भाजपा के गोवा से विधायक विष्णु वाघ की एक मांग पर क्या रुख तय किया जाए, यह फिलवक्त भाजपा के नेतृत्व को समझ में नहीं आ रहा है, जिन्होंने ‘सनातन संस्था’ पर पाबंदी की मांग की है. मालूम हो कि काॅमरेड गोविन्द पानसरे की हत्या में कथित संलिप्तता को लेकर सनातन संस्था इन दिनों नए सिरे से सुर्खियों में है, उसके कई कार्यकर्ता पकड़े गए हैं. इतना ही नहीं नरेंद्र दाभोलकर, पानसरे एवं एमएम कलबुर्गी की हत्या में एक ही सूत्र जुड़े रहने के संकेत भी मिल रहे हैं.
खबरों के मुताबिक पुलिस को उसके अन्य कार्यकर्ताओं रुद्र पाटिल और सारंग अकोलकर की भी तलाश है, जिन्हें अक्टूबर, 2009 के मडगांव बम विस्फोट में फरार घोषित किया गया है. इस संस्था से जुड़े दो आतंकी- मालगोंडा पािटल और योगेश नायक- बम विस्फोट में तब मारे गए थे, जब वे दोनों नरकासुर दहन नाम से समूचे गोवा में लोकप्रिय कार्यक्रम के पास विस्फोटकों से लदे स्कूटर पर जा रहे थे और रास्ते में ही विस्फोट हो जाने से न केवल उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा बल्कि उनकी समूची साजिश का भी खुलासा हुआ. ये दोनों आतंकी उसी दिन मडगांव से 20 किलोमीटर दूर वास्को बंदरगाह के पास स्थित सान्काओले में एक अन्य बम विस्फोट की कोशिश में भी शामिल थे.
दरअसल जनाब विष्णु वाघ ने अतिवादी संगठनों पर पाबंदी को लेकर अपनी ही सरकार के दोहरे रुख को उजागर किया है. उन्होंने न केवल ‘सनातन संस्था’ की तुलना प्रतिबंधित संगठन ‘सिमी’ अर्थात स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया से की, बल्कि यह भी जोड़ा कि ‘सनातन’ पर अगर बाहर के कई देशों में पाबंदी लग सकती है, तो यहां पर क्यों नहीं?(http://zeenews.india.com/news/india/bjp-mla-compares-sanatan-%E2%80%8Bsanstha-with-simi-seeks-ban-for-spreading-terror_1800711.html)
विष्णु वाघ का प्रश्न है कि प्रमोद मुतालिक की अगुआई वाली श्रीराम सेना जिसने खुद गोवा के अंदर उत्पात नहीं मचाया है, उसकी गतिविधियों पर अगर गोवा में पाबंदी लगाई जा सकती है, तो फिर सनातन संस्था जिसके कार्यकर्ता कई आतंकी घटनाओं में लिप्त पाए गए हैं, उनके प्रति इतना मुलायम रवैया क्यों (http://www.ndtv.com/india-news/ban-sanatan-sanstha-demands-goa-bjp-lawmaker-vishnu-wagh-1220555 )
यह बात नोट करने लायक है कि श्रीराम सेना पर पाबंदी का फैसला उन दिनों का है, जब रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर गोवा के मुख्यमंत्री थे. न केवल श्रीराम सेना गोवा में प्रतिबंधित है बल्कि उसके नेता प्रमोद मुतालिक के प्रवेश पर भी पाबंदी है. गौरतलब है कि पिछले दिनों देश की सुप्रीम कोर्ट ने भी गोवा सरकार के उपरोक्त फैसले पर अपनी मुहर लगाई थी और ‘नैतिक पहरेदारी और उसके नाम पर महिलाओं पर हमले करने’ की निंदा की थी. सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के शब्द थे ‘आखिर आप नैतिक पहरेदारी क्यों करते हैं? क्या आप यही करना चाह रहे हैं? आप नैतिकता के नाम पर महिलाओं पर हमले करते हैं.’
यह सोचने का सवाल है कि श्रीराम सेना से नफरत और सनातन पर इस भाजपाई इनायत का राज क्या है, जबकि तथ्य यही बताते हैं कि दोनों संगठनों की गतिविधियों में कोई गुणात्मक अंतर नहीं है. क्या यह सब दिखावटी है और अंदर से सभी एक साथ है?
यह वही श्रीराम सेना है जिसके नेता प्रमोद मुतालिक कभी विश्व हिंदू परिषद एवं बजरंग दल की दक्षिण भारत इकाई के संयोजक थे और उन्हें तब पद से हटा दिया गया था, जब बाबा बुडनगिरी मामले में उन पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप लगे थे. इसके बाद उन्होंने अपने स्वतंत्र संगठन का निर्माण किया था. कर्नाटक में जब भाजपा शासन में ईसाईयों पर हमले होने लगे तो उसकी जिम्मेदारी उन्होंने खुद ली थी. इतना ही नहीं, वह इस बात को भी सार्वजनिक तौर पर स्वीकार चुके हैं कि वह लोगों को हथियारों का प्रशिक्षण देते हैं (www.rediff.com,10Nov2008http://www.rediff.com/news/2008/nov/10inter-we-are-training-youth-to-fight-terror.htm)
वैसे ऐसा नहीं कहा जा सकता कि श्रीराम सेना को लेकर गोवा भाजपा का रुख उसके प्रति राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के रुख को प्रतिबिंबित करता है. जिन दिनों कर्नाटक में भाजपा एवं जनता दल सेकुलर की साझा सरकार थी और बाद में जब येदियुरप्पा की अगुआई में अपने बलबूते सरकार बनाने में भाजपा को सफलता मिली तब उन्होंने अन्य हिंदुत्ववादी संगठनों- बजरंग दल आदि के साथ श्रीराम सेना पर लगे मुकदमे भी वापस लिए थे. (देखें, बीजेपी विथडू केसेस अगेन्स्ट मुतालिक, टाइम्स आॅफ इंडिया, 29 जनवरी 2009) वर्ष 2004 से 2006 के दरमियान मुतालिक एवं अन्य 150 कार्यकर्ताओं के खिलाफ दंगा फैलाने, गैरकानूनी ढंग से सभा करने, भड़काऊ भाषण देने, सांप्रदायिक दंगे भड़काने आदि को लेकर कई केस दर्ज हुए थे, जिनमें से अधिकतर में मुतालिक का नाम शामिल था, मगर उन सभी 54 मामलों को सरकार ने बाद में वापस लिया था.
अगर हम बारीकी से देखें तो इन सभी अतिवादी संगठनों की गतिविधियों में आपस में बहुत सामंजस्य दिखाई देता है. इंडियन एक्सप्रेस ने ‘द सेफ्रन फ्रिंज’ नाम से एक स्टोरी (1 फरवरी 2009 को) की थी, जिसमें पहले यह बताया गया था कि श्रीराम सेना ने किस तरह ‘कॉलेज परिसरों में घुसपैठ बना ली है, जहां उसका एजेंडा गोहत्या बंदी, अंतरधार्मिक रिश्तों को रोकना, फैशन शो का विरोध करना है.’ वहीं उसने एक दिलचस्प बात भी कही थी कि एक जैसे दिखने वाले इन अतिवादी समूहों की गतिविधियों में श्रम विभाजन भी दिखता है.
हालांकि श्रीराम सेना बजरंग दल और हिंदू जागरण वेदिके से रिश्ते से इंकार करती है, उसके कार्यकर्ता एक दूसरे के साथ मिलकर काम करते दिखते हैं. और वह एक दूसरे के कार्यक्षेत्र में शायद ही घुसपैठ करते हैं- श्रीराम सेना अगर नैतिक पहरेदार है, बजरंग दल धर्मांतरण को निशाना बनाती है तो वेदिके अन्य मसलों से निपटती है.
चाहे श्रीराम सेना हो, सनातन संस्था, अभिनव भारत हो या अक्सर विवादों में रहने वाली भाजपा सांसद आदित्यनाथ की प्रेरणा से सक्रिय पूर्वी उत्तर प्रदेश की हिंदू युवा वाहिनी- जिसके कार्यकर्ताओं ने पिछले दिनों बिसाहड़ा, दादरी जाकर गांव के सभी हिंदुओं को हथियार बांटने की बात कही थी- या अगस्त 2008 में कानपुर के प्राइवेट हॉस्टल में बम इकट्ठा करते मारे गए हिंदूवादी संगठनों के दो कार्यकर्ता और उनके पीछे फैला व्यापक नेटवर्क हो, हम आसानी से देख सकते हैं कि पूरे देश में आतंकी घटनाओं के जरिए एक ऐसा वातावरण पैदा किया जा रहा है, जो सरगर्मियां किसी भी मायने में इस्लामिस्ट आतंकियों या जियनवादी आतंकियों या फिर खालिस्तानी आतंकियों से कमतर नहीं दिखती हैं.
सनातन संस्था
हिप्नोथेरेपिस्ट जयंत बालाजी अठावले द्वारा 1999 में बनाई गई सनातन संस्था पर तब देश की निगाह गई जब अप्रैल 2008 में इसके कार्यकर्ताओं की ठाणे, पनवेल और वाशी जैसे स्थानों पर बम विस्फोट कराने की योजना का खुलासा हुआ. इत्तेफाक से इन बम विस्फोटों में किसी की मौत नहीं हुई थी. एंटी टेरेरिस्ट स्क्वाड के चर्चित पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे ने आध्यात्मिकता के आवरण में हिंसक गतिविधियों में लिप्त उपरोक्त संस्था को लेकर दायर अपनी प्रथम सूचना रिपोर्ट में संस्था पर ही कार्रवाई करने की बात कही थी.
जांच में पुलिस के सामने यह तथ्य भी आया था कि उपरोक्त संस्था एक तरफ ‘आध्यात्मिक मुक्ति’, ‘सदाचार/धार्मिकता की जागृति’ की बात करती है, एक ऐसी दुनिया जो ‘साधकों और जिज्ञासा रखने वालों के सामने धार्मिक रहस्यों को वैज्ञानिक भाषा में पेश करने का मकसद रखती है’ और ‘जो साप्ताहिक आध्यात्मिक बैठकों, प्रवचनों, बाल दिशानिर्देशन वर्गों, आध्यात्मिकता पर कार्यशालाओं’ आदि का संचालन करती है, मगर दूसरी तरफ वहां ‘शैतानी कृत्यों में लगे लोगों के विनाश’ को ‘आध्यात्मिक व्यवहार’ का अविभाज्य हिस्सा समझा जाता है. (देखें, ‘साइंस ऑफ स्प्रिचुअलिटी’ जयंत आठवले, वाॅल्यूम 3, एच – सेल्फ डिफेंस ट्रेनिंग, चैप्टर 6, पेज 108-109) और यह विनाश ‘शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर’ करना है. गौरतलब है कि इस ‘धर्मक्रान्ति’ को सुगम बनाने के लिए साधकों को हथियारों-राइफल, त्रिशूल, लाठी और अन्य हथियारों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है.
अभी ज्यादा दिन नहीं हुआ जब महाराष्ट्र के अग्रणी दैनिक लोकसत्ता में लिखे लेख में (28 सितंबर 2015) उपरोक्त संस्था द्वारा मराठी में प्रकाशित पुस्तिका ‘क्षात्राधर्म’ के अंश दिए गए हैं, जो इस संस्था के चिंतन और कार्यप्रणाली पर और रोशनी डालते हैं. (http://epaper.loksatta.com/598945/loksatta-pune/27-09-2015#page/6/2). पिछले दिनों ‘मुंबई मिरर’ नामक अखबार को दिए साक्षात्कार में संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी वीरेंद्र मराठे ने खुल्लमखुल्ला कहा कि हम ‘हथियारों का प्रशिक्षण देते हैं’. उपरोक्त संस्था द्वारा मराठी, अंग्रेजी आदि भाषाओं में प्रकाशित अखबार ‘सनातन प्रभात’ भी अक्सर सुर्खियों में रहता आया है क्योंकि उसमें अन्य समुदायों के खिलाफ बहुत अपमानजनक बातें लिखी गई होती हैं. एक बार ऐसे ही लेख के प्रकाशन के बाद मिरज शहर (महाराष्ट्र) में दंगे की नौबत तक आ गई थी.
किन्हीं प्रार्थनास्थलों पर बम रखने वाले, अजमेर दरगाह बम धमाका (2007), मक्का मस्जिद बम धमाका (2007), मुसाफिरों से भरी रेलगाड़ी में बम रखने वाले/समझौता एक्सप्रेस बम धमाका (2007), मुस्लिम बहुल इलाकों में दुपहिया वाहन में विस्फोटक रख कर निरपराधों को मारने की साजिश रचने वाले/मालेगांव बम धमाका (सितंबर 2008), मोडासा बम धमाका (सितंबर 2008), नरकासुर महोत्सव में एकत्रित हजारों लोगों के बीच विस्फोटक रखने के लिए तैयार/मडगांव बम धमाका (अक्टूबर 2009), सनकोले बम धमाका (अक्टूबर 2009), करने वाले आखिर किस मिट्टी के बने इंसान हैं और इन्हें तथा बसों से खींच कर निरपराधों को मारने वाले तालिबानियों या खालिस्तानियों से किस बात में अलग कहे जा सकते हैं?
निश्चित ही यह ऐसे प्रयास हैं जिन्हें किसी केंद्रीय संगठन से प्रेरणा भी मिलती दिखती है तो कुछ स्थानीय स्तर की पहलकदमी करने वाले भी दिखते हैं, जो कुछ समय तक सक्रिय रहने के बाद टूट-बिखर जाते हैं. उदाहरण के तौर पर 2002 में सहारनपुर इलाके में सक्रिय ‘आर्य सेना’ नामक हिंदू आतंकी समूह को ही देखें (एनडीटीवी, 7 जून 2002, ndtv.com/morenews/showmorestory.asp?slug=Hindu+militant+outfit+ discovered+in+UP/) जिसने मस्जिदों एवं मदरसों पर हमले किए थे जिसके दो सदस्य पकड़े गए थे मगर इस समूह का मास्टरमाइंड अभी भी फरार था. पुलिस की सेवा में पहले रहे किसी सत्येंद्र मलिक ने सेना के लिए पैसे एवं प्रेरणा दी थी और अल्पसंख्यक निशानों पर हमले की योजना बना थी. सहारनपुर की 40 फीसदी मुस्लिम आबादी आर्य सेना की हिंसा का निशाना थी.
या आप मेवात के गुरुकुल में हुए यह बम विस्फोट की खबर देखें (फॉरेंसिक रिपोर्ट ने उड़ाए जांच एजेंसियों के होश, जागरण, राष्ट्रीय संस्करण, 16 नवंबर 2010) जिसमें पाया गया था कि यहां ग्राम भडास में महर्षि दयानंद आश्रम द्वारा संचालित गुरुकुल में हुए बम विस्फोट में पीईटीएन नामक विस्फोटक- जो आरडीएक्स एवं टीएनटी से अधिक विनाशकारी होता है- पाया गया था और वहां कार्यरत स्वामी आनंद मित्रानंद को पुलिस ने पकड़ा था, जिसने पुलिस को बताया था कि वहां पहले से कार्यरत स्वामी अमरानंद ने उसे वह बम दिए थे.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बनाम जमात-ए-इस्लामी
दक्षिण एशिया में धर्म विशेष की राजनीति करने वाले दो संगठनों- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जो हिंदू राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है और जमात-ए-इस्लामी, जो इस्लामिक राज्य बनाने की बात करता है- में गजब की समानता दिखती है. दरअसल दोनों ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए अनुषांगिक संगठनों, संस्थाओं एवं समविचारी समूहों का विशाल नेटवर्क तैयार किया है. ऐसे अनुषांगिक संगठनों में समाज के अलग-अलग तबकों के अलावा, अलग-अलग मुद्दों पर सक्रिय संगठन शामिल हैं.
सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किताब ‘परम वैभव के पथ पर (लेखक सदानंद दामोदर सप्रे) आरएसएस की ऐसी कार्यप्रणाली पर रोशनी डालती है. संघ से संबद्ध डॉ. सप्रे 31 छोटे-छोटे अध्यायों में संघ से संबद्ध विद्यार्थी परिषद से लेकर पूर्व सैनिक परिषदों जैसे संगठनों पर तथा प्रचार माध्यम एवं सामयिक महत्व के कार्य के अंतर्गत गोरक्षा आदि मामलों में संघ तथा उससे संबंधित संगठनों की सक्रियता को रेखांकित करती है, इनमें हिंदू जागरण मंच का भी जिक्र है. गौरतलब है कि जब हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ता कई सूबों में ईसाईविरोधी हिंसा फैलाने में लिप्त पाए गए थे, तब उससे किनारा करने में भी संघ ने वक्त नहीं गंवाया था. (देखें, पेज 15, गोडसेज चिल्ड्रेन, हिंदुत्व टेरर इन इंडिया)
बांग्लादेश के अनुभवों को लेकर प्रोफेसर अब्दुल बरकत का अध्ययन, बांग्लादेश में मूलवाद के राजनीतिक अर्थशास्त्र की चर्चा के बहाने वहां जड़ जमा चुकी जमात-ए-इस्लामी पर निगाह डालता है. (अंग्रेजी पत्रिका, मेनस्ट्रीम, मार्च 22-28, 2013) ढाका विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बरकत बताते हैं कि अपनी मूलवाद की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए अपने काडर आधारित नेटवर्क के माध्यम से जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश ने ‘वित्तीय संस्थानों, शैक्षिक संस्थानों, फार्मास्युटिकल एवं स्वास्थ्य संबंधी संस्थानों, धार्मिक संगठनों, यातायात से जुड़े संगठनों, रियल इस्टेट, न्यूज मीडिया और आईटी, स्थानीय प्रशासन, एनजीओ, हरकत-उल-जिहाल-अल-इस्लामी से लेकर जमाइतुल मुजाहिदीन बांग्लादेश’ जैसे संगठनों/समूहों का निर्माण किया है. ध्यान रहे कि यह वही जमाइतुल मुजाहिदीन बांग्लादेश है, जिसने अपनी आतंकी गतिविधियों के जरिए बांग्लादेश में कहर बरपा किया था, जिसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने एक साथ बांग्लादेश के तमाम जिलों में बम विस्फोट करके आतंक मचाने की कोशिश की थी.
निश्चित ही संघ द्वारा अपने अनुषांगिक संगठन के तौर पर किसी आतंकी संगठन का निर्माण किया गया हो, इसकी आधिकारिक जानकारी किसी के पास नहीं है, मगर इस बात को मद्देनजर रखते हुए कि 21वीं सदी की पहली दहाई में भारत के विभिन्न स्थानों पर हुए आतंकी हमलों में हिंदुत्ववादी विचारों से प्रेरित कार्यकर्ताओं की संलिप्तता देखी गई थी, जिनमें से कइयों के संघ से संबंधों का खुलासा हुआ है. कइयों के बारे में संघ ने इस बात की भी पुष्टि की है कि वह संघ के पूर्व कार्यकर्ता थे, तो यह उसके लिए आत्मपरीक्षण का भी वक्त है कि आखिर उसके जैसे अनुशासित कहे जाने वाले संगठन के कार्यकर्ता- जो अपने आप को ‘चरित्र निर्माण’ के लिए प्रतिबद्ध कहता हो- वह आखिर बम-गोलियों के सहारे मासूमों की हत्या क्यों कर रहे हैं?
विडंबना यही है कि संविधान को ताक पर रख कर काम करने वाले इन संगठनों पर अंकुश कायम करने की बजाय ऐसे हालात पैदा किए जा रहे हैं कि उन्हें आसानी से फलने-फूलने का रास्ता मिले. और यह प्रतीत हो रहा है कि भाजपा के केंद्र में सत्तारोहण के बाद हिंदुत्व आतंक की परिघटना एवं उससे जुड़े मामलों में शामिल लोगों को क्लीनचिट देने की तैयारी चल रही है. इस बदली हुई परिस्थिति को लेकर संकेत एक केंद्रीय काबिना मंत्री के बयान से भी मिलता है जिसमें उन्होंने हिंदू आतंक की किसी संभावना को सिरे से खारिज किया था और यह इस हकीकत के बावजूद कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी कम से कम 16 ऐसे उच्च-स्तरीय मामलों की जांच में मुब्तिला रही है, जिसमें हिंदुत्व आतंकवादियों की स्पष्ट संलिप्तता दिखती है और हिंदुत्व संगठनों के आकाओं पर से संदेह की सुई अभी भी हटी नहीं है.
ताजा समाचार यह है कि मालेगांव बम धमाके के असली कर्णधारों में शुमार किए जाने वाले कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा को राष्ट्रीय जांच एजेंसी ‘बेदाग बरी’ कर देगी. (http://economictimes.indiatimes.com/ news/politics-and-nation/ malegaon-blasts-nia-may-let-off-sadhvi-pragya-lt-colpurohit/ articleshow/ 49264576.cms)
और यह खबर पढ़ते ही देश के अंदर कुछ समय पहले सुर्खियां बनीं मुंबई की मशहूर वकील रोहिणी सालियान- जो मालेगांव बम धमाके में सरकारी वकील हैं- के उन साक्षात्कारों को याद किया जा सकता है, जिसमें उन्होंने बताया था कि किस तरह राष्ट्रीय जांच एजेंसी की तरफ से उन पर दबाव पड़ रहा है कि वह मालेगांव बम धमाके में चुस्ती न बरतें. और हम इस बात को भी याद कर सकते हैं कि जिन दिनों इस मसले पर चर्चा चल ही रही थी कि समाचार मिला कि अजमेर बम धमाके (2007) में कई गवाह अपने बयान से मुकर चुके हैं और एनआईए द्वारा मध्य प्रदेश के संघ के प्रचारक सुनील जोशी की हत्या के मामले को अचानक फिर मध्य प्रदेश पुलिस को लौटा दिया जा रहा है. समाचार यह भी मिला था कि उसी राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने ‘अधूरे सबूतों’ की बात करते हुए मोदासा बम धमाका मामले में अपनी फाइल बंद करने का निर्णय लिया है.
21वीं सदी की दूसरी दहाई के मध्य में यह सवाल नए सिरे से मौजूं हो उठा है कि नाथूराम गोडसे के असली वारिस कहे जाने वाले यह आतंकी एवं उनके सरगना कभी अपने मानवद्रोही कार्यों की सजा पा सकेंगे?
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता और चिंतक हैं)