तकनीकी उड़ान भरना चाहती हैं लड़कियाँ

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के स्नातक पाठ्यक्रमों में वर्ष 2019 में जेईई एडवांस्ड परीक्षा पास करने वाली महिलाओं की संख्या 5,356 थी। वर्ष 2020 में यह संख्या 6,707; वर्ष 2021 में 6,452; वर्ष 2022 में 6,516 और वर्ष 2023 में 7,509 पहुँच गयी। अब वर्ष 2024 में यह आँकड़ा 7,964 को छू गया। आँकड़ों से पता चलता है कि आईआईटी जैसे क्षेत्र में लड़कियों का अनुपात तेज़ी से बढ़ रहा है। वर्ष 2019 से पहले राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अहम पहचान बनाने वाले आईआईटी संस्थानों में लड़कियों की संख्या बहुत कम, औसतन आठ फ़ीसदी तक ही रहती थी। लेकिन अब यह आँकड़ा 20 फ़ीसदी तक पहुँच गया है।

देश में इस समय 23 आईआईटी संस्थान हैं। आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में दाख़िला पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और यहाँ लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या बहुत कम होना बराबरी की भूमिका निभाने के लिहाज़ से एक गंभीर मुद्दा बना रहा है। वैसे यहाँ लैंगिक समावेशी वाला पहलू भी अहम है। लेकिन सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए 2018 में इन संस्थानों में लड़कियों के लिए 20 प्रतिशत अतिरिक्त कोटे की शुरुआत की। इस अतिरिक्त कोटा के तहत इन संस्थानों के स्नातक पाठ्यकमों में तय सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया, बल्कि लड़कियों के लिए 20 प्रतिशत अतिरिक्त सीटें जोड़ दी गयीं। अतिरिक्त सीटों वाली योजना का असर 2018 के बाद साफ़ नज़र आता है। आँकड़े इसके गवाह हैं। इसका असर अन्य जगहों पर दिखायी देता है। मसलन क्लासरूम बड़े हो गये हैं।

नये महिला शौचालयों का निर्माण, छात्रावास आदि। दिल्ली आईआईटी ने महिला वॉशरूमों में सेनेटरी नैपकिन मशीनें लगवायी हैं। रुड़की आईआईटी ने 13 छात्रावास में से चार लड़कियों के लिए आवंटित किये हैं और प्रशासन ने सुरक्षा के मद्देनज़र छ: करोड़ रुपये कैमरों पर ख़र्च किये हैं। दिल्ली व बॉम्बे आईआईटी की महिला फुटबॉल टीमें हैं। महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन सुरक्षा व अन्य लैंगिक संवेदनशील विषयों पर कार्यशालाओं का आयोजन भी समय-समय पर किया जाता है। इससे आशा जगती है कि आने वाले वक़्त में तकनीकी संस्थानों में लड़कियों की संख्या और बढ़ेगी।

तकनीक, डिजिटल व एआई के युग में अधिक-से-अधिक लड़कियों को ऐसी शिक्षा की दरकार है। यहाँ इस बिंदु पर भी ग़ौर करना चाहिए कि लड़कियों की संख्या में इज़ाफ़े के पीछे सरकार की 20 प्रतिशत अतिरिक्त कोटे वाली योजना ने तो अहम भूमिका निभायी ही है; लेकिन इसमें ऑनलाइन कोचिंग, ऑनलाइन सामग्री की उपलब्धता, आईआईटी संस्थानों में बढ़ोतरी व संस्थानों द्वारा जारी अतिरिक्त प्रयासों का भी अपना महत्त्व है। पहले कई मर्तबा माता-पिता आईआईटी में चयन होने के बावजूद घर से दूरी के कारण अपनी लड़कियों को वहाँ नहीं भेजते थे। लेकिन अब यह बाधा कुछ हद तक कम हो गयी है। बॉम्बे आईआईटी ने 2020 में जेईई एंडवास्ड परीक्षा पास करने वाले लड़कियों व उनके अभिभावकों के लिए एक विशेष सत्र का आयोजन किया, जिसमें उन्हें बताया गया कि उनकी लड़कियाँ बॉम्बे आईआईटी का चयन क्यों करे। हालाँकि लड़कियों की सुरक्षा का मुद्दा आज भी बहुत बड़ा मुद्दा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा दिया, तो यह नारा पूरे देश में इतना गूँजा कि रास्ते में चलने वाली गाड़ियों पर लिखा जाने वाला स्लोगन बन गया। लेकिन क्या आज वास्तव में देश में बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ की मंशा में हम सफल हो सके हैं? यह एक बहुत बड़ा सवाल है। क्योंकि पिछले नरेद्र मोदी के देश पर 10 साल से ज़्यादा के शासन-काल में कोई भी सरकार इस नारे को साकार नहीं कर सकी है, ख़ुद मोदी सरकार भी नहीं।

अब सवाल यह भी खड़ा होता है कि इस सरकारी योजना का लाभ क्या निम्न व मध्यम वर्ग की लड़कियों के लिए उठाना बहुत आसान है। जवाब नहीं होगा। वजह-प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए बाज़ार में जो कोचिंग संस्थाएँ उपलब्ध हैं, उनकी फीस का पैकेज बहुत-ही अधिक है। यही नहीं उसके बाद अगर लड़की को दाख़िला मिल भी जाता है, तो संस्थानों में फीस भी बहुत अधिक है। बैंक में कार्यरत महिला अधिकारी मनीषा छावड़ा ने बताया कि तीन साल पहले मेरी बेटी ने कठिन परिश्रम के बाद आईआईटी में दाख़िला लिया, हमारा परिवार बहुत ख़ुश हुआ; लेकिन उसकी फीस बहुत ज़्यादा है। पहले कोचिंग पर ख़र्च किया और अब फीस पर ख़र्च कर रहे हैं। यहाँ सरकार को कुछ ठोस क़दम उठाने की दरकार है।’

अब कैंपस प्लेसमेंट पर ध्यान दें, तो बीते दो वर्षों से इस मोर्चे पर भी राहत भरी ख़बर सुनने को नहीं मिली। बेशक इन संस्थानों के सम्बन्धित विभागों ने कहा कि वर्ष 2022 में कोरोना के बाद बहुत भर्तियाँ हुई थीं और 2023 व 2024 में माँग में कमी देखने को मिली। इसके अलावा यह भी कहा गया कि अब कुछ छात्र कैंपस प्लेसमेंट के बाहर भी विकल्प चुन रहे हैं। सरकार के सामने बड़ी चुनौती यह है कि उच्च शिक्षण संस्थानों, कार्यस्थलों को लिंग की दृष्टि से समावेशी बनाने के लिए एक दूरदर्शी विजन अपनाने की है।