं, जो शादी न करने से लेकर तलाक़ होने के चलते पछतावे की आग में जल रही हैं। ऐसी महिलाओं को आधी उम्र बीत जाने के बाद अपनी भूलों पर पछतावे के अलावा कुछ नहीं हासिल होता। एक अध्ययन के मुताबिक, क़रीब 39.8 प्रतिशत यानी 10 में क़रीब चार लड़कियाँ शादी से पहले डेटिंग करने लगती हैं। ये सब समय से उनकी शादी न होने के चलते होता है। क्योंकि लड़कियों के हार्मोन बहुत तेज़ी से डेवलप होते हैं और शादी की उम्र आते-आते उन्हें पुरुष साथी की ज़रूरत महसूस होने लगती है; लेकिन कई समस्याओं या अपनी ज़िद या करियर बनाने के चलते उनकी शादी सही उम्र में नहीं हो पाती, जिसके चलते वो अवैध तरीक़े से अपना पार्टनर चुन लेती हैं। अध्ययन के मुताबिक, 55 प्रतिशत माँ-बाप भी लड़कियों की शादी के लिए क़रीब उनके 20 साल के होने तक नहीं सोचते हैं। उसके बाद ही वो शादी के बारे में सोचते हैं।
डेटिंग ऐप बंबल के एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में क़रीब 81 प्रतिशत महिलाएँ अविवाहित अथवा अकेला रहना पसंद करती हैं। लेकिन एक दूसरे अध्ययन के मुताबिक, जो महिलाएँ शादी नहीं करतीं या शादी के बाद तलाक़ ले लेती हैं, उनमें से 90 प्रतिशत पछताती भी हैं। वे तभी तक अकेले रहने को अच्छा समझती हैं, जब तक जवान रहती हैं; लेकिन ढलती उम्र के साथ-साथ उन्हें एक स्थायी जीवनसाथी की कमी खलने लगती है। अध्ययन के मुताबिक, क़रीब 83 प्रतिशत शहरों में बसने वाली लड़कियाँ जल्दी शादी नहीं करना चाहतीं, जबकि क़रीब 27 प्रतिशत ग्रामीण लड़कियाँ जल्दी शादी करना नहीं चाहतीं। लेकिन एक्स्ट्रा अफेयर या शादी से पहले ब्वाय फ्रेंड के बारे में 80 प्रतिशत लड़कियाँ इनकार नहीं करतीं। हालाँकि इनमें से 95 प्रतिशत लड़कियाँ अपने अफेयर या ब्वॉय फ्रेंड के बारे में माँ-बाप और समाज को कुछ भी बताना पसंद नहीं करतीं। 62 प्रतिशत शहरी लड़कियाँ और 17 प्रतिशत ग्रामीण लड़कियाँ अपने लाइफ स्टाइल में शादी के बाद भी बदलाव या समझौता नहीं करना चाहती हैं। वे परिवार से ज़्यादा अपनी ज़रूरतों और प्राथमिकताओं के साथ जीना पसंद करती हैं।
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, साल 2001 में भारत में क़रीब 5.12 करोड़ से ज़्यादा महिलाएँ कुँवारी, तलाक़शुदा और विधवा थीं, जो अकेली रह रही थीं। वहीं साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, उस वक़्त भारत में क़रीब 7.14 करोड़ से ज़्यादा महिलाएँ कुँवारी, तलाक़शुदा और विधवा थीं, जो अकेली रह रही थीं। इस तरह साल 2001 से लेकर साल 2011 तक 10 वर्षों में अकेली रहने वाली महिलाओं की संख्या में क़रीब 40 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ। एक अनुमान के मुताबिक, इंटरनेट आने के बाद कुँवारी, तलाक़शुदा और विधवा महिलाओं की संख्या में तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है। एक आँकड़े के मुताबिक, साल 2021 में देश की अदालतों में तलाक़ के क़रीब 5,00,000 मामले चल रहे थे, जो कि साल 2023 में बढ़कर 8,00,000 से ज़्यादा हो गये थे। देश के फैमिली अदालतों पर तलाक़ के मामलों का दबाव तेज़ी से बढ़ता जा रहा है और यह बोझ तीन तलाक़ पर प्रतिबंध के बाद और तेज़ी से बढ़ा है। एक अध्ययन के मुताबिक, जितने तलाक़ के मामले अदालतें निपटाती हैं, उससे ज़्यादा मुक़दमे दर्ज हो जाते हैं। हालाँकि भारत में आज भी तलाक़ के मामले सिर्फ़ 1.3 प्रतिशत ही हैं, जबकि यूरोपीय देशों में तलाक़ के मुक़दमे 18 प्रतिशत से लेकर 94 प्रतिशत तक बताये जाते हैं। पारिवारिक रिश्ते निभाने में भारतीय महिलाएँ आज भी दुनिया में सबसे ज़्यादा बेहतर मानी जाती हैं। लेकिन आधुनिक लाइफ स्टाइल जीने की चाहत, एक्स्ट्रा अफेयर और अपने से अच्छा कमाने वाला लड़का मिलने, फ्रीडम होने, करियर बनाने, संयुक्त परिवार में न रहने की ज़िद कई ऐसी वजहें हैं, जिनके चलते अब शादी न करने या केवल पति के साथ रहने या अकेले रहने या अपनी मर्ज़ी से ज़िन्दगी जीने की ख़्वाहिश के चलते बड़ी संख्या में भारतीय लड़कियाँ भी शादी करने से कतराने से लेकर तलाक़ लेने तक पर आमादा होती जा रही हैं।
भारतीय संस्कृति परिवारों, ख़ासकर संयुक्त परिवारों में ही अच्छी तरह पुष्ट होती है; लेकिन अब कई समस्याओं के चलते एकल परिवार का चलन जितनी तेज़ी से बढ़ रहा है, परिवारों में बिखराव भी उतनी ही तेज़ी से आ रहा है। मोबाइल के आने से अब हर कोई समाज में रहकर भी अलग-थलग दिखता है। इससे लड़कियों की ज़िन्दगी काफ़ी अलग और तनाव भरी हो चुकी है। इसलिए भारतीयों को भी संयुक्त परिवारों की परंपरा को जीवित करने के अलावा समय पर लड़कियों और लड़कों की शादी करने पर जोर देना होगा। संस्कारों की कमी के चलते ही दहेज, झगड़ा, मारपीट और थाना-अदालत जैसे मामलों का सामना करना पड़ता है। बहुत-सी लड़कियाँ अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने या ससुराल वालों को सबक सिखाने के चलते दहेज की माँग और मारपीट आदि के झूठे मामले उन पर दर्ज करा देती हैं, जिससे न सिर्फ़ उनकी ज़िन्दगी तबाह हो जाती है, बल्कि उनके साथ-साथ उनकी ससुराल और मायके वालों को भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आज जिस तरह से आत्मनिर्भर बनने और अच्छी ससुराल, ख़ासकर अच्छा पति पाने के चक्कर में कुँवारी लड़कियों की संख्या बढ़ रही है, उससे सेक्स रैकेट, लड़कियों की तस्करी, बलात्कार और एक्स्ट्रा या अवैध रिश्ते बढ़ते जा रहे हैं, जिसे रोकना समाज के सभी लोगों का कर्तव्य होना चाहिए।
एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में क़रीब 17 प्रतिशत लड़कियाँ अपने फ्रीडम और इच्छाओं के पूरा होने का सपना लेकर अपनी मर्ज़ी से शादी करती हैं; लेकिन जब शादी के बाद उनकी इच्छाएँ पूरी नहीं हो पातीं, तो उनमें से 84 प्रतिशत तलाक़ लेने के लिए थाने और अदालत पहुँच जाती हैं। इसमें कोई दो-राय नहीं कि शादी के बाद लड़कियों के ऊपर एक घर सँभालने की ज़िम्मेदारी के साथ-साथ कई तरह की पाबंदियाँ भी लगती हैं। उन्हें अपनी इच्छाओं को मारकर अपनी ससुराल वालों, ख़ासकर पति की इच्छाओं के अधीन होना पड़ता है और उनकी ही मनपसंद का खाना भी बनाना पड़ता है; लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि सभी ससुराल वाले लड़कियों का जीना हराम कर देते हैं। लेकिन ज़्यादातर लड़कियाँ कुछ ऐसा ही मान लेती हैं और परिवार में झगड़ा करने लगती हैं, जिसमें ज़्यादातर अलग होने की ज़िद पकड़ लेती हैं या फिर तलाक़ चाहने लगती हैं।
कुछ लड़कियाँ ससुराल में ज़ुल्म भी सहने लगती हैं। ये दोनों ही चीज़ें ग़लत हैं और दोनों ही परिस्थितियों में शादीशुदा लड़कियों को समझदारी से काम लेना चाहिए। लड़कियों के ससुराल वालों को भी दहेज के लालच और पराये घर की बेटी के साथ, जो कि उनके घर की इज़्ज़त बन चुकी होती है, उचित और सम्मानपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। क्योंकि घर में आयी परायी लड़की उनके घर का वंश बढ़ाने से लेकर उनके ही घर की सदस्य हो जाती है, जिसे ज़्यादातर सास-ससुर, ननद और पति भूल जाते हैं।