हाल ही में छत्तीसगढ़ सूबे के सुकमा ज़िले के इतकाल गाँव में लोगों ने जादू-टोने के शक में पाँच लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी। मरने वालों में तीन महिलाएँ भी हैं और सभी मृतक एक ही परिवार के थे। यह ख़बर विकसित भारत, स्मार्ट सिटी की घोषणाओं, देश में हवाई अड्डे बनाने की होड़ और अब भारत को दुनिया का चिप हब बनाने की दिशा में जनता के सामने रखी जाने वाली सरकारी तस्वीरों के बीच उस भारत की तस्वीर है, जो अभी तक डायन प्रथा का दंश झेल रहा है। हैरत होती है कि देश में स्कूलों, विश्वविघालयों की संख्या में वृद्धि, साक्षरता दर बढ़ने, बेहतर संचार-व्यवस्था, प्राथमिक अस्पतालों की संख्या में इज़ाफ़ा होने के बावजूद डायन-प्रथा आज भी ज़िन्दा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड शाखा के अनुसार, वर्ष 2022 में देश में 85 लोगों की हत्या डायन मानकर कर दी गयी इनमें से ज़्यादातर मामले छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखण्ड और ओडिशा राज्यों के थे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड शाखा के आँकड़ों के अनुसार, देश में वर्ष 2015 से वर्ष 2021 के दरमियान डायन-प्रथा के तहत 663 हत्याएँ हुईं, जो मामले दर्ज किये गये यानी सालाना औसतन 95 मामले ऐसे दर्ज किये गये, जिनमें लोगों की हत्या उन्हें डायन कहकर कर दी गयी ऐसी हत्याओं में 65 फ़ीसदी मामले झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा राज्यों से थे।
ग़ौरतलब है कि डायन बिसाही सरीखी क्रूर कुप्रथा भारत के 12 राज्यों में अधिक है, इसमें झारखण्ड, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र और असम शामिल हैं। यह क्रूर प्रथा कम आय वाले इलाक़ों और ऐसे समुदायों में जहाँ सामाजिक, आर्थिक असमानता के अलावा लैंगिक असमानता हावी है, में ज़िन्दा है। इसके साथ ही अशिक्षा, जागरूकता का अभाव, स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुँच कम होने जैसे कारण भी इन प्रथाओं को बढ़ावा देते हैं। पर ध्यान देने वाली बात यह है कि इस कुप्रथा की शिकार अधिकतर महिलाओं को ही बनाया जाता है।
सवाल यह है कि इस पुरुष प्रधान समाज, व्यवस्था में अक्सर महिलाएँ ही इसकी गिरफ़्त में क्यों? वो भी ज़्यादातर मौक़ों पर ऐसी महिलाओं को डायन कहकर प्रताड़ना दी जाती है या उनकी हत्या कर दी जाती है, जो उम्रदराज़, अकेली, नि:संतान या विधवा होती हैं। इसके पीछे एक मुख्य मंशा महिलाओं को कमतर आँकना, उनकी संपत्ति हड़पना, किसी रंज़िश के तहत समाज में उन्हें बदनाम करना, एक ख़ास उम्र (प्रजनन-अवस्था) के बाद उन्हें बेकार समझना आदि होते हैं। पीड़ित लोगों में अधिकतर ग़रीब, आदिवासी और दलित होते हैं। डायन घोषित करने के लिए जादू-टोना और काला जादू करने जैसे शक भी करके या आरोप लगाकर लोग, समुदाय पीड़ित और उसके परिवार को कई-कई तरह की यातनाएँ देते हैं। कई बार तो यातनाएँ देने वालों में परिवार के लोग भी शामिल होते हैं।
ऐसी कुप्रथाओं के तहत किसी की हत्या की घटनाएँ हैरत में डालती हैं; क्योंकि कई राज्यों में इस कुप्रथा के ख़िलाफ़ क़ानून भी बने हुए हैं। बिहार देश का ऐसा पहला राज्य है, जिसने 1993 में ऐसा क़ानून बनाया था। इस क़ानून के तहत किसी को प्रताड़ित करने वालों को छ:-छ: माह तक की क़ैद की सज़ा या 2,000 रुपये तक के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया था। आज बिहार के अलावा झारखण्ड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, असम में भी इस तरह की प्रताड़ना के ख़िलाफ़ क़ानून बने हुए हैं। ये क़ानून राज्य सरकारों ने बनाये हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि अभी तक इस कुप्रथा के ख़िलाफ़ कोई केंद्रीय क़ानून नहीं बना है। वहीं जिन राज्यों ने पहल करके क़ानून बनाये हैं, वहाँ किसी की हत्या या उसे प्रताड़ित करने वालों के लिए सज़ा बहुत कम है। इसके साथ ही यह भी चलन है कि ऐसा कोई मामला सरकारी दस्तावेज़ में दर्ज हो, ज़रूरी नहीं। कई मर्तबा पुलिस ऐसे मामलों में निष्क्रिय रहती है, तो कई मर्तबा पीड़ित परिवार के लोग दबंग लोगों से डरकर ख़ामोश रहना ही बेहतर समझते हैं। उन्हें यह डर सताता है कि अगर रिपोर्ट दर्ज करायी, तो उनके परिवार के बच्चों को कहीं सामाजिक बहिष्कार न झेलना पड़े। गाँव में उनके लिए रोज़गार, खाने-पीने, समाज में उठने-बैठने के रास्ते बंद हो सकते हैं।
दरअसल इस कुप्रथा के कई सामाजिक, जातीय, आर्थिक व मनोवैज्ञानिक पहलू भी हैं। यह कुप्रथा विकास की गढ़ी गयी परिभाषा पर भी सवाल उठाती है। देश में जन कल्याण, महिलाओं के उत्थान, सशक्तिकरण के लिए चालू महत्त्वाकांक्षी योजनाओं पर भी सोचने को मजबूर करती है। दलित, आदिवासी कल्याण, उत्थान के नाम पर सियासत कभी थमती नहीं दिखती, हर राजनीतिक पार्टी उनका सबसे अधिक हितैषी होने का दावा करता है; लेकिन हक़ीक़त कुछ और ही होती है। 21वीं सदी के दो दशक बीत चुके हैं। इसरो भारत को स्पेस के क्षेत्र में बहुत आगे ले जाने के लिए प्रयासरत है। वैज्ञानिक और डॉक्टर भी रोगियों के इलाज को सुलभ बनाने की दिशा में शोध करने में जुटे हैं। शेयर बाज़ार भी रिकॉर्ड बनाता रहता है। पर इसके बीच छत्तीसगढ़ में अंधविश्वास के कारण पाँच लोगों की हत्या हमें लोगों की घटिया मानसिकता को दूर करने के लिए ठोस क़दम उठाने के लिए आईना दिखाती है।