लेखकों के साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने और अकादमी पर चुप रहने का आरोप लगाना गलत है. अकादमी ने जिन लेखकों को पुरस्कृत किया है, वह उनके साथ नहीं है, वह लेखकों पर हो रहे हमलों पर खामोश है, यह एक झूठ है. तरह-तरह की अफवाहें फैलाई जा रही हैं, जबकि हमने एमएम कलबुर्गी की हत्या के बाद बंगलुरु में अकादमी की तरफ से शोकसभा करके इस कृत्य की निंदा की थी. बढ़ती असहिष्णुता और सांप्रदायिकता को लेकर अगर आप सरकार का विरोध कर रहे हैं तो इसके लिए अकादमी का पुरस्कार लौटाने से भ्रम फैल रहा है. ऐसा लग रहा है कि आप साहित्य अकादमी का ही विरोध कर रहे हैं. यह स्पष्ट कर दूं कि अकादमी पुरस्कार देने में सरकार का हस्तक्षेप नहीं होता और जो लोग इसे सरकारी पुरस्कार मानते हैं, तो उन्होंने लिया ही क्यों था?
लेखकों को भी मालूम है कि साहित्य अकादमी पुरस्कार सरकार नहीं देती. यह साहित्य अकादमी देती है. सरकार इस संबंध में कोई निर्देश भी नहीं देती. लेखकों का चुनाव भी लेखक ही करते हैं. सरकार का विरोध करने के दूसरे भी तरीके हैं, लेकिन लेखकों का इस तरह पुरस्कार लौटाना गलत है. सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने भी इस तरह का बयान दिया है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि मैं सरकारी बयान दोहरा रहा हूं. मैं अपना बयान पहले ही दे चुका था. उनका बयान बाद में आया. मैं पहले भी यह बात कह चुका हूं और फिर से कह रहा हूं कि अकादमी का पुरस्कार लौटाना गलत है. मेरा बयान महेश शर्मा का बयान नहीं है. इस तरह के आरोप लगातार लगाए जा रहे हैं कि साहित्य अकादमी लेखकों के साथ नहीं है या उनकी हत्याओं पर मौन है. इसमें कोई भ्रम नहीं होना चाहिए कि मैं अपने लेखकों के साथ हूं. उनकी लेखकीय स्वतंत्रता का समर्थन करता हूं, उनपर हो रहे हमलों की निंदा करता हूं, लेकिन फिर भी कहूंगा कि इन सबके लिए पुरस्कार लौटाने को सही नहीं मानता. रही बात अकादमी की परिषद से इस्तीफा देने वालों की तो यह वे लोग ही जानें कि वे साहित्य अकादमी से क्यों इस्तीफा दे रहे हैं. उन्होंने लंबे समय तक अपनी सेवाएं दी हैं. उनके विरोध के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता. जहां तक सरकार को अकादमी की ओर से कोई संदेश देने का सवाल है तो हम सरकार को कोई संदेश नहीं दे सकते. हम गलत चीजों की निंदा कर सकते हैं, वह मैंने की.
(लेखक साहित्य अकादमी के अध्यक्ष हैं)
(कृष्णकांत से बातचीत पर आधारित)