खूब बिक रहा है मुफ्त वाला राशन

– कोटे से मुफ्त में मिलने वाले सरकारी राशन की हो रही कालाबाजारी

इंट्रो-भारत में घोटाले सिर्फ नेताओं और अधिकारियों तक ही सीमित नहीं हैं; और न ही सुविधाओं का दुरुपयोग सिर्फ उच्च पदों पर बैठे लोग ही करते हैं। आम लोगों को भी जब मौका मिलता है, तो उनमें भी बहुत-से लोग भी सुविधाओं का दुरुपयोग करने लगते हैं। ‘तहलका’ ने अपनी इस पड़ताल में पता लगाया है कि कुछ लोग पीएमजीकेएवाई के तहत उन्हें मिलने वाले मुफ्त-राशन को बेच रहे हैं। इस अवैध धंधे में कई दुकानदार और कथित रूप से राशन वितरक भी शामिल हैं। हालांकि संभव है कि कुछ लोग गरीबी के चलते मजबूरी में ऐसा कर रहे हों; लेकिन ज्यादातर मुफ्त-राशन के लाभार्थी राशन में मिले चावल को पैसे और अच्छी क्वालिटी का चावल खाने के लिए बेच रहे हैं। इसके चलते गरीबों की जीवन-रेखा कहा जाने वाला यह राशन एक भूमिगत व्यापार में बदल रहा है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की यह खास रिपोर्ट :-

किराना दुकानदार सरकार द्वारा दिये जाने वाले मुफ्त चावल को अपनी दुकानों में खुलेआम न रखकर दूसरी जगह पर छिपाकर रखते हैं, जिससे वे सरकारी छापेमारी और जुर्माने से बच सकें। अगर वे अपनी दुकानों में चावल रखेंगे, तो यह जोखिम रहता है कि कोई व्यक्ति अधिकारियों को इसकी सूचना दे देगा, जिससे दुकान मालिक को परेशानी हो सकती है।’ -यह बात उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के मोहनपुर गांव के रहने वाले अफसर अली नाम के एक दलाल ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कही।

‘या तो आप हम पर स्टिंग कर रहे हैं, या आप पुलिस विभाग से हैं। मैं अपना राशन कार्ड नहीं खोना चाहती। इसलिए मैं अपना मुफ्त चावल आपको नहीं बेचूंगी।’ यह बात उत्तर प्रदेश के नोएडा के सेक्टर-81 में रहने वाली रिहाना नाम की एक महिला ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कही, जो कि मुफ्त-राशन योजना की एक लाभार्थी है।

‘अभी मेरे पास 7 क्विंटल (700 किलोग्राम) राशन वाले चावल हैं, जो मैंने सरकारी राशन के लाभार्थियों से खरीदे हैं। वे लोग हर महीने राशन की दुकानों से मिलने वाले मुफ्त-राशन में से चावल मुझे बेच जाते हैं।’- यह बात उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के मोहनपुर गांव के ही एक निजी किराना दुकान मालिक मोहम्मद रफी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से फोन पर कही।

‘चिंता मत करो। मैंने अपने इलाके के राशन डीलर से बात कर ली है। अगर आपको हर महीने 50 क्विंटल (5,000 किलो) राशन चावल की भी जरूरत है, तो हम मुहैया करा देंगे।’ -रफी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा। ‘हम लाभार्थियों से मुफ्त-राशन योजना के तहत मिलने वाला चावल 27-28 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदते हैं, इसलिए हम इसे आपको 32 रुपये में नहीं बेच सकते। हमें कम-से-कम 38 रुपये प्रति किलो चाहिए।’ -रफी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर के सामने सौदा रखा। मोहम्मद रफी ने आगे यह भी कहा- ‘मेरी दुकान पर नियमित रूप से मुफ्त-राशन का चावल आता है। हर महीने लाभार्थी अपने कोटे का चावल लेकर आते हैं, जिसे वे या तो बेच देते हैं या बेहतर गुणवत्ता वाले चावल के बदले दे जाते हैं।’

भारत में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत अप्रैल, 2020 में शुरू की गयी मुफ्त-राशन योजना का उद्देश्य शुरू में तीन महीने के लिए कोरोना महामारी के दौरान गरीबों की सहायता करना था; लेकिन बाद में इसे बढ़ा दिया गया। इस योजना के माध्यम से 81 करोड़ से अधिक परिवारों को, जो आयकर नहीं देते हैं; हर महीने प्रति व्यक्ति पांच किलोग्राम राशन मिलता है। इस योजना को अब केंद्र सरकार द्वारा पांच वर्षों के लिए अर्थात् दिसंबर, 2028 तक बढ़ा दिया गया है। पीएमजीकेएवाई में भाग लेने के लिए कोई अलग पंजीकरण प्रक्रिया नहीं है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनयेफएसए) के अंतर्गत लाभार्थी, जिनमें अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) या प्राथमिकता वाले घरेलू (पीएचएच) राशन कार्डधारक भी शामिल हैं; स्थानीय राशन वितरण की दुकानों पर अपने मौजूदा राशन कार्ड का उपयोग करके पीएमजीकेएवाई लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस योजना के शुभारंभ के बाद से सरकार को विभिन्न राज्यों और जिलों से कई शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जिनमें आरोप लगाया गया है कि राशन डीलर और किराना की दुकान चलाने वाले खुले बाजार में इस सरकारी राशन को बेच रहे हैं। इस तरह ये अपात्र लोग जरूरतमंदों को दिये जाने वाले इस सरकारी राशन को हड़पने में कामयाब हो रहे हैं।

गरीबों और जरूरतमंदों को मिलने वाले इस राशन की कालाबाजारी करने वालों में पैसे वाले (करदाता, दुकानदार, अच्छी-खासी संपत्ति वाले और कार मालिक) तक शामिल हैं, जो इस योजना का अनुचित लाभ उठा रहे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, ऐसे व्यक्तियों को जल्द ही कार्यक्रम से बाहर कर दिया जाएगा। धोखाधड़ी की शिकायतें लगातार सामने आने के कारण ही ‘तहलका’ ने पीएमजीकेएवाई योजना के तहत चल रहे इस घपले की पड़ताल करने का निर्णय लिया। सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गये मुफ्त चावल की अवैध बिक्री के बारे में ‘तहलका’ एसआईटी की यह पड़ताल उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के मोहनपुर गांव के निवासी अफसर अली से बातचीत से शुरू होती है। सरकारी राशन के एक नकली खरीदार बनकर ‘तहलका’ रिपोर्टर ने ऐसे लोगों से संपर्क किया, जो सरकार से मिलने वाले मुफ्त-राशन को बेचने का काम करते हैं, जिनमें सबसे पहले अफसर अली से मुलाकात की गयी। इस बातचीत में पता चला कि अफसर, जिसे पीएमजीकेएवाई योजना के तहत 5 किलो चावल मिलता है; 16 से 18 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से ये राशन दुकानदार को बेच रहा है। यह चौंकाने वाली स्वीकारोक्ति एक व्यापक मुद्दे को उजागर करती है, जहां लाभार्थी न केवल निजी लाभ के लिए प्रणाली का शोषण करते हैं, बल्कि गरीबों के लिए आवश्यक वस्तुओं के लिए भूमिगत बाजार को भी बढ़ावा देते हैं।

रिपोर्टर : क्या-क्या मिलता है?

अफसर : हां, मिलता है चावल, गेहूं और चीनी।

रिपोर्टर : चीनी कितनी मिलती है?

अफसर : 3-3.5 केजी (तीन-साढ़े तीन किलो) मिलती है हर महीने।

रिपोर्टर : ये तो फ्री (मुफ्त) मिलता होगा, …सरकार की तरफ से मिलता है?

अफसर : हां; हर महीने मिलता है।

रिपोर्टर : इस महीने का मिल गया?

अफसर : भतीजा हमारा ले गया।

रिपोर्टर : कुछ लोग बेच भी तो देते हैं चावल को?

अफसर : हां।

रिपोर्टर : किस रेट (भाव) में बेचते हैं?

अफसर : 18-16 रुपए किलो दुकान वाले को देते हैं।

रिपोर्टर : कुछ बेचना चाह रहे हो दिल्ली में, तो बताओ; किस रेट में बेचते हो?

अफसर : चावल : तो मोटा वाला 17-18 में बिकता है।

रिपोर्टर : जो सरकार तुम्हें फ्री में दे रही है?

अफसर : वो तो पांच किलो मिलता है।

रिपोर्टर : वो कितने में बेच देते हो?

अफसर : 16-17 रुपए दुकान वाला लेता है।

अब अफसर ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि उसके परिवार के पास दो राशन कार्ड हैं। एक लाल रंग का और दूसरा पीले रंग का। उसने कहा कि लाल रंग के राशन कार्ड पर उन्हें मुफ्त-राशन नहीं मिलता, इसके लिए उन्हें कुछ पैसे देने पड़ते हैं। लेकिन पीले रंग के राशन कार्ड पर उन्हें मुफ्त-राशन मिलता है। उसके अनुसार पीले रंग का राशन कार्ड उसकी मां के नाम पर है, जिस पर उसके परिवार को मुफ्त-राशन मिलता है।

रिपोर्टर : और कितने लोग बेचते हैं गेहूं?

अफसर : कुछ लोग आपस में बदल लेते हैं, जिनका परिवार बड़ा है।

रिपोर्टर : आपको तो फ्री (मुफ्त) में मिल रहा है सरकार से कोई पैसा नहीं देना पड़ता। इस महीने का मिल गया अप्रैल का?

अफसर : हां; चार-पांच दिन पहले।

रिपोर्टर : राशन कार्ड में किस-किस का नाम है?

अफसर : हम पांच भाइयों का। फ्री वाला तो एक ही कार्ड पर आता है चावल, बाक़ी जो है, दो कार्ड होते हैं। एक लाल वाला होता है, उसमें पैसे देने पड़ते हैं और पीले में नहीं देने पड़ते। और जो फ्री अनाज मिलता है, वो पीले वाले में मिलता है। …हमारे पास एक लाल वाला है, एक पीले वाला। पीला वाला मां के नाम पर है और लाल वाले में पांच भाइयों का नाम है।

रिपोर्टर : मां को मिलता होगा राशन फ्री वाला?

अफसर : हां।

रिपोर्टर : क्या-क्या मिलता है?

अफसर : लगभग 13 किलो अनाज मिलता है; …गेहूं, चावल सब मिलाकर 13 किलो। और लाल वाले में 33 किलो, मगर उसमें पैसे देने पड़ते हैं।

रिपोर्टर : कितने पैसे?

अफसर : 170 रुपए, …जितने हैं।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने सरकारी मुफ्त-राशन का ग्राहक बनकर अफसर से जब ये कहा कि दिल्ली में एक निजी डीलर को देश के 80 करोड़ से अधिक लोगों को वितरित किये जाने वाले सरकारी मुफ्त चावल की भारी मात्रा में जरूरत है। तब अफसर रिपोर्टर को एक ग्राहक समझकर उनके लिए दलाल के रूप में काम करने के लिए सहमत हो गया और उसने रिपोर्टर को बताया कि वह उनके लिए हर महीने आठ से  नौ क्विंटल (800 से 900 किलोग्राम) सरकार से राशन कार्ड धारकों के मुफ्त में मिलने वाले चावल की व्यवस्था कर सकता है। उसने कहा कि वह हमारे (‘तहलका’ रिपोर्टर के) लिए बरेली से दिल्ली तक चावल ले जाने के लिए एक पिकअप वैन की व्यवस्था भी कर देगा। अफसर के अनुसार, उसके गांव में करीब 250-300 लोगों को सरकारी योजना के तहत मुफ्त-राशन मिल रहा है। वह उन लोगों से बात करेगा और उचित दाम पर हमारे (नकली ग्राहक बने ‘तहलका’ रिपोर्टर के लिए चावल का प्रबंध करेगा। उसने कहा कि वह रिपोर्टर को सरकारी चावल उपलब्ध कराने के लिए राशन डीलर से भी बात करेगा।

रिपोर्टर : यहां पर किसी को जरूरत है। …वो बहुत सारा अनाज चावल खरीदना चाहते हैं, जो सरकार देती है। आप 16-17 रुपये में बेचते हो ना! मैं आपको दिल्ली में उसके 30 रुपये दिलवा दूंगा।

अफसर : जैसे हम पिकअप भरके लेकर आये, तो कोई दिक्कत तो न आयेगी रास्ते में? …जैसे बॉर्डर पे चेक करे….!

रिपोर्टर : तो आप बता देना, …आप व्यापारी हो चावल देने आये हो।

अफसर : अच्छा।

रिपोर्टर : वो हमारी जिम्मेदारी है उसकी टेंशन मत लो आप।

अफसर : आप 30 रुपये किलो ले लोगे?

रिपोर्टर : कितना चावल हो जाएगा आपके गांव से?

अफसर : फिर तो मैं कोटे (सरकारी राशन वितरक) से ही बात करूँगा डायरेक्ट (सीधे)।

रिपोर्टर : हमको फ्री वाला चाहिए, जो सरकार देती है; …वही लेना है, पैसे वाला नहीं। तो गांव से आप लोग 17-18 में बेच रहे हो, मैं 30 दिलवा दूंगा।

अफसर : अच्छा; बात करके बताता हूं।

रिपोर्टर : आप भरके ले आओगे गांव से?

अफसर : हां; हो तो जाएगा सर!

रिपोर्टर : कितने लोग हैं, जिनको फ्री में अनाज मिल रहा है?

अफसर : 200-250 लोग होंगे, …300 से ज्यादा ही होंगे।

रिपोर्टर : 300 से ज्यादा होंगे, जिनको फ्री अनाज मिल रहा है 5 केजी (पांच किलो)? …कौन-सा गांव है तुम्हारा?

अफसर : मोहनपुर तरिया।

रिपोर्टर : ये बरेली से कितनी दूर है?

अफसर : लखनऊ रोड से लेफ्ट (बाएं) बाईपास से छ: किलोमीटर दूर है, जिला बरेली।

रिपोर्टर : आप भी मोहनपुर गांव में रहते हो? …सारे मुस्लिम हैं?

अफसर : पूरा पाकिस्तानी एरिया (इलाका) है।

रिपोर्टर : पाकिस्तानी एरिया क्यों बोल रहे हो?

अफसर : टोटल मुस्लिम है।

रिपोर्टर : तो उससे बात करके बताओ।

अफसर : बताता हूं मैं। …हर महीने कम-से-कम 6-7 क्विंटल तो हो ही जाएगा चावल।

रिपोर्टर : 6-7 क्विंटल? …एक गाड़ी में कितना आ जाएगा? …एक पिकअप में?

अफसर : कम-से-कम 8-9 क्विंटल तो ले ही जाता है।

रिपोर्टर : बरेली से दिल्ली लाने की जिम्मेदारी तुम्हारी होगी?

अफसर : वो कम-से-कम 4-5 के (हजार) लेगा।

रिपोर्टर : वो हम दे देंगे, पिकअप वाले का खर्चा अलग है। …आपका काम है चावल से पिकअप भरवाकर दिल्ली लाना।

अफसर : अच्छा।

रिपोर्टर : 8-9 क्विंटल दिलवा दोगे हर महीने?

अफसर : हां।

रिपोर्टर : पक्का?

अफसर : पक्का सर!

रिपोर्टर : फ्री वाला चाहिए।

अफसर : मैं पूरी बात करवा दूंगा, कोटे वाले से।

‘तहलका’ रिपोर्टर से बात करने के बाद अफसर ने उन्हें एक व्यापारी मानकर उनके लिए दिल्ली में आपूर्ति के लिए सरकारी मुफ्त चावल की व्यवस्था के लिए बातचीत शुरू कर दी। उसने अपने गांव के एक किराना दुकान मालिक से बात की, जिसने अफसर को बताया कि उसके पास कई क्विंटल सरकार से लोगों के लिए मुफ्त बांटने के लिए आने वाला चावल है, जो लाभार्थियों ने उसे बेचा है। अफसर ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि किराना दुकान का मालिक सरकारी मुफ्त चावल अपनी दुकान पर नहीं रखता है, क्योंकि उसे डर है कि कहीं इसके लिए अधिकारियों द्वारा छापा न मारा जाए। अफसर ने कहा कि वह उन ग्रामीणों से चावल का प्रबंध करेगा, जो बेचने में इच्छुक हैं और कुछ चावल वह किराना दुकान के मालिक से भी मंगवाएगा। कुल मिलाकर उसने दिल्ली में बड़ी मात्रा में सरकारी योजना के तहत राशन कार्ड धारकों को मुफ्त मिलने वाले चावल की आपूर्ति करने की प्रतिबद्धता जतायी।

अफसर : मैं ये कह रहा था, दुकानदार है जैसे जगह-जगह दुकान है गांव वाले जमा करते हैं चावल, तो ये ऐसे इकट्ठा करना पड़ेगा चावल; …ये दुकान में नहीं रखते हैं। कहीं और रखते हैं चावल।

रिपोर्टर : ऐसा क्यूं?

अफसर : मुखबिरी कर दी किसी ने, …कहां से आया, कैसे आया…?

रिपोर्टर : कभी छापा पड़ा है किसी के यहां? …क्या होता है?

अफसर : चालान काट देते हैं 10 के (हजार) का, 15 के (हजार) का। …मुखबिरी कर देते हैं लोग। चावल वालों के भी लाइसेंस बन रहे हैं आजकल। …वो किसी भी वैरायटी का चावल बेच सकते हैं।

रिपोर्टर : तुम अपना भी तो चावल बेचोगे हमें? …तुम्हारे दो राशन कार्ड हैं; एक लाल, एक पीला? लाल में पैसे देने पड़ते हैं, पीला वाला मुफ्त मिलता है चावल?

अफसर : हां। …दुकानदार के पास दो-तीन क्विंटल है चावल और बाक़ी मैंने और लोगों से बात की है; …वो कह रहे हैं- बेचते रहेंगे, व्यवस्था देखते रहेंगे; …28 रुपये किलो।

अब अफसर ने दावा किया कि उसने हमारे (‘तहलका’ रिपोर्टर के) लिए चावल की व्यवस्था करने के लिए अपने गांव से एक निजी किराना दुकानदार मोहम्मद रफी से बात की है। रफी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से बातचीत के दौरान बताया कि उसे दो-तीन महीने में मुफ्त-राशन पाने वालों से चार से पांच क्विंटल (400-500 किलोग्राम) चावल मिल जाता है। उसने कहा कि राशन लाभार्थी या तो सरकार से मुफ्त में मिलने वाले चावल को बेच देते हैं या अपने चावल के बदले में उससे अच्छी गुणवत्ता वाला चावल ले लेते हैं। उसने कहा कि वह हमारे (‘तहलका’ रिपोर्टर के) लिए सरकार द्वारा मुफ्त में वितरित किया जाने वाले चावल की व्यवस्था करेगा और इसके लिए उसने राशन डीलर से भी बात की है, जो सरकारी राशन वाले चावल आपूर्ति की व्यवस्था करेगा।

रिपोर्टर : हमें रफी साहब वो चावल चाहिए, जो सरकार दे रही है फ्री में, राशन में?

रफी : मेरे पास कोटे का ही चावल आता है। …लोग आते हैं मुझसे बदल ले जाते हैं। कुछ मोटा चावल नहीं खाते, वो बदल ले जाते हैं या पैसे ले जाते हैं।

रिपोर्टर : तो ऐसे कितने लोग आ जाते हैं आपके पास?

रफी : समझ लो दो-तीन महीने में हमारे पास चार-पांच क्विंटल चावल इकट्ठे हुए हैं।

रिपोर्टर : हमें तो बड़ी तादाद में चावल चाहिए, वो कैसे दोगे?

रफी : आपके लिए मैंने बड़े डीलर से बात कर ली है। …अभी तो जो मेरे पास है, मुझसे ले लो। मैं बड़े डीलर से भी दिलवा दूंगा। ये है थोड़ी मेहनत हम भी लेंगे, …एक-दो रुपया हमारा भी बन जाएगा।

जब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने रफी से पूछा कि वह जो चावल हमें दिल्ली में देगा, वो सरकार द्वारा राशन के रूप में लोगों को मुफ्त वितरित होने वाला चावल होगा? तो रफी ने रिपोर्टर को बताया कि विश्वास बढ़ाने के लिए वह उन्हें वीडियो कॉल के जरिये अपने यहां रखे सरकारी राशन वाले चावल को दिखाएगा, जो कि राशन कार्ड (गरीबी रेखा से नीचे वाले कार्ड) धारकों को मुफ्त मिलता है। उसने कहा कि फिलहाल उसके पास सात क्विंटल (700 किलोग्राम) सरकार राशन वाला चावल है, जो उसने सरकार से मुफ्त-राशन पाने वाले लाभार्थियों से खरीदा है। रफी ने आगे कहा कि वह हमारे (रिपोर्टर के) लिए 50 क्विंटल (5,000 किलोग्राम) चावल की व्यवस्था भी कर सकता है, वह भी प्रति दिन।

रिपोर्टर : नहीं, मुझे वो ही चावल चाहिए, जो सरकार देती है फ्री में।

रफी : नहीं तो आपको भरोसा कैसे दिलाया जाए, वीडियो कॉल परे …बिलकुल वही चावल हैं कच्चे, लगे हुए हैं हमारे पास। …अभी तो हमने ऐसे ही रखे हुए हैं, जब किसी को देना होता है, तो 50-50 किलो बना देते हैं।

रिपोर्टर : अच्छा; जो चावल आपको लोग दे जाते हैं, वो आप इकट्ठा करते रहते हो? …अभी कितना होगा आपके पास?

रफी : करीब सात क्विंटल।

रिपोर्टर : मतलब, 700 किलो, और हमें हर महीने चाहिए 10-12 क्विंटल।

रफी : अरे तुम बात कर लो, हम महीने के महीने 15 क्विंटल दिलवाएंगे; …ऐसी बात नहीं है, 50 क्विंटल भी दिलवाएंगे।

रिपोर्टर : आप कहां से लोगे अगर 50 क्विंटल हमें दोगे भी?

रफी : अब दिलवा देंगे रोज की गाड़ी आएगी-जाएगी तो…।

अब रफी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से चावल के दाम पर बातचीत की। रिपोर्टर ने रफी से कहा कि वह 32 रुपये प्रति किलो की दर से भी उससे सरकारी राशन का चावल खरीदने को तैयार हैं। लेकिन रफी ने इस दर पर अपना चावल बेचने से इनकार कर दिया। उसने कम-से-कम 38 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव की मांग की। रफी ने कहा कि उसने राशन डीलर से सरकार द्वारा लोगों को मुफ्त में वितरित होने वाले चावल के उपलब्ध कराने के लिए बात की है।

रिपोर्टर : क्या रेट होगा चावल का, आप जो दोगे हमें?

रफी : क्या तय हुई थी आपकी?

रिपोर्टर : यो तो कह रहे थे 16, 17, 18 (रुपये) में बेचता हूं।

रफी : यहां तो 27-28 रुपये खरीदते हैं वो, डीलर ले लेता है हमसे 30-32 का रेट। …हम पैसे नहीं लेकर आते, बदले में चावल ही लेकर आते हैं।

रिपोर्टर : एरिया कौन-सा है?

रफी : तरिया मोहनपुर, बरेली जिला।

रिपोर्टर : हमसे कितना लोगे?

रफी : बरेली के अंदर मोटा चावल की कीमत 40 रुपये है।

रिपोर्टर : हम सरकारी चावल की बात कर रहे हैं, फ्री वाली…।

रफी : पौना चावल भी समझ लो 50 का रेट है, तो मोटा चावल कितने का होगा?

रिपोर्टर : हमको कितने में दोगे चावल?

रफी : आप कितना दोगे? …पहले बताओ।

रिपोर्टर : दे दो 32 रुपये में, पर किलो।

रफी : नहीं, इतना तो नहीं हो सकता। …कम-से-कम 38 रुपये तो हो।

रिपोर्टर : चलो मैं शाम को बताता हूं।

रफी : हां बता दो हमने डीलर के भी कानों में बात डाल दी है। …एक-दो रुपये की बात होगी, तो इधर-उधर हो जाएगा। हां, भरोसे वाले आदमी हो, …आप वीडियो कॉल करके पूरा माल देखिए; पूरी तसल्ली हो, तभी आगे बढ़ना।

बरेली से नि:शुल्क राशन योजना वाले चावल बेचने वालों की पड़ताल करते हुए ‘तहलका’ रिपोर्टर ने उत्तर प्रदेश के एक अन्य शहर नोएडा में कुछ ऐसे लोगों की जानकारी जुटायी। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने नोएडा के सेक्टर-81 में रिहाना से मुलाकात की, जो क्षेत्र की अन्य महिलाओं के साथ मुफ्त-राशन लाभार्थी होने का दावा करती है। ‘तहलका’ रिपोर्टर एक स्थानीय दलाल के माध्यम से रिहाना और अन्य महिलाओं से मिले। ‘तहलका’ रिपोर्टर से मिलते ही रिहाना ने कहा कि वह अपना मुफ्त-राशन के तहत मिलने वाले चावल 35 रुपये प्रति किलोग्राम से कम भाव में नहीं बेचेगी, जो उसके अनुसार खुले बाजार भाव से सस्ता है। रिपोर्टर ने रिहाना से यह भी कहा कि हमें हर महीने मुफ्त-राशन योजना के तहत मिलने वाले चावल की आपूर्ति की आवश्यकता है।

रिहाना : किस रेट (भाव) में लेते हो?

रिपोर्टर : आप किस रेट में लेंगी?

रिहाना : 35 रुपये।

रिपोर्टर : 35 रुपये किलो? …ज्यादा नहीं है?

रिहाना : कम हैं। …दुकान के रेट से तो कम ही हैं।

रिपोर्टर : चावल कौन-से हैं? …दिखा देंगी आप?

रिहाना : अभी तो नहीं हैं।

रिपोर्टर : ये वही हैं ना, जो सरकार फ्री में देती है?

रिहाना : हां; …पांच किलो मिलते हैं, एक आदमी को।

रिपोर्टर : मुझे दिखा दो आप।

रिहाना : चावल कहां है अभी?

रिपोर्टर : मिले नहीं हैं?

रिहाना : ना! …5 तारीख तक मिलते हैं, इस बार मिले नहीं हैं। 10 तक मिलेंगे।

रिपोर्टर : तो हमें हर महीने चाहिए।

रिहाना : हां।

रिपोर्टर : चावल कितना मिलता है?

रिहाना : 10 मिलता है।

रिपोर्टर : गेहूं 10 किलो? …कितना लोग हो आप घर में?

रिहाना : 25 किलो मिलता है। …जैसे हम चाहें, तो पूरा चावल भी ले सकते हैं।

रिपोर्टर : अच्छा; चाहो पूरा चावल ले लो, चाहो तो पूरा गेहूं?

रिहाना : हां; और कुछ नहीं मिलता।

जब ‘तहलका’ रिपोर्टर की महिलाओं के समूह में रिहाना से बात हो रही थी, तब किसी ने शोर मचाया कि हम (रिपोर्टर) मीडिया से हैं और उनका स्टिंग कर रहे हैं। समूह में खड़े एक लड़के ने रिपोर्टर को पुलिस वाला कहा। इसके बाद रिहाना ने अपना रुख बदल लिया और उन्हें (रिपोर्टर को) अपना मुफ्त-राशन बेचने से इनकार कर दिया और यहां तक कह दिया कि उसके पास राशन कार्ड भी नहीं है। लेकिन रिपोर्टर के साथ पहले हो चुकी रिहाना की बातचीत उसके इस दावे का समर्थन नहीं करती कि उनके पास राशन कार्ड नहीं है।

रिहाना : अभी हमारे बने नहीं हैं राशन कार्ड।

रिपोर्टर : अभी तो आप कह रही हो बना हुआ है?

रिहाना : मेरे छ: तो बच्चे हैं खाने वाले। …दो जानें (लोग) हम हो गये, आठ जानें (लोग), तो 25 किलो क्यूं, कम-से-कम 40 किलो मिलन चाहिए। …यहां तो मैं ले नहीं रही हूं, गांव में मिलता है हमारा।

एक अन्य महिला : दो किलो गेहूं, तीन किलो चावल, ऐसे मिलता है।

रिपोर्टर : दो किलो गेहूं, तीन किलो चावल? …एक आदमी पर?

महिला : हां।

रिपोर्टर : तो क्या रेट? बताएं आप! …20 रुपये किलो?

रिहाना : कैसी बात कर रहे हो?

रिपोर्टर : ये तो मना कर रही हैं।

रिहाना : इतने खाने वाले हैं, फिर भी मैं बेच रही हूं। हमारे तो चावल भी अच्छे ना हैं, मोटे चावल हैं।

एक दूसरी महिला : ये  मीडिया वाले हैं।

रिपोर्टर : मीडिया वाले हैं? …मेरे तो बचते ही ना हैं चावल। मीडिया वाले की बात ना है। …वैसे भी इतने मोटे चावल देख लेंगे, तो मीडिया वाले क्या करेंगे?

एक लड़का : इनके दिल में धक-धक हो रही है, ये पुलिस वाले तो नहीं हैं?

रिपोर्टर : अरे, पुलिस वाले नहीं हैं।

रिहाना : नहीं-नहीं। मैं आपको जानती हूं, चाचा हैं हमारे। …10 साल से मिल रहा है बराबर।

रिहाना के बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाकात नोएडा के उसी सेक्टर की दूसरी गली में एक अन्य महिला से हुई। मुफ्त-राशन का लाभार्थी होने का दावा करने वाली महिला ने अपना नाम बताने से इनकार कर दिया; लेकिन उसने कबूल किया कि वह खुले बाजार में 25 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से मुफ्त चावल बेच रही है।

महिला : अभी नहीं मिला है चावल।

रिपोर्टर : क्या रेट देती हो? …25 रुपये?

महिला : हां।

रिपोर्टर : जो फ्री राशन सरकार दे रही है, हमको वो चाहिए पांच किलो; …वो चाहिए हमको।

महिला : दे तो देते आपको, पर वो अभी मिले नहीं हैं। पिछले महीने मिले। कभी 7 को (7 तारीख को) मिले, कभी 8 को। …इस बार मिला ही नहीं, 9 तारीख हो गयी।

रिपोर्टर : अप्रैल में अभी नहीं मिला?

महिला : अभी नहीं मिला।

रिपोर्टर : कितना मिलता है?

महिला : एक आदमी पर पांच किलो।

रिपोर्टर : दो आदमी पर 10 किलो, दो केजी (किलो) चावल, तीन केजी गेहूं?

महिला : चावल लो या अनाज लो, हम तो चावल ले लेते हैं।

रिपोर्टर : वो क्या रेट दे देंगी आप? …हमें चाहिए खरीदना है हमको?

महिला : अभी तो मिले नहीं हैं।

रिपोर्टर : नहीं, जब मिलेंगे, तब?

महिला : जब मिलेंगे, तब ले लेना।

रिपोर्टर : किस रेट में?

महिला : हम तो 20 भी दे देवें हैं। …हम हैं हिन्दू, हम तो अपना खाने के लिए ही कर लेते हैं। जैसे कोई आता है, तो दे देते हैं. …दो केजी, 2.5 केजी; …वैसे कोई जरूरत नहीं है।

उसी गली में ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाकात एक अन्य महिला से हुई। उसने भी दावा किया कि वह मुफ्त-राशन की लाभार्थी है; लेकिन उसने अपना नाम बताने से इनकार कर दिया। उसने कबूल किया कि वह सरकार से मुफ्त-राशन योजना के तहत मिलने वाले चावल खुले बाजार में 25 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से बेच देती है। वह ‘तहलका’ रिपोर्टर को ग्राहक समझकर 30 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल बेचने को तैयार हो गयी। हालांकि उसने गेहूं बेचने से इनकार कर दिया।

रिपोर्टर : आप क्या लेती हो फ्री में?

महिला : चावल भी, राशन भी।

रिपोर्टर : चावल और गेहूं दोनों मिलते हैं?

महिला : हां; हमारे चार-पांच लोग हैं। 15 गेहूं, 15 चालल आता है।

रिपोर्टर : फ्री में आता होगा ये तो?

महिला : हां।

रिपोर्टर : हमें चावल-गेहूं दोनों चाहिए।

महिला : दोनों नहीं देंगे।

रिपोर्टर : एक दे दोगी?

महिला : हां; हम चावल बेचे, …25 रुपये किलो।

रिपोर्टर : चावल बेचते हो, 25 किलो? …ठीक है, हमको हर महीने चाहिए होगा।

महिला : मिलेगा तो दे देंगे।

रिपोर्टर : ठीक है, वही 25 रुपये पर केजी (25 रुपये प्रति किलो)?

दलाल : ज्यादा दे देना, गरीब आदमी है।

रिपोर्टर : चलो ठीक है, 30 रुपये पर केजी ले लेंगे।

उसी गली में ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाकात एक अन्य महिला से हुई। उसने भी खुद को मुफ्त-राशन की लाभार्थी होने का दावा किया। उसने भी अपना नाम बताने से इनकार कर दिया। लेकिन उसने कबूल किया कि वह सरकार से मुफ्त मिलने वाला चावल 25 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से खुले बाजार में बेच रही है। महिला ने बताया कि उसने पिछले महीने का चावल स्थानीय दुकानदार को बेचा था। उसने बताया कि लोग उससे चावल खरीदने के लिए उनके दरवाज़े पर आते हैं। यह महिला भी ‘तहलका’ रिपोर्टर को 30 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से अपना चावल बेचने के लिए भी सहमत हो गयी।

रिपोर्टर : क्या रेट बेचती हो आप चावल?

महिला : दुकानदार तो 25 ही (25 रुपये प्रति किलो) ही देवे है।

रिपोर्टर : दुकानदार 25? …लेकिन हम लगातार लेंगे आपसे।

महिला : ठीक है।

रिपोर्टर : हर महीने 30 रुपये (किलो का) रेट ले लेना आप हमसे। …आप कहां बेचती हो? …दुकान पर?

महिला : नहीं-नहीं, आप घर से ले लेना।

रिपोर्टर : घर से?

महिला : घर से भी ले जावे है, …दुकान से भी। …अब पता लग गया, अब तुम्हें दे दिया करेंगे।

रिपोर्टर : चावल देखने को मिल सकता है, क्वालिटी कैसी है?

महिला : अब तो बेच दिये, …साथ-के-साथ बेच देते है। हमारे बच्चे खाते नहीं हैं, इसलिए हम हाथ-के-हाथ बेच दें, चून (आटा) ले लें दुकान से।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत देश भर में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को पांच किलोग्राम प्रति व्यक्ति के हिसाब से मुफ्त-राशन मिल रहा है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीब एवं जरूरतमंद परिवारों को आवश्यक खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना है। हालांकि यह बात सामने आयी है कि कई लाभार्थी उन्हें मिलने वाले इस मुफ्त-राशन को, खासतौर पर चावलों को खुले बाजार में बेच रहे हैं और बड़ी संख्या में अपात्र लोग भी इस कल्याणकारी योजना का लाभ उठा रहे हैं।

पीएमजीकेएवाई के सम्बन्ध में ‘तहलका’ एसआईटी ने अपने गुप्त कैमरे में लाभार्थियों को उन्हें मिलने वाले मुफ्त सरकारी राशन को बेचने की बात करते हुए कैमरे में क़ैद किया है, जो कि चौंकाने वाली बात है। जरूरतमंदों को वितरित किये जाने वाले राशन के इस व्यापक दुरुपयोग को देखते हुए सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की गयी है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस योजना से उन लोगों को ही लाभ मिले, जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है, और इस राशन की बढ़ती कालाबाजारी पर अंकुश लगाया जा सके। अब यह कार्रवाई का समय है।