पिछले महीने भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (एमएचए) ने धन-शोधन में शामिल अंतरराष्ट्रीय साइबर अपराधी सिंडिकेट्स के द्वारा किराये के बैंक खातों का उपयोग करके बनाये गये अवैध भुगतान के तरीक़ों के ख़िलाफ़ चेतावनी दी थी। गुजरात (एफआईआर 0113/2024) और आंध्र प्रदेश (एफआईआर 310/2024) के मुताबिक की गयी छापेमारी से पता चला कि आपराधिक नेटवर्क अवैध डिजिटल भुगतान की सुविधा के लिए किराये के खातों का उपयोग करते हैं।
जाँच से पता चला कि फ़र्ज़ी कम्पनियों या संदिग्ध व्यक्तियों के चालू और बचत खातों को सोशल मीडिया, मुख्य रूप से टेलीग्राम और फेसबुक के माध्यम से निशाना बनाया जाता है। इन किराये के खातों को दूर से नियंत्रित किया जाता है तथा भुगतान के रास्ते स्थापित किये जाते हैं, जो फ़र्ज़ी निवेश जैसे घोटालों, ऑनलाइन जुआ खेलने की साइट्स और नक़ली स्टॉक ट्रेडिंग ऐप्स जैसे धोखाधड़ी वाले प्लेटफॉर्म्स से अवैध रूप से धन की निकासी करते हैं। चुराये गये धन को अक्सर बैंकों द्वारा प्रदान की गयी थोक भुगतान सुविधाओं का लाभ उठाकर कई स्तरों के लेन-देन के माध्यम से शीघ्रता से सफ़ेद कर लिया जाता है। पीस-पे, आरटीएक्स-पे और पोको-पे जैसे भुगतान के माध्यमों को इन अवैध कामों में प्रमुख उपकरण के रूप में पहचाना गया है।
इस अवैध काम को बारीक़ी से उजागर करने के लिए ‘तहलका’ एसआईटी ने एक गुप्त पड़ताल शुरू की, जिसमें यह उजागर किया गया कि साइबर अपराधी किस प्रकार व्यक्तिगत बैंक खातों को हैक करते हैं और गेमिंग प्लेटफॉर्म को भी निशाना बनाते हैं। ये हैकर्स अपनी गतिविधियों को छिपाने के लिए उधार लिए गये खातों का उपयोग करते हैं। पड़ताल में बैंकिंग सुरक्षा में गंभीर ख़ामियाँ उजागर हुईं। आवरण कथा- ‘बिक रहे हैं बैंक खाते’ में विस्तार से बताया गया है कि किस प्रकार साइबर अपराधी अब धन शोधन के लिए निष्क्रिय बैंक खातों को ख़रीद लेते हैं, जिससे क़ानून प्रवर्तन के लिए नयी चुनौतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
पड़ताल में साइबर अपराधियों और भ्रष्ट बैंकरों के बीच ख़तरनाक सहयोग पर भी प्रकाश डाला गया है, जो इन योजनाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए ग्राहकों की संवेदनशील जानकारी, जिसमें एटीएम पिन, आईएफएससी कोड और खाता संख्या शामिल हैं; प्रदान करते हैं। पद्म भूषण से सम्मानित और वर्धमान समूह के मालिक से सात करोड़ रुपये की ठगी का हालिया मामला बताता है कि यह साज़िश कितनी गहरी है। गुवाहाटी और पश्चिम बंगाल में हुई गिरफ़्तारियाँ इस बात की पुष्टि करती हैं कि अपराधियों की पहुँच देशव्यापी है।
‘तहलका’ के निष्कर्षों से पता चलता है कि किस प्रकार धोखेबाज़ आम नागरिकों को खाते खोलने के लिए लुभाते हैं या प्रोत्साहन देकर मौज़ूदा खातों तक पहुँच प्रदान करते हैं, जिससे चुराये गये धन को दूसरे खातों में हस्तांतरित किया जाता है। ये खाते न केवल धन शोधन के लिए माध्यम बनते हैं, बल्कि इनका उपयोग आतंकवादी वित्तपोषण में भी किया जा सकता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा पैदा करता है।
डिजिटल भुगतान के अधिक व्यापक होने के कारण साइबर अपराध का ख़तरा भी बढ़ रहा है। गृह मंत्रालय की सलाह स्पष्ट है- ‘नागरिकों को अपने बैंक खाते, कम्पनी पंजीकरण प्रमाण-पत्र या उद्यम आधार प्रमाण-पत्र नहीं बेचने चाहिए या किराये पर नहीं देने चाहिए। ऐसे खातों में अवैध धनराशि जमा होने पर गंभीर क़ानूनी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, जिसमें गिरफ़्तारी भी शामिल है।’ यह जोखिम बहुत बड़ा है; सिर्फ़ व्यक्तियों के लिए ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी। हमें अपनी वित्तीय प्रणालियों को शोषण से बचाने के लिए मिलकर कार्य करना होगा।