गाँधी का सपना और खादी का ताना-बाना

महात्मा गाँधी के स्वदेशी आन्दोलन से जुड़ी खादी का सफ़र सादा कपड़ों से शुरू हुआ और 21वीं शताब्दी आते-आते फैशन ट्रेंड बन गया। स्वतंत्रता सेनानियों और राजनेताओं द्वारा पहने जाने वाली खादी अब कई रंगों में उपलब्ध है। लेकिन पहले की अपेक्षा अब खादी पहनना शान माना जाता है। खादी के कपड़ों में अब पहले से ज़्यादा विकल्प भी उपलब्ध हैं। खादी के कपड़ों से लेकर अन्य उत्पादों के व्यापार (टर्नओवर) वित्त वर्ष 2023-24 में 1.55 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है। इस बढ़त को देखते हुए वित्त वर्ष 2024-25 के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने 1.75 लाख करोड़ रुपये की बिक्री का लक्ष्य रखा है। केवीआईसी के अध्यक्ष मनोज कुमार के अनुसार, खादी में उत्पादन, बिक्री और रोज़गार सृजन के रिकॉर्ड बन रहे हैं। वित्त वर्ष 2013-14 में खादी कपड़ों का उत्पादन 811.08 करोड़ रुपये का था। वित्त वर्ष 2022-23 में यह आँकड़ा 2,915.83 करोड़ रुपये, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में 3,206 करोड़ रुपये तक पहुँच गया। खादी के कपड़ों की माँग तेज़ी से बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2013-14 में खादी फैब्रिक की बिक्री 1,081.04 करोड़ रुपये की हुई, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में 6,496 करोड़ रुपये तक पहुँच गयी। जी-20 समिट के दौरान भारत मण्डपम् ने विश्व के लोगों को ख़ूब आकर्षित किया। इससे रोज़गार के बड़े अवसर पैदा हुए हैं, ख़ासकर ग्रामीण भारत में। 10 वर्षों में रोज़गार का आँकड़ा 1.30 करोड़ से 1.87 करोड़ तक पहुँच गया। वित्त वर्ष 2013-14 में खादी क्षेत्र में 5.62 लाख नौकरियाँ निकाली गयी थीं, जो वित्त वर्ष 2023-24 में 10.17 लाख हो गयीं। खादी ग्रामोद्योग भवन नई दिल्ली का व्यवसाय 10 वर्षो में 51.13 करोड़ रुपये से 95.74 करोड़ रुपये तक पहुँच गया।

खादी अब एक फैशन स्टेटमेंट यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी एंड वोकेशनल डेवलपमेंट पंजाब यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर अनु गुप्ता का कहना है कि सस्टेनेबिलिटी की चर्चा के बीच खादी का कपड़ा फैशन में आ चुका है। खादी हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है। यह कपड़ा पहले जैसा खुरदरा, मोटा, सूती नहीं रहा, बल्कि अब नरम और बढ़िया सूती और सिल्क कपड़े में बदल गया है। इससे पहनने से लेकर घरों में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों के सामान बन रहे हैं। बाज़ार में खादी अपनी बड़ी पैठ बना रहा है। गाँधियन एंड पीस स्टडीज डिपार्टमेंट पंजाब यूनिवर्सिटी की विभाग अध्यक्ष डॉक्टर आशु पसरीचा का कहना है कि उस व$क्त महात्मा गाँधी का खादी के लिए जो सपना था, वो हमें आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने का था। गाँधी चाहते थे कि युवा वर्ग, ख़ासतौर पर गांव के युवा सशक्त बनें। हमारे अपने ही संसाधनों का इस्तेमाल हो। लोग स्वदेशी कपड़े पहनें और हमारी अर्थव्यवस्था मज़बूत हो। हमें विदेशों से कपड़ा न मँगवाना पड़े। पहले महीनों की मेहनत के बाद तैयार होता था; लेकिन अब मशीनों से उतनी मेहनत नहीं लगती है।

हालाँकि महात्मा गाँधी की इस सोच के फलीभूत होने के बीच आम आदमी की पहुँच से खादी दूर होती जा रही है। महात्मा गाँधी ने कहा था कि यदि हमारे अंदर खादी की भावना होगी, तो हम जीवन के हर क्षेत्र में सादगी अपनाएँगे। सबसे अच्छे कपड़े में भी कोई सुंदरता नहीं है, अगर वह भूख और दु:ख पैदा करता है। यह स्थिति आज दिख रही है। क्योंकि भले ही सरकार रोज़गार बढ़ने के दावे कर रही है; लेकिन धरातल पर देखें, तो बेरोज़गारों की संख्या काफ़ी ज़्यादा है। सवाल यह है कि सन् 1918 में स्वदेशी आंदोलन के महत्त्वपूर्ण हिस्से के रूप में गाँधी ने जिस उद्देश्य से खादी का सपना सँजोया, क्या वह आज पूरा हो पा रहा है? गाँधी के सपने में ब्रिटेन से आयातित सामग्री और उत्पादों के उपयोग का बहिष्कार, स्थानीय स्तर पर उद्योग और रोज़गार पैदा करना, अपनी उपज और कौशल का इस्तेमाल करना आदि था। उस समय उनकी इस देशव्यापी पहल ने श्रम के ज़रिये एकता लाने और देश को आत्मनिर्भर बनाने में बहुत मदद की। लेकिन आज घटिया विदेशी कपड़ा 80 फ़ीसदी भारतीयों के तन ढकने का साधन है, या कहें कि मजबूरी। खादी का कपड़ा आरामदायक और पर्यावरण के अनुकूल है। इसमें कार्बन उत्सर्जन की गुंजाइश नहीं है। लेकिन अब यह कपड़ा ग़रीबों के हाथ से निकलकर अमीरों की शान बन गया है, जिसकी एक वजह इसका महँगा होना भी है। इसके साथ ही नक़ली खादी का चलन बहुत बढ़ चुका है।

पीआईबी की रिपोर्ट के अनुसार, खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) खादी के नाम पर उत्पाद बेचने वाली नक़ली या ग़ैर-खादी दुकानों, कम्पनियों और संस्थाओं को जनवरी, 2022 तक 2,172 नोटिस जारी कर चुका था। लगभग 500 संस्थाओं ने अनजाने में ही खादी ट्रेडमार्क का उपयोग करने के लिए माफ़ी माँगी। केवीआईसी इसे गंभीरता से ले रहा है। हालाँकि नक़ली खादी उत्पादों के निर्माण और बिक्री के प्रभाव के संबंध में उसकी तरफ़ से कोई अध्ययन नहीं कराया गया है। खादी के दुरुपयोग के ख़िलाफ़ केवीआईसी द्वारा जो मुक़दमे दायर किये गये हैं, उनमें दिल्ली हाईकोर्ट में खादी एसेंशियल (दिल्ली), इवेरखाडी (उत्तर प्रदेश), भारतीय खादी डिजाइन परिषद (उत्तर प्रदेश), जेबीएमआर एंटरप्राइजेज, खादी प्राकृतिक पेंट (उत्तर प्रदेश),  गिरधर खादी (हरियाणा), खादी बाय हेरिटेज (दिल्ली) आदि मुक़दमे दर्ज हैं। जबकि मुंबई हाईकोर्ट में दायर मुक़दमों में फैब इंडिया (मुंबई), भारत खादी फैशन (महाराष्ट्र), खादी भंडार, पहनावा (महाराष्ट्र-राजस्थान) आदि में नक़ली खादी उत्पादों के निर्माण और बिक्री की जाँच के लिए कुछ सख़्त क़दम भी उठाये गये हैं। जैसे खादी शब्द के लिए ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन लिया गया है। सात ट्रेडमार्क सलाहकार नियुक्त किये गये हैं, जो अनाधिकृत व्यापारियों के ख़िलाफ़ सख़्ती कर रहे हैं। ई-कॉमर्स प्लेटफार्म और सोशल मीडिया से नक़ली खादी उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री से संबंधित लिंक भी हटाये जा रहे हैं। इनमें अमेजॅन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, व्हाट्सएप, यूट्यूब से 2,487 लिंक हटाये गये थे।