कैसे विश्वास हो ?

व्यवसाय में झूठ और बेईमानी कोई नयी बात नहीं है। जो जितना बड़ा बेईमान, उतना ही बड़ा व्यापारी। यह बात शायद व्यापारियों को बुरी लगे; लेकिन सच है। बिना बेईमानी के व्यापार अरबों में नहीं पहुँचता। इसे समाज में हुनर माना जाता है। लेकिन जब किसी की बेईमानी का पर्दाफ़ाश होता है, तो उसे लोग अपने-अपने नज़रिये से तोलने लगते हैं।

देश के जाने-माने उद्योगपति और अडाणी समूह के संस्थापक और अध्यक्ष गौतम अडाणी भी ऐसी ही एक बेईमानी के आरोपों से आजकल घिरे हैं। जबसे उन पर अमेरिका में एक सौर ऊर्जा का ठेका लेने के लिए भारतीय अधिकारियों को मोटी रिश्वत देकर दूसरे निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के आरोप लगे और न्यूयॉर्क की फेडरल कोर्ट में उनकी गिरफ़्तारी की बात उठी, भारत में उनकी चर्चा एक बार फिर बहुत ज़्यादा होने लगी। उनके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी उनके दोस्त या कहें कि उनके लिए काम करने वाले प्रधानमंत्री के रूप में उछला है। सोशल मीडिया पर तरह-तरह के कार्टून, टिप्पणियों, फब्तियों, नारों और कटाक्षों की बाढ़-सी आ गयी। अडाणी समूह के शेयर एक साथ गिरने लगे। यह सब कुछ ठीक उसी तरह हुआ, जिस तरह हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद अडानी के शेयर जनवरी, 2023 में हुआ था। अब यह दूसरी बार है, जब गौतम अडाणी सवालों के कटघरे में हैं और उन पर बेईमानी के आरोप लग रहे हैं। हालाँकि कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गाँधी से लेकर दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक, अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल पहले भी कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गौतम अडाणी में आपसी साँठगाँठ को लेकर कई तरह के आरोप लगा चुके हैं। दोनों नेता यहाँ तक कह चुके हैं कि गौतम अडाणी के व्यवसायों में प्रधानमंत्री मोदी की हिस्सेदारी है और गौतम अडाणी की कम्पनियों को विदेशों में ठेके दिलवाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न सिर्फ़ अपने पद का दुरुपयोग करते हैं, बल्कि सरकारी पैसा भी बर्बाद करते हैं।

अब अमेरिका में रिश्वत देकर ठेका लेने के आरोप के मामले में केंद्र सरकार गौतम अडाणी का बचाव कर रही है। राहुल गाँधी कार्रवाई की माँग कर रहे हैं और केजरीवाल दिल्ली के चुनावों की तैयारी में मशरूफ़ हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल इसे अमेरिकी न्यायालय से जुड़ा क़ानूनी मामला बता रहे हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने प्रेस वार्ता करके बचाव के लिए यह तक कह दिया कि भारत सरकार को इस मुद्दे पर अमेरिकी प्रशासन ने पहले से सूचित नहीं किया।

आश्चर्य इस बात का है कि अमेरिका में उद्योगपति गौतम अडाणी और उनके भतीजे सागर अडाणी समेत आठ लोगों के ख़िलाफ़ रिश्वत$खोरी और धोखाधड़ी के आरोप लगने और इन सबके गिरफ़्तारी समन जारी होने के बाद भाजपा के कई नेता तिलमिलाये हुए हैं और अडाणी के बचाव में उतर आये हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि अडाणी समूह को अगले एक साल में लगभग तीन अरब डॉलर का ऋण चुकाना है। अडाणी समूह ने इसके लिए बैंकों से ऋण की उम्मीद की तरफ़ इशारा किया है। इसका अर्थ यह हुआ कि भारतीय बैंक अब सरकार के इशारे पर अडाणी समूह को और ऋण देंगे। पहले ही दज़र्नों उद्योगपतियों द्वारा देश का पैसा ऋण के रूप में लेकर विदेश भाग जाना और एनडीए की केंद्र सरकार द्वारा अरबों रुपये का अडाणी समेत बड़े-बड़े उद्योगपतियों का ऋण माफ़ करना देश को बड़े वित्तीय संकट में डाल चुका है। अब एक ऐसे उद्योगपति को बैंकों द्वारा ऋण दिये जाने के संकेत मिलना, जिसके चलते पूरी दुनिया का भरोसा न सिर्फ़ भारतीय व्यापारियों पर से उठ सकता है, बल्कि केंद्र सरकार की छवि भी ख़राब हुई है; कितना उचित है? यह तय किया जाना चाहिए।

सभी जानते हैं कि पहले ही वित्तीय संकट से जूझ रहे भारतीय बैंकों के पास उनका पैसा नहीं, बल्कि खाता धारकों का पैसा है। ऐसे में बैंकों द्वारा उद्योगपतियों को लगातार ऋण वितरित करना और उसे माफ़ करते चले जाना कहीं-न-कहीं बैंकों को दिवालिया बनाने का रास्ता तैयार करने जैसा है। सन् 2014 में केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद से बैंकों के घाटे का आलम यह है कि देश के कई बड़े बैंक बंद हो चुके हैं और कई बैंकों का आपस में एकीकरण करना पड़ा है। इसमें घाटे को छिपाने की केंद्र सरकार की चालाकी का खेल साफ़ दिखायी देता है। हालाँकि इस घाटे के लिए सिर्फ़ उद्योगपति ही नहीं, बल्कि केंद्र सरकार भी ज़िम्मेदार है, जो ख़ुद भी बैंकों का पैसा तय सीमा से ज़्यादा लेने के अलावा विदेशी ऋण भी बढ़ाती जा रही है। इसका असर यह हो रहा है कि सभी बैंक आम खाता धारकों के खातों पर तरह-तरह के ज़ुर्माने और शुल्क लगाकर करोड़ों रुपये सालाना बटोर रहे हैं।

अब तो स्थिति यहाँ तक आ चुकी है कि  देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक भी विदेशी बैंकों से 1.25 बिलियन डॉलर का ऋण लेने को मजबूर है। इससे पहले भी भारतीय स्टेट बैंक ने जुलाई, 2024 में ही 750 मिलियन डॉलर का ऋण लिया था। अगर इसी तरह से भारत के बैंक घाटे में जाकर ऋण लेते रहे, तो वे अपने ग्राहकों के पैसे की सुरक्षा कैसे करेंगे? केंद्र सरकार तो ऋण लेकर घी पीने का काम कर-करा रही है। फिर कैसे मान लिया जाए कि देश सुरक्षित हाथों में है? कैसे विश्वास हो कि 2030 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था वाला देश बन जाएगा?