योगेश
हमारे देश के किसानों को अगर उनकी फ़सलों के बेचने पर नक़द पैसा मिलने लगे और उनके संग में ठगी न हो, वे इतने दु:खी नहीं रहेंगे, जितने दु:खी रहते हैं। इन दो कारणों से अभावों में जीवन काटने को मजबूर किसान अपनी और अपने परिवार की ज़रूरतों के लिए क़र्ज़ लेने को मजबूर होते हैं। क़र्ज़ मिलने पर वे ज़रूरतों का गला घोट देते हैं या घर में रखे अनाज, जानवर बेच देते हैं। अपने खेतों और ज़ेवर को गिरवी रख देते हैं या बेच ही देते हैं। किसानों को उनकी फ़सलों का सही भाव न मिलने से भी यह समस्या पैदा होती है। किसानों की समस्याओं को लेकर हमने जब गाँव के किसानों से बात की, तो उनके जवाबों में दु:ख और परेशानी साफ़-साफ़ दिखायी दी। रमेश नाम के एक ग़रीब किसान ने कहा कि खेती तो ज़्यादा है नहीं, तीन साल पहले बेटे की शादी में 50 हज़ार रुपये क़र्ज़ लिया था, बेटे के दहेज़ में मिले कुछ पैसे भी उधारी चुकाने में चले गये और अभी क़र्ज़ चढ़ा हुआ है। अब बहू को बच्चा होने वाला है और घर में पैसा नहीं है। बिना ब्याज के कोई पैसा देता नहीं है। बैंक भी क़र्ज़ नहीं देते। दीनदयाल नाम के एक दूसरे किसान ने कहा कि खेती में कोई फ़ायदा नहीं है, बस घर का गुज़ारा जैसे-तैसे चल जाता है।
सही बात तो यह है कि ज़्यादातर किसानों को अपनी समस्याओं को भी ठीक से रखना नहीं आता है, उनकी मुख्य समस्याएँ कई हैं। किसानों की सबसे पहली समस्या उनकी फ़सलों का सही भाव नहीं मिलना है, जो कि अभी भी ए2 प्लस एफएल, सी2 फार्मूले के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में मिल रहा है, जिसमें ए2 के तहत खादों और कीटनाशकों और मज़दूरी की लागत, एफएल श्रम है और सी2 के तहत भूमि का किराया और अन्य निश्चित लागत है। लेकिन किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिश के आधार पर सी2 प्लस 50 प्रतिशत के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए। इसके साथ ही किसानों की ज़्यादातर फ़सलें उधारी में जाती हैं, जिनका समय पर भुगतान नहीं मिल पाता। उधारी के अलावा किसानों के साथ फ़सलों की तौल में, चुंगी में और फ़सलों के सही मूल्यांकन में ठगी होती है। किसानों से होने वाली ठगी के कई स्तर हैं, जिसके दो रूप हैं। एक में किसान जब कुछ ख़रीदते हैं, तो ठगे जाते हैं और दूसरे रूप में जब किसान अपनी फ़सलों को बेचते हैं, कई स्तरों पर ठगे जाते हैं। इसके अलावा किसानों की फ़सलों को जब सहकारी, निजी और सरकारी संस्थाएँ उधार लेती है, तो किसानों को उनके पैसे पर ब्याज नहीं मिलता है; लेकिन जब किसान क़र्ज़ या कोई चीज़ उधार लेते हैं, तो उन्हें ब्याज देना पड़ता है। खादों, बीजों और कीटनाशकों को उधार लेने पर ये सब उन्हें नक़ली और महँगे ख़रीदने पड़ते हैं।
किसानों की फ़सलें अक्सर उधार बिकती हैं, जिसके चलते छोटे और सीमांत किसानों को तत्काल नक़दी की ज़रूरत होने के चलते वे अपनी फ़सलों को स्थानीय व्यापारियों को सस्ते में बेच देते हैं, नहीं तो क़र्ज़ लेते हैं। इस एक वजह से हमारे देश के किसानों को हर साल करोड़ों रुपये का नुक़सान उठाना पड़ता है। कई बार व्यापारी किसानों की फ़सलें उधार लेकर फ़रार हो जाते हैं। हमारे देश के ज़्यादातर किसान पिछला क़र्ज़ चुकाने के लिए अपनी फ़सलों को नक़द बेचना चाहते हैं, जिसके चलते उन्हें हर फ़सल में 15 प्रतिशत तक का नुक़सान उठाना पड़ता है।
अगर कुल नुक़सान की बात करें, तो किसान को अपनी फ़सल की कम क़ीमत पर बेचने और महँगे बीज, खाद, कीटनाशक ख़रीदने के अलावा अपनी फ़सलों पर मज़दूरी, बुवाई, ढुलाई, जुताई, कटाई, निराई-गुड़ाई और आढ़त देने के चलते उन्हें कुल 40 प्रतिशत तक का नुक़सान हर फ़सल पर उठाना पड़ता है। क़र्ज़ का ब्याज लगाकर किसानों का ये नुक़सान और बढ़ जाता है। सरकार की कई व्यवस्थाएँ किसानों को अपनी फ़सलों को स्वतंत्र रूप से महँगे भाव में बेचने और अपनी फ़सलों की मनचाही क़ीमत तय करने से रोकती हैं, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति नहीं सुधर पाती है। अब केंद्र सरकार किसानों के किसान क्रेडिट कार्ड देकर भी अल्पकालीन क़र्ज़ देने का काम कर रही है, जिसके समय पर न चुकाने पर किसानों को 30 प्रतिशत से ज़्यादा तक का ब्याज देना पड़ेगा। किसानों के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ भी उन्हें बिना दलालों के नहीं मिल पाता, जो कि किसानों के लाभ में से बड़ी रक़म रिश्वत के रूप में ले लेते हैं। कम पढ़े-लिखे किसान मजबूरी में दलालों के माध्यम से अपने काम कराने को मजबूर होते हैं, क्योंकि ज़्यादातर बैंक कर्मचारी, कृषि सम्बन्धी कर्मचारी उनकी फाइलों को सीधे तरीक़े से आगे नहीं बढ़ाते।
ऐसा न होने की वजह से ही किसान व्यापारियों और आढ़तियों को अपनी फ़सलें बेचते हैं, जिसमें उनके साथ ठगी होती है। अभी हाल ही में मध्य प्रदेश के ग्वालियर ज़िले में कई व्यापारी किसानों से धान लाखों रुपये के धान उधारी में ख़रीदकर फ़रार हो गये। ठगे गये किसानों ने इन व्यापारियों की शिकायत थाने में दर्ज करायी है। बिहार के शेख़पुरा ज़िले में भी रविंद्र साहू नाम का एक व्यापारी भी 15 दिन में पैसा देने का वादा करके कुछ किसानों से लगभग 50 लाख रुपये के धान ख़रीद फ़रार हो गया। उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर ज़िले में गुड़ बनाने वाले कुछ कोल्हू संचालक किसानों से उधार गन्ना लेकर गुड़ बनाकर उसे लेकर फ़रार हो गये। स्थानीय किसानों का कहना है कि सैकड़ों गन्ना किसान इस ठगी का शिकार हुए हैं, जिनका करोड़ों रुपया मारा गया है। मध्य प्रदेश के सनावद में भी कई किसानों से स्थानीय मंडी में एक व्यापारी 5 करोड़ रुपये की फ़सलें उधार लेकर फ़रार हो गया।