– फ़र्ज़ी गवाहों और फ़र्ज़ी बॉन्ड के दम पर ज़मानत ले रहे लोग
इंट्रो– भारतीय न्यायिक व्यवस्था क़ानूनी रूप से सुचारू होती है; लेकिन क़ानून साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर आगे बढ़ता है। लेकिन फ़र्ज़ी साक्ष्यों और फ़र्ज़ी गवाहों के चलते कई फ़ैसले ग़लत हो जाते हैं। भारत में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं, जहाँ अपराधी बेगुनाह साबित हो जाते हैं और बेगुनाहों को सज़ा हो जाती है। ऐसा इसलिए हो पाता है, क्योंकि पैसे के दम पर फ़र्ज़ी दस्तावेज़ और फ़र्ज़ी गवाह आसानी से मिल जाते हैं। ‘तहलका’ एसआईटी की पड़ताल से पता चला है कि किस तरह फ़र्ज़ी गारंटर और बिचौलिये क़ानूनी ख़ामियों और न्यायिक प्रक्रियाओं का फ़ायदा उठाकर ज़मानत प्रक्रिया को काले बाज़ार में बदल रहे हैं। पढ़िए, तहलका एसआईटी की यह विशेष रिपोर्ट :-
‘मुझे दो दिन का समय दो। दो दिन में मैं आपके आरोपियों की फ़र्ज़ी ज़मानत के लिए फ़र्ज़ी काग़ज़ात का इंतज़ाम कर दूँगा। एक बार जब वह बाहर आ जाता है, तो वह अदालत की तारीख़ों को छोड़ सकता है और जहाँ चाहे ग़ायब हो सकता है।’ -फ़र्ज़ी ज़मानत के लिए फ़र्ज़ी गारंटर का इंतज़ाम करने वाले दलाल मुनाज़िर ने ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर से कहा, जो उससे ग्राहक बनकर मिले थे।

‘एक बार जब हमने आपसे फ़र्ज़ी ज़मानत के लिए पैसे ले लिए, तो आपको और चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है। आपका काम हो जाएगा। और इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आरोपी ज़मानत मिलने के बाद भाग जाता है।’ -मुनाज़िर ने संवाददाता को आश्वस्त करते हुए कहा।
‘हम चार फ़र्ज़ी गारंटरों के लिए 30,000 रुपये लेंगे। इसमें से आपको आज 4,000 रुपये देने होंगे। यह गारंटर को टोकन मनी के रूप में दिया जाएगा। शेष 26,000 रुपये आप ज़मानत के दिन दे सकते हैं।’ -मुनाज़िर ने स्पष्ट किया।

‘अपने वकील से कहें कि वह न्यायालय में यह बात न फैलने दें कि ज़मानत देने वाले गारंटर फ़र्ज़ी हैं। हालाँकि मैं आपके मामले की ज़िम्मेदारी ख़ुद नहीं ले सकता। मेरा एक दोस्त है- मुनाज़िर, जो यह काम पूरा कर देगा। उसके पास इसके लिए सही लोग हैं।’ -मुनाज़िर के सहयोगी सूरज चंद ने बताया, जो ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर के साथ बैठक में उनके साथ था।
‘ज़मानती गारंटर बनना एक तेज़ी से बढ़ता व्यवसाय बन गया है। मैं कई मामलों में पैसे के बदले गारंटर के रूप में खड़ा हुआ हूँ। यह राशि हर मामले में अलग-अलग होती है। एक बार मैंने 30,000 रुपये लिये थे। कभी-कभी 5,000 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक लेता हूँ। राजस्थान में दरें बहुत अधिक हैं। वहाँ लोग प्रति ज़मानत 15,000 से 20,000 रुपये तक लेते हैं। झारखण्ड में लगभग 10,000 रुपये लेते हैं।’ -इरशाद अहमद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा।

ज़मानत से तात्पर्य किसी अपराध के लिए गिरफ़्तार किये गये व्यक्ति को या तो स्वयं की पहचान पर या बाद में अदालत में उपस्थित होने पर गारंटी के आधार पर, जो आमतौर पर मुचलका- रुपये देकर ली गयी प्रतिभूति न्यायालय में जमा करके या संपत्ति की गारंटी देने के बाद मिलती है। ज़मानत हिरासत से अस्थायी रिहाई है। यह दोषी या निर्दोष होने का निर्धारण नहीं है। यह एक वादा है, जो अक्सर धन के साथ दिया जाता है कि अभियुक्त न्यायालय की सभी निर्धारित सुनवाइयों में उपस्थित रहेगा। कई मामलों में अभियुक्त को एक ज़मानतदार पेश करना आवश्यक होता है; एक ऐसा व्यक्ति, जो यह सुनिश्चित करने के लिए गारंटर के रूप में कार्य करता है कि अभियुक्त ज़मानत की शर्तों का पालन करे। इसे ज़मानत बॉन्ड के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन कुछ मामलों में ये गारंटर फ़र्ज़ी निकल रहे हैं। आरोपी के अनुरोध पर ये दलाल न्यायालयों में फ़र्ज़ी दस्तावेज़ पेश करते हैं। रिहा होने के बाद आरोपी अक्सर फ़रार हो जाता है और भविष्य में अदालत की तारीख़ों पर कभी पेश नहीं होता। इसके बाद पुलिस को गारंटरों का पता लगाने में भी कठिनाई होती है; क्योंकि उनके दस्तावेज़ भी फ़र्ज़ी होते हैं।
हेरफेर करके रिहाई के इस तरीक़े को फ़र्ज़ी ज़मानत के रूप में जाना जाता है और यह भारत में एक बड़े घोटाले का रूप ले चुका है। फ़र्ज़ी ज़मानतें आमतौर पर 20,000 रुपये या उससे कम की ज़मानत राशि वाले मामलों में होती हैं, जहाँ गारंटर का पुलिस सत्यापन अनिवार्य नहीं होता है। इसके विपरीत, 20,000 रुपये से अधिक की ज़मानत के लिए गारंटर की साख का पुलिस सत्यापन आवश्यक होता है, जिससे ऐसे मामलों में फ़र्ज़ी ज़मानत प्राप्त करना कठिन हो जाता है। भारत में फ़र्ज़ी ज़मानत माफ़िया की व्यापक उपस्थिति को देखते हुए ‘तहलका’ ने एक लम्बे समय से लंबित पड़ताल करने का निर्णय लिया, जो पहले कभी नहीं की गयी है। ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर ने एक फ़र्ज़ी ग्राहक बनकर एक बिचौलिये के माध्यम से उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में कुछ ऐसी ज़मानत कराने वाले दलालों से संपर्क किया। एक ऑपरेटर के अनुसार, वह अमरोहा स्थित एक वकील के माध्यम से दो गारंटरों की व्यवस्था कर सका, जो नियमित रूप से न्यायालय से ज़मानत चाहने वालों को गारंटी देने के लिए इस कार्य करने वालों को न्यायालय में भेजता है।

यह बिचौलिया मुनाज़िर (जो अपने पहले नाम से जाना जाता है) और सूरज चंद को अमरोहा से उत्तर प्रदेश के ग़ज़रौला में एक रेस्तरां में ‘तहलका’ रिपोर्टर से मिलाने के लिए लाया। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने मुनाज़िर और सूरज को एक झूठा विवरण दिया कि मुरादाबाद ज़िले के एक गाँव से हमारे ड्राइवर को चोरी के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है, और उन्हें (रिपोर्टर को) उसकी रिहाई के लिए एक फ़र्ज़ी ज़मानतदार की ज़रूरत है। मुनाज़िर ने हमें विश्वास दिलाया कि वह फ़र्ज़ी दस्तावेज़ और फ़र्ज़ी गारंटर का इंतज़ाम कर सकता है; लेकिन इसके लिए उसे दो दिन का समय चाहिए। उसने यह भी गारंटी दी कि ज़मानत मिलने के बाद हमारा ड्राइवर ग़ायब हो सकता है और उसे भविष्य में अदालती सुनवाई में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने जो फ़र्ज़ी मामला प्रस्तुत किया था, उसमें 20,000 रुपये की काल्पनिक ज़मानत शामिल थी; जो ज़मानत क़ानूनी तौर पर गारंटर के पुलिस सत्यापन की आवश्यकता को दरकिनार करने के लिए पर्याप्त थी।
रिपोर्टर : हमें करवानी है फ़र्ज़ी ज़मानत।
मुनाज़िर : तो हमें दो दिन का टाइम दे दो।
रिपोर्टर : दो दिन में क्या करोगे?
मुनाज़िर : दो दिन में फ़र्ज़ी काग़ज़ दे दूँगा और हमारे यहाँ पर ज़मानत करवाके ड्राइवर कहीं भी भागे, कहीं भी जाए, …आओ, मत आओ।
रिपोर्टर : ड्राइवर कहीं भी ज़मानत करवाकर भाग जाए?
मुनाज़िर : कहीं भी रहो, आओ, न आओ; …ज़मानत हो जाएगी।
जब मुनाज़िर से ‘तहलका’ रिपोर्टर ने पूछा कि उसे ज़मानत के लिए दो दिन क्यों चाहिए? जबकि ज़मानत उसी दिन के लिए निर्धारित है; तो मुनाज़िर ने कहा कि उसे गारंटर की व्यवस्था करने के लिए समय चाहिए। उसने कहा कि ज़मानत के तौर पर वह फ़र्ज़ी गारंटरों की ज़मीन के फ़र्ज़ी दस्तावेज़ पेश करेंगे। उसने कहा कि जिस वकील के माध्यम से वे लोग हमसे (रिपोर्टर से) मिलने आये हैं। यदि उन्होंने (वकील) उन्हें पहले ही बता दिया होता कि यह एक फ़र्ज़ी ज़मानत का मामला है; तो वे उसी दिन फ़र्ज़ी गारंटर का इंतज़ाम कर देते। मुनाज़िर ने दावा किया कि सम्बन्धित वकील ने उन्हें पहले कभी सूचित नहीं किया, जिसके कारण देरी हुई।
रिपोर्टर : दो दिन क्यूँ माँग रहे हो, …ज़मानत तो आज है?
मुनाज़िर : अरे, ऐसे न होगा; …टाइम तो लगेगा।
रिपोर्टर : फ़र्ज़ी काग़ज़ में क्या लगाओगे आप?
मुनाज़िर : यही, …ज़मीन की मेरी।
रिपोर्टर : है आपके पास?
मुनाज़िर : मेरे पास नहीं है औरों के पास है। मुझे अगर बता देते आज सवेरे, मैं आज ही करवा देता।
रिपोर्टर : वकील साहब ने तो इसलिए भेजा है, इरशाद से तो 10 दिन से बात हो रही है मेरी।
मुनाज़िर : वकील साहब ने ये बात न बतायी मेरे से।
अब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने आगे बढ़ने से पहले अंतिम आश्वासन के लिए मुनाज़िर से पूछा कि क्या काम आसानी से और बिना किसी परेशानी के हो जाएगा? मुनाज़िर ने विश्वास के साथ वादा किया कि सब कुछ बिना किसी बाधा के पूरा हो जाएगा।
मुनाज़िर : काम पूरा होगा।
रिपोर्टर : पक्का, ज़िम्मेदारी ले लूँ?
मुनाज़िर : हाँ।
रिपोर्टर : मुझे एक चीज़ बता दो, …आपको मैं अच्छा लगा और मुझे आप; …एक बात बताओ, ईमानदारी से- काम हो जाएगा? कहीं अटकेगा तो नहीं?
मुनाज़िर : कहीं नहीं अटकेगा।
‘तहलका’ रिपोर्टर की आशंकाओं को दूर करने के लिए मुनाज़िर ने उन्हें बताया कि वह पहले भी फ़र्ज़ी ज़मानत के मामलों में शामिल रहा है। उसने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि उनका (रिपोर्टर का) काम बिना किसी समस्या के हो जाएगा।
रिपोर्टर : ये बताओ, जो आप फ़र्ज़ी ज़मानत करवाओगे हमारे बंदे की, उसमें ऐसा तो नहीं आगे कोई परेशानी हो?
मुनाज़िर : है जाएगो (हो जाएगा)।
रिपोर्टर : आप करा चुके हो पहले?
मुनाज़िर : हाँ।
जब रिपोर्टर ने कहा कि उन्हें नक़ली गारंटरों की ज़रूरत है, तो मुनाज़िर ने उन्हें (रिपोर्टर को) सलाह दी कि बातचीत के दौरान वह (रिपोर्टर) बार-बार फ़र्ज़ी शब्द का इस्तेमाल न करें। मुनाज़िर ने कहा कि आपका (रिपोर्टर का) ध्यान अपने मुवक्किल की ज़मानत सुनिश्चित करने पर होना चाहिए और अपनी सुरक्षा के लिए उन्हें बार-बार फ़र्ज़ी शब्द का प्रयोग करने से बचना चाहिए।
रिपोर्टर : ये तो एक बोल रहे हैं, मुझे दो चाहिए थे फ़र्ज़ी।
मुनाज़िर : तुम फ़र्ज़ी का नाम ही मत लो, चार दिला देंगे ज़मानती। फ़र्ज़ी का नाम मत लो, तुमने बात खोल दी बस।
रिपोर्टर : अरे, मैं आपसे तो बात कर सकता हूँ?
मुनाज़िर : हमने कह दिया ना! ओरिजनल देंगे, फ़र्ज़ी हो फ़र्ज़ी।
रिपोर्टर : होगा वो फ़र्ज़ी?
मुनाज़िर : तुम फ़र्ज़ी का नाम ही मत लो, …आपको अपनी ज़मानत से मतलब।
रिपोर्टर : आपसे तो मैं बात कर सकता हूँ?
बातचीत आगे बढ़ी, तो मुनाज़िर ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा कि चूँकि वह फ़र्ज़ी ज़मानत के लिए पैसे ले रहा है, इसलिए वह यह सुनिश्चित करेगा कि काम हो जाए। उसने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि यदि आरोपी ज़मानत मिलने के बाद फ़रार भी हो जाए, तो भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।
मुनाज़िर : जब पैसे हम भरपूर ले रहे हैं, तो तुम्हें उससे क्या टेंशन? …तुम पर कोई टेंशन न आने देंगे।
रिपोर्टर : कैसी टेंशन?
मुनाज़िर : कैसी भी, …तुम्हें तो हम ज़मानत कराके देंगे। चाहे मुल्ज़िम भाग जाए।
अब मुनाज़िर ने फ़र्ज़ी ज़मानत की व्यवस्था करने के लिए वसूले जाने वाले पैसे के बारे में बात की। वह चार गारंटर की व्यवस्था करने के लिए 30,000 रुपये की माँग करता है। इसमें से उसने 4,000 रुपये पहले और बाक़ी 26,000 रुपये ज़मानत के समय देने की माँग की। मुनाज़िर के अनुसार, अग्रिम भुगतान के रूप में गारंटरों को 4,000 रुपये दिये जाएँगे।
मुनाज़िर : एक तो 30,000 मान के चलो।
रिपोर्टर : 30 के (हज़ार)? …काम हो जाना चाहिए?
मुनाज़िर : कोई करे, हो जाएगा।
रिपोर्टर : हो जाएगा, पक्का? …आपकी हमारी बात पक्की है? …अच्छा, पैसे एडवांस लोगे, कैसे लोगे? ये बता देना।
मुनाज़िर : पैसे जब ज़मानत पर जाएँगे, पूरे 30 हज़ार। …आज 4,000 दे दो।
रिपोर्टर : अच्छा! और बाक़ी 26,000?
मुनाज़िर : उस दिन ज़मानत के बाद।
रिपोर्टर : बस देख लेना, ऐसा न हो हम पर कोई बात आए?
मुनाज़िर : न आएगी।
रिपोर्टर : अगर ड्राइवर भाग गया हमारा, तो हम पर बात न आए। …वो आप देख लेना।
मुनाज़िर : हाँ।
रिपोर्टर : आप क्या कह रहे हो, कोर्ट में जब आप आओगे?
मुनाज़िर : अब हम ज़मानतियों से बात करेंगे, तुमने ख़र्चा दे दिया। …हम उन्हें जाकर थमाएँगे।
रिपोर्टर : ये उनको दे दोगे 500 रुपये?
मुनाज़िर : ना! ये तो मेरे हैं, आने-जाने के। …उन्हें जाकर देंगे पैसे कि ये रखो।
रिपोर्टर : अच्छा, 4,000 रुपये उनको दोगे?
अब मुनाज़िर ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से बातचीत में क़ुबूल किया कि वह नियमित रूप से ज़मानत के मामलों में गारंटर के रूप में पेश होता है। यही वजह है कि अमरोहा के एक वकील ने उसे एक बिचौलिये के माध्यम से हमसे (तहलका रिपोर्टर से) मिलने के लिए भेजा था। उसने बताया कि वह गारंटर के रूप में प्रत्येक ज़मानत के लिए 1,000 से 4,000 रुपये तक कमाता है।

रिपोर्टर : अच्छा; आप ज़मानत कराते रहते हो, इसलिए वकील साहब ने आपको बुलाया है। …कितने मिल जाते हैं एक ज़मानत पर आपको?
मुनाज़िर : अरे, इसका तो कुछ आँकड़ा ही न है।
रिपोर्टर : फिर भी?
मुनाज़िर : तीन भी, चार भी, दो भी…।
रिपोर्टर : लाख?
मुनाज़िर : लाख मिल जाए, तो क्या बात है।
मुनाज़िर के एक सहयोगी सूरज चंद, जो उसके साथ ‘तहलका’ रिपोर्टर से मिलने आया था; ने ख़ुद हमारा (रिपोर्टर का बताया हुआ फ़र्ज़ी ज़मानत का काल्पनिक) काम करने से इनकार कर दिया। लेकिन उसने मुनाज़िर को इस काम के लिए उपयुक्त व्यक्ति बताया। सूरज के अनुसार, मुनाज़िर बिना किसी कठिनाई के फ़र्ज़ी ज़मानत करवा लेता है; क्योंकि वह इस काम में शामिल लोगों को जानता है। सूरज ने रिपोर्टर को यह भी सलाह दी कि वह (रिपोर्टर) अपने वकील से कहें कि वह सतर्क रहें और अदालत में गारंटरों के फ़र्ज़ी होने का संदेह न जताएँ।
सूरज : वकील से कह देना, बोले न कि हम नक़ली ज़मानत कर रहे हैं; कोर्ट में किसी से। बस ये करा दें, चार आदमी भेज देंगे।
रिपोर्टर : करा देंगे नक़ली ज़मानत?
सूरज : नक़ली हो या असली हो, …करा देंगे। मैं गारंटी नहीं लूँगा, मगर मुझे पता है ये करा देंगे (मुनाज़िर की तरफ़ इशारा करते हुए)।
रिपोर्टर : क्या नाम है इनका?
सूरज : मुनाज़िर, इनके (मुनाज़िर के) हैं कई चेले। …मुझे पता है, ये करा देंगे।
रिपोर्टर : नक़ली ज़मानत वाले?
सूरज : नक़ली वाले नहीं हैं, वो हैं तो असली वाले। लेकिन वो इनसे नहीं बताएँगे। ये काम करेंगे असली; …अब वो नक़ली हो जाए, ये बात अलग।
यह सिर्फ़ फ़र्ज़ी ज़मानत ही नहीं है, जिसका इस्तेमाल पैसा कमाने के लिए किया जा रहा है। यहाँ तक कि सामान्य ज़मानत भी आय का स्रोत बन गयी है। कुल मिलाकर ज़मानत एक बड़ा व्यवसाय बन गया है। इन लोगों ने बताया कि हमारे दिल्ली निवासी बिचौलिये इरशाद अहमद (बदला हुआ नाम) इससे अच्छी कमायी कर रहे हैं। इरशाद, जो पहले भी गारंटर के रूप में काम कर चुका है; ज़मानत के व्यवसाय को वास्तविक बताता है। उसने गंभीर ग़ैर-ज़मानती अपराधों में आरोपियों का समर्थन करने की बात स्वीकार की। जब उससे जोखिम के बारे में पूछा गया, तो उसने इसे यह कहते हुए टाल दिया कि एक बार ज़मानत मिल गयी, तो बाक़ी सब न्यायालय की चिन्ता है; भले ही आरोपी ग़ायब हो जाए।
रिपोर्टर : तो ये तो अच्छा बिजनेस है, ज़मानत वाला?
इरशाद : जेनुइन (असली) भी है। जेनुइन आदमी ने जेनुइन तरीक़े से कर दिया।
रिपोर्टर : जेनुइन कर तो दिया, मगर रिस्क भी तो है भाई! …भाई! आपने कितनी ज़मानत दे दी होगी आज तक जेनुइन वाली।
इरशाद : दो दी हैं।
रिपोर्टर : कौन-कौन से केस थे?
इरशाद : मैंने दी है, …23 था, 352 था।
रिपोर्टर : ये क्या होता है?
इरशाद : 23 मारपीट करना और 352 घर में घुसकर मारना। …147, 148, …188 सरकारी कर्मचारी पर हाथ उठाना।
रिपोर्टर : ये सब बेलेबल (ज़मानती) हैं?
इरशाद : ना; …नॉन बेलेबल (ग़ैर-ज़मानती) हैं।
रिपोर्टर : इनकी ज़मानत दी है तुमने? …क्या ये रिस्क नहीं है?
इरशाद : जब कोर्ट ने ज़मानत दे दी, तो केस चलता रहेगा।
रिपोर्टर : जैसे घर वाले ज़मानत नहीं देते हैं; …कल को भाग गया, तो क्या होगा?
इरशाद : मैं तो कोर्ट के पास 25,000 जमा। …वारंट आएगी, पुलिस आएगी वारंट लेकर। …क्या होगा? बोल देंगे, मिल नहीं रहा मुल्ज़िम? ख़तम कहानी।
जब इरशाद से पूछा गया कि बाहर से गारंटर की इतनी अधिक माँग क्यों है? और आरोपी के परिवार के सदस्य गारंटर के रूप में आगे क्यों नहीं आ रहे हैं? तो उसने बताया कि परिवारों के पास अक्सर ज़मानत के रूप में प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक दस्तावेज़ या संपत्ति का अभाव होता है। यही कारण है कि बाहरी लोग गारंटर के रूप में आगे आते हैं और इसके लिए पैसे लेते हैं। उसने विस्तार से बताया कि किस प्रकार मामले के आधार पर सावधि जमा, या यहाँ तक कि बाइक को भी ज़मानत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
रिपोर्टर : मुझे ये बताओ, एक चीज़; …जो मुल्ज़िम होता है, उसके घर वाले नहीं होते, जो ज़मानत देंगे?
इरशाद : होते हैं।
रिपोर्टर : तो वो ज़मानत क्यूँ नहीं देते। बाहर ज़रूरत क्यूँ होती है?
इरशाद : उनके डाक्यूमेंट्स नहीं हैं। प्रॉपर्टी नहीं है। कोर्ट जो है, रजिस्टर्ड प्रॉपर्टी माँगता है।
रिपोर्टर : हर ज़मानत पर? …चाहे छोटा केस (मुक़दमा) हो या बड़ा?
इरशाद : अब जैसे छोटा केस है, हमने अमाउंट फिक्स कर दिया (रक़म तय कर दी) कोर्ट को 20,000 का, तो मोटरसाइकिल तक चल जाती है। …और मॉडल अगर ऊपर है, तो 50,000 तक की भी चल जाती है।
रिपोर्टर : मर्डर और रेप केस में कितना होता है?
इरशाद : 50के (हज़ार) भी है, लाख भी है।
रिपोर्टर : मतलब, लाख रुपीज की कोई चीज़ होनी चाहिए, वो गिरवी रखनी पड़ेगी कोर्ट में?
इरशाद : वो कोर्ट में रख लेंगे, …एफडी जो है, मुहर लगाकर अपने पास रख लेंगे।
रिपोर्टर : वो एफडी आप तुड़वा नहीं सकते? …जब तक केस चलेगा?
इरशाद : न, …जो पैसा बढ़ेगा, वो आप पर ही बढ़ेगा।
रिपोर्टर : जैसे मेरी 10 लाख की एफडी है और ज़मानत है एक लाख की, उसको मैने रखवा दिया; …उसमें एक लाख ही तो ख़तम होगा, पूरा 10 लाख थोड़ी ख़तम हो जाएगा?
इरशाद : हाँ।
रिपोर्टर : नौ तो निकल सकता हूँ मैं? …ऐसी बात थोड़ी है कि घर वालों के पास कुछ होगा ही नहीं?
इरशाद : बहुतों पर नहीं है।
रिपोर्टर : भाई है, बीवी है, ससुर, साला, किसी के नाम तो कुछ होगा?
इरशाद : दिल्ली में किसके नाम रजिस्ट्री है?
रिपोर्टर : जो ठीक-ठाक रह रहे हैं, उन सबके पास है।
इरशाद : उनके पास एक ही तो है, अब अगर दो आदमी फँस जाते हैं। …अब मेरा केस हुआ था, जब पाँच ज़मानती चाहिए थे…।
रिपोर्टर : आपका केस था?
इरशाद : एक बार झगड़ा हुआ था, मार-पीट हुई थी। कोई रिश्तेदार भी तैयार नहीं था।
रिपोर्टर : क्यूँ?
इरशाद : डरते हैं लोग। हमारा ये हो जाएगा, वो हो जाएगा।
रिपोर्टर : जबकि प्रॉपर्टी थी सबके नाम?
इरशाद : हाँ; इसलिए मैंने मजबूरी में एफडी करायी 25,000 की, …ज़मानत से पहले।

भारत में फ़र्ज़ी और सामान्य ज़मानत एक बड़ा कारोबार बन गया है। हम अक्सर भारतीय मीडिया में फ़र्ज़ी ज़मानत कारोबार में लिप्त गिरोहों के पकड़े जाने की ख़बरें पढ़ते हैं। रेलवे में कई वर्षों से चल रहे करोड़ों रुपये के ज़मानत बॉन्ड घोटाले की ख़बरें हैं, जिसमें सीबीआई ने कई गिरफ़्तारियाँ की हैं। ‘तहलका’ की पड़ताल में शामिल तीनों किरदारों- मुनाज़िर, सूरज और इरशाद ने स्वीकार किया कि वे ज़मानत का प्रबंध करके पैसा कमाते हैं। इरशाद के अनुसार, उसने प्रत्येक ज़मानत के लिए 10,000 रुपये से लेकर 15,000, …30,000 रुपये तक की रक़म वसूली है। मुनाज़िर ने भी इस काम के लिए अपनी दर बतायी है। इरशाद ने दावा किया है कि ज़मानत राशि के मामले में राजस्थान अधिक महँगा है; क्योंकि वहाँ वकीलों को गारंटर खोजने में संघर्ष करना पड़ता है। उसने बताया है कि राजस्थान में एक गारंटर प्रति ज़मानत 15,000 से 20,000 रुपये तक लेता है, जबकि झारखण्ड में यह दर सस्ती है; लगभग 10,000 रुपये।
जब मुनाज़िर और सूरज बिचौलिये इरशाद के माध्यम से ‘तहलका’ रिपोर्टर से मिलने आये, तो उन्होंने यह आभास दिया कि जिस ज़मानत की बात हो रही है, वह असली है। उन्होंने कहा कि अभियुक्तों को अदालत की तारीख़ों पर नियमित रूप से उपस्थित होना चाहिए, अन्यथा उन्हें गारंटर के रूप में परिणाम भुगतने होंगे। लेकिन जब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने उन्हें बताया कि उनका मामला फ़र्ज़ी ज़मानत का है और आरोपी का अदालत में पेश होने का कोई इरादा नहीं है, तो मुनाज़िर चार फ़र्ज़ी गारंटरों की व्यवस्था करके मदद करने के लिए तैयार हो गया।
सूरज ने स्वयं इसमें सीधे तौर पर शामिल होने से इनकार कर दिया; लेकिन रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि उसका (सूरज का) सहयोगी मुनाज़िर इस मामले को सँभाल लेगा। मुनाज़िर ने चार फ़र्ज़ी गारंटरों की व्यवस्था करने के लिए 30,000 रुपये की माँग की। उसने बताया कि जिस वकील के माध्यम से वे (मुनाज़िर और सूरज) हमसे (रिपोर्टर से) मिलने आये हैं, अगर उन्होंने (वकील ने) पहले ही उन्हें बता दिया होता कि ज़मानत फ़र्ज़ी है, तो वे ज़मानतदारों को साथ लेकर आते। मुनाज़िर ने कहा कि उसे ज़मानतियों का इंतज़ाम करने में दो दिन लगेंगे। इरशाद के अनुसार, अक्सर वकीलों को ज़मानत हासिल करने के लिए गारंटर की ज़रूरत होती है; चाहे वह नकली हो या असली। वास्तव में अमरोहा के एक फ़ौजदारी वकील के माध्यम से इरशाद ने मुनाज़िर और सूरज, दोनों को हमारी फ़र्ज़ी ज़मानत याचिका के लिए तैयार किया था; लेकिन इससे पता चलता है कि यह ज़मानत कराने का काम उनके समूह का एक नियमित अभ्यास बन गया है।
पड़ताल के दौरान ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर और दलालों के बीच थोड़ी बहस हुई। ‘तहलका’ रिपोर्टर से मिलने आये दो लोगों में से मुनाज़िर को विशेष रूप से रिपोर्टर के इरादों पर संदेह हुआ। उन्हें (दलालों) संदेह था कि उनकी रिकॉर्डिंग की जा रही है। बातचीत के दौरान एक समय मुनाज़िर ने रिपोर्टर का मोबाइल फोन उठाया, जो टेबल पर रखा हुआ था और उसे हटाने के लिए कहा; यह कहते हुए कि फोन ऑडियो रिकॉर्ड कर सकते हैं। यहाँ तक कि वीडियो में क़ैद होने से बचने के लिए उन्होंने कुछ मिनटों तक अपने चेहरे को गर्दन के चारों ओर से कपड़े के टुकड़े से ढक रखा था। बाद में जब रिपोर्टर ने उन्हें आश्वस्त किया कि कोई रिकॉर्डिंग नहीं हो रही है, तो दोनों ने निश्चिंत होकर बातचीत पुन: शुरू की। इसके बाद उन्होंने (दलालों ने) रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि फ़र्ज़ी ज़मानत का प्रबंध उनके माध्यम से किया जाएगा। हालाँकि अगले दिन जब रिपोर्टर दिल्ली लौटे, तो बिचौलिया इरशाद को दोनों की ओर से धमकी भरा फोन आया। उन्होंने इरशाद पर आरोप लगाया कि वह उनकी रिकॉर्डिंग के लिए एक मीडियाकर्मी को लेकर आये थे; लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि वे (दोनों दलाल) डरे हुए नहीं हैं और वे (दोनों दलाल) जो चाहें, कर सकते हैं।