टूट न जाए किसानों के सब्र का बाँध

योगेश

वर्ष 2020 में तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ शुरू हुए किसान आन्दोलन का केंद्र अब खनोरी बॉर्डर है। केंद्र सरकार ने 2021 में किसान आन्दोलन को स्थगित कराकर एक बाज़ी किसानों को तोड़ने की चली थी, जिसके बाद किसान एकजुट होकर दोबारा पहले जैसा आन्दोलन नहीं कर सके। जब दोबारा पंजाब और हरियाणा के किसान सिंघु बॉर्डर एवं खनोरी बॉर्डर पर दिल्ली कूच के लिए जुटे, तो हरियाणा की भाजपा सरकार ने उन्हें बल प्रयोग करके रोक दिया। इस बला प्रयोग में कई किसानों की मौत हो गयी और बड़ी संख्या में किसान घायल हुए थे। बीच में किसान आन्दोलन की ख़बरों को दबाया गया और किसानों को लगातार पुलिस तथा सेना के जवानों के द्वारा रोका गया। केंद्र सरकार द्वारा किसानों की मदद की ख़बरें चलायी गयीं। इस बीच आन्दोलन को मज़बूत करने और किसानों को न्याय दिलाने के लिए भारतीय किसान यूनियन (एकता सिद्धूपुर – ग़ैर राजनीतिक) के किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल 26 नवंबर से अनशन पर बैठ गये।

अब किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल इतने कमज़ोर हो चुके हैं कि देश के किसानों का दर्द समझने वाले लोगों का ध्यान उनकी तरफ़ है। अब खनोरी बॉर्डर किसान आन्दोलन का केंद्र बन चुका है। कहा जा रहा है कि अगर किसान नेता डल्लेवाल को कुछ हुआ, तो देश भर में केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ किसान मज़दूर आन्दोलन हो सकता है। याद होगा कि तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ क़रीब एक साल से ज़्यादा चले किसान किसान आन्दोलन में सरकारी कार्रवाई के चलते 750 से ज़्यादा किसान मारे गये थे। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों के ऊपर कार बढ़ाकर कई की जान ले ली गयी थी। इस हत्याकांड में भाजपा के एक पूर्व सांसद का बेटा शामिल था। दिसंबर, 2021 में किसानों के आन्दोलन स्थगित करने के बाद जब उनकी माँगें पूरी नहीं की गयीं, तो पंजाब के किसानों ने फिर से आन्दोलन शुरू किया। उनके साथ देने के लिए बीच-बीच में हरियाणा, राजस्थान और पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ किसान भी जाते रहे। लेकिन हरियाणा सरकार ने जो बॉर्डर पहले किसान आन्दोलन के दौरान तगड़े तरीक़े से सील किये थे उन्हें आन्दोलन स्थगित होने के बाद भी पूरी तरह नहीं खोला था। पंजाब के किसानों ने जब दोबारा आन्दोलन करना शुरू किया, तब हरियाणा सरकार ने फिर से बॉर्डर सील कर दिये। फरवरी, 2024 में पंजाब के किसान जब हरियाणा से होते हुए दिल्ली जाना चाहते थे, तो उन पर लाठीचार्ज, आँसू गैस, पानी को बोछार और छर्रे वाली गोलियों से हमला किया गया। कई ख़तरनाक हथियारों का इस्तेमाल भी पुलिस द्वारा करने के आरोप लगे। इस संघर्ष के बाद हरियाणा के किसान भी सड़कों पर उतरे जिनका विरोध कुचलने के लिए उनके ख़िलाफ़ एफआईआर की गयीं, गिरफ़्तारियाँ की गयीं और कई कड़े नियम धारा-144 लगाकर लागू किये गये। पुलिस के हमले में कई किसानों की मौत हुई। आन्दोलन फिर ठंडा कर दिया गया।

हरियाणा सरकार इसका श्रेय ले सकती है कि उसने किसान आन्दोलन को कमज़ोर कर दिया; लेकिन यह किसान आन्दोलन अब किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के अनशन के बाद अंदर ज्वालामुखी की तरह दबा महसूस कर रहा है, जो कभी भी फट सकता है। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को पहले ही प्रोटेस्ट कैंसर है। उनके गिरते स्वास्थ्य की कोई चिन्ता भले ही केंद्र सरकार को बिलकुल न है; लेकिन देश के किसानों को है। सुप्रीम कोर्ट ने भी पिछले साल उनकी स्वास्थ्य रिपोर्ट माँगी थी और पंजाब सरकार से उन्हें स्वस्थ रखने के लिए निर्देश दिये थे। 02 जनवरी, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने फिर से इस मामले पर सुनवाई करनी थी; लेकिन सुनवाई टल गयी। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल का कहना है कि किसानों को आन्दोलन ख़त्म करने के लिए मनाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने उम्मीद जतायी थी कि किसान सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गयी कमेटी से बात करें, तो शायद कोई रास्ता निकल आये; लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

हरियाणा के ऊर्जा, परिवहन और श्रम मंत्री अनिल विज आरोप लगा रहे हैं कि आम आदमी पार्टी और पंजाब की सरकार किसी अनहोनी का इंतज़ार कर रही है। अनिल विज का अनहोनी से मतलब किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल से है। उनका आरोप है कि आम आदमी पार्टी का कोई नेता और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने आन्दोलन कर रहे किसानों के पास जाकर उनका हाल तक नहीं पूछा है। यहाँ अनिल विज से सवाल यह है कि हरियाणा सरकार की किसानों के ख़िलाफ़ कार्रवाई पर उनका क्या कहना है? हरियाणा सरकार ने भी किसानों का हाल कब लिया? किसानों की सारी माँगें पूरी करने के लिए केंद्र सरकार ही उत्तरदायी है और केंद्र में भाजपा है।

अगर केंद्र सरकार के हिसाब से किसानों की माँगें जायज़ नहीं हैं, तो उसे कमेटी की रिपोर्ट आने का बहाना न बनाकर किसानों की माँगों को या तो सीधे ख़ारिज कर देना चाहिए या माँगे मान लेनी चाहिए। किसानों के साथ लुकाछिपी का खेल केंद्र सरकार ही तो खेल रही है। कई किसानों से बात करने पर उन्होंने सारे आरोप केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के सिर मढ़े।

किसानों का कहना है कि किसानों के साथ धोखा किया जा रहा है, जो केंद्र सरकार ही कर रही है। कुछ किसान तो यहाँ तक कह रहे हैं कि अगर उनके किसान नेता को कुछ हुआ, तो पूरे देश में 2020 से भी बड़ा आन्दोलन होगा। इस बीच खनोरी बॉर्डर पर आमरण अनशन करने वाले किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल से मिलने पहुँची सुप्रीम कोर्ट की हाई पॉवर कमेटी से उन्होंने साफ़ कहा है कि उनके लिए किसानी पहली प्राथमिकता है, स्वास्थ बाद में है। उन्होंने यह भी कहा है कि किसानों की माँगों से सुप्रीम कोर्ट भी किनारा कर रहा है। अगर केंद्र सरकार किसानों की माँगें मान लेगी, तो वह तुरंत अपना अनशन समाप्त कर देंगे और उन्हें किसी इलाज की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल से बातचीत के बाद जज नवाब सिंह ने कहा कि कमेटी के सदस्यों ने जगजीत सिंह डल्लेवाल को 10वें पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाशोत्सव पर बधाई दी और उनसे निवेदन किया कि मेडिकल ट्रीटमेंट लेना शुरू कर दें। इस पर किसान नेता ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट को उनके स्वास्थ का इतना ख़याल है, तो वह केंद्र सरकार को आदेश दे कि वह किसानों की माँगें तुरंत माने; लेकिन सुप्रीम कोर्ट किसानों की बात करने को तैयार नहीं है। पंजाब के एडवोकेट जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा भी है कि उसे किसानों की माँगों को लेकर केंद्र सरकार से तुरंत बात करनी चाहिए। बातचीत के बाद सुप्रीम कोर्ट की हाई पॉवर कमेटी किसान नेता डल्लेवाल से यह कहकर वापस लौट गयी कि आप जब भी बुलाओ, हम आएँगे।

खनौरी बॉर्डर पर अनशन कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का स्वास्थ लगातार गिरता जा रहा है। उनके बयान लेने वालों का कहना है कि उनकी आवाज़ बहुत धीमी और कमज़ोर हो चुकी है। उनके गंभीर स्वास्थ को लेकर उनकी देखरेख कर रहे डॉक्टर चिन्तित हैं और किसान घबराये हुए हैं। खनोरी बॉर्डर पर उपस्थित एक किसान ने बताया कि उनकी 24 घंटे निगरानी की जा रही है, जिससे किसी आकस्मिक समय पर उन्हें स्वास्थ लाभ दिया जा सके। इस धरने में हरियाणा के कई किसान नेता भी पहुँच रहे हैं। पंजाब के बहुत-से किसान परिवार में किसानों के लिए जान दाँव पर लगाने वाले अपने नेता डल्लेवाल के ठीक रहने के लिए अरदास कर रहे हैं। हरियाणा सरकार अब भी अपने राज्य के किसानों पर किसान आन्दोलन से दूरी बनाये रखने के लिए हथकंडे अपना रही है। पंजाब सरकार आन्दोलन को लेकर चुप है। पहले किसान आन्दोलन के दौरान सुप्रीम कोर्ट के दबाव के बाद केंद्र सरकार ने तीनों कृषि क़ानून वापस तो ले लिये; लेकिन किसानों को न्याय अभी तक नहीं मिला है। स्वामीनाथन आयोग के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलने और कृषि लागत बढ़ने से किसानों पर लगातार क़ज़र् बढ़ रहा है। हर साल लाखों किसान इसी के चलते आत्महत्या कर रहे हैं। केंद्र सरकार के पदचिह्नों पर चलते हुए हरियाणा सरकार भी अपने राज्य के किसानों के लिए योजनाओं की घोषणा कर रही है। केंद्र सरकार की फ़सलों के नुक़सान पर बीमा कम्पनियों को पूरी भरपाई की योजना को भुनाने से लेकर किसानों को डीएपी की बिना क़ीमतें बढ़ाये उपलब्ध कराने का किसानों को तो दिलासा देकर किसान आन्दोलन को थोड़ा-बहुत समर्थन करने वाले किसानों को भी चुप करा दिया है। एक चर्चा यह छेड़ दी है कि केंद्र सरकार टैक्स न भरने वाले साढ़े नौ करोड़ किसानों को दी जाने वाली 500 रुपये महीने की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि बढ़ाकर 1,000 रुपये महीना करने की सोच रही है। केंद्र सरकार बड़ी होशियारी से इस राशि को 500 रुपये महीने न बताकर हमेशा 6,000 रुपये की मुफ़्त सहायता राशि बताती है। केंद्र सरकार की इन होशियारियाँ का नतीजा ये हुआ है कि भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) और कई दूसरे किसान संगठन अब किसान आन्दोलन से दूर दिख रहे हैं।

किसानों ता समर्थन सोनम वांगचुक और लद्दाख़ के लोग कर रहे हैं। वहीं मध्य प्रदेश के बालाघाट ज़िले में नक्सली किसानों के समर्थन में उतरे हैं। उनके लाल रंगों के बैनरों और पोस्टरों पर किसानों के समर्थन वाली बातें लिखी हैं। हालाँकि किसानों ने नक्सलियों के समर्थन को लेकर कुछ नहीं कहा है। क्योंकि किसान किसी बदनाम संगठन का साथ नहीं चाहते। बिना किसी का साथ लिये ही किसानों को बदनाम करने का काम केंद्र सरकार के समर्थकों ने जिस तरह किया है, उससे यह समझा जा सकता है कि अगर किसानों ने नक्सलियों का समर्थन लिया, तो सरकार किस तरीक़े से किसानों के ख़िलाफ़ इसे एक हथियार की तरह इस्तेमाल करेगी।