महाराष्ट्र में फिर हुआ गर्भाशय निकालने का महापाप!

के.रवि (दादा)

ग़रीबी आदमी से क्या नहीं करा लेती है? फिर चाहे वो शरीर की दुर्दशा कराने का काम हो या अपराध करने का काम हो। महाराष्ट्र के बीड ज़िले में क़रीब 843 गन्ना मज़दूर महिलाओं के गर्भाशय निकाल देने की दिल दहला देने वाली घटना फिर से सामने आयी है। ज़िले में कुछ साल पहले भी ऐसी ही घटना सामने आयी थी। बताया जा रहा है कि ऐसा घिनौना काम 30 से 35 साल के आसपास की उम्र की महिलाओं के साथ किया गया है। यह घिनौना षड्यंत्र इन गन्ना मज़दूर महिलाओं के मासिक पीरियड और गर्भ के समय छुट्टी देने से बचने के लिए किया गया है। ऐसी भी ख़बरें कथित रूप से उड़ रही हैं कि जो महिलाएँ गन्ने के खेतों में दिहाड़ी मज़दूरी करती हैं, उनके साथ शारीरिक शोषण भी उनके मालिक लोग और उनको पैसा देकर इन गंदे कामों को करने की सोच रखने वाले आये दिन करते रहते हैं। पर गन्ना खेत मालिकों और ठेकेदारों का कहना है कि महिलाओं ने अपनी दिहाड़ी के नुक़सान से बचने के लिए काम पर जाने से पहले सर्जरी करवाकर अपने गर्भाशय ख़ुद ही निकलवाये हैं। राज्य स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में भी ऐसा ही कहा गया है। बीड के मातृ एवं शिशु कल्याण अधिकारी डॉ. सचिन शेकड़े ने बताया है कि गन्ना कटाई से पहले और बाद में महिला मज़दूरों के स्वास्थ्य की बारीक़ी से जाँच की जाती है और उनके स्वास्थ्य कार्ड भी बनाकर दिये जाते हैं।

असल में महिला मज़दूरों और उनके घर वालों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं होती है कि वे ऊपर तक पहुँच रख सकें या इन लोगों के ख़िलाफ़ कहीं रिपोर्ट दर्ज कराकर मुक़दमा लड़ सकें। कुछ लोगों ने गुप्त रूप से बताया कि जिन महिलाओं के गर्भाशय निकाले जाते हैं, उनसे और उनके परिवार वालों से मज़दूरी देने का लालच देकर और दबाव बनाकर पहले ही ऐसे दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करवा लिये जाते हैं या अँगूठे लगवा लिये जाते हैं, जिससे गर्भाशय निकलवाने वालों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई न हो सके। वर्ष 2019 में भी बीड ज़िले में गन्ना मज़दूरी करने वाली 25 से 30 साल की 4,605 महिलाओं के गर्भाशय गन्ने की कटाई में बाधा पड़ने से बचने के लिए निकाल दिये गये थे। तब भी इसी तरह के बयान देकर गन्ना मज़दूर महिलाओं से काम कराने वालों को ऐसी ही बयानबाज़ी करके बचा लिया गया था। हालाँकि उस समय इस घटना पर विधानसभा में काफ़ी हंगामा हुआ था और इसकी जाँच भी की गयी थी, जिसमें पाया गया कि दो महिलाएँ गन्ना मज़दूर नहीं थीं, पर उनके गर्भाशय भी निकाल दिये गये थे। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस मामले को ज़ोर-शोर से उठाया, पर इस घिनौने अपराध के लिए सज़ा किसी को नहीं मिली।

स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि उसकी टीमें 1132 गाँवों में काम कर रही हैं, जिन्होंने गन्ना कटाई करने के लिए 46,231 महिलाओं की जाँच करके उनके स्वास्थ्य कार्ड बनाये हैं। स्वास्थ्य विभाग का ऐसा दावा है कि 15,624 सरकारी डॉक्टरों की सहमति और अनुमति के बाद 279 महिलाओं के गर्भाशय निजी तौर पर निकाले गये हैं। गन्ना मालिकों और ठेकेदारों ने ऐसा कहा है कि जिन महिलाओं के गर्भाशय निकाले गये हैं, उनसे कोई ज़ोर-जबरदस्ती नहीं की गयी है और उनमें ज़्यादातर महिलाओं के बच्चे हैं। इसमें कितनी सच्चाई है? इसकी जाँच स्वास्थ्य विभाग को करनी चाहिए थी; पर स्वास्थ्य अधिकारी तो ख़ुद ही सारा आरोप महिला मज़दूरों पर ही मढ़ रहे हैं, जिन्हें बाहरी दुनियादारी का कुछ पता नहीं है। महाराष्ट्र के कई ज़िलों से भी गन्ने की कटाई करने के लिए बहुत से ग़रीब परिवार बीड ज़िले में हर साल दीपावली के दौरान आते हैं और छ: महीने तक गन्ने की कटाई करने बाद वे दिसंबर से जनवरी तक अपने-अपने घर लौट जाते हैं। बीड ज़िले के ग़रीब मज़दूर परिवार और दूसरे ज़िलों के ग़रीब मज़दूर परिवार गन्ने की कटाई के बाद दूसरी मज़दूरी की तलाश में निकल जाते हैं। इन मज़दूर परिवारों की वार्षिक आय इतनी कम है कि उससे साल भर के गुज़ारे के लिए दो वक़्त की रोटी भी ठीक से नहीं मिल सकती।

बीड ज़िले में गन्ना काटने वाले क़रीब दो लाख मज़दूर बताये जाते हैं, जिनमें 80,000 के क़रीब महिला मज़दूर हैं। ये महिलाएँ अपने घर वालों के साथ हर साल गन्ना कटाई करके गुज़ारा करती हैं। इन मज़दूरों की माली हालत इतनी अच्छी नहीं होती कि पढ़-लिख सकें और अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा सकें। इनकी अशिक्षा का फ़ायदा उठाकर ही इन महिला मज़दूरों के गर्भाशय निकलवा दिये जाते हैं और आरोप भी उन्हीं पर लगा दिया जाता है। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट कहती है कि इस साल 1,523 महिला मज़दूर गर्भवती हैं और गन्ने की कटाई कर रही हैं।