सन् 2014 में जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव जीतकर देश की सत्ता में प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए, तो उन्होंने शुरुआती उड़ान ऑस्ट्रेलिया के लिए भरी। यह हवाई जहाज़ सीधे ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन हवाई अड्डे पर उतरा। यह उड़ान देश की सत्ता द्वारा किसी प्रधानमंत्री के लिए मुहैया कराये जाने वाले हवाई जहाज़ या वायु सेना के किसी अति सुरक्षित हवाई जहाज़ की नहीं थी, बल्कि अडाणी के निजी हवाई जहाज़ की थी। देश के किसी प्रधानमंत्री ने पहली बार किसी उद्योगपति के निजी हवाई जहाज़ से विदेश यात्रा की पहली उड़ान भरी थी। इस हवाई जहाज़ में अकेले प्रधानमंत्री मोदी नहीं थे, बल्कि उनके परम् मित्र गौतम अडाणी और कुछ विश्वसनीय लोग थे। हालाँकि नरेंद्र मोदी ने सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में गौतम अडाणी के निजी हवाई जहाज़ से ही प्रचार प्रसार के लिए हवाई यात्राएँ की थीं। हालाँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा गौतम अडाणी के निजी जहाज़ का इस्तेमाल करने को लेकर जब सवाल उठे, तो अडाणी ने पत्रकारों को स्पष्टीकरण दिया कि उनके चार्टर्ड प्लेन के इस्तेमाल के बदले भाजपा ने उनकी कम्पनी को किराया दिया था। अब उनकी यह बात कितनी सच थी? इसकी कोई जाँच तो हुई नहीं; लेकिन बात कुछ हज़म नहीं हुई।
ख़ैर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया गये क्यों थे? यह सवाल अभी तक अनसुलझा है। लेकिन इसके जवाब में कुछ तथ्य उजागर हुए, जिनमें सबसे पहला और ठोस तथ्य ऑस्ट्रेलिया की कोयला खदानों का ठेका गौतम अडाणी को दिलाने की कोशिश थी, जिसका ऑस्ट्रेलिया में लंबे समय तक विरोध भी हुआ। भारत में सवाल उठे कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने गौतम अडाणी के निजी हवाई जहाज़ का इस्तेमाल क्यों किया? वह अपनी ऑस्ट्रेलिया की यात्रा पर गौतम अडाणी को लेकर क्यों गये? मोदी देश के कामकाज समझने-सँभालने की बजाय ऑस्ट्रेलिया में अडाणी को कोयला खदानों के ठेके दिलाने क्यों गये?
पिछले दिनों अडाणी पर जिस प्रकार से रिश्वत देकर अमेरिका में ठेके लेने के आरोप के बाद एफआईआर हुई और उसके बाद आस्ट्रेलिया में भी कार्रवाई शुरू हुई है, उसे भारत की केंद्र सरकार ने दबाने का भरसक प्रयास किया है। इससे साफ़ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भ्रष्ट दोस्तों को सिर्फ़ पनपने में ही मदद नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्हें बचा भी रहे हैं। ऐसे में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आरोप कुछ हद तक तथ्यपरक लगने लगते हैं कि अडाणी के कारोबार में मोदी की हिस्सेदारी है। संसद में जब भी कोई विपक्षी सासंद केंद्र सरकार की कमियों को लेकर कोई टिप्पणी करता है अथवा सवाल पूछता है, तो प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से लेकर सभी भाजपा सांसदों, मंत्रियों, यहाँ तक कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और राज्यसभा के सभापति एवं उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का चेहरा ही तमतमा उठता है।
विपक्षियों के घेराव पर जो बौखलाहट भाजपाइयों के चेहरे पर दिखती है, वह यूँ ही तो नहीं आ सकती। यह सब स्वाभाविक है। जब किसी ग़लत व्यक्ति को ग़लत कहो अथवा उसके सामने सच बोलो, तो उसे अच्छा नहीं लगता। बिना आग के धुआँ नहीं उठता। विपक्षियों से लेकर ज़्यादातर लोग लगभग हर योजना में घोटालों का आरोप हवा में नहीं लगा सकते। अभी हाल ही में पीएम केयर्स फंड में भी घपले उजागर हो रहे हैं, जिसका हिसाब देने में प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने लगातार आनाकानी की है। अब पता चला है कि जिस उद्देश्य से इस फंड में चंदा देने के लिए लोगों से भावनात्मक रूप से मदद करने की अपील गयी थी, उसमें चंदा लेने के लिए दबाव भी बनाया गया। इस फंड में अरबों रुपये जमा हुए। लेकिन इसे पूरा ख़र्च नहीं किया गया। केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में पहले ही कह दिया कि यह सरकारी फंड नहीं है। लेकिन ख़ुलासा हुआ है कि सरकारी कम्पनियों से चंदा लिया गया। इतना ही नहीं, इस फंड के प्रमुख प्रधानमंत्री मोदी हैं और अन्य पदाधिकारियों में गृहमंत्री, रक्षामंत्री और वित्तमंत्री हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार में संवैधानिक पदों पर बैठकर भी निजी तौर पर अरबों रुपये का चंदा लेने का खेल किया गया।
देश में तमाम तरह की समस्याएँ पैदा हो चुकी हैं। क़र्ज़ बढ़ता जा रहा है। रुपया डॉलर के मुक़ाबले गिरता जा रहा है। लेकिन अमृत-काल का सुख भोगा जा रहा है। जनता को विष-काल में धकेलकर भ्रष्टाचारियों का अमृत-काल सुनिश्चित किया जा रहा है। क्यों न किया जाए? जिन लोगों ने सिंहासन पर चढ़ाने के लिए राजनीतिक शतरंज की बिसात पर मनचाहे तरीक़े से गोटियाँ फेंकी थीं, उनका अहसान उतारना भी तो राज-धर्म है। भले ही उसके लिए देश को ही बर्बाद करना पड़े। यही हो भी रहा है। इसलिए देश और जनहित की चिन्ता करने वाले किसी भी व्यक्ति की बात नहीं सुनी जा रही है। पीड़ितों की पीड़ा का अहसास भी किया जा सकता है। उन पर टैक्स का बोझ बढ़ाया जा रहा है, जिससे उन्हें देशभक्ति का सही अर्थ समझ में आ सके। लूट का मायाजाल इसी को कहते हैं, जिसमें लुटने वाले को कुछ भी पता न चले।