साल 2024 भी समाप्त होने को है। संसद का शीत सत्र भी बाधित हो-होकर चल रहा है। संसद में सवालों के जवाब न देने वाली केंद्र सरकार संसद से बाहर देश के लोगों के सामने यह साबित करने में लगातार लगी रही है कि उसने भारत को तरक़्क़ी के रास्ते पर बहुत आगे बढ़ाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समर्थक तो अब भारत को विकसित भारत कहने लगे हैं और भविष्य के भारत के सपने तो दिखा ही रहे हैं। भारत को साल 2030 तक पाँच ट्रिलियन इकोनॉमी वाला देश बनाने के दावे भी केंद्र सरकार कर ही चुकी है।
सरकार ने अपने विज्ञापनों में लगातार देश में विकास करने के दावे किये हैं। यहाँ तक कि साल 2014 से बनी भाजपा की केंद्र सरकार के ऊपर से लेकर नीचे तक नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली और उनके कार्यकाल को अब तक की सरकारों से अच्छा बता रहे हैं। पिछले साल से आज़ादी के 75 साल का अमृत महोत्सव भी मनाया जा रहा है। लेकिन क्या हक़ीक़त में ये सब बातें धरातल पर उतनी ही सच हैं, जितने विश्वास के साथ केंद्र सरकार के नुमाइंदे दावे कर रहे हैं? क्योंकि जिस तेज़ी से पिछले 10 वर्षों में देश पर क़र्ज़ बढ़ा है और जिस तेज़ी से बैंकों, व्यापारियों का दिवाला निकला है; इस बारे में सोचने पर तस्वीर कुछ और ही नज़र आती है। 55 लाख करोड़ से 205 लाख करोड़ का विदेशी क़र्ज़, रुपये की गिरती क़ीमत, बढ़ती महँगाई और लोगों के हाथ से छिनते रोज़गार के अलावा देश छोड़कर जाने वाले अरबपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है। क्या ये सभी समस्याएँ यह तय करती हैं कि भारत तरक़्क़ी कर रहा है? या भारत के हर राज्य में अराजकता, बलात्कार, हत्या, आत्महत्या और दूसरी आपराधिक घटनाएँ विकसित होते भारत की तस्वीर दिखाती हैं? इन सवालों का जवाब सरकार को संसद के अंदर देना चाहिए। लेकिन संसद में सवाल पूछने पर विपक्ष की हर बात अनसुनी करना और सदनों की कार्रवाई स्थगित करके यह आरोप लगाना कि विपक्ष संसद नहीं चलने दे रहा है, सरकार ने अपने बचने का आसान बहाना बना रखा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल 3.0 की उपलब्धियाँ अभी तक कुछ नहीं हैं; लेकिन पिछले दोनों कार्यकालों की तरह इस कार्यकाल का महिमामंडन किया जा रहा है। अपने तीसरे कार्यकाल से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के 14 देशों में सम्मानित भी हो चुके हैं; लेकिन सवाल यह है कि क्या उन्हें सम्मान मिलने से भारत भी सम्मानित हो रहा है? भारत में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक पूरे विश्वास के साथ यही दावा करते हैं कि दुनिया में भारत का डंका बज रहा है। लेकिन जिस तरह भारत के दुश्मन देशों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ कई मामलों में भारत कमज़ोर हो रहा है, उस सबके बीच क्या ये दावे सही माने जानें चाहिए? इन सवालों के जवाब ढूँढना बहुत कठिन है।
पिछले कुछ वर्षों से कनाडा से बढ़ती जा रही कड़वाहट ने कनाडा में रह रहे भारतीयों के लिए मुसीबतें खड़ी की हैं। हाल ही में जिस तरह से कनाडा ने जिस तरह भारत के साथ ज़ुबानी जंग की है, उससे साफ़ है कि कनाडा का रवैया भारत के प्रति सख़्त हुआ है। कनाडा में भारतीयों, ख़ासकर भारतीय छात्रों के लिए वीजा मिलना दिनों-दिन मुश्किल हो रहा है। क्योंकि इमिग्रेशन, रिफ्यूजी एंड सिटीजनशिप (आईआरसीसी) ने इमिग्रेशन नियमों में बड़ा बदलाव किया है। आईआरसीसी ने इस बदलाव के तहत न सिर्फ़ स्टूडेंट डायरेक्ट स्ट्रीम (एसडीएस) प्रोग्राम बंद कर दिया, बल्कि कई अन्य तरह की शर्तें भी लगा दीं। पहले एसडीएस प्रोग्राम के ज़रिये भारतीय छात्रों समेत क़रीब 14 देशों के छात्रों को जल्दी वीजा मिल जाता था। एसडीएस वीजा का अप्रूवल रेट भी कम होता था। कनाडा सरकार ने एसडीएस प्रोग्राम साल 2018 में शुरू किया था और इस योजना के ज़रिये वीजा अप्लाई करने वाले 80 प्रतिशत से 95 प्रतिशत भारतीय छात्रों को एक सप्ताह से एक महीने के अंदर वीजा मिल जाता था, जिसके चलते कनाडा में पढ़ने वाले छात्रों में बाक़ी 13 देशों के छात्रों से ज़्यादा भारतीय छात्र थे। लेकिन अब कनाडा सरकार घरों की कमी और सामाजिक समस्याओं का बहाना बनाते हुए एसडीएस प्रोग्राम के तहत भारतीय छात्रों को प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया है।
सूत्रों के मुताबिक, साल 2025 में कनाडा एसडीएस के तहत सिर्फ़ 4,37,000 स्टडी वीजा देगा। अब कनाडा ने भारतीय छात्रों को सामान्य वीजा अप्लाई प्रक्रिया के तहत ही वीजा मिलेगा, जिसमें ज़्यादातर वीजा एप्लीकेशन कैंसिल होंगी। अब वीजा के लिए प्रोसेसिंग टाइम भी बढ़ जाएगा। कनाडा ने साल 2023 में एसडीएस प्रोग्राम के तहत महज़ 73 प्रतिशत और साल 2024 में उससे भी कम भारतीय छात्रों को वीजा दिया था। वहीं सामान्य वीजा आवेदन करने पर सिर्फ़ 10 प्रतिशत भारतीय छात्रों को ही वीजा कनाडा ने दिया। इस वीजा का ख़र्च भी ज़्यादा है, क्योंकि कनाडा सरकार ने वीजा की फीस बढ़ा दी है। इसके अलावा छात्रों को दी जाने वाली सुविधाओं में भी कमी कर दी गयी है।
इस मामले में अक्टूबर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी ने कहा था कि कनाडा ने जो क़दम उठाया है, वो दुर्भाग्यपूर्ण है। दुनिया से हमारे अच्छे सम्बन्ध होने चाहिए। कनाडा भारत के साथ जो कुछ भी हो रहा है, केंद्र सरकार को इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। मौज़ूदा हालात पूरी दुनिया में हमारी प्रतिष्ठा को गिरा रहे हैं। इससे पहले कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर कहा था कि क़ानून के शासन में विश्वास करने वाले और उसका पालन करने वाले देश के रूप में हमारी अंतरराष्ट्रीय छवि ख़तरे में है। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम इसे बचाने के लिए मिलकर काम करें। कनाडा द्वारा लगाये गये आरोप, जिन्हें अब कई अन्य देशों का समर्थन प्राप्त है, बढ़ने का ख़तरा है, जिससे भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है और ब्रांड इंडिया को नुक़सान पहुँच रहा है। यूक्रेन-रूस और फिलिस्तीन-इजरायल के बीच छिड़ी जंग के चलते पहले ही भारतीय छात्रों को तमाम दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है, इसी बीच कनाडा द्वारा एसडीएस प्रोग्राम ख़त्म करके इसके तहत वीजा देने की प्रक्रिया बंद कर देना एक दूसरा बड़ा झटका है। लेकिन केंद्र सरकार ने इस विषय पर कोई चिन्ता नहीं जतायी है।
सवाल यह है कि दुनिया भर से भारत के अच्छे रिश्ते बताने वाले प्रधानमंत्री मोदी जी20 में जिस तरह भारत को दुनिया का लीडर साबित करने का प्रयास कर रहे थे, क्या उसका कोई फ़ायदा देश को हुआ? जी20 के बाद ही न सिर्फ़ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने, बल्कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भी भारत को सम्मान की नज़र से नहीं देखा। उसके बाद ट्रूडो ने न सिर्फ़ भारत पर कनाडा में आतंकी गतिविधियाँ चलाने का आरोप लगाया, बल्कि भारत के साथ पुराने दोस्ताना रिश्तों को भी नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया। इस मामले में कई देश कनाडा के साथ खड़े दिखे। लेकिन भारत के साथ कौन आया? यह भी बड़ा सवाल है। और यहाँ दावे किये जा रहे हैं कि दुनिया में भारत का डंका बज रहा है।
भारतीय छात्रों की मुश्किलें बढ़ने के अलावा अरबपति भारतीयों का भारत छोड़ने का सिलसिला भी एक गंभीर मुद्दा है। देश छोड़कर विदेशों में बसने वालों की संख्या लगातार बढ़ने पर भी केंद्र सरकार को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है। इस साल के शुरू में सामने आयी रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले पाँच वर्षों में 8,34,000 भारतीय अरबपति भारत की नागरिकता छोड़कर विदेशों की नागरिकता ले चुके हैं। कोरोना महामारी से पहले जहाँ साल 2014 से साल 2019 तक हर साल क़रीब 1,32,000 नागरिक भारतीय नागरिकता छोड़ रहे थे, वहीं साल 2020 से साल 2023 तक हर साल भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की संख्या 20 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 2,00,000 से ज़्यादा हो गयी। केंद्र सरकार के ख़ुद के आँकड़े ही इस मामले में चौंकाने वाले हैं।
केंद्र सरकार के मुताबिक, साल 2023 में 2,16,219 भारतीयों ने यहाँ की नागरिकता छोड़कर विदेशों की नागरिकता ली। इससे पहले साल 2022 में 2,25,620 नागरिकों ने, साल 2021 में 1,63,370 नागरिकों ने और साल 2020 में 85,256 नागरिकों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी थी। अब ये भारतीय अरबपति दूसरे 114 देशों के नागरिक हो चुके हैं। इसके अलावा देश का पैसा लेकर भागने वालों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ी है। इससे भारत का धन और उद्योगों का नुक़सान हुआ है; लेकिन केंद्र सरकार को इसकी कोई चिन्ता नहीं है, क्योंकि भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है।
इन विपत्तियों के अलावा भारतीय पासपोर्ट की वैल्यू भी कम हुई है और कई देशों ने भारतीयों को वीजा देने के नियम सख़्त कर दिये हैं। हेनली पासपोर्ट इंडेक्स-2024 की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, सिंगापुर का पासपोर्ट सबसे अच्छा माना गया है। इसके बाद फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, सिंगापुर और स्पेन के पासपोर्ट सबसे अच्छे माने गये हैं। इसके बाद फिनलैंड, नीदरलैंड, साउथ कोरिया और स्वीडन के पासपोर्ट अच्छे माने हैं। इतना ही नहीं, पासपोर्ट मामले में पाकिस्तान की रैंकिंग जहाँ 106, बांग्लादेश की रैंकिंग 102 हो गयी है और भारत की रैंकिंग 82 है। साल 2023 में भारतीय पासपोर्ट की रैंकिंग 82 थी; यानी एक साल में भारतीय पासपोर्ट की रैंकिंग दो पायदान खिसककर कमज़ोर हुई है। संसद का शीत सत्र चल रहा है। केंद्र सरकार का दायित्व है कि वो संसद में में अपनी कामयाबियों के साथ अपनी नाकामियों पर भी प्रकाश डाले।