‘साइट’ भारत में टीवी प्रसारण

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भारत में टीवी प्रसारण की औपचारिक शुरुआत 1959 से मानी जाती है लेकिन इसे प्रायोगिक स्तर से निकलकर चलन में आने में छह साल का वक्त लगा. इसका पहला परीक्षण दिल्ली में किया गया और सामान्य प्रसारण भी सबसे पहले यहीं शुरू हुआ. फिर सात साल के बाद बंबई और अमृतसर में टीवी पहुंचा. सन 1975 तक देश के सात शहरों तक टीवी की पहुंच हो चुकी थी. इस नई नवेली टीवी क्रांति के बारे में सरकार का मानना था इससे देश की सामाजिक-आर्थिक की गति को नई दिशा और तेजी मिल सकती है. सरकार इस मायने में टीवी की ताकत को आंकना भी चाहती थी लेकिन तत्कालीन सुविधाओं में यह मुमकिन नहीं था. हमारी प्रसारण तकनीक टेरेस्ट्रियल नेटवर्क पर आधारित थी. इसमें ऊंचे-ऊंचे टावरों का निर्माण और उनके पास विशेष उपकरणों के माध्यम से 30-35 किमी तक के क्षेत्र तक प्रसारण के सिग्नल भेजे जाते थे. इस व्यवस्था में कुछ खामियां थीं. पहली तो यही कि इससे दुर्गम और ग्रामीण इलाकों में टीवी की पहुंच नहीं हो पा रही थी तो वहीं दूसरी तरफ इससे प्रसारण की गुणवत्ता भी कुछ कमतर रहती थी. उस समय देश की वैज्ञानिक बिरादरी भी इस कोशिश में लगी थी कि किसी तरह टीवी को देश के कोने-कोने तक पहुंचाया जाए. लेकिन दुर्गम क्षेत्रों तक निर्बाध प्रसारण के लिए जरूरी था कि भारत के पास अपना संचार उपग्रह हो. प्रसिद्ध अंतरिक्ष विज्ञानी डॉ विक्रम साराभाई अपने साथियों के साथ इस कोशिश में लगे थे कि किसी तरह स्वदेशी संचार उपग्रह तैयार किया जाए लेकिन अपर्याप्त मानव व तकनीकी संसाधनों की वजह से यह मुमकिन नहीं हो पा रहा था. बिना इसके टीवी के सकारात्मक प्रभावों का असर भी नहीं जांचा जा सकता था.

इसी समय अमेरिका की अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी, नासा अपने एक संचार उपग्रह एटीएस-6 से प्रसारण का परीक्षण करने की तैयारी में थी. एजेंसी के विशेषज्ञों का मानना था कि यह परीक्षण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अच्छे तरीके से हो सकता है. इधर भारत में विशेषज्ञों का एक समूह इस पूरे घटनाक्रम से वाकिफ था. उसने सरकार को सलाह दी कि नासा से भागीदारी  देश में टीवी क्रांति को एक नए दौर में पहुंचा सकती है. आखिरकार सरकार इसके लिए तैयार हुई और डॉ साराभाई के नेतृत्व में इस परीक्षण के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र व नासा के बीच एक करार हो गया. इसके तहत भारत में जो प्रायोगिक टीवी प्रसारण होना था उसे ही ‘साइट’ यानी सेटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपरिमेंट  नाम दिया गया. यह अपनी तरह का दुनिया का सबसे बड़ा प्रयोग होने जा रहा था.

‘साइट’ एक अगस्त, 1975 से 31 जुलाई, 1976 तक चला. इसके तहत छह राज्यों के तकरीबन 2,500 गांवों को चुना गया था. इनमें परीक्षण के पहले विशेष प्रकार की डिश एंटेना व टीवी सेट की व्यवस्था की गई थी. इस प्रयोग के लिए जमीनी स्तर पर सभी काम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) की देखरेख में किए गए. ‘साइट’ के बारे में कहा जाता है इसके माध्यम से उस समय लाखों लोगों ने पहली बार टीवी पर कार्यक्रम देखे थे. तब ये कार्यक्रम ऑल इंडिया रेडियो  के प्रोडक्शन विभाग ने तैयार किए थे. ‘साइट’ परियोजना समाप्त होने के बाद जब सरकार ने इसका आकलन करवाया तो पता चला इन क्षेत्रों में ग्रामीण आबादी पर कार्यक्रमों का व्यापक सकारात्मक असर पड़ा है.

दूसरा जो सबसे महत्वपूर्ण फायदा भारत को मिला वह यह था कि हमारे वैज्ञानिक व इंजीनियर संचार उपग्रह की कार्यप्रणाली से इस हद तक परिचित हो गए कि अब वे स्वदेशी उपग्रह बना सकते थे. अंतत: यह भारतीय वैज्ञानिकों ने 1982 में इनसेट-1ए अंतरिक्ष में पहुंचाकर यह कर के भी दिखाया.