14 फरवरी को चंडीगढ़ में केंद्र सरकार और किसानों के बीच होगी बातचीत,- माँगें पूरी न होने पर फिर से देशव्यापी आन्दोलन कर सकते हैं किसान
योगेश
केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल और सुप्रीम कोर्ट की समिति के किसानों से मिलने के बाद किसान संगठन बैठक के लिए तैयार हो गये हैं। कुछ दिन पहले आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत डल्लेवाल से मिलने पहुँचे केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल के कहने पर किसानों ने तय किया है कि वे 14 फरवरी को शाम 5:00 बजे चंडीगढ़ के महात्मा गाँधी राज्य लोक प्रशासन संस्थान में केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल और सुप्रीम कोर्ट की समिति के साथ बैठक करेंगे। इस बैठक में किसानों की माँगों को मानने के लिए केंद्र सरकार तैयार होती है, तो किसान आन्दोलन ख़त्म कर देंगे। लेकिन ऐसा न होने पर सभी किसान देशव्यापी आन्दोलन करने और दिल्ली जाने की तारीख़ तय करेंगे। इस बैठक और आन्दोलन में भाग लेने के लिए 26 नवंबर से आमरण अनशन पर बैठे भारतीय किसान यूनियन (एकता सिद्धूपुर – ग़ैर राजनीतिक) के किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल डॉक्टरों की देखरेख को तैयार हो गये हैं। खनोरी बॉर्डर पर हरियाणा की सीमा में 121 किसान भी मरणव्रत की क़सम खाकर अनशन पर बैठे थे; लेकिन किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के आग्रह के इन किसानों ने मरणव्रत अनशन समाप्त कर दिया है।
कुछ दिन पहले केंद्र सरकार की तरफ़ से एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल से मिलने भी पहुँचा था और उससे पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समन्वय समिति के सदस्यों ने उनसे बातचीत की थी। केंद्रीय प्रतिनिधिमंडल ने किसान नेता से मिलने के बाद कहा कि उन्होंने डल्लेवाल जी की सेहत की जानकारी ली और किसानों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत भी की। इस प्रतिनिधिमंडल ने किसान नेता डल्लेवाल से अनशन तोड़ने का अनुरोध भी किया; लेकिन उन्होंने साफ़ कहा कि किसानों की माँगों को अगर केंद्र सरकार मान लेती है, तो वो अनशन तोड़ देंगे और आन्दोलन भी ख़त्म हो जाएगा। यही बात डल्लेवाल ने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बनायी समिति से कही थी।
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ध्यान रहे कि किसानों केंद्र सरकार से लगभग 13 माँगें कर रहे हैं, जिनमें सबसे पहली और महत्त्वपूर्ण माँग स्वामीनाथन आयोग द्वारा सुझाया गया फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को गारंटी क़ानून के साथ लागू करना। केंद्र सरकार किसानों की माँगों पर अपना वादा नहीं निभा रही है, जिसे लेकर पंजाब के किसानों ने 2023 में दोबारा आन्दोलन शुरू किया था। इस आन्दोलन को यूँ तो देश भर के किसानों का समर्थन है; लेकिन पंजाब के किसानों का सबसे ज़्यादा साथ हरियाणा के किसानों ने दिया है। राजस्थान और उत्तर प्रदेश के जागरूक किसान भी इस आन्दोलन के समर्थन में लगातार आवाज़ उठा रहे हैं। केंद्र सरकार किसानों की माँगों को अनदेखा करके तरह-तरह के प्रलोभनों से देश के किसानों को लुभा तो रही है; लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर चुप है। कुछ दिन पहले केंद्र सरकार ने ख़रीफ़ की फ़सलें कटने के दौरान रबी की प्रमुख छ: फ़सलों के मौज़ूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य में मामूली बढ़ोतरी करके यह प्रचार कर दिया कि उसने किसानों की फ़सलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया है। रबी की फ़सलें अभी तैयार भी नहीं हुई हैं और गेहूँ का बाज़ार भाव नये न्यूनतम समर्थन मूल्य से कहीं ज़्यादा हो गया है, जिससे उपभोक्ताओं की रोटी, तेल और दालें महँगी हो गयी हैं।
अब आन्दोलन पर बैठे किसानों ने तय किया है कि वे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल और दूसरे किसान संगठन के नेताओं के नेतृत्व में 14 फरवरी को केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक करेंगे, जिसमें किसानों के दिल्ली कूच करने की तारीख़ निर्धारित की जाएगी। इस बैठक में भाग लेने के लिए ही दो महीने से ज़्यादा समय से आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने चिकित्सा सहायता लेने पर अपनी सहमति दी है। लेकिन उन्होंने साफ़ कह दिया है कि जब तक केंद्र सरकार फ़सलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की क़ानूनी गारंटी नहीं दे देगी, तब तक वह आमरण अनशन अनिश्चितकाल के लिए जारी रखेंगे। किसानों और केंद्र सरकार के बीच यह बैठक एक साल से ज़्यादा समय बीतने पर होने जा रही है। केंद्र सरकार और किसानों के बीच इस बड़े हुए तनाव को ख़त्म करने के लिए बैठक करने में 1998 बैच के पुलिस के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी (एडीजीपी इंटेलिजेंस) जसकरण सिंह और 2008 बैच के पुलिस के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी (डीआईजी विजिलेंस ब्यूरो) नरिंदर भार्गव ने अहम भूमिका निभायी है। 2020 में तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ शुरू हुए किसान आन्दोलन में भी 12 दौर की बातचीत में नरिंदर भार्गव शामिल रहे थे। दोनों सेवानिवृत अधिकारी लंबे अरसे के बाद केंद्र सरकार और किसानों के बीच बैठक के इस सकारात्मक क़दम को दोनों सेवानिवृत अधिकारी एक सकारात्मक क़दम मान रहे हैं। वहीं किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार किसानों की समस्याओं और फ़सलों में उनके घाटे को ध्यान में न रखकर सिर्फ़ पूँजीपतियों को फ़ायदा पहुँचाने के बारे में ही सोचती है। ऐसा नहीं होता, तो किसानों को इतना परेशान नहीं किया जाता। फिर भी किसानों ने उम्मीद जतायी है कि 14 फरवरी को होने वाली संयुक्त बैठक में उनकी समस्याओं का हल केंद्र सरकार निकलेगी। ऐसा होता है, तो किसान आन्दोलन ख़त्म करके अपनी खेती-बाड़ी देखेंगे और चार साल से हो रहे नुक़सान के बाद चेन की साँस लेंगे।
सुप्रीम कोर्ट कमेटी के सदस्य और केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल की इस पहल को किसान देर से आये, पर दुरुस्त आये की नज़र से देख रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन (सिद्धपुर) के महासचिव काका सिंह कोटड़ा ने इस बातचीत की जानकारी देते हुए कहा है कि किसानों की माँगें अभी हल नहीं हुई हैं। केंद्र ने केवल माँगों पर बातचीत का प्रस्ताव रखा है, जिसके लिए किसान बातचीत को तैयार हैं। केंद्र सरकार की तरफ़ से बातचीत का प्रस्ताव मिलने के बाद किसानों ने 21 जनवरी के दिल्ली कूच के कार्यक्रम को रद्द कर दिया है। हालाँकि किसानों ने केंद्र सरकार से माँग की है कि 14 फरवरी को होने वाली बैठक को चंडीगढ़ की जगह दिल्ली में आयोजित किया जाए और बैठक दिन में ही कर ली जाए। किसानों ने यह माँग किसान नेता डल्लेवाल की सेहत को ध्यान में रखते हुए की है। किसानों ने दिल्ली में बैठक आयोजित करने की माँग करने के पीछे की वजह यह बतायी है कि यह देश भर के किसानों का मुद्दा है; सिर्फ़ पंजाब और हरियाणा का नहीं। संयुक्त किसान मोर्चा की एकता को लेकर भी प्रयास जारी हैं कि सभी संगठन इस बातचीत को सकारात्मक बनाएँ और ज़रूरत पड़ने पर 2020 के आन्दोलन की तरह ही फिर से आन्दोलन के लिए तैयार रहें। इसे लेकर 18 जनवरी और 24 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक भी हुई थी। हालाँकि किसान संगठनों में अभी तक आपसी एकता पर सहमति नहीं हो सकी है। लेकिन हरियाणा की विभिन्न ख़ास पंचायतों ने किसानों का साथ देने का फ़ैसला ले लिया है। सभी खाप पंचायतों ने आन्दोलन को एक सूत्र में बांधने के लिए किसानों के 26 जनवरी के ट्रैक्टर मार्च में हिस्सा भी लिया। खापों ने यह भी कहा है कि अगर किसानों की माँगे पूरी नहीं हुईं, तो 14 फरवरी के बाद पूरे देश में बड़ा आन्दोलन किया जाएगा। पहले भी किसान आन्दोलन में सभी 102 खाप पंचायतों ने किसानों का साथ दिया था।
इधर किसानों और केंद्र सरकार में बातचीत की तारीख़ तय होने के बीच राजस्थान के क़रीब 40 हज़ार से ज़्यादा गाँवों के किसानों ने आन्दोलन की तैयारी शुरू कर दी है। राजस्थान के किसानों का कहना है कि इस बार अगर किसान आन्दोलन की ज़रूरत पड़ी, तो पूरे राजस्थान के किसान आन्दोलन में भाग लेंगे। इसके लिए किसान नेता हर गाँव में जा-जाकर किसानों को जागरूक करके उन्हें एकजुट कर रहे हैं। जानकारी मिली है कि 40 में 26-27 ज़िलों के किसानों का समर्थन किसान नेताओं को मिल चुका है और अन्य ज़िलों में अभी किसान नेताओं का जाना बाक़ी है। इसके साथ ही राजस्थान में किसान 29 जनवरी को गाँव बंद आन्दोलन चलाएँगे। यह आन्दोलन 45,537 गाँवों में प्रभावी ढंग से किया जाएगा। वहीं हरियाणा में खाप नेताओं ने हरियाणा के किसानों को जागरूक करना शुरू कर दिया है। इससे हरियाणा सरकार इतनी डर गयी है कि वो किसानों को हाल ही में फ़सल बीमा की नयी योजना के फ़ायदे गिनाने का प्रयास कर रही है।
खनोरी बॉर्डर पर आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के द्वारा बैठक के लिए हामी भरने को लेकर जब कुछ किसानों से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि डल्लेवाल जी ने प्रतिनिधिमंडलों से बातचीत और डॉक्टरों की देख-रेख के लिए जो हामी भरी है, वह सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हुए ही राज़ी हुए हैं। लेकिन अगर किसानों की माँगों को पूरा नहीं किया गया, तो सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार को यह कहने का मौक़ा नहीं मिलेगा कि किसानों ने उनकी बात नहीं सुनी। किसान कह रहे हैं कि उनकी माँगें पूरी न होने की स्थिति में उनके पास देशव्यापी आन्दोलन करने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। किसानों ने कहा कि वे लंबे समय तक केंद्र सरकार की लापरवाही और किसानों की अनदेखी के चलते अपने किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल और दूसरे किसानों की बलि नहीं चढ़ा सकते। किसानों का कहना है कि एक तरफ़ केंद्र सरकार किसानों को उनकी फ़सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तक नहीं देना चाहती, दूसरी तरफ़ कम्पनियों को मनचाही एमआरपी पर खाने-पीने की चीज़ें बेचने की छूट दे रही है। इससे देश भर के उपभोक्ताओं की जेब पर भारी बोझ पड़ रहा है और खेती में किसानों का घाटा बढ़ता ही जा रहा है। किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य कोई अलग से बढ़ाकर नहीं माँग रहे हैं।