किसानों को धोखा दे रहे जालसाज़

योगेश

किसानों की फ़सलों में रोग लगने से लेकर फ़सल का अच्छी तरह न उगना एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। इसकी वजह नक़ली बीज, नक़ली खादें और नक़ली कीटनाशक हैं, जिन्हें किसान अनजाने में जालसाज़ों से ख़रीद रहे हैं। हमारे देश में नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों की बिक्री एक बड़ी साज़िश है, जिससे देश के लगभग 95 प्रतिशत किसान अनजान हैं। जानकारी की यह कमी किसानों को बहुत बड़ा नुक़सान हर साल पहुँच रही है। फर्टिलाइजर के नाम पर बाज़ारों में बिक रहे नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों से देश के किसानों को हर साल 83.6 करोड़ रुपये का नुक़सान हो रहा है और जालसाज़ों को इतना ही फ़ायदा। ये जालसाज़ किसानों को ही नक़ली समान बेचने तक नहीं रुके हुए हैं, बल्कि किसानों के फ़सल उत्पादों को ख़रीदने के बाद उनमें मिलावट करके भी मोटी कमायी कर रहे हैं। इन्हीं जालसाज़ों की वजह से फ़सलों में बीमारियाँ लग रही हैं, जो बाद में हम इंसानों से लेकर पशु-पक्षियों तक को बीमार कर रही हैं।

यह मौसम कपास की बुवाई का है। लेकिन कपास के नक़ली बीजों को लेकर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसान परेशान हैं। महाराष्ट्र में कपास के नक़ली बीजों की ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से कालाबाज़ारी ही रही है। महाराष्ट्र में कपास के नक़ली बीज की आवक से कृषि अधिकारी और किसान परेशान हैं। कृषि बाज़ार से सम्बन्धित सूत्रों से पता चला है कि महाराष्ट्र में कपास के बीज के अलावा दूसरी कई फ़सलों और फलों के बीज भी भारी मात्रा में नक़ली बिक रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि महाराष्ट्र में गुजरात और मध्य प्रदेश से नक़ली बीजों की खेप बड़ी मात्रा में आ रही है। लेकिन गुजरात और मध्य प्रदेश में भी नक़ली बीजों की समस्या है। महाराष्ट्र के कृषि अधिकारियों ने कहा है कि महाराष्ट्र के उन सभी बॉर्डरों पर चेकप्वाइंट्स बनाकर चेकिंग की जाती है, जो सीमावर्ती राज्यों गुजरात और मध्य प्रदेश से लगते हैं। इसके लिए सब-रीजनल ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट, पुलिस और कृषि विभाग मिलकर अभियान चला रहे हैं। नक़ली बीज विक्रेताओं को पकड़ने के लिए महाराष्ट्र कृषि विभाग ने एक अभियान भी चलाया है, जिससे किसान जालसाज़ों और धोखाधड़ी से बचाये जा सकें। इसके साथ ही राज्य के किसानों को सलाह दी गयी है कि वे बीज, रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक ख़रीदते समय उनकी गुणवत्ता जाँच लें, जिन किसानों को असली-नक़ली बीजों, खादों और कीटनाशकों की पहचान नहीं है वे उनकी जाँच कराने के लिए तालुका या ज़िला स्तर पर बनी जाँच टीमों से सैंपल के साथ मिलें, नहीं तो किसी पर नक़ली बीज, खाद या कीटनाशक बेचने का शक होने पर कृषि अधिकारियों को इसकी सूचना दें। महाराष्ट्र में पिछले साल भी खांदेश में कपास के नक़ली बीज बड़ी मात्रा में पकड़े गये थे। किसान जब नक़ली बीजों को अपने खेतों में बो देते हैं, तो उनके ठीक से न उगने पर ज़्यादा खाद और ज़्यादा कीटनाशक का प्रयोग करते हैं, जिससे उन्हें धन, श्रम और उत्पादन में विकट नुक़सान उठाना पड़ता है।

महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में बड़े पैमाने पर कपास की खेती की जाती है; लेकिन यहाँ कपास की गुणवत्ता गिरती जा रही है जिसकी वजह नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक हैं, जिनकी वजह से ज़मीन ख़राब हो रही है। कपास और दूसरी फ़सलें भी ख़राब हो रही हैं। किसानों की माँग है कि जालसाज़ों के ख़िलाफ़ सरकार सख़्त कार्रवाई करे, जिससे उनकी फ़सलें ख़राब होने से बच सकें और उन्हें अच्छी पैदावार मिल सके। किसानों का कहना है कि पिछले साल बीजों के निरीक्षण के लिए महाराष्ट्र में 16 निरीक्षक दल बनाये गये थे, जिन्हें मई में तैनात किया गया था। इस बार बाज़ार में नक़ली बीज आ चुके हैं और बुवाई भी शुरू हो चुकी है; लेकिन अभी गहन जाँच नहीं हो रही है। कृषि विभाग ख़रीफ़ फ़सलों की तैयारियाँ कर चुका है; लेकिन अभी तक उसने किसानों को बचाने का कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है, जिसके चलते विभाग ने इस बारे में कोई ऐलान भी नहीं किया है।

अप्रैल के अंतिम सप्ताह से कपास की बुवाई शुरू हो गयी है, जो कि मई के अंत तक चलेगी। कपास की बुवाई के समय और फ़सल उगाने के दौरान किसानों बाज़ार से उर्वरक खाद डालने के लिए ख़रीदेंगे और दो-महीने बाद ही कीटनाशकों की ज़रूरत पड़ेगी। कृषि विभाग के सख़्त क़दम न उठने से नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों के बेचने वाले जालसाज़ किसानों को बड़ा नुक़सान पहुँचा देंगे। किसानों को इस धोखाधड़ी से बचने के लिए कृषि विभाग जागरूक कर रहा है; लेकिन बचाने के लिए ठोस क़दम नहीं उठा रहा है। किसानों को इतनी पहचान नहीं होती कि वे नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों की पहचान कर सकें, क्योंकि उनकी पैकिंग बिलकुल असली बीजों, खादों और कीटनाशकों की तरह ही होती है। कई किसान थोड़ी छूट के लालच में आकर जालसाज़ों के बहकावे में आ जाते हैं। कृषि विभाग सिर्फ़ अधिकृत वेंडर से ही बीज, खाद और कीटनाशक ख़रीदने की सलाह दे रहा है। लेकिन मिलावट करने वाले किसी भी रूप में हो सकते हैं।

पिछली बार हरियाणा सरकार ने नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बेचने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिये थे; लेकिन जालसाज़ों ने नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बेचने के कई रास्ते निकाल लिये। पकड़े जाने पर नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बेचने वालों को छ: महीने से तीन साल तक की सज़ा हरियाणा सरकार ने तय कर रखी है, जिसमें पाँच लाख तक का ज़ुर्माना भी है या दोनों में से एक का लागू होगा। हरियाणा में भी नक़ली और मिलावटी बीजों, खादों और कीटनाशकों की बिक्री काफ़ी ज़्यादा होती है। कथित आरोप लगते रहे हैं कि विश्वसनीय बीज उत्पादक और विक्रेता भी लालच में ख़राब या निम्न गुणवत्ता वाले या नक़ली बीज अच्छे बीजों में मिलाकर बेचते हैं। खाद और कीटनाशक बेचने वाले भी यही करते हैं।

नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों की कालाबाज़ारी कुछ राज्यों में ही नहीं, पूरे देश में हो रही है। यह बाज़ार इतना बड़ा है कि इससे हर साल जानकारी के अभाव में करोड़ों रुपये किसानों की जेब से आसानी से निकल रहे हैं। नक़ली बीजों, खादों और नक़ली कीटनाशकों की बिक्री रोकने के लिए वस्तु अधिनियम-1955, कीटनाशक अधिनियम-1964, बीज अधिनियम-1966, बीज नियम-1968, आवश्यक कीटनाशक नियम-1971, बीज (नियंत्रण) आदेश-1983 और उर्वरक (नियंत्रण) आदेश-1985 आदि क़ानून बने हुए हैं। लेकिन नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों की बिक्री अभी तक नहीं रुकी है। नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बेचने वालों के ख़िलाफ़ किसान रिपोर्ट दर्ज करा सकते हैं; लेकिन देश के ज़्यादातर किसान छोटे और कम जानकारी वाले हैं, जिनमें से ज़्यादातर किसान बीज, खाद और कीटनाशक विक्रेताओं से उधार में ये सब लेते हैं। इन सब वजहों से वे जालसाज़ों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज नहीं करवाते और इसके उलट फ़सल अच्छी न होने पर खाद और कीटनाशक डालते रहते हैं।

राज्य सरकारों के कृषि विभाग अपने-अपने राज्य में बीजों, उर्वरक खादों और कीटनाशकों की गुणवत्ता की जाँच करने और उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित रहे इसके लिए हर ज़िले में ब्लाक स्तर पर निरीक्षकों की नियुक्ति करते हैं, जिनका काम बीज, उर्वरक खाद और कीटनाशक विक्रेताओं की दुकानों से नमूने लेकर उनकी जाँच करना होता है। लेकिन पाया गया है कि निरीक्षक एसी वाले कमरों में आराम फ़रमाते हैं और किसानों के साथ धोखाधड़ी होती रहती है। देश के कई जागरूक किसानों ने कई बार इन निरीक्षकों पर बीज, खाद और कीटनाशक विक्रेताओं से मिलीभगत कर इस कालाबाज़ारी को बढ़ावा दिया है। लेकिन सभी निरीक्षकों पर ये आरोप नहीं लगाये जा सकते। वित्त वर्ष 2023-24 में देश भर में तैनात निरीक्षकों ने बीजों, उर्वरकों और कीटनाशकों के जो नमूने लिए, उनकी संख्या बहुत ज़्यादा है। वित्त वर्ष 2023-24 में देश में बीजों के 1,33,588 नमूने लिये गये, जिनमें से 3,630 नमूने ख़राब मिले थे। इसी वित्त वर्ष में उर्वरक खादों के 1,81,153 नमूनों में से 8,988 नमूने ख़राब मिले, जबकि कीटनाशकों के 80,789 नमूनों में से 2,222 नमूने नक़ली मिले। वित्त वर्ष 1014-25 में भी नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बड़ी मात्रा में मिले हैं। ये सब नक़ली और मिलावटी बीज, खाद और कीटनाशक फर्टिलाइजर के नाम पर ख़ूब बेचे जा रहे हैं। बीज, खाद और कीटनाशक विक्रेता अपनी दुकान पर जाँच के लिए आने वाले कई भ्रष्ट जाँच अधिकारियों की जेब गर्म कर देते हैं, जिससे वे बिना कोई कार्रवाई किये चले जाते हैं।

अभी फिर बाज़ार में फर्टिलाइजर के नाम पर नक़ली बीजों, नक़ली उर्वरक खादों और नक़ली कीटनाशकों की भरमार की ख़बरें सामने आ रही हैं। लेकिन देश भर में किसानों को नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बेचने वाले जालसाज़ों से बचाने के ठोस उपाय नहीं हैं।

पिछले महीने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने कहा था कि केंद्र सरकार नक़ली कृषि इनपुट (नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों) की आपूर्ति करने वालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई कर रही है। पिछले साल केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को हर हाल में असली और अच्छी गुणवत्ता वाले बीज, उर्वरक खाद और कीटनाशक उपलब्ध कराने की बात कही थी और इसके लिए कृषि अधिकारियों को आदेश दिये थे कि वे जालसाज़ों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करें। लेकिन अभी तक नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बेचने वालों को ऐसा करने से रोका नहीं जा सका है, जिससे किसानों के साथ होने वाली धोखाधड़ी भी नहीं रुकी है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय इस मामले में सही भावना से काम करे, तो यह संभव है। किसानों को भी चाहिए कि वे असली बीजों के लिए अपने पूर्वजों की तरह ख़ुद बीजों का संरक्षण करें, जैविक खाद बनाएँ और कीटनाशकों की जगह पशुओं के मल-मूत्र, खलियों और नीम पत्तियों के घोल का छिड़काव करें, जिससे उन्हें जैविक पैदावार के साथ ही फ़सलों का अच्छा भाव भी मिल सके और उनकी फ़सलों को ख़ाने से कोई व्यक्ति या पशु-पक्षी बीमार न पड़े। किसानों को इसके लिए जागरूकता और आपसी सहयोग की ज़रूरत है।