-घुसपैठियों को भारत के पहचान-पत्र बनवाकर देने वाले गिरोह का पर्दाफ़ाश !
इंट्रो-भारत में अवैध रूप से बांग्लादेशियों को घुसाने और उनके भारत के फ़र्ज़ी दस्तावेज़ तैयार करने के आरोप कई दशक से लगते रहे हैं। मीडिया में इस तरह की ख़बरें भी कई बार सामने आ चुकी हैं। ‘तहलका’ ने इस बार भारत में सुगमता से रहने के लिए आने वाले या आने के इच्छुक बांग्लादेशियों के फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनवाने वाले एक गिरोह का पर्दाफ़ाश किया है। इस मामले में ‘तहलका’ ने ख़ुलासा किया गया है कि कैसे सुरक्षा प्रणाली में सेंध लगाकर धोखाधड़ी से इस गिरोह में शामिल जालसाज़ बांग्लादेशियों के फ़र्ज़ी पासपोर्ट, फ़र्ज़ी आधार कार्ड, फ़र्ज़ी पैन कार्ड, फ़र्ज़ी वोटर आईडी कार्ड और शिक्षा के दस्तावेज़ तैयार करवाकर उन्हें मुहैया कराते हैं, जिससे बांग्लादेशी घुसपैठिये आसानी से भारत में आकर रहने लगते हैं। पढ़िए, तहलका एसआईटी की ख़ास रिपोर्ट :-
दिसंबर, 2024 में नई दिल्ली के इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय (आईजीआई) हवाई अड्डे पर एक पुलिस टीम ने एक बांग्लादेशी नागरिक के लिए फ़र्ज़ी भारतीय दस्तावेज़ बनाने में शामिल एक दलाल को गिरफ़्तार किया था। आईजीआई एयरपोर्ट पुलिस को इस घोटाले के बारे में तब पता चला, जब एक यात्री को इमिग्रेशन जाँच के दौरान हिरासत में लिया गया। आरोपी की पहचान शमोल शेन उर्फ़ सैमुअल (26) पुत्र उत्तम शेन के रूप में हुई है, जो हाबड़ा, अशोक नगर, पश्चिम बंगाल का निवासी है।
नवंबर, 2024 में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के एक पूर्व कार्यकर्ता को फ़र्ज़ी पहचान-दस्तावेज़ का उपयोग करके भारत में रहने के आरोप में कोलकाता में गिरफ़्तार किया गया था। बांग्लादेशी नागरिक की पहचान सलीम मतबर के रूप में हुई है, जिसे पार्क स्ट्रीट क्षेत्र में एक होटल में मध्य रात्रि में पुलिस की छापेमारी के दौरान गिरफ़्तार किया गया। पुलिस सूत्रों के अनुसार, बांग्लादेश के मदारीपुर का निवासी सलीम पिछले दो साल से फ़र्ज़ी पासपोर्ट और जाली आधार कार्ड के ज़रिये भारत में रह रहा था।
अक्टूबर, 2024 में मुंबई की सहार पुलिस ने अंतरराष्ट्रीय यात्रा के लिए जाली भारतीय पासपोर्ट का इस्तेमाल करने के आरोप में दो बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ़्तार किया। इनमें से एक ने फ़र्ज़ी पासपोर्ट का उपयोग कर यूक्रेन की यात्रा की थी, जबकि दूसरा व्यक्ति मॉरीशस जाने से पहले तीन दशक तक अवैध रूप से भारत में रहा था, जहाँ उसे निर्वासित कर दिया गया था। अप्रैल, 2024 में ग्रेटर चेन्नई सिटी पुलिस की पासपोर्ट जाँच शाखा ने चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर फ़र्ज़ी भारतीय पासपोर्ट दिखाने के आरोप में छ: बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ़्तार किया। इन सभी ने वर्षों से प्राप्त आधार कार्ड का उपयोग करके धोखाधड़ी से ये पासपोर्ट हासिल किये थे। इन जाली दस्तावेज़ के साथ वे काम के लिए दुबई, क़ुवैत और मलेशिया भी गये थे।
हालाँकि बांग्लादेशी नागरिकों से जुड़े ऐसे फ़र्ज़ी पासपोर्ट मामले अक्सर अखिल भारतीय मीडिया में सामने आते रहते हैं; लेकिन जो बात असामान्य है, वह है- इन दलालों की अपने अपराधों की स्वीकारोक्ति। यह स्वीकारोक्ति, विशेषकर फ़र्ज़ी पासपोर्ट और अन्य जाली भारतीय पहचान दस्तावेज़ बनाने में लगे अपराधियों की ओर से दुर्लभ है। एक साहसिक खोजी प्रयास में ‘तहलका’ ने उन अपराधियों को बेनक़ाब करने का बीड़ा उठाया, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा पैदा करते हैं। ‘तहलका’ एसआईटी ने गुप्त कैमरे के सामने सफलतापूर्वक इकबालिया बयान दर्ज किये, जिससे इस अवैध व्यापार के अँधेरे पहलू पर प्रकाश पड़ा। इस जाँच प्रक्रिया के माध्यम से हमें पता चला कि फ़र्ज़ी दस्तावेज़ की गुप्त दुनिया इसके संचालकों के दुस्साहस भरे अवैध धंधे पर पनपती है। कोलकाता की सड़कों से लेकर दिल्ली के आलीशान होटलों तक ये दलाल अपनी पूरी पहचान गढ़ने की क्षमता का प्रदर्शन करते हैं।
‘मैं लंबे समय से फ़र्ज़ी पासपोर्ट और भारतीय पहचान के अन्य दस्तावेज़ बनाने के धंधे में लगा हूँ और मुझे कभी पुलिस ने नहीं पकड़ा। मेरे ख़िलाफ़ भारत में कहीं भी एक भी मामला दर्ज नहीं है।’ -यह बात कोलकाता के एक जालसाज़ राजीव सिंह (बदला हुआ नाम) ने फ़र्ज़ी ग्राहक बनकर उससे मिलने वाले ‘तहलका’ रिपोर्टर से कही।
‘मैं बांग्लादेशी नागरिकों को अवैध मार्गों से भारत लाता हूँ। एक बार जब वे आ जाते हैं, तो मैं उनके भारतीय पहचान वाले दस्तावेज़ की व्यवस्था करता हूँ, जिनमें आधार, पैन कार्ड, स्कूल और जन्म प्रमाण-पत्र, मतदाता पहचान-पत्र और अंतत: पासपोर्ट शामिल होते हैं।’ -उसने ‘तहलका’ रिपोर्टर को समझाने की कोशिश की।
‘अतीत में मैंने बांग्लादेश से अवैध अप्रवासियों को भारत में प्रवेश में मदद की है। लेकिन एक बार जब मैंने उन्हें फ़र्ज़ी भारतीय दस्तावेज़ उपलब्ध करा दिये, तो हमारा सम्बन्ध ख़त्म हो गया। हम एक-दूसरे को अब और नहीं जानते। अब तक मैंने अवैध तरीक़े से भारत में प्रवेश करने वाले तीन बांग्लादेशी नागरिकों के लिए सफलतापूर्वक फ़र्ज़ी भारतीय दस्तावेज़ बनवाये हैं।’ -राजीव ने तथ्यात्मक रूप से यह बात कही।
‘तहलका’ की पड़ताल कोलकाता के राजीव सिंह (बदला हुआ नाम) से शुरू हुई। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने स्वयं को एक ग्राहक के रूप में प्रस्तुत किया, जो अवैध तरीक़ों से भारत में प्रवेश करने वाले बांग्लादेशी नागरिकों के लिए भारतीय पहचान फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनाने वाले किसी व्यक्ति की तलाश कर रहा था। यह मुलाक़ात दिल्ली के एक पाँच सितारा होटल में हुई, जहाँ राजीव ने तुरंत नौकरी स्वीकार कर ली। उसने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि वह आधार और पैन कार्ड, स्कूल के प्रमाण-पत्र और जन्म प्रमाण-पत्र, मतदाता पहचान-पत्र और अंतत: पासपोर्ट का प्रबंध कर सकता है। और निश्चित रूप से यह सब एक निश्चित क़ीमत पर।
रिपोर्टर : डॉक्यूमेंट में क्या-क्या बन जाएगा?
राजीव : डॉक्यूमेंट में शुरू से बनाएँगे। पहले बनाएँगे पेन कार्ड, आधार कार्ड, स्कूल सर्टिफिकेट, हॉस्पिटल का बर्थ सर्टिफिकेट, वोटर कार्ड भी बन गया, …फिर बनेगा उसका पासपोर्ट।
रिपोर्टर : पासपोर्ट भी बन जाएगा?
राजीव : एक सप्ताह में उसका पासपोर्ट भी आ जाएगा। …सिर्फ़ पैसा फेंकना है बस।
अब ‘तहलका’ से बात करते हुए राजीव ने बांग्लादेशी प्रवासियों की तस्करी, फ़र्ज़ी भारतीय पहचान-पत्र बनवाने और क़ानूनी जाँच से पूरी तरह बचने के बारे में दावा किया। जालसाज़ी से अवैध आव्रजन और दस्तावेज़ सुविधाजनक बनाने में राजीव ने खुले तौर पर अपने तरीक़ों पर चर्चा की।
राजीव : भैया! आप क्या बोल रहे हैं? हमने सिर्फ़ आधार कार्ड से बांग्लादेश से बुलाकर कोलकाता के हॉस्पिटल में एडमिट (भर्ती) करवाया है। … वो आप टेंशन मत लो; …बंदा है। आप सिर्फ़ नंबर दे दो। हम दो-तीन दिन में अपने पास बुलाकर आपसे बात करवा देंगे।
रिपोर्टर : अच्छा; निकलवा देगा इल्लीगली?
राजीव : आराम से…।
रिपोर्टर : पकड़ा न जाए कोई?
राजीव : अरे, कुछ नहीं होगा भैया!
रिपोर्टर : तू तो नहीं पकड़ा गया कभी इन सब कामों में?
राजीव : नहीं, कभी नहीं।
रिपोर्टर : कोई केस नहीं है तेरे ऊपर?
राजीव : एक भी पुलिस केस दिखा दो, …मान जाएगा।
अब राजीव ने अपने कई अवैध कामों और उनमें अपनी गतिविधियों का ख़ुलासा करते हुए दावा किया कि वह एक समय में तीन-चार बांग्लादेशी नागरिकों के अवैध प्रवेश की सुविधा प्रदान कर सकता है। हालाँकि उसने यह भी कहा कि एक बार फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनवाने के बाद वह अवैध ग्राहकों से सभी सम्बन्ध तोड़ लेता है।
रिपोर्टर : कितने लोग निकलवा सकता है, एक बार में?
राजीव : एक बार में, …तीन-चार करके। …बस एक बार डॉक्यूमेंट बन गया, काम हो गया। उसके बाद कोई रिलेशन (सम्बन्ध) नहीं।
रिपोर्टर : कोई रिलेशन नहीं?
राजीव : हाँ।
इसके बाद राजीव ने अपने ऑपरेशन के वित्तीय पक्ष की रूपरेखा बतायी और प्रत्येक अवैध बांग्लादेशी अप्रवासी को कोलकाता लाने में मदद करने के लिए 10-15 हज़ार रुपये की माँग की।
रिपोर्टर : कितना पैसा?
राजीव : अब डिस्काउंट का जो बलेगा, सामने बिठाकर बात करेगा।
रिपोर्टर : निकालने का कितना पैसा?
राजीव : xxxxx का पकड़ लो 10-15 हज़ार एक बंदे का।
रिपोर्टर : और तू कितना लेगा?
राजीव : हमको 10-15 हज़ार दे कर रख दो।
रिपोर्टर : एक बंदे का? …बांग्लादेश से कोलकाता लाने का? …कोलकाता ही लाएगा ना?
राजीव : कोलकाता ही लाएगा।
रिपोर्टर : निकलवा चुका है ऐेसे लोगों को?
राजीव : हाँ; मगर काम हो जाने के बाद न हम आपको जानते हैं, न आप हमको जानता।
इसके बाद राजीव ने ख़ुलासा किया कि उसने पहले ही भारत में प्रवेश करने वाले तीन अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के लिए दस्तावेज़ बनाने में मदद की थी। उसने बताया कि एक बार पासपोर्ट प्राप्त हो जाने पर बाक़ी दस्तावेज़ आसानी से बन जाते हैं।
राजीव : हमने बनवा दिया तीन।
रिपोर्टर : क्या-क्या बनवा दिये?
राजीव : सारे डॉक्यूमेंट्स।
रिपोर्टर : पासपोर्ट भी।
राजीव : पासपोर्ट सबसे आगे निकालता; …पासपोर्ट निकल जाएगा, तो सब डॉक्यूमेंट्स निकल जाएगा।
राजीव ने पूरे विश्वास के साथ दावा किया कि पुलिस के साथ उसके मज़बूत सम्बन्धों के कारण बांग्लादेशी नागरिकों को अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने तथा उसके माध्यम से फ़र्ज़ी भारतीय दस्तावेज़ प्राप्त करने में कोई बाधा नहीं आती। उसने कहा कि जिन लोगों ने शीघ्र भुगतान किया, उन्हें उनके दस्तावेज़ शीघ्र प्राप्त हो गये। इससे साफ़ पता चलता है कि ये अवैध गतिविधियाँ कितनी आसानी से चल रही हैं।
राजीव : सब अपना आदमी है। डॉक्यूमेंट्स का पुलिस का कोई लफड़ा नहीं। …आराम से आएगा। रूम (कमरे) में रखेगा। जो जितना जल्दी पैसा छोड़ेगा, उतना जल्दी उसका डॉक्यूमेंट्स मिलेगा।
अब यह बात सामने आयी है कि फ़र्ज़ी पहचान दस्तावेज़ बनवाने की अवैध दुनिया में राजीव की संलिप्तता दूसरे भी क्षेत्रों तक ख़तरनाक तरीक़े से फैली हुई है। उसने गिरोह के एक सदस्य तौसीफ़ से परिचय कराया, जो बैंक खातों को हैक करने में माहिर है। उसके अनुसार, किसी के बैंक से पैसा उड़ाने के लिए कुछ प्रमुख ज़रूरी चीज़ें, जैसे- खाता संख्या, आईएफएससी कोड, एटीएम कार्ड और मोबाइल नंबर की ज़रूरत होती है। उसने बताया कि वे (वह और उसके साथी) कितनी आसानी से सिर्फ़ 5 मिनट में बैंक खातों से किसी के पैसे उड़ा सकते हैं।
रिपोर्टर : अच्छा; अगर मुझे अकाउंट हैक करवाना हो आपसे किसी अमीर आदमी का, उसके लिये मुझे क्या-क्या आपको देना पड़ेगा?
तौसीफ़ : अच्छा; किसा का करवाना है? …सिंपल है। पासबुक, एटीएम, सिम, आईएफएससी कोड।
रिपोर्टर : सिम कैसे दूँगा मैं? …उसकी सिम मैं कैसे दूँगा आपको?
तौसीफ़ : सिम तो मेन ही है।
रिपोर्टर : मोबाइल सिम?
तौसीफ़ : वो ही तो मेन है। …वो ही मेन है, जो खेल है ना! वो ही तो सिम का है।
राजीव : कितना पैसा होगा?
रिपोर्टर : करोड़।
राजीव : उसका अकाउंट नंबर, आईएफएससी कोड, उसके एटीएम का फोटो दे पाओगे?
रिपोर्टर : हाँ; मिल जाएगा।
राजीव : बस उसका नंबर हमको बता दीजिएगा, हम निकाल देंगे।
रिपोर्टर : कौन-सा नंबर?
राजीव : मोबाइल नंबर।
रिपोर्टर : मोबाइल नंबर से कैसे निकालोगे?
तौसीफ़ : ज़रूरी नहीं आप सिम ही दो; …आप उसका नंबर भी दोगे, तो भी हो जाएगा।
रिपोर्टर : मोबाइल नंबर से? …मान लीजिए मैं आपको उसका सिम दे दूँ; और कुछ न दे पाऊँ?
राजीव : ख़ाली सिम से नहीं, एटीएम, आईएफएससी कोड, …5 मिनट का काम है।
एक ख़ुलासा करने वाली बातचीत में तौसीफ़ और राजीव ने बताया कि अपने बैंक खाते को हैक करने के लिए उन्हें लक्ष्य के खाते के विवरण की आवश्यकता होती है; लेकिन उन्होंने यह भी दावा किया कि वे वन-टाइम पासवर्ड (ओटीपी) की आवश्यकता को भी दरकिनार कर देते हैं। दोनों ने बताया कि यह ऑपरेशन केवल पाँच मिनट में पूरा किया जा सकता है, तथा तकनीकी आवश्यकताओं के बावजूद उसने ‘तहलका’ रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि परिस्थितियाँ चाहे जो भी हों, वे लोग अकाउंट हैक करने का कोई-न-कोई तरीक़ा ढूँढ ही लेंगे। राजीव और तौसीफ़ ने दावा किया कि वे पहले ही काफ़ी बड़ी रक़म चुरा चुके हैं और बड़े गर्व से कहा कि पहले प्रयास में ही उन्हें एक खाते से 4-5 लाख रुपये तक मिल गये थे।
रिपोर्टर : कितनी देर का काम है?
राजीव : 5 मिनट; …पर आपको कोलकाता रहना पड़ेगा।
रिपोर्टर : मुझको कोलकाता रहना पड़ेगा! …क्यूँ?
राजीव : कोई यहाँ नहीं करेगा।
रिपोर्टर : क्यूँ?
तौसीफ़ : कभी आप आओ ना कोलकाता।
रिपोर्टर : मुझे आना है।
तौसीफ़ : कब आओगे?
रिपोर्टर : जल्दी आऊँगा; लेकिन मैं ख़ाली मोबाइल नंबर दे दूँ और कुछ नहीं फिर? …फिर नहीं मिलेगा? … अच्छा; उसके पास ओटीपी जाएगा?
तौसीफ़ : हाँ।
रिपोर्टर : उसने नहीं दिया आपको, फिर?
तौसीफ़ : कोई नहीं, एटीएम मिल जाए, पासबुक, आईएफएससी मिल जाए। मोबाइल नंबर…।
रिपोर्टर : मतलब, उसने ओटीपी नहीं दिया आपको, फिर क्या करोगे?
तौसीफ़ : उसका इलाज भी है हमारे पास।
रिपोर्टर : बिना ओटीपी के कर दोगे? …बताओ?
तौसीफ़ : हाँ; भैया!
रिपोर्टर : मेरा कितना परसेंट होगा?
तौसीफ़ : 10 परसेंट।
रिपोर्टर : एक बार में कितना हैक कर लोगे? …कितना पैसा निकाल लोगे?
तौसीफ़ : अभी तक जबसे मैं ज्वाइन हुआ हूँ। तबसे हमने एक बार में 4-5 लाख किया है।
रिपोर्टर : 4-5 लाख?
इसके बाद तौसीफ़ ने पूरे विश्वास के साथ दावा किया कि कोलकाता में किसी अज्ञात स्थान से सक्रिय उसके गिरोह के पाँच सदस्यों में से किसी को भी पिछले तीन वर्षों में कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया। उसने बताया कि यह समूह एक अलग क्षेत्र में रहता है, जहाँ केवल राजीव को ही जाने की अनुमति है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी आपराधिक गतिविधियाँ पकड़ में न आएँ। यह गुप्त जीवनशैली उनके अवैध कार्यों के इर्द-गिर्द सुरक्षा और गोपनीयता को प्रदर्शित करती है।
रिपोर्टर : अच्छा; कभी पकड़े तो नहीं गये?
तौसीफ़ : नहीं।
रिपोर्टर : पक्का। …आपका पाँच लोगों का ग्रुप है ना?
तौसीफ़ : कोई नहीं पकड़ा गया। तीन साल में कोई नहीं पकड़ा गया। …नहीं, हम ऐसी जगह में रहते नहीं कि पकड़े जाएँ।
रिपोर्टर : कोलकाता में ही तो रहते हो?
तौसीफ़ : कोलकाता में बेशक रहते हैं, मगर किसी को पता नहीं कहाँ। ..किसी के यहाँ आना-जाना नहीं। राजीव भाई आते हैं। और कोई नहीं आ सकता।
अब तौसीफ़ ने ‘तहलका’ को अपने गिरोह के अंदरूनी कामकाज का ख़ुलासा किया है, जो कोलकाता में एक किराये के फ्लैट के इर्द-गिर्द केंद्रित है। फ्लैट मालिक उनकी गतिविधियों से अनजान है और कहीं दूसरी जगह रहता है, जबकि गिरोह फ्लैट का उपयोग केवल अपनी अवैध गतिविधियों के लिए अस्थायी आधार के रूप में करता है। किसी को संदेह न हो, इसके लिए केवल इस ग्रुप के हैकर ही ऑपरेशन के लिए ही फ्लैट में आते-जाते हैं।
तौसीफ़ : फ्लैट ले रखा है।
रिपोर्टर : किराये पर? …मकान मालिक को नहीं पता आप क्या कर रहे हो? वो कहाँ रहता है?
तौसीफ़ : उसका घर कहीं और है।
रिपोर्टर : 24 आवर (घंटे) आप वहीं रहते हो?
तौसीफ़ : जब काम होता, तभी रहते; …जब काम होता है, तभी आते हैं।
तौसीफ़ ने ख़ुलासा किया कि उसके गिरोह के बैंक खाते हैक होने के पीड़ितों ने पुलिस में शिकायत दर्ज करायी होगी; लेकिन अधिकारियों के पास उनका पता लगाने का कोई मौक़ा नहीं है।
रिपोर्टर : तो जिन लोगों का पैसा उड़ता है, वो पुलिस में कंप्लेंट (शिकायत) नहीं करते?
तौसीफ़ : करते होंगे, मगर पुलिस को कुछ नहीं मिलता। आईडी थोड़ी न मिल जाएगी वहाँ।
रिपोर्टर : तो आज तक जिनका पैसा निकाला, कुछ नहीं हुआ?
तौसीफ़ : कुछ नहीं हुआ।
अब तौसीफ़ ने अपने गिरोह के संचालन का एक महत्त्वपूर्ण विवरण उजागर किया कि वे (उसके गिरोह के लोग) पकड़े जाने से बचने के लिए लगातार सिम कार्ड बदलते रहते हैं। आगे बातचीत में उसने क़ानून और जाँच एजेंसियों से बचने के प्रयासों के बारे में बताया, ताकि ये लोग गिरफ़्तारी से बचे रह सकें।
रिपोर्टर : जिस सिम से आप कॉलिंग करते हो, ये सिम बदलते रहते हो?
तौसीफ़ : बदलना ही पड़ती है भाई साहब!
रिपोर्टर : एक ही सिम से तो कॉल करोगे नहीं, …वर्ना पकड़े जाओगे?
तौसीफ़ : इतने तो आप भी समझदार हो।
तौसीफ़ और राजीव ने ‘तहलका’ को बताया कि किस तरह उनका गिरोह कोलकाता में मोबाइल विक्रेताओं के साथ साँठगाँठ करके धोखाधड़ी से सिम कार्ड हासिल करता है। ये लोग बिना उचित सत्यापन के सिम विक्रेताओं से सिम कार्ड आसानी से ले लेते हैं, जो कि दूसरों की आईडी पर होते हैं और इन्हीं सिम कार्ड से अवैध गतिविधियाँ चलाते हैं।
रिपोर्टर : तो सिम तुम्हें कैसे मिलती है? …वो तो एड्रेस पर मिलती है?
तौसीफ़ : वो हमारे एमडी हैं ना! वो सब जुगाड़ कर लेते हैं।
रिपोर्टर : मोहम्मद इमरान?
तौसीफ़ : हाँ।
रिपोर्टर : मोबाइल भी हैक करते हो आप?
राजीव : जो मोबाइल का सिम निकलता है, वो ही अपना है।
रिपोर्टर : मतलब?
राजीव : जो मोबाइल का सिम देते हैं, वो भी अपना आदमी है।
तौसीफ़ : भाई! जब इतना बड़ा काम हो रहा है, तो सारी जगह सेटिंग तो होती ही है।
रिपोर्टर : जैसे आपने कोई सिम लिया हुआ है, आपकी आईडी वहाँ पर है, ठीक है। मैं गया वहाँ सिम लेने, मैंने दुकान वाले से कहा- किसी और की आईडी पर मुझे सिम दे दे; तो उसने आपकी आईडी पर मुझे सिम दे दिया…?
राजीव : आपका जान-पहचान होगा, तभी तो देगा।
रिपोर्टर : हाँ; मेरी जान-पहचान है। तो मैं कहूँगा, ये राजीव है, इसकी आईडी पर मुझे सिम दे दे।
राजीव : हाँ।
रिपोर्टर : यही कह रहे हो ना आप?
राजीव : हाँ। …आप एक सिम बोलोगे, आपको दो देगा।
रिपोर्टर : किस कम्पनी की?
राजीव : जिसकी बोलो, एयरटेल…।
रिपोर्टर : प्रीपेड होगा या पोस्टपेड?
राजीव : वो आपके ऊपर है। पहले जो चार्ज होगा, उस पर रिचार्ज होगा।
रिपोर्टर : तो कभी मुझे दिल्ली में सिम चाहिए, मिल जाएगी?
राजीव : आराम से।
इसके बाद तौसीफ़ ने बेशर्मी से ‘तहलका’ रिपोर्टर से आम ग़रीब लोगों के बैंक खातों का विवरण देने की पेशकश की, जिसका उद्देश्य चोरी के पैसे को ठिकाने लगाना था। इसके बदले में तौसीफ़ ने रिपोर्टर को 10 प्रतिशत कमीशन देने की बात कही।
रिपोर्टर : तो मैं कितने ग़रीब अकाउंट दे दूँ आपको?
तौसीफ़ : दे दो जितने…।
रिपोर्टर : मगर वो सब दिल्ली के होंगे?
तौसीफ़ : कोई बात नहीं।
रिपोर्टर : मेरा क्या होगा?
तौसीफ़ : एक अकाउंट का 10 परसेंट।
तौसीफ़ ने एक और ख़ुलासा करते हुए बताया कि उनके (उसके और उसके साथियों के) ऑपरेशन के लिए न केवल आम ग़रीब लोगों के बैंक खातों की ज़रूरत होती है, बल्कि उनके सिम कार्ड की भी ज़रूरत होती है। इससे गिरोह खाताधारक की गतिविधियों पर नज़र रखता कि कहीं चोरी की गयी धनराशि को वह न निकाल ले।
रिपोर्टर : ग़रीब का सिम का क्या करोगे?
तौसीफ़ : जैसे मैंने ग़रीब के अकाउंट में डाल दिये 50,000 रुपये। मैं क्या देख रहा हूँ एटीएम से निकल रहा है या क्या कर रहा है? चेक थोड़ी करने जा रहे, आप समझ रहे…? आप समझ रहे, आपने मेरे अकाउंट में डाल दिये एक लाख रुपये। आप देख तो नहीं रहे हो, मैं फोन से निकाल रहा हूँ या एटीएम से।
अब तौसीफ़ ने अपने गिरोह के भीतर कठोर भर्ती प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया तथा इस बात पर ज़ोर दिया कि उनकी दुनिया में विश्वास का बहुत महत्त्व है, जो हर किसी पर नहीं किया जाता। इसलिए गिरोह बड़ी सावधानी से काम करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसके साथ काम करने वाले केवल विश्वसनीय लोग हैं।
रिपोर्टर : तो तुम हर किसी को ऐसे रखते नहीं होगे?
तौसीफ़ : नहीं; वो तो राजीव भाई मिल गये हमें, अटैच हो गये।
रिपोर्टर : तो जाँच पड़ताल करते होगे, कोई जासूस न आ जाए?
तौसीफ़ : नहीं, नहीं; पूछ लो हम किसी को अंदर ही नहीं बुलाते। हम किसी पर भरोसा ही नहीं करते।
रिपोर्टर : तो आप पर कैसे भरोसा किया इमरान ने?
तौसीफ़ : कुछ लोग भरोसे के लायक होते हैं, तभी तो भरोसा करते हैं सब।
अब तौसीफ़ ने ख़ुलासा किया है कि हैकिंग व्यवसाय से उसकी अकेले की कमायी 2.5-3 लाख रुपये प्रति माह तक है, जो हैक किये गये खातों से 30 प्रतिशत कमीशन के रूप में उसे मिलती है। उसने इसमें अपने सहयोगी और ग्रुप के हेड मोहम्मद इमरान की ईमानदारी की भी तारीफ़ की और यह भी कहा कि वह इमरान के ख़िलाफ़ नहीं जा सकता।
रिपोर्टर : तो आपको कितना पैसा मिलता है इसमें?
तौसीफ़ : ये मिल जाता है 2.5-3 लाख।
रिपोर्टर : 2.5-3 लाख महीने के? …कितना परसेंटेज मिलता है आपको?
तौसीफ़ : 30 परसेंट।
रिपोर्टर : जो भी पैसा निकलेगा, उसका 30 परसेंट आपको? …इमरान ने कभी बेईमानी तो नहीं करी आपके साथ?
तौसीफ़ : बढ़िया है वो। मैं उसकी तारीफ़ करूँगा। कभी उसके ख़िलाफ़ नहीं।
बांग्लादेश के हिन्दू अल्पसंख्यकों पर हमलों के आरोपों के कारण भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ गया है। इन घटनाओं के कारण दोनों देशों में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए और यहाँ तक कि भारत में बांग्लादेशी वाणिज्य दूतावास पर हमला भी हुआ। तनावपूर्ण सम्बन्ध अनसुलझे मुद्दों की व्यापक अंतर्धारा को दर्शाते हैं, जो द्विपक्षीय सम्बन्धों के लिए चुनौती बने हुए हैं। भारत में बांग्लादेश से अवैध रूप से आये प्रवासियों का मुद्दा अत्यंत संवेदनशील एवं विवादास्पद विषय बना हुआ है। भारतीय मीडिया में बार-बार यह चर्चा होती रहती है कि किस प्रकार ये अप्रवासी अवैध तरीक़ों से देश में प्रवेश कर धोखाधड़ी से वैध भारतीय पहचान दस्तावेज़ हासिल करने में सफल हो जाते हैं।
‘तहलका’ की पड़ताल इस गहरी समस्या के सिर्फ़ एक पहलू पर प्रकाश डालती है और ऐसे दलालों का पर्दाफ़ाश करती है, जो न केवल अवैध प्रवेश की सुविधा प्रदान करता है, बल्कि फ़र्ज़ी भारतीय पासपोर्ट और अन्य फ़र्ज़ी पहचान दस्तावेज़ की ख़रीद भी सुनिश्चित करता है, जाँच से एक विशाल और जटिल नेटवर्क के अस्तित्व को रेखांकित किया गया है, जो दण्ड से मुक्त होकर काम कर रहा है।
यद्यपि यह पड़ताल कुछ ही अवैध कामों पर प्रकाश डालती है; लेकिन इससे साफ़ है कि ऐसी अवैध गतिविधियों का व्यापक दायरा अभी भी पूरी तरह उजागर होना बाक़ी है। इन मुद्दों के समाधान के लिए कठोर प्रवर्तन नियमों, सीमा पार के सहयोग तथा प्रणालीगत सुधारों सहित ठोस प्रयास की ज़रूरत है, जिससे ऐसी ख़ामियों को दूर किया जा सके, जो इस तरह के अभियानों को पनपने का मौक़ा देती हैं।