फ़र्ज़ी पते पर वाहन पंजीकरण का खेल!

– दिल्ली-एनसीआर में फल-फूल रहा है वाहनों का फ़र्ज़ी पंजीकरण कराने का धंधा

इंट्रो-वाहनों की कालाबाज़ारी, चोरी के वाहनों की बिक्री और नक़ली नंबर प्लेट के वाहनों के सड़कों पर दौड़ने की ख़बरें किसी से छिपी नहीं हैं। लेकिन अब ‘तहलका’ ने दिल्ली-एनसीआर में वाहनों के फ़र्ज़ी पंजीकरण के काले बाज़ार का पर्दाफ़ाश किया है। इस पड़ताल से पता चला है कि पुरानी कारों के डीलर और दलाल फ़र्ज़ी पतों पर वाहनों का पंजीकरण करा देते हैं। असल में ये लोग व्यवस्था की ख़ामियों का फ़ायदा उठाते हैं। डीलर और दलाल यह काम एक निश्चित क़ीमत लेकर फ़र्ज़ी किरायानामा और आधार के विवरण का उपयोग करके करवाते हैं। ‘तहलका’ ने दिल्ली-एनसीआर में इस फलते-फूलते फ़र्ज़ी वाहन पंजीकरण रैकेट और वाहन पंजीकरण नियमों के गहरे सुरक्षा निहितार्थों के उल्लंघन का ख़ुलासा किया है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की यह ख़ास पड़ताल :-

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने दिल्ली में घोषणा की कि अनुमेय आयु सीमा से अधिक आयु वाले सभी प्रदूषणकारी वाहन- डीजल के लिए 10 वर्ष और पेट्रोल के लिए 15 वर्ष, जिन्हें ऐंड-ऑफ-लाइफ वाहन (ईएलवी) भी कहा जाता है; को 01 जुलाई, 2025 से दिल्ली के ईंधन स्टेशनों पर ईंधन भरने से रोक दिया जाएगा। यह क़दम 01 जुलाई को राष्ट्रीय राजधानी में लागू किया गया, जिससे दिल्ली की सड़कों पर चलने वाले 62 लाख वाहन प्रभावित हुए। लेकिन इसके लागू होने के कुछ ही दिनों के भीतर, सीएक्यूएम ने जनता की कड़ी प्रतिक्रिया और दिल्ली सरकार के विरोध के बाद ईएलवी ईंधन पर प्रतिबंध के क्रियान्वयन को स्थगित कर दिया। अब नयी कार्यान्वयन तिथि 01 नवंबर, 2025 है, तथा इसका दायरा एनसीआर के प्रमुख ज़िलों तक विस्तारित किया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता है। लेकिन इतना ही महत्वपूर्ण एक अन्य मुद्दा भी है, जिसे अधिकारियों द्वारा काफ़ी हद तक नज़रअंदाज़ किया जाता है; वह है- दिल्ली-एनसीआर में फ़र्ज़ी पतों पर वाहनों का फ़र्ज़ी पंजीकरण; जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी एक ख़तरा है। दस्तावेज़ों में धोखाधड़ी की दुनिया में हमारा ध्यान अक्सर यात्रा दस्तावेज़ों- पहचान पत्रों, ड्राइविंग लाइसेंस और नक़ली बैंक नोटों की ओर जाता है। हालाँकि एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र जिस पर शायद ही कभी ध्यान दिया जाता है; वह है- धोखाधड़ी वाले तरीक़े से वाहनों का पंजीकरण। ये दस्तावेज़ संगठित अपराध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और पीड़ितों पर गहरा प्रभाव डालते हैं।

धोखाधड़ी से वाहन पंजीकरण कराना अपराध-संगठित गिरोहों के लिए एक बहुमूल्य संसाधन है। ऐसे वाहन कई प्रकार की अवैध गतिविधियों को संभव बनाते हैं- तस्करी और अवैध व्यापार से लेकर क़ानून प्रवर्तन से बचने और चोरी की कारों की बिक्री को सुगम बनाने तक। जाली पंजीकरण दस्तावेज़ों, फ़र्ज़ी प्लेटों और छेड़छाड़ किये गये वीआईएन (वाहन पहचान संख्या) चिह्नों का उपयोग करके, अपराधी वाहनों की वास्तविक पहचान छिपा सकते हैं। इससे अधिकारियों के लिए अपराधियों का पता लगाना और उन्हें पकड़ना कठिन हो जाता है, जिससे जाँच लंबी हो जाती है और वसूली के प्रयास जटिल हो जाते हैं। इस बढ़ते ख़तरे को उजागर करने के लिए ‘तहलका’ ने दिल्ली-एनसीआर में फ़र्ज़ी पतों पर फ़र्ज़ी वाहन पंजीकरण से जुड़े रैकेट और पुरानी कारों के डीलरों और उनके ग्राहकों के बीच गठजोड़ की पड़ताल करने का फ़ैसला किया। हमारी पड़ताल से पता चला है कि इस क्षेत्र के डीलर ख़रीदारों को यह आश्वासन देकर वाहन बेच रहे हैं कि दिल्ली सहित किसी भी दिल्ली-एनसीआर शहर में पंजीकरण की व्यवस्था की जा सकती है, भले ही ग्राहक के पास उस स्थान के लिए वैध पहचान या पते का प्रमाण हो या नहीं।

‘चूँकि मुझसे कार ख़रीदने वाला व्यक्ति आपका परिचित है, इसलिए मैं अपना आधार और दिल्ली का पता प्रमाण-पत्र दे दूँगा, जिस पर उसकी कार ट्रांसफर की जा सकेगी। अगर कोई और होता, तो मैं यह जोखिम कभी नहीं उठाता। कौन जानता है? हो सकता है कि वह कोई अपराधी हो! उस कार में कोई अपराध कर दे और मैं जेल में पहुँच जाऊँ।’ -दिल्ली के पुरानी कारों के डीलर संजय सिंह बालियान ने ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर से कहा।

‘आपको पते के प्रमाण के बारे में चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है। दलाल दिल्ली से एक फ़र्ज़ी किराया समझौता तैयार कर लेगा और आपकी गाड़ी दिल्ली के पते पर ट्रांसफर कर दी जाएगी।’ -बालियान ने आगे कहा।

‘हाल ही में मैंने मेरठ के पते के प्रमाण का उपयोग करके मेरठ के एक व्यक्ति को गुड़गाँव (गुरुग्राम) नंबर वाली एक कार बेची। मैंने ब्रोकर को 10,000 रुपये दिये। उसने फ़र्ज़ी किरायेनामे के आधार पर कार को गुड़गाँव के पते पर स्थानांतरित करवा लिया, जिसमें दिखाया गया कि वह व्यक्ति गुड़गाँव में किराये पर रह रहा है। असल में वह वहाँ कभी रहा ही नहीं। इसके लिए मैंने दलाल को 10,000 रुपये दिये।’ -उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद के एक अन्य पुरानी कार विक्रेता मोहम्मद नबी ने हमारे अंडरकवर रिपोर्टर से कहा।

‘असली कार ट्रांसफर के लिए एजेंट 3,000 से 4,000 रुपये तक लेते हैं; लेकिन नकली ट्रांसफर के लिए वे लगभग 10,000 रुपये लेते हैं। ऐसे मामलों में यदि वाहन का उपयोग करके कोई अपराध किया जाता है, तो पुलिस पंजीकृत पते पर जाएगी। उस पते पर उन्हें कोई और व्यक्ति मिलेगा, जो इस बात की पुष्टि करेगा कि सम्बन्धित व्यक्ति वास्तव में वहाँ किराये पर रह रहा था।’ -नबी ने कहा।

‘मैं दिल्ली में रहता हूँ; लेकिन हरियाणा नंबर की कार चलाता हूँ। मेरे पास हरियाणा का कोई एड्रेस प्रूफ (पता प्रमाण) भी नहीं है। क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आरटीओ) ऐसा कर रहे हैं। वे पते का सत्यापन भी नहीं कर रहे हैं।’ -दिल्ली के एक अन्य पुरानी कार विक्रेता आशीष वालिया ने संवाददाता को आश्वस्त करते हुए कहा।

इस पड़ताल में ‘तहलका’ रिपोर्टर ने सबसे पहले मोहम्मद नबी से बात की। नबी उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद में पुरानी कारों का कारोबार करता है। रिपोर्टर ने उसके सामने एक फ़र्ज़ी सौदा पेश किया और कहा कि गुड़गाँव निवासी हमारा दोस्त दिल्ली की नंबर प्लेट वाली एक पुरानी क्रिस्टा इनोवा कार ख़रीदना चाहता है। हम अपने मित्र के नाम पर वाहन हस्तांतरित करने की प्रक्रिया जानना चाहते थे। नबी ने विस्तार से बताया कि एक दलाल हमारे (रिपोर्टर) के दोस्त, जो कि काल्पनिक है; को दिल्ली में किसी पते पर फ़र्ज़ी रूप से किरायेदार के रूप दिखाएगा। नबी ने आगे कहा कि आपका दोस्त भले ही उस पते पर नहीं रहता है; लेकिन यदि कोई आता है, तो उसे वहाँ कोई-न-कोई मिल जाएगा। वे इसी के लिए पैसे लेते हैं।

निम्नलिखित बातचीत में मोहम्मद नबी बताता है कि कैसे एजेंट देखभाल व्यवस्था का उपयोग करके नक़ली पतों को वैध बनाते हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि दलाल अपना पता देते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि जाँचकर्ता को गुमराह करने के लिए कोई व्यक्ति मौज़ूद रहे और यह सब एक क़ीमत पर होता है।

रिपोर्टर : फ़र्ज़ी ये भी तो होता है? आदमी उस एड्रेस पर न हो फ़र्ज़ी रसीद कटवा ली?

नबी : वो फ़र्ज़ी नहीं है काम, वो भी जेनुइन काम है। …ऐसा है, वो केयर ऑफ (ष्/श) में ट्रांसफर होती है।

रिपोर्टर : जब आदमी रहता नहीं है उस एड्रेस पर तो कैसे हो जाएगा?

नबी : वो एजेंट एड्रेस लगाता है। उस एड्रेस पर आप जाओगे, तो बंदा आपको मिलेगा।

रिपोर्टर : कौन-सा बंदा मिलेगा?

नबी : वो जिसका एड्रेस लगा होगा।

रिपोर्टर : वो बंदा तो मिलेगा; …मगर जिसके नाम गाड़ी है, वो थोड़ी मिलेगा?

नबी : न! वो नहीं मिलेगा।

रिपोर्टर : तो वो फ़र्ज़ी ही तो हुआ।

नबी : केयर ऑफ का मतलब ही यही है। जैसे आपका रिलेटिव रहता है वहाँ। …उसमें जो एजेंट होता है, वो अपना एड्रेस कराता है।

रिपोर्टर : मगर बंदा रहता थोड़ी है?

नबी : उसमें क्या करते हैं, …एजेंट अपना लगाता है; …पैसे लेते हैं।

रिपोर्टर : हाँ; तो केयर ऑफ के पैसे लेता है ना वो कराने के?

नबी : हाँ।

अब नबी ने इस तरह का फ़र्ज़ीवाड़ा करने वालों का बचाव करते हुए दावा किया कि एजेंट केवल उन लोगों के लिए स्थानांतरण की प्रक्रिया करते हैं, जिन्हें वे जानते हैं। उसने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि वे (दलाल) केवल अपने परिचित लोगों के स्थानांतरण मामले ही निपटाते हैं। हालाँकि नबी यह स्पष्ट करने में असफल रहा कि ये लोग एक वास्तविक ख़रीदार और संभावित अपराधी के बीच अंतर कैसे करते हैं? नबी के अनुसार, वे (दलाल) अपराधियों के स्थानांतरण मामले लेने से बचते हैं। अगर बाद में कुछ ग़लत हो गया, तो ब्रोकर मुश्किल में पड़ जाएगा। नबी ने स्वीकार किया कि यदि दिल्ली के फ़र्ज़ी किराये के पते पर हस्तांतरित कार का उपयोग करके कोई अपराध किया जाता है, तो पुलिस उस पते पर जाएगी; लेकिन वास्तविक मालिक को नहीं ढूँढ पाएगी। इसके बजाय वे किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढ लेंगे, जिसने पैसे के लिए उनका पता दिया है और वह व्यक्ति मुसीबत में पड़ जाएगा।

रिपोर्टर : मैं वही तो कह रहा हूँ, फ़र्ज़ी तो हो गया?

नबी : फ़र्ज़ी थोड़ी है एड्रेस। लग रहा है चाहे किसी का भी लग रहा है। बिना एड्रेस के थोड़ी ट्रांसफर हो जाएगी।

रिपोर्टर : नहीं, समझ नहीं रहे हो तुम। मान लो कोई क्रिमिनल निकला, जिसके नाम गाड़ी ट्रांसफर हुई हो, उसने कोई वारदात कर दी?

नबी : तो उसे ट्रांसफर के लिए ऐसे कोई देगा भी नहीं। स$ख्ती बहुत ज़्यादा है। …ऐसे बंदे को गाड़ी दी भी नहीं जाएगी।

रिपोर्टर : किसी के चेहरे पर थोड़ी लिखा है कि वो अपराधी है? मान लो आपसे किसी ने गाड़ी ख़रीदी…।

नबी : देखिए, जो ट्रांसफर करवाते हैं ना! वो भी जो है, केयर ऑफ में हर बंदे के लिए ट्रांसफर नहीं कराते हैं। वो भी बंदे को पहचानकर ही कराते हैं। मान लो हम जाने वाले हैं, तो वो बता देता है। हम कह देते हैं कि अपना बंदा है। …जो अपना बंदा होगा, वो करा देगा। वो कह देता है- ज़िम्मेदारी आपकी होगी।

रिपोर्टर : मैं वही तो पूछ रहा हूँ, …किसी क्रिमिनल (अपराधी) की आपने करवा दी, तो उसमें तो फँस जाएगा ना आदमी?

नबी : उसमें हर बंदा एड्रेस ऐसे नहीं लगाता है; …मैं आपको बता रहा हूँ। अब मान लो हम आपके अपने बंदे हैं, ठीक है; …आपने कहा कि नबी भाई मेरा एड्रेस नहीं है दिल्ली का और आपकी दिल्ली की आईडी है, तो आप ट्रांसफर करवा दो। अब मान लोग इस गाड़ी से कोई क्राइम भी होता है, अब मान लो एक्सीडेंट भी हो गया ख़ुदा-न-ख़्वास्ता। या कोई वारदात हो गयी, तो उसमें एड्रेस पर ही तो पुलिस जाती है। …तो एड्रेस पर पुलिस जाएगी और जिसके नाम है, ऑनर के, उसको पकड़ेगी।

रिपोर्टर : मान लो इस एड्रेस पर आदमी रहता ही नहीं है?

नबी : वो तो नहीं रहता; मगर जो रहता है, …उसको तो पकड़ेगी ना पुलिस।

रिपोर्टर : वो तो बेचारा फँस गया ना, जिसके एड्रेस पर लगाया है।

नबी : हाँ; बिलकुल फँस जाएगा।

नबी ने आगे बताया कि फ़र्ज़ी स्थानांतरण की प्रणाली कितनी सामान्य हो गयी है। उसने कहा कि वह कार ट्रांसफर के लिए पैसा लेता है और फ़र्ज़ी किरायेनामे के लिए अपना पता देने वाले लोग भी इसके लिए शुल्क लेते हैं। यदि पुलिस उस फ़र्ज़ी पते पर जाती है, तो घर में रहने वाला व्यक्ति दावा करेगा कि कार का मालिक वहाँ किराये पर रह रहा था और अब वहाँ से चला गया है। जैसा कि नबी स्पष्ट रूप से कहता है कि प्राथमिकता वैधता नहीं, बल्कि वाहन का स्थानांतरण है; चाहे कुछ भी हो जाए।

रिपोर्टर : इस आदमी के साथ तो ग़लत हो गया ना?

नबी : हाँ; देखो ऐसा है. हम तो लगा ही नहीं रहे। …मान लो हम पैसा दे रहे हैं, तो उसी चीज़ का दे रहे हैं। …एजेंट जिसका एड्रेस लेगा रहा है, वो भी पैसा ले रहा है। जो बंदा अपना एड्रेस लगता है ना! एजेंट से वो पैसे भी लेता है। केयर ऑफ के पैसे देता है, वर्ना ऐसे कोई लगाएगा थोड़ी! अब मैं तो आपका अपना बंदा हूँ, आपसे मैंने कोई पैसा नहीं लिया। …अपना एड्रेस लगा दिया, वो तो हो गयी भाईचारे वाली बात। अब एजेंट तो दिन में सैकड़ों गाड़ियाँ ट्रांसफर करवाते हैं, वो तो पीने-खाने वाले जो होते हैं ना! नशेड़ी, वो अपना एड्रेस लगा देते हैं, उनको तो बस पैसे चाहिए, उनको कोई दिक़्क़त ही नहीं; …पैसे से मतलब है।

रिपोर्टर : चालान तो ऑनलाइन आ जाते हैं उसकी कोई दिक़्क़त नहीं है। मान लो कोई वारदात हो जाए, तो पुलिस नंबर से एड्रेस निकालेगी ना! …पर उस एड्रेस पर वो आदमी मिलेगा नहीं।

नबी : नहीं।

रिपोर्टर : ये तो गड़बड़ हो गयी ना?

नबी : जो एड्रेस लगाएगा, वो अपने बल-बूते पर लगाता है। …कि जो भी होगा, मैं देख लूँगा। हमको क्या मतलब इस बात से, हमको तो ट्रांसफर से मतलब है। हमारी गाड़ी ट्रांसफर होनी चाहिए, बस।

रिपोर्टर : पुलिस जाएगी, तो बोल देगा। मेरे यहाँ किराये पर रहता है?

नबी : हाँ; वो तो रेंट एग्रीमेंट भी लगता है ना बाक़ायदा। वो रेंट एग्रीमेंट भी लगाता है।

रिपोर्टर : अच्छा; आधार भी तो लगता है ट्रांसफर में?

नबी : आधार कार्ड उसका लगता है, जिसकी गाड़ी होती है।

रिपोर्टर : हाँ; तो उसमें भी तो एड्रेस होता है।

नबी : हाँ; तो वो अपडेट कराते हैं, वो रेंट एग्रीमेंट बनवाते हैं; …ये बंदा इस एड्रेस पर रहता था और रहता है। वो एक एलआईसी टाइप का बनाते हैं, रेंट एग्रीमेंट बनाते हैं; …तब ट्रांसफर होती है।

रिपोर्टर : वो पैसे लेते होंगे रेंट एग्रीमेंट बनाने के?

नबी : हाँ; बिलकुल लेते हैं।

अब नबी ने सामान्य स्थानांतरण और केयर ऑफ स्थानांतरण के बीच लागत के बारे में बताया। उसके अनुसार, फ़र्ज़ी पते का उपयोग करने पर सामान्य स्थानांतरण की तुलना में अधिक शुल्क लगता है। उसने बताया कि एक फ़र्ज़ी स्थानांतरण की लागत 10,000 से 12,000 रुपये के बीच होती है, जबकि सही तरीक़े से सामान्य स्थानांतरण में मात्र 3,500 से 4,000 रुपये के बीच ख़र्चा आता है। उसने बताया कि फ़र्ज़ी स्थानांतरण अधिक महँगे क्यों होते हैं? इसके लिए उसने एजेंट की फीस और फ़र्ज़ी किरायेनामे और उपयोगिता बिल जैसे दस्तावेज़ों को तैयार करने में लगने वाले ख़र्च का हवाला दिया।

रिपोर्टर : पैसा ज़्यादा लगेगा इस काम में?

नबी : कम-से-कम 10-12 हज़ार लगेगा।

रिपोर्टर : इतना ज़्यादा? और नॉर्मल ट्रांसफर में कितना लगेगा?

नबी : रुपये 3,500-4,000 के (हज़ार) केयर ऑफ में ज़्यादा लगता है। एजेंट खाएँगे पैसे, रेंट एग्रीमेंट बनता है। आधार कार्ड, बिजली का बिल दूसरे का लगेगा। …ये सारा काम होगा।

अब नबी ने बताया कि कैसे एक फ़र्ज़ी किरायेनामे के ज़रिये उसने मेरठ के एक ख़रीदार द्वारा गुड़गाँव से ख़रीदी गयी कार स्थानांतरित करवायी। नबी ने कहा कि उसने एक दलाल को 10,000 रुपये का भुगतान किया था, जिसने गुड़गाँव का फ़र्ज़ी किरायेनामे के आधार पर स्थानांतरण की व्यवस्था की थी, जहाँ कार का ख़रीदार रहता ही नहीं था। उसने कहा कि वास्तव में वह व्यक्ति गुड़गाँव में कभी रहा ही नहीं।

नबी : एक बंदे की आईडी थी मेरठ की, मैंने अल्टो 800 बेची थी। …अभी उस पर मेरठ की गाड़ी है और एड्रेस था हरियाणा का, …गुड़गाँव का। एचआर 26 थी कार। इस कार को मैंने अभी ट्रांसफर कराया है। …दो-तीन महीने हो गये एजेंट ने गुड़गाँव का एड्रेस दिखाया, वही कराता है सारे काम। हमको तो पैसे देने हैं। …बस, काम होना चाहिए। मैंने गाड़ी बेची है, तो मेरे थ्रू (ज़रिये) ही तो होगा।

रिपोर्टर : कितने पैसे लिये?

नबी : उसने 10 के (हज़ार) लिये थे।

अब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने दूसरे कार डीलर संजय सिंह बलियान से संपर्क किया। संजय पुरानी कारों का कारोबार करता है और इच्छुक ख़रीदारों की गाड़ियाँ ग़लत पते पर स्थानांतरित करवा देता है। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने उसके सामने भी फ़र्ज़ी तरीक़े से कार स्थानांतरित कराने का एक काल्पनिक सौदा पेश किया और कहा कि हमारा मित्र दिल्ली-एनसीआर में एक पुरानी क्रिस्टा इनोवा ख़रीदना चाहता है; लेकिन वह गुड़गाँव (हरियाणा) का है और उसके पास दिल्ली का कोई पता प्रमाण नहीं है। हम जानना चाहते थे कि उनके नाम पर स्थानांतरण की व्यवस्था कैसे की जाएगी। जवाब में संजय ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि चिन्ता की कोई बात नहीं है; कार को दिल्ली के फ़र्ज़ी पते पर किरायानामा बनवाकर उसका उपयोग करके वह हमारे (रिपोर्टर के काल्पनिक) दोस्त के नाम पर कार स्थानांतरित करवा देगा।

रिपोर्टर : ख़रीदार गुड़गाँव के हैं।

संजय : नाम करा देंगे।

रिपोर्टर : कैसे नाम करवाओगे? वो दिल्ली में नहीं है, आईडी नहीं है।

संजय : केयर ऑफ में हो जाएगी सर जी!

इस बातचीत में संजय ने बताया कि किस तरह से स्थानांतरण के लिए किराया समझौतों और आधार विवरण में हेरफेर किया जाता है। उसने विस्तार से बताया कि वाहन को स्थानांतरित करने के लिए जिस दलाल का सहयोग लिया जाएगा, वह दिल्ली के पते पर एक फ़र्ज़ी किरायानामा तैयार करेगा, जिसमें दिखाया जाएगा कि कार मालिक गुड़गाँव आने से पहले वहाँ रहता था। संजय ने यह बात यह जानते हुए कही कि कार को दिल्ली के किसी पते से पंजीकृत कराने वाला व्यक्ति, जो कि इस पड़ताल में काल्पनिक है; कभी दिल्ली में रहा ही नहीं। लेकिन फिर भी संजय ने आश्वासन दिया कि कार को एक फ़र्ज़ी पते का उपयोग करके स्थानांतरित करवा दिया जाएगा।

संजय : रेंट एग्रीमेंट करवा देंगे यहाँ का, आजकल तो आधार भी चेंज हो जाता है। यहाँ से किसी का रेंट एग्रीमेंट बनवाएँगे कि रेंट पर रह रहे हैं ये यहाँ। आधार नंबर तो वही रहेगा।

रिपोर्टर : किसी और का रेंट एग्रीमेंट लगाओगे?

संजय : हाँ जी! किसी के मकान का होगा। दलाल ही बनवाते हैं। …हो जाता है, केयर ऑफ में।

रिपोर्टर : उनका दिल्ली में कोई रिश्तेदार नहीं है ना! …वो रेंट पर रहे हैं, कुछ एड्रेस नहीं है उनका?

संजय : हाँ; तो वो हो जाता है जी! …बनवा देते हैं।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने संजय से कहा कि यह ग़लत होगा। हमारा दोस्त तो कभी दिल्ली में रहा ही नहीं। रिपोर्टर ने  आशंका व्यक्त की, कि कार स्थानांतरित कराने के लिए एक फ़र्ज़ी किरायेनामे से यह पता चल जाएगा कि वह वहाँ कार मालिक नहीं रहता है। लेकिन फिर भी संजय ने ग़लत पते की चिन्ताओं को दरकिनार करते हुए दावा किया कि बिहार तक का कोई भी व्यक्ति केयर ऑफ रूट के ज़रिये कार स्थानांतरित करवा सकता है। उसने बताया कि दलाल हर चीज़ का प्रबंधन करते हैं- किरायानामा और आधार विवरण आदि तक का। संजय ने बताया कि दलाल अक्सर अपने या किसी रिश्तेदार के प्रमाण-पत्रों का उपयोग करते हैं।

रिपोर्टर : वो तो ग़लत हो जाएगा ना?

संजय : आरसी तो बाई पोस्ट ही जाएगी।

रिपोर्टर : हाँ; मगर वो रहे तो हैं नहीं उस एड्रेस पर। …ग़लत न हो जाएगा?

संजय : आजकल तो सब कुछ आधार नंबर है। अगर कोई बिहार का भी हो, उसके नाम भी केयर ऑफ में हो जाएगी।

रिपोर्टर : आधार किसका लगेगा?

संजय : आधार दलाल लगवाते हैं अपना। …रेंट एग्रीमेंट बनवाते हैं। रेंट एग्रीमेंट बनवा देंगे। आधार दलाल किसी का बी लगाएगा अपने रिश्तेदार का हो चाहे।

रिपोर्टर : क्यूँकि इनका आधार गुड़गाँव का है?

संजय ने यह भी स्वीकार किया कि उसने फ़र्ज़ी किरायेनामे का उपयोग करके हिमाचल प्रदेश में पंजीकृत एक कार ख़ुद भी ख़रीदी थी और दो साल तक दिल्ली में अपने पास रखकर, चलाकर बेच दिया। उसने खुले तौर पर स्वीकार किया कि कैसे केयर ऑफ व्यवस्था इस तरह के हस्तांतरण को आसान बनाती है।

संजय : कोई दिक़्क़त नहीं। अभी मैंने हिमाचल में गाड़ी करवायी केयर ऑफ में। मैंने दो साल रखी, …एचपी 16।

रिपोर्टर : आपने दो साल गाड़ी रखी हिमाचल की?

संजय : हाँ; अभी बेची है, पिछले महीने।

रिपोर्टर : मतलब हिमाचल की गाड़ी दिल्ली में चला रहे थे आप?

संजय : हाँ जी! दो साल तक रखी। मैंने ख़रीदी थी। …सही रेट में मिल गयी थी।

रिपोर्टर : तो आपने अपने नाम ट्रांसफर करायी?

संजय : हाँ; मैंने अपने नाम से ट्रांसफर करवायी।

इसके बाद संजय ने ‘तहलका’ रिपोर्टर का परिचय संदीप गिरधर से करवाया, जो इस काल्पनिक सौदे में वाहन को दिल्ली के पते पर स्तानांतरित कराने का काम करने को तैयार है। गिरधर से बात करने के बाद संजय ने कहा कि वह स्थानांतरण के लिए अपना पता और आधार नंबर देने को तैयार है। उसने बताया कि वह ऐसा केवल इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह हमें (रिपोर्टर को) जानता है अन्यथा वह किसी अजनबी के लिए ऐसा जोखिम कभी नहीं उठाता। संजय ने स्वीकार किया कि यदि उस कार से कोई अपराध किया जाता है, तो वह ख़ुद मुसीबत में फँस जाएगा; क्योंकि वाहन उसके पते पर पंजीकृत होगा। उसने यह भी दावा किया कि कोई और व्यक्ति इसी काम के लिए 50,000 रुपये लेता।

संजय : सर जी! नाम हो जाएगी। नाम की टेंशन मत लो आप।

रिपोर्टर : ये क्यूँ थे?

संजय : संदीप गिरधर, …पाकिस्तानी बनिये होते हैं ये। इनका गाड़ी ट्रांसफर का भी काम है। ठीक है; …पैसा अच्छा लगाते हैं ये। गाड़ी तो हो जाएगी ट्रांसफर। …एक बार गाड़ी के फोटो आ जाने दो।

रिपोर्टर : आप अपने नाम से लगवा दोगे?

संजय : लगवा दूँगा केयर ऑफ ही तो लगाना है। …आधार ही तो लगेगा, …मेरा भी लगेगा। मेरा अथॉरिटी में लगेगा। आपका आदमी है इसलिए मैं दे रहा हूँ, वर्ना कौन देता है? आप जानने वाले हो, इसलिए कर रहे हैं वर्ना नहीं। कोई गड़बड़ हुई, तो मैं तो जाऊँगा जेल। कोई और होता, तो कहता 50 हज़ार रुपये दो। …पता नहीं क्या क्राइम करेगा गाड़ी से। …कौन इस चक्कर में पड़ेगा। अब मेरी ऐसी उमर थोड़ी है कि लात खा लो।

इसके बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर ने दिल्ली के पुरानी कारों के तीसरे डीलर आशीष वालिया तक से बात की। रिपोर्टर ने आशीष से कहा कि वह अपने लिए एक क्रिस्टा इनोवा ख़रीदना चाहते हैं। इस पर वालिया ने रिपोर्टर को गुड़गाँव पंजीकरण संख्या वाली एक पुरानी क्रिस्टा इनोवा कार की पेशकश की और आश्वासन दिया कि गुड़गाँव में किसी पते के प्रमाण के बिना भी कार को गुड़गाँव के पते पर स्थानांतरित किया जा सकता है। अपने दावे के समर्थन में उसने अपना उदाहरण दिया कि वह ख़ुद दिल्ली में रहता है, फिर भी उसकी कार हरियाणा में पंजीकृत है; जबकि वहाँ उनकी कोई संपत्ति नहीं है। वालिया के अनुसार, ऑनलाइन संचालित प्रक्रिया में जहाँ आरटीओ औपचारिकताएँ पूरी करते हैं; पते पर भौतिक उपस्थिति अप्रासंगिक है।

रिपोर्टर : ये ट्रांसफर आप ही करवाओगे गुड़गाँव का मेरा? …एड्रेस तो है नहीं?

वालिया : हाँ; बिलकुल।

रिपोर्टर : कोई ग़लत तो नहीं हो जाएगा? …गुड़गाँव की गाड़ी दिल्ली में ट्रांसफर…?

वालिया : मेरी ख़ुद की गाड़ी है। एचआर XXXXX नंबर डाल लो। मेरे नाम है, जबकि मेरी कोई प्रॉपर्टी नहीं है। ये तो अंबाला के पास नारायणगढ़ है, वहाँ की है।

रिपोर्टर : कोई दिक़्क़त तो नहीं होगी?

वालिया : कैसे? मान लो, मैं आज एक जगह रह रहा हूँ; …कल दूसरी जगह रह रहा हूँ; एड्रेस थोड़ी न रोज़-रोज़ चेंज होंगे!

रिपोर्टर : हम तो रहे ही नहीं वहाँ पर?

वालिया : वो अलग बात है, अब तो सब कुछ ऑनलाइन है। जब ऑनलाइन नहीं था, तब भी ये हो रहा था। क्यूँकि कर तो आरटीओ ही रहा है ना! पब्लिक (जनता) में से थोड़ी कोई कर रहा है?

इस फ़र्ज़ीवाड़े की हद यह है कि वालिया ने पते की जाँच को लेकर रिपोर्टर की चिन्ता को ख़ारिज करते हुए कहा कि सत्यापन व्यावहारिक रूप से अस्तित्वहीन होता है। वालिया के अनुसार, उसका ब्रोकर फ़र्ज़ी किरायानामा तैयार करके यह दिखा देगा कि हम (रिपोर्टर) गुड़गाँव में किराये पर रह रहे हैं; जबकि उसे पता था कि रिपोर्टर वहाँ कभी नहीं रहे और न ही रहते हैं। फिर भी उसने दावा किया कि वह फ़र्ज़ी पते का उपयोग करके कार स्थानांतरित करवा देगा। वालिया को पता था कि रिपोर्टर का आधार दिल्ली का है। फिर भी कार गुड़गाँव के फ़र्ज़ी पते पर पंजीकृत करवाने का रिपोर्टर को आश्वाससन देते हुए उसने कहा कि कोई भी पता सत्यापित करने नहीं आता।

रिपोर्टर : कोई वेरीफाई भी नहीं होगा?

वालिया : क्या होता है, एक्चुअली वहाँ पर वो केयर ऑफ में लगता है। ये बंदा फ़िलहाल यहाँ पर है। इसका परमानेंट एड्रेस ये है, जो आपका आधार कार्ड होगा…।

रिपोर्टर : जो आप एड्रेस दिखाओगे, वो वेरीफाई नहीं होगा?

वालिया : नहीं; कोई वेरीफाई नहीं होता। वैसे भी सब कुछ ऑनलाइन है, …टोटल ऑनलाइन।

वाहनों का फ़र्ज़ी पंजीकरण ज़्यादातर पुरानी कारों से जुड़ा है और दिल्ली इसका प्रमुख केंद्र है। दिल्ली-एनसीआर में वाहनों के पंजीकरण के लिए फ़र्ज़ी किरायेनामों का नियमित रूप से उपयोग किया जाता है, जबकि ऐसे स्थानांतरणों में आधार कार्ड को कभी-कभी ऐसे किराये के पते पर अपडेट कर दिया जाता है, जिस पर आधार धारक रहता ही नहीं है। वर्तमान में सरकार का ईएलवीस (एंड-ऑफ-लाइफ व्हीकल्स) पर ध्यान केंद्रित करना समझ में आता है; लेकिन उसे बड़े पैमाने पर वाहनों के फ़र्ज़ी पंजीकरण पर भी ध्यान देना चाहिए। यह एक ऐसी समस्या है, जो अब राष्ट्रीय सुरक्षा और क़ानून प्रवर्तन के लिए गंभीर ख़तरा बन गयी है।