बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई गुरुवार को

बंगाल में भी प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 10 जुलाई की तारीख तय की है। यह मामला चुनाव आयोग द्वारा 24 जून को जारी उस निर्देश से जुड़ा है, जिसके तहत बिहार में व्यापक स्तर पर मतदाता सूची की छंटनी और सत्यापन किया जा रहा है। इस प्रक्रिया को बंगाल में भी लागू करने की तैयारी चल रही है, जहां SIR का कार्य अगस्त से शुरू होने की संभावना है।
वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इस मामले को न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ के समक्ष उठाया और तत्काल सुनवाई की मांग की।
अब तक इस मुद्दे पर चार याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। ये याचिकाएं ADR(एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, और राजद सांसद मनोज झा ने दायर की हैं। उनका तर्क है कि चुनाव आयोग का यह कदम संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है, साथ ही जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और वोटर पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21A के भी खिलाफ है।
इन याचिकाओं में आशंका जताई गई है यदि यह आदेश रद्द नहीं हुआ,तो बड़ी संख्या में मतदाता सूची से नाम हटाए जा सकते हैं,करोड़ों मतदाता अपने अधिकार से वंचित हो सकते हैं.
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत को बताया कि बिहार में करीब 8 करोड़ मतदाता हैं, और इतने बड़े स्तर पर 25 जुलाई तक संशोधन करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर कोई मतदाता तय समय में फॉर्म नहीं भरता, तो उसका नाम सूची से हट सकता है।
अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिका में कहा है कि बिहार से प्राप्त हालिया रिपोर्टें बताती हैं कि लाखों ग्रामीण व वंचित समुदायों के पास वे दस्तावेज़ नहीं हैं, जो SIR के तहत मांगे जा रहे हैं।
इस पर जस्टिस धूलिया ने कहा कि चूंकि चुनाव की अधिसूचना अभी नहीं आई है, इसलिए समयसीमा की वैधता पर विचार किया जा सकता है।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सन्मार्ग को बताया यदि 24 जून को एसआईआर का आदेश रद्द नहीं किया गया, तो करोड़ो वोटर उचित प्रक्रिया के बिना अपने जनप्रतिनिधियों को चुनने के अधिकार से वंचित हो जाएंगे। यह संविधान के बुनियादी ढांचे और लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है।

बॉक्स– चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि बिहार में एसआईआर प्रक्रिया 24 जून से लागू है और यह नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य अयोग्य नाम हटाना और योग्य नागरिकों को जोड़ना है। आयोग ने कहा कि 1 अगस्त को जो प्रारंभिक सूची जारी होगी, उसमें उन्हीं के नाम होंगे जिनके फॉर्म प्राप्त हुए हैं।
हालांकि आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि जो लोग 25 जुलाई तक फॉर्म नहीं भर पाएंगे, उन्हें ‘दावे और आपत्ति’ की अवधि में भी मौका मिलेगा।
इस मुद्दे पर बिहार की राजनीति गर्म है। विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं कि वोटर लिस्ट का विशेष पुनरीक्षण सिर्फ बिहार में क्यों किया जा रहा है, जबकि इस साल वहां चुनाव है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे दलितों और वंचितों के वोटिंग अधिकार छीनने की साजिश बताया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला बीजेपी और आरएसएस की मिलीभगत से लिया गया है।
वहीं, एनडीए गठबंधन ने आरोपों को नकारते हुए कहा कि विपक्ष पहले से ही संभावित हार को देखते हुए सवाल उठा रहा है।