अपराध को देखने का नज़रिया एक हो

सिटी ऑफ जॉय कहलाने वाले कोलकाता में घूमने का मतलब इतिहास के साथ-साथ चलना है। लेकिन आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ड्यूटी के दौरान एक प्रशिक्षु महिला डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार व हत्या की दिल दहला देने वाली घटना ने कोलकाता की रंगत पर एक दाग़ लगा दिया। लेकिन महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले हर अपराध के दाग़ को राज्य सरकारों, ख़ासकर केंद्र सरकार को एक ही नज़रिये से देखना होगा।

कोलकाता की घटना के बाद कई राज्यों के कई शहरों में महिलाओं के साथ जिस प्रकार की वहशियों की तरह अपराधियों ने यौन उत्पीड़न की घटनाओं को अंजाम दिया है, उससे महिला सुरक्षा के क़ानून और सरकारों की महिला सुरक्षा की प्राथमिकता पर सवाल खड़े होते हैं। लेकिन कोलकाता में प्रशिक्षु महिला डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार व हत्या की बर्बर घटना के बाद समूचे देश में जो रोष, प्रदर्शन देखने को मिला, वही रोष दूसरी बलात्कार की घटनाओं में देखने को क्यों नहीं मिला? क्यों कोई राजनीतिक पार्टी हर घटना को तेरे-मेरे के नज़रिये से ही देखती है? कहीं की भी आपराधिक घटना हो, सभी में अपराधियों को सज़ा देने के लिए देश में समान क़ानून ही है ना? फिर हर घटना को अलग-अलग नज़रिए से क्यों देखा जाता है? क्यों कुछ लोग, ख़ासकर नेता उन्हें दो आँखों से देखते हैं?

दुनिया की पाँचवीं अर्थव्यवस्था का रुतबा दिखाने वाली इस देश की सरकार को देश में बलात्कार महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर होने वाले अपराध समान रूप से दिखने चाहिए और समान रूप से हर मामले में कार्रवाई होनी चाहिए। दरअसल इसके असली आँकड़े जनता के सामने आते ही नहीं; क्योंकि सरकारें इस अपराध के प्रति उस स्तर पर संवेदनशील व गंभीर नहीं हैं, जितना उन्हें होना चाहिए। बलात्कार के प्रति जो नज़रिया होना चाहिए, वह भी नदारद है। दरअसल देश में क़रीब 69 करोड़ आधी आबादी है। और राजनीतिक दल इन्हें कई तरह से अपना-अपना वोट बैंक बनाने की होड़ में लगे हुए हैं।

नेता अक्सर कहते हैं कि स्त्री का अपमान करना देश का अपमान है और स्त्री का सम्मान देश का सम्मान है। लेकिन जब स्त्रियों के साथ बलात्कार की ख़बरें आती हैं और कुछ मामले देश भर में सु$िर्खयाँ बटोरते हैं, तो यही राजनेता, चाहे वे किसी भी दल के क्यों न हों; सेलेक्टिव एप्रोच के साथ सामने आते हैं। अति संकीर्ण यह नज़रिया किसी भी सूरत में स्त्रियों के हित में नहीं है। ऐसे मामलों में सियासत से बचना चाहिए।

यह सही है कि लोकतंत्र में विपक्ष कई मर्तबा सत्तारूढ़ दल पर कई गंभीर मुददों पर दबाव डालकर सार्थक भूमिका निभाता है। कोलकाता वाले मामले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने उनके सूबे में होने वाले प्रदर्शन को वाम-राम से प्रेरित बताया। वह ख़ुद पीड़िता के परिवार को इंसाफ़ दिलाने के लिए सड़क पर उतरीं और प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र भी लिखा, जिसमें महिलाओं की सुरक्षा संबंधित क़ानूनों को और कड़ा बनाने की माँग की। लेकिन भाजपा रोज़ ममता बनर्जी को कटघरे में खड़ा कर रही है। वामपंथी भी इस घटना के ज़रिये अपनी रणनीति के तहत वहाँ के राजनीतिक माहौल को अपने हित में साधने की कोशिश में लगे हैं।

हाल के वर्षों में बलात्कार की कई ऐसी घटनाओं का ज़िक्र करना ज़रूरी है, जहाँ पर सियासत ख़ूब हुई और दो धड़े बन गये थे। 19 साल की दलित लड़की के साथ उत्तर प्रदेश के हाथरस में सामूहिक बलात्कार की घटना का राजनीतिक इस्तेमाल हुआ। भाजपा सवाल पूछ रही है कि प्रतिपक्ष नेता राहुल गाँधी हाथरस गये थे; क्योंकि वहाँ भाजपा की सरकार है। क्या वह पश्चिम बंगाल जाएँगे? जहाँ पर ममता बनर्जी मुख्यमंत्री है। पर इसके साथ यह भी ध्यान में आता है कि उत्तराखण्ड में भी हाल के दिनों में सामूहिक दुष्कर्म का मामला सामने आया है, पर वह महज़ एक ख़बर बनकर रह गया।

भाजपा ने वहाँ महिलाओं की सुरक्षा के सवाल पर आँखें मूँद लीं। हरियाणा में बीते 10 साल से भाजपा की सरकार है। वहाँ बलात्कार के जुर्म में 20 साल की सज़ा काट रहा राम रहीम कैसे बार-बार पैरोल पर जेल से बाहर आता रहता है? इन दिनों भी वह सज़ायाफ़्ता अपराधी 02 सितंबर, 2024 तक पैरोल पर बाहर है। सन् 2017 में सज़ा सुनायी गयी थी और तबसे अब तक उसने 235 दिन जेल से बाहर बिताये हैं। हरियाणा में विधानसभा चुनाव हैं और इस पैरोल को चुनावी मौसम से जोड़कर देखा जा रहा है। आरोपियों, अपराधियों की राजनीतिक दलों से घनिष्ठता और उनके बचाव में होने वाली सियासत पर सोचने की ज़रूरत है।

इस सबके साथ-साथ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 151 मौज़ूदा सांसदों व विधायकों पर महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध से सम्बन्धित मामले दर्ज हैं। सवाल यह है कि जब राजनीतिक पार्टियों के ही सांसद और विधायक महिलाओं पर अत्याचार करने में गले तक लिप्त हैं, तो देश में होने वाली आपराधिक घटनाओं को ये लोग कैसे रोकेंगे? हो सकता है कि अपराध करने वाले नेता अपराधियों को बी संरक्षण देते हों? सज़ा तो हर अपराधी को होनी चाहिए, चाहे फिर वह कोई हो।