ऋषिकेश में काशी विश्वनाथ और उज्जैन महाकाल की तर्ज पर हरिद्वार-ऋषिकेश गंगा कॉरिडोर के निर्माण के लिए सर्वे चल रहा है। कई व्यापारी और आम लोग इसका विरोध कर रहे हैं, तो कई समर्थन। विरोध करने वालों का कहना है कि विकास करना अच्छी बात है; लेकिन विकास से लोगों की रोज़ी-रोटी नहीं छिननी चाहिए। हालाँकि सरकार ने आश्वासन दिया है कि जब भी कोई डीपीआर फाइनल की जाएगी, व्यापारी संघ से बातचीत की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि हरिद्वार चार धाम यात्रा का प्रवेश द्वार है। यहाँ रोज़ाना हज़ारों की संख्या में श्रद्धालुओं और यात्रियों का आना-जाना लगा रहता है। त्योहारों और ख़ास तिथियों में तो भीड़ और बढ़ जाती है। इसी को देखते हुए हरिद्वार और ऋषिकेश शहरों के अलग-अलग हिस्सों का विकास किया जाना है। इस कॉरिडोर का उद्देश्य भी तीर्थाटन को बढ़ावा देना है। प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि कुंभ मेले और कांवड़ मेले के दौरान ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त रहे, यह भी इस परियोजना का एक मक़सद है। वहीं दूसरी तरफ़ शहर का व्यापारी संघ इसे अनावश्यक बता रहा है।
गंगा सभा के पूर्व अध्यक्ष रामकुमार मिश्रा ने इस ड्रीम प्रोजेक्ट हरिद्वार कॉरिडोर में आने वाली समस्याओं और उनके निवारण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर बताया है कि हरिद्वार का वजूद हर की पौड़ी ब्रह्मकुंड में अविरल प्रवाहित गंगा से ही है। हरिद्वार में हज़ारों तीर्थ पुरोहितों का पीढ़ी-दर-पीढ़ी हज़ारों वर्षों से निवास है। हर की पौड़ी, कुशा घाट के निकट इनकी गद्दियाँ हैं, जहाँ देश-विदेश के लोग गंगा स्नान करते हैं। दान-पुण्य करते हैं। अपने पूर्वजों का पितृ-कर्म करवाते हैं। कॉरिडोर पुरोहितों को उजाड़कर बनेगा। क्या ऐसे में कॉरिडोर बनाना उचित होगा? हरिद्वार में रेतीले कच्चे पहाड़ के नीचे ब्रिटिश सरकार के समय की बनी हुई 126 वर्ष पुरानी रेलवे सुरंग है, जिसमें से हरिद्वार से ऋषिकेश एवं देहरादून ट्रेन चलती है। क्या इसको भी हटाया जाएगा? या इसे विस्तारित किया जाना संभव होगा? क्या सैकड़ों वर्ष पुराने मंदिरों, आश्रमों और धर्मशालाओं को हटाना उचित होगा? क्या हर की पौड़ी पर असीमित श्रद्धालुओं के स्नान के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध है? क्या हर की पौड़ी के प्राचीन स्वरूप को छुए बिना स्नान घाटों को विस्तारित किया जा सकता है?
रामकुमार मिश्रा ने प्रधानमंत्री से ऐसे सवालों के साथ सुझाव भी भेजे हैं। उन्होंने कहा है कि वाराणसी में छोटी-छोटी गलियाँ होने एवं गंगा के घाटों से मंदिर तक आवागमन की सुविधा न होने के कारण कॉरिडोर आवश्यक था। मगर हरिद्वार में हर की पौड़ी पर आने के लिए पहले से ही अप्पर रोड, मोती बाज़ार (बड़ा बाज़ार) सुभाष घाट जैसे मार्गों के अलावा रोड़ी बेलवाला से हर की पौड़ी तक लोहे से बने चार पुल, सीसीआर से हर की पौड़ी आने वाला शिव सेतु, सीसीआर से आने वाला शताब्दी सेतु, भीमगोडा से हर की पौड़ी मुख्य मार्ग, अर्ध कुंभ 2004 में जयराम आश्रम से कांगड़ा घाट होते हुए हर की पौड़ी तक निर्मित घाट, पंतद्वीप से मालवीय द्वीप घंटाघर हर की पौड़ी पर बने सेतु आदि हैं।
हरिद्वार व्यापार संघ के अध्यक्ष संजीव नैयर का कहना है कि कॉरिडोर बेशक बने, इसका स्वागत है। हरिद्वार का सौंदर्यीकरण अच्छी बात है। लेकिन हरिद्वार के व्यापारी और नागरिक कॉरिडोर के नाम पर तोड़फोड़ बर्दाश्त नहीं करेंगे। जिन्हें आप कॉरिडोर के नाम पर उजाड़ेंगे, उनका समाधान क्या है? जहाँ-जहाँ सरकार ने कॉरिडोर बनाये हैं, वहाँ किसी की नहीं सुनी गयी। सरकार ने अपनी हठधर्मिता दिखायी है। हरिद्वार में तो कॉरिडोर का कोई मतलब ही नहीं है। हर की पौड़ी क्षेत्र में छ:-सात स्थान ऐसे हैं, जहाँ से हर की पौड़ी में प्रवेश किया जाता है। जबकि बाँके बिहारी में तो दो ही गेट हैं। पटना में विष्णु पथ पर एक ही गेट है। लेकिन हरिद्वार तो बहुत बड़ा तीर्थ स्थान है।
स्थानीय बजरंग धाम के प्रधान सुनील कुमार शर्मा इस कॉरिडोर का स्वागत करते हैं। उनका कहना है कि हरिद्वार-ऋषिकेश भारत के महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं। गंगा कॉरिडोर के निर्माण से इन दोनों शहरों की धार्मिक महत्ता और अधिक बढ़ेगी। श्रद्धालुओं को एक व्यवस्थित और सुगम मार्ग मिलेगा। तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों को शुद्ध पेयजल, शौचालय और विश्राम स्थल जैसी अच्छी सुविधाएँ मिलेंगी। स्थानीय लोगों को रोज़गार और आर्थिक विकास के नये अवसर मिलेंगे। इससे स्थानीय कलाकारों और व्यावसायिक संस्थानों को भी लाभ होगा। लेकिन कॉरिडोर के विकास में यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि गंगा की पवित्रता और पर्यावरण संरक्षित रहे।
विदेशियों की आस्था
हॉलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्री और फ़िल्म टाइटैनिक की नायिका केट विंसलेट हरिद्वार में बसना चाहती थीं। पूर्व की संस्कृति और आध्यात्मिकता के दीवाने पश्चिम में भी कम नहीं हुए। 1975 के दशक में दुनिया में मचाने वाले अमेरिका के प्रसिद्ध बीटल गायक जॉर्ज हैरिसन एमबीई सन् 1967 में ऋषिकेश पहुँचे और 1968 में उन्होंने महर्षि महेश योगी से योग और ध्यान की शिक्षा ली। हैरिसन की इच्छा थी कि मृत्यु के बाद उसका दाह संस्कार किया जाए और उसकी राख को गंगा में बहाया जाए। आज भी बहुत-से विदेशियों को गंगा की पवित्रता आकर्षित करती है।