हर चुनाव में भाजपा के लिए ज़मीन तैयार करते हैं संघ के पदाधिकारी और कार्यकर्ता
इंट्रो– नरेंद्र मोदी के चेहरे और गुजरात मॉडल के नाम पर सन् 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद भाजपा की सत्ता न सिर्फ़ केंद्र में क़ायम है, बल्कि कई ऐसे राज्यों में भी उसने सत्ता हासिल की है, जहाँ जीत हासिल कर पाना उसके लिए दूर की कौड़ी थी। लेकिन उसकी इस जीत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। दिल्ली में भी वह 27 साल के अंतराल के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के रणनीतिक समर्थन के चलते दिल्ली में सत्ता हासिल कर सकी है। दिल्ली में भी भाजपा ने हर राज्य की तरह दिल्ली में भी लोगों के अनुमान के विपरीत कई दिनों के असमंजस के बाद मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा की और रेखा गुप्ता को इस पद पर बैठाया। लेकिन आंतरिक मतभेदों से उभरना भी भाजपा के लिए राजधानी पर शासन करने जितना ही महत्त्वपूर्ण होगा। दिल्ली में भाजपा की जीत में संघ की भूमिका और रणनीतियों को लेकर नितिन महाजन की रिपोर्ट :-
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले 11 वर्षों से केंद्र में और देश भर के 20 से अधिक राज्यों में राजनीतिक शक्ति का इस्तेमाल कर रही है। लेकिन दिल्ली में सरकार बनाना लगभग तीन दशकों से भगवा पार्टी के लिए एक मायावी सपना बना हुआ था; क्योंकि दिल्ली में उसकी अंतिम मुख्यमंत्री के रूप में दिवंगत सुषमा स्वराज ने 03 दिसंबर, 1998 तक शासन किया, जिसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को दिल्ली की जनता ने सत्ता सौंपी थी। इस वर्ष 20 फरवरी को अपने छ: कैबिनेट सहयोगियों के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता के शपथ लेने के बाद दिल्ली सरकार के मुख्यालय, प्लेयर्स बिल्डिंग से भाजपा का वनवास समाप्त हो गया। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को हराकर राष्ट्रीय राजधानी में राजनीतिक जीत हासिल करने का मिशन आसान नहीं था और भाजपा नेतृत्व इस दुविधा से अवगत था। दिल्ली में सफलता हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी प्रमुख जे.पी. नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह सहित भाजपा नेतृत्व ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के समर्थन पर ज़्यादा निर्भर रहने का फ़ैसला किया और पार्टी के लिए समर्थन बढ़ाने के लिए अपने कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी की तलाश की; जैसा कि पार्टी नेतृत्व ने कुछ महीने पहले महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में किया था।
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फोटो: नवीन बंसल
शीर्ष भगवा नेतृत्व से हरी झंडी मिलने के बाद आरएसएस ने पिछले कई महीनों से दिल्ली के आम लोगों का दिल जीतने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया। यह मिशन आसान नहीं था; क्योंकि अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी दिल्ली सरकार ने दिल्ली में मज़बूत पकड़ बना रखी थी और उनकी दो बार रही सरकारों द्वारा पैदा की गयी मुफ़्त सुविधाओं की संस्कृति, जिसे भाजपा ने मुफ़्त की रेवड़ी-संस्कृति क़रार दिया था; के कारण आम आदमी पार्टी ने बड़े पैमाने पर लोकप्रियता हासिल की थी। आम आदमी पार्टी की सरकार को सफलतापूर्वक हटाने के लिए कार्ययोजना तैयार करने में भगवा नेतृत्व महीनों पहले ही योजना और राजनीतिक रणनीति बनाने में लग गया था।
प्रारंभिक प्रक्रिया 2022 से शुरू हुई, जिसमें कथित भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर सबसे पहले आम आदमी पार्टी के सत्येंद्र जैन, फिर क्रमश: मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, अरविंद केजरीवाल जैसे वरिष्ठ नेताओं के अलावा कई अन्य वरिष्ठ नेताओं को लगातार निशाना बनाया गया। भाजपा ने यह सुनिश्चित किया कि आम आदमी पार्टी का नेतृत्व, जो भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के दम पर राष्ट्रीय राजधानी के सत्ता गलियारों तक पहुँचने में गर्व महसूस करता है; इतनी आसानी से इन आरोपों से बच नहीं सकता। इन नेताओं की लगातार खोज और उन पर आरोप लगाने से यह सुनिश्चित हो गया कि जाँच एजेंसियों द्वारा अभियोग (चार्जशीट किये जाने) के बाद जैन, सिसोदिया और केजरीवाल को जेल में डाल दिया गया। इससे यह सुनिश्चित हो गया कि आम आदमी पार्टी के नेतृत्व की स्वच्छ छवि धूमिल हो गयी और आम लोगों के मन में संदेह पैदा हो गया।
दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली की चुनावी राजनीति में पहली बार भाजपा को भी इन विधानसभा चुनावों में केजरीवाल द्वारा बेहद लोकप्रिय मुफ़्त की योजनाओं का ऐलान करने का फ़ैसला करना पड़ा। भाजपा दिल्ली में पिछले कुछ चुनावों में ऐसे किसी भी वादे से दूर रही है। हालाँकि शीर्ष नेताओं के परामर्श से स्थानीय नेतृत्व ने सत्ता में आने पर महिलाओं की मुफ़्त बस यात्रा, रियायती बिजली और पीने योग्य पानी सहित पहले से लागू सब्सिडी को जारी रखने के पार्टी के फ़ैसले की घोषणा की। इसके अलावा भाजपा ने भी आगे बढ़कर अतिरिक्त वोट हासिल करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय राजधानी में आर्थिक रूप से कमज़ोर, योग्य महिलाओं को 2,500 रुपये की मासिक सहायता देने का वादा किया।
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फोटो: नवीन बंसल
इस बीच चुनावों के दौरान भगवा सहयोगियों द्वारा दिल्ली नेतृत्व के बीच किसी भी गुटबाज़ी से बचने का भी प्रयास किया गया। स्थानीय नेताओं से कहा गया कि अगर वे राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता में लौटना चाहते हैं, तो केंद्रीय नेताओं द्वारा तैयार की गयी रणनीति का पालन करें और स्थानीय काडर को साथ लें। दिल्ली भाजपा ऐतिहासिक रूप से आंतरिक प्रतिद्वंद्विता से जूझती रही है। विजेंदर गुप्ता, मनोज तिवारी और प्रवेश वर्मा जैसे नेता अक्सर प्रभाव डालने की होड़ में एक-दूसरे से भिड़ते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की केंद्रीकृत निर्णय प्रक्रिया ने गुटबाज़ी को दबाने में काफ़ी मदद की।
इन राजनीतिक रणनीतियों के कार्यान्वयन के लिए संघ, जो कि भाजपा का वैचारिक अभिभावक है; ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले संघ काडर द्वारा एक व्यापक आउटरीच कार्यक्रम लागू किया गया था, जहाँ राष्ट्रीय राजधानी भर में 60,000 से अधिक बैठकें आयोजित की गयीं, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि 27 वर्षों के बाद राष्ट्रीय राजधानी में भाजपा की सत्ता में वापसी के लिए ज़मीन तैयार हो गयी है। विभिन्न नामों पर अटकलों के बावजूद यह समझा जाता है कि चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद से रेखा गुप्ता को संघ का मज़बूत समर्थन प्राप्त था। संघ ने उन पर पूरा भरोसा जताया था और यह बात भाजपा नेतृत्व को भी बता दी गयी थी। कथित तौर पर संघ और भाजपा आलाकमान ने स्वच्छ छवि और व्यापक अपील वाले उम्मीदवार का समर्थन किया।
2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के हल्के प्रदर्शन के बाद से संघ चुनावी रणनीति को आकार देने और अपने राजनीतिक सहयोगी के लिए समर्थन बढ़ाने में अधिक सक्रिय हो गया है। यह तथ्य पहले भी हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के दौरान ही स्पष्ट हो गया था, जहाँ संघ काडर ने यह सुनिश्चित किया था कि भाजपा के समर्थक मतदान के दिन मतदान करने के लिए बाहर आएँ और यह इन राज्यों के अनिर्णीत और युवा मतदाताओं से जुड़ें और इस रणनीति से भगवा मोर्चे की प्रभावशाली जीत सुनिश्चित हुई। लोकसभा चुनावों के बाद से संघ काडर ने अपनी पहुँच बढ़ा दी थी, जहाँ पहली बार मतदाताओं, युवाओं और महिलाओं के साथ राष्ट्रवाद और नरेंद्र मोदी सरकार के लोक कल्याण उपायों से सम्बन्धित मुद्दों पर चर्चा की गयी थी। संघ कार्यकर्ताओं की इन आउटरीच बैठकों के परिणाम हाल के हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनावों में देखे गये हैं, इस तथ्य को भाजपा नेतृत्व ने स्वीकार किया है।
पिछले साल हरियाणा में भाजपा ने लगातार तीसरी बार 90 में से 48 सीटें जीतीं, जबकि महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन- जिसमें भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार) शामिल थे; ने 288 में से 228 सीटें जीतने का दावा किया। इन दोनों राज्यों में भगवा जीत का श्रेय पार्टी के पक्ष में संघ की प्रभावी पहुँच को दिया गया। दिल्ली में संघ द्वारा अभियान महाराष्ट्र चुनाव के तुरंत बाद शुरू किया गया था और शहर को 30 ज़िलों और 173 नगरों को पूरा करते हुए आठ क्षेत्रों में विभाजित किया गया था। दिल्ली में आउटरीच कार्यक्रम में संघ प्रचारकों के अलावा विभिन्न सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भी हिस्सा लिया।
गुप्ता मंत्रिमंडल पर संघ की छाप
दिल्ली में सुषमा स्वराज (भाजपा), शीला दीक्षित (कांग्रेस) और आतिशी (आम आदमी पार्टी) के बाद महिला मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता का नामांकन हुआ है। वह दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री हैं और स्पष्ट रूप से संघ के अनुमोदन की मुहर लगने पर बनी हैं। वरिष्ठ नेता संघ की युवा शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) से आती हैं और उन्हें भगवा संगठनों का पूरा भरोसा प्राप्त है। उन्हें संघ सरकार्यवाह (महासचिव) दत्तात्रेय होसबले का वफ़ादार माना जाता है।
समझा जाता है कि हाल के दिल्ली विधानसभा चुनावों में संघ के मज़बूत समर्थन के बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने मुख्यमंत्री पद के लिए संघ की उम्मीदवार को समायोजित किया है, जो कि भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री चेहरों के चयन में संघ के प्रभाव की एक और स्वीकारोक्ति है। ऐसा माना जाता है कि संघ से जुड़े संगठनों के ठोस और अटूट समर्थन के कारण अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को हराकर भाजपा दिल्ली विधानसभा की 70 में से 48 सीटें हासिल करने में सफल रही। किसी भी राज्य में भाजपा के शासन में पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता की नियुक्ति पार्टी के महिला मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के उद्देश्य से मेल खाती है, जिन्होंने दिल्ली की जीत में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
भाजपा ने यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल में नियुक्तियों में जातिगत समीकरणों और सामुदायिक आकांक्षाओं का ध्यान रखा जाए। गुप्ता की नियुक्ति को संभावित रूप से ऐतिहासिक माना जा रहा है; क्योंकि जिन 21 राज्यों में भाजपा सत्ता में है, उनमें से किसी में भी भाजपा की कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं रही है। उनकी स्वच्छ छवि, ज़मीनी स्तर पर जुड़ाव, संगठनात्मक कौशल और शालीमार बाग़ में उनकी ठोस जीत को शीर्ष पद के लिए उनके चयन के कारणों के रूप में उद्धृत किया गया है। रेखा गुप्ता को दिल्ली की मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने एक साथ कई समीकरण बना दिये हैं। उन्होंने आम आदमी पार्टी के कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल (बनिया) और आतिशी मार्लेना (महिला) से कमान सँभाली और इन समुदायों की आकांक्षाओं को पूरा किया। इससे भगवा कार्यकर्ताओं को एक सकारात्मक संदेश जाता है कि अगर कोई संगठन के लिए लगातार काम करता है, तो एक साधारण एबीवीपी कार्यकर्ता भी मुख्यमंत्री बन सकता है।
प्रवेश वर्मा (जाट), आशीष सूद (पंजाबी, बनिया), मनजिंदर सिंह सिरसा (सिख, अल्पसंख्यक), कपिल मिश्रा (ब्राह्मण), रविंदर इंद्राज सिंह (दलित) और पंकज कुमार सिंह (पूर्वांचली) को मंत्री बनाकर उनकी क्षेत्रीय, जातीय और सामुदायिक आकांक्षाओं को पूरा किया गया है। इसके अलावा बनिया समुदाय से आने वाले वरिष्ठ नेता विजेंद्र गुप्ता को सदन के अध्यक्ष के रूप में समायोजित किया गया है। इन समुदायों के नेताओं को शामिल करके भाजपा ने उन सभी प्रमुख समुदायों और जातियों के लिए प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया है, जिन्होंने राष्ट्रीय राजधानी में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर करने में मदद की है।
सोशल इंजीनियरिंग से यह सुनिश्चित करने की उम्मीद है कि हाल के विधानसभा चुनावों और पिछले साल लोकसभा चुनावों में भाजपा का समर्थन करने वाले वोटिंग ब्लॉक और समुदायों को दिल्ली कैबिनेट में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिले। भाजपा को उम्मीद है कि यह आवास राष्ट्रीय राजधानी में भगवा मोर्चे की राजनीतिक स्थिति को बढ़ावा देगा। अन्य राज्यों में विधानसभा सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत मंत्री बनाया जा सकता है। हालाँकि दिल्ली में विधानसभा की 10 प्रतिशत सीटें यानी कुल सात मंत्री ही बनाये जा सकते हैं। दिल्ली विधानसभा में 70 सदस्य हैं। दिल्ली के फॉर्मूले के मुताबिक, मुख्यमंत्री समेत कुल सात मंत्री कैबिनेट में हो सकते हैं। यानी एक मुख्यमंत्री और छ: कैबिनेट मंत्री।
जीतना और इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता पर बने रहना। भाजपा के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि वह इसे एक विश्व स्तरीय शहर के रूप में प्रदर्शित और विकसित करना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले कहा था कि वह राजधानी को एक आधुनिक महानगर के रूप में विकसित करना चाहते हैं, जिसे भारत के गौरव के रूप में प्रदर्शित किया जा सके। भगवा पार्टी को लगता है कि उसकी डबल इंजन अवधारणा प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए आदर्श होगी। भाजपा में यह धारणा बन गयी थी कि जब तक दिल्ली में एक मित्रवत् सरकार सत्ता में नहीं आएगी, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा निर्धारित लक्ष्य को हासिल करना बहुत मुश्किल होगा। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी के नेतृत्व में भगवा इकाई को राष्ट्रीय राजधानी में निराशाजनक समय का सामना करना पड़ रहा था; क्योंकि इसकी कई विकासात्मक पहल शहर में लागू नहीं की गयी थीं। जैसा कि भगवा पार्टी लगभग तीन दशकों में दिल्ली में अपना पहला कार्यकाल शुरू कर रही है, आंतरिक दरारों को प्रबंधित करना शहर पर शासन करने जितना ही महत्त्वपूर्ण होगा।
माना जा रहा है कि राज्य नेतृत्व का एक धड़ा रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाये जाने से नाख़ुश है और भविष्य में परेशानी खड़ी कर सकता है। दिल्ली में भाजपा की जीत उल्लास का क्षण है; लेकिन इसकी आंतरिक गतिशीलता पर असंतोष की छाया बड़ी है। केवल समय ही बतायेगा कि क्या इस आंतरिक कलह को सुलह की भावना से शान्त किया जा सकता है? या भगवा मोर्चे के भीतर विद्रोह भड़का सकता है? दिल्ली इकाई के विघटनकारी अतीत का मतलब है कि सतह के नीचे तनाव बढ़ सकता है। अगर नयी सरकार लड़खड़ाती है, तो भड़कने के लिए तैयार है। भगवा मोर्चे के भीतर कोई भी आंतरिक कलह केंद्रीय भाजपा नेतृत्व द्वारा निर्धारित लक्ष्यों और राष्ट्रीय राजधानी में राजनीतिक सत्ता बनाये रखने की उसकी दीर्घकालिक योजना को ख़तरे में डाल सकता है। ख़ासकर तब, जब घायल; लेकिन लचीले अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी भाजपा के किसी भी ग़लत क़दम का फ़ायदा उठाने की प्रतीक्षा कर रही है। जैसा कि भगवा पार्टी लगभग पौने तीन दशक बाद दिल्ली में अपना पहला कार्यकाल शुरू कर रही है, उसके लिए आंतरिक दरारों को प्रबंधित करना भी महत्त्वपूर्ण होगा।
दिल्ली सरकार को अपने वोट बैंक का विश्वास बनाये रखने के लिए भाजपा के महत्त्वाकांक्षी वादों, जैसे- प्रदूषण से निपटना, बुनियादी ढाँचे में सुधार, परिवहन और आर्थिक राहत प्रदान करने की ज़रूरत है। ऐसा लगता है कि कुछ ही दिन पहले शपथ ग्रहण करने वाली नयी सरकार ने सत्ता सँभालने के बाद से विभिन्न परियोजनाओं की समीक्षा और नये विकास कार्यों की शुरुआत के लिए सरकारी अधिकारियों के साथ कई दौर की बैठकें की हैं।