प्रसिद्ध कवि जेफ्री चौसर और टी.एस. एलियट, दोनों ने अप्रैल को ‘सबसे क्रूर महीना’ बताया है; लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए फरवरी यह ख़िताब ले सकता है। उल्कापिंड की तरह उभरने के बाद आम आदमी पार्टी को अब एक कठिन वास्तविकता का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि उसने अपने गढ़ दिल्ली को खो दिया है और इसके साथ ही इंडिया गुट में अपनी जगह भी खो दी है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी अजेय नज़र आ रही है। हरियाणा में अप्रत्याशित जीत, महाराष्ट्र में शानदार प्रदर्शन और अब दिल्ली में ज़ोरदार जीत के बाद भाजपा की गति निर्बाध लगती है। ऐसा प्रतीत होता है कि भगवा रथ अब रुकने वाला नहीं है, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में कमज़ोर प्रदर्शन के बाद मंद होता हुआ माना गया था। भाजपा ने अपनी पिछली ग़लतियों से सीखा है और वह मुफ़्त सुविधाओं तथा ग़रीब कल्याण योजनाओं के वादों की पेशकश करने में आम आदमी पार्टी से एक क़दम आगे हो गयी है।

हालाँकि ‘तहलका’ के इस अंक की आवरण कथा ‘पुरस्कार बिकते हैं!’ में एसआईटी द्वारा उजागर किया गया है कि कैसे चकाचौंध और ग्लैमर के पीछे एक फलता-फूलता भूमिगत बाज़ार लाभ के लिए योग्यता को दरकिनार करते हुए पैसों के बदले पुरस्कारों का व्यापार करता है। दिल्ली चुनाव परिणाम के बीच यह भी ध्यान देने योग्य है। ध्यान देने योग्य है ​​कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी चुनावों से पहले मुफ़्त वस्तुओं की घोषणा करने की प्रथा की निंदा की है और सवाल उठाया है कि क्या यह ‘परजीवियों के वर्ग’ को बढ़ावा देता है? इसका राजनीतिक प्रभाव स्पष्ट है कि मुफ़्त चीज़ें वास्तव में चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं। 2025-26 के केंद्रीय बजट में महत्त्वपूर्ण कर (टैक्स) राहत की पेशकश के साथ भाजपा की रणनीति मध्यम वर्ग तक विस्तारित हुई है। 12 लाख रुपये तक की आय वाले लोगों को कोई आयकर नहीं देना होगा। इसके अतिरिक्त किराये की आय के लिए टीडीएस सीमा को बढ़ाकर छ: लाख रुपये कर दी गयी है, जिससे किराये की आय पर निर्भर लोगों को लाभ होगा। केंद्र सरकार के वेतन और पेंशन भत्तों को संशोधित करने के लिए आठवें वेतन आयोग की घोषणा के साथ इन उपायों ने प्रमुख मतदाता वर्गों में भाजपा की अपील को और मज़बूत किया है।

हालाँकि यह अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी पर भाजपा का रणनीतिक हमला था, जिसका सबसे विध्वंसकारी प्रभाव पड़ा है। आम आदमी पार्टी सरकार के कथित भ्रष्टाचारों, विशेष रूप से आबकारी नीति घोटाले और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आधिकारिक आवास, जिसे भाजपा ने शीश महल कहा; के असाधारण नवीनीकरण पर ध्यान केंद्रित करने से पार्टी की छवि ख़राब हुई। एक समय आम आदमी की आवाज़ के रूप में देखी जाने वाली आम आदमी पार्टी को भ्रष्ट व्यवस्था में एक अन्य राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में देखा जा रहा था, जिसे वह उखाड़ फेंकना चाहती थी। हालाँकि दिल्ली एक छोटा केंद्र साशित प्रदेश है; लेकिन यह राजनीतिक शक्ति का केंद्र है और यहाँ आम आदमी पार्टी की हार से विपक्ष की संभावनाएँ काफ़ी बढ़ गयी हैं; ख़ासकर पंजाब में, जो एकमात्र राज्य है, जहाँ वह अभी भी सत्ता में है।

ऐसी चर्चाएँ बढ़ रही हैं कि आम आदमी पार्टी संभावित रूप से अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि पार्टी टूट सकती है। हालाँकि इस तरह के निष्कर्ष निकालना जल्दबाज़ी होगी। लेकिन कांग्रेस नेता खुले तौर पर स्वीकार कर रहे हैं कि उनके मतदाता आधार पर आम आदमी पार्टी का अतिक्रमण बढ़ते दबाव का संकेत देता है। यह झटका इंडिया गुट के लिए और भी समस्याएँ पैदा कर सकता है; ख़ासकर तब, जब बिहार में इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं और पश्चिम बंगाल 2026 के चुनावों की तैयारी कर रहा है।