ज़हरीले भी हैं महँगे होते फल और सब्ज़ियाँ

योगेश

बाज़ार में बिकने वाले खाने के सामान की कोई गारंटी नहीं है। फलों और सब्ज़ियों को संरक्षित करने और ताज़ा दिखाने के लिए उन पर ज़हरीली दवाओं का प्रयोग मुनाफ़ाख़ोर व्यापारी कर रहे हैं। ग्राहकों को इस बारे में बहुत जानकारी नहीं है। फलों और सब्ज़ियों के भाव आजकल आसमान छूने लगे हैं, जिसका सीधा असर ग्राहकों की जेब पर पड़ रहा है। बीते एक महीने के अंदर कई सब्ज़ियों और फलों के दाम दो से चार गुने बढ़ चुके हैं। फलों और सब्ज़ियों के बढ़ते दामों ने आम ग्राहकों का बजट बिगाड़ दिया है। इस समय बाज़ार में फुटकर में आलू 40 से 50 रुपये किलो, प्याज 50 से 60 रुपये किलो, टमाटर 60 से 80 रुपये किलो, लहसुन 280 से 400 रुपये किलो और दूसरी सभी सब्ज़ियाँ 60 से 120 रुपये किलो तक बिक रही हैं। फलों के दाम आसमान पर हैं। ख़राब-से-ख़राब आम 40 रुपये किलो है और अच्छा आम 160 रुपये तक बिक रहा है। आडू, सेव, जामुन और दूसरे मौसमी फल 150 रुपये से 200 रुपये किलो तक बिक रहे हैं।

दालों, मसालों और सूखे मेवों के दाम भी आसमान छू रहे हैं। सब्ज़ियों, फलों और दूसरे खाद्य पदार्थों के महँगे होने से एक ऐसे समय में लोगों का बजट बिगड़ रहा है, जब केंद्र सरकार देश के विकास के लिए आम बजट पेश करने जा रही है। दूसरी ओर बाज़ारों में मिलने वाली हरी सब्ज़ियों और फलों में ज़हरीली दवाओं के छिड़काव या उनके इंजेक्शन लगाकर ग्राहकों को बीमार करने का खेल चल रहा है। ज़हरीले फल और सब्ज़ियाँ खाने से लोगों के शरीर में असाध्य रोग बढ़ रहे हैं। देश के पिछले महीने फुटकर सब्ज़ियों की महँगाई 7.4 प्रतिशत पर पहुँच गयी थी, जबकि फूड इन्फ्लेशन में सब्ज़ियों की दर 15 प्रतिशत के लगभग थी।

मौज़ूदा समय में सब्ज़ियों के दाम हर दिन बढ़ रहे हैं। गर्मियों और बारिश में हरी सब्ज़ियों की बढ़ी हुई माँग के कारण भी उनके दाम बढ़ रहे हैं। गर्मियों और बारिश में हरी सब्ज़ियों की पैदावार कम हो जाती है। इसके अलावा बारिश में सब्ज़ियों की फ़सलें ख़राब होने के चलते सब्ज़ियाँ बाज़ार में और कम आती हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि सब्ज़ियों पर महँगाई दर अभी और बढ़ सकती है। सब्ज़ियों की तरह ही फलों के दाम भी बारिश में बढ़ने का कारण इस बार बड़ी विकट गर्मी ही रही है।

महँगाई के बारे में जानकार कह रहे हैं कि भारत के प्याज के निर्यात पर रोक लगने के बाद भी इस बार प्याज का दाम 100 रुपये किलो तक जा सकता है। प्याज की तरह टमाटर भी 100 रुपये किलो से ऊपर जा सकता है। वहीं आलू भी 60 रुपये किलो से 80 रुपये किलो बिक सकता है। हाल ही में किये गये एक सर्वेक्षण में भारत के 343 ज़िलों के 48,000 से ज़्यादा घरेलू उपभोक्ताओं को शामिल किया गया। उपभोक्ताओं ने सब्ज़ियों के बढ़ते दाम को लेकर चिन्ता जतायी है। उन्होंने प्याज, आलू और टमाटर जैसी सब्ज़ियों की क़ीमतों में बढ़ोतरी को ग़तल बताया है। खाने के सामान में मिलावट की बात करें, तो एक ओर किसान अपने खेतों में कीटनाशकों का उपयोग कर ही रहे हैं और किसानों से ज़्यादा कुछ मुनाफ़ाख़ोर सब्ज़ी विक्रेता ग्राहकों और उनके परिवार के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। डॉक्टरों के यहाँ बढ़ती रोगियों की भीड़ से इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ज़हरीली सब्ज़ियाँ और फल खाने से उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ रहा है?

सलाह दी जा रही है कि फलों और सब्ज़ियों को साफ़ पानी से अच्छी तरह धोकर ही खाएँ। लेकिन इन फलों और सब्ज़ियों को ज़हरीला बनाने वालों पर कोई रोक नहीं लग रही है। डॉक्टर और दवाओं के जानकार कह रहे हैं कि केमिकल से पले, बढ़े, पके फल और सब्ज़ियाँ खाने से छोटे रोगों से लेकर कैंसर तक होने की संभावनाएँ बढ़ रही हैं। इन ज़हरीले फल और सब्ज़ियाँ खाने से ज़्यादातर लोगों के लीवर, किडनी, फेफड़े और आँतें कमज़ोर ओर ख़राब हो रही हैं। इससे बचने का उपाय ज़हरीली दवाओं का प्रयोग करने वालों को रोकने के अलावा कोई दूसरा नहीं है। किसानों को जैविक खेती करने पर ज़ोर देना चाहिए। जैविक सब्ज़ियाँ और फल जल्दी ख़राब नहीं होते और न ही वो जल्दी सूखते हैं।

जैविक खेती में कीट भी कम लगते हैं, और अगर लगते हैं, तो जैविक घोल बनाकर उन्हें समाप्त किया जा सकता है। फर्टिलाइजर के उपयोग से ज़्यादा पैदावार का लालच किसानों को नहीं करना चाहिए। देशी बीजों को संरक्षित करके उन्हें बोकर अपनी फ़सलों में देशी खादें डालें, जो गोबर, सब्ज़ियों के छिलकों, फ़सलों के अवशेषों, नीम, केंचुओं से बनती हैं। इससे फ़सलों की पैदावार बढ़ेगी, बचत होगी और किसानों को ख़ुद से लेकर उपभोक्ताओं तक को बीमारियाँ नहीं होंगी। जैविक फ़सलों में कीट ख़ुद ही कम लगते हैं; क्योंकि गोबर, नीम से कीट नहीं लगते। अगर फिर भी फ़सलों में कीट लगें, तो पशुओं के मूत्र, गोबर और नीम के घोल का छिड़काव करने से फ़सल को नुक़सान नहीं होगा और कीट नहीं रहेंगे।

किसानों से ख़रीदकर जो मुनाफ़ाख़ोर और व्यापारी सब्ज़ियों और फलों में ज़हरीली दवाएँ मिलाते हैं, उनसे निपटने के लिए सरकारों को खाद्य सुरक्षा विभागों, उपभोक्ता विभागों और पुलिस को निर्देश देना चाहिए। घातक बीमारियों को देखते हुए बाज़ारों की सब्ज़ियों के बजाय लोगों को घरेलू सब्ज़ियाँ अधिक उपयोग में लेनी चाहिए। जैसे दाल, बेसन, राजमा, मंगोड़ी, कड़ी, छोले, छाछ और दही से बनी सब्ज़ियाँ आदि। इनसे घातक रोगों से भी बचा जा सकेगा और महँगाई से भी। वहीं मुनाफ़ाख़ोरी के चक्कर में फलों और सब्ज़ियों को ज़हरीला बनाने वालों को पकड़ने के लिए गोदामों से लेकर सब्ज़ी मंडियों में ग्राहकों के रूप में छापेमारी की जानी चाहिए और फलों सब्ज़ियों में ख़तरनाक केमिकल्स का प्रयोग करने वालों को तुरंत पकड़ा जाना चाहिए। नये-नये रोगों को पनपने से रोकने के लिए सरकार को जैविक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए और मुनाफ़ाख़ोरों को जेल भेजना चाहिए।

ऑस्ट्रेलिया स्थित खाद्य मानक ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड ने घरेलू और आयातित खाद्य पदार्थों में मौज़ूद कृषि और पशु चिकित्सा रासायनिक अवशेषों के लिए अधिकतम अनुमत सीमा निर्धारित की है और खाद्य पदार्थों में अनुमत कृषि और रासायनिक अवशेषों के स्तर को सुरक्षित मानकर सर्वोत्तम कृषि उद्योगों को शुद्धिकरण के नियमों का अनुपालन करने के न्यूनतम संभव स्तर का प्रतिनिधित्व करने को प्रतिबद्ध किया हुआ है।

कई दूसरे देशों में भी ज़हरीली कीटनाशक दवाओं के प्रयोग पर प्रतिबंध है। लेकिन हमारे देश में नुक़सान वाले रसायनों के खुले प्रयोग पर कोई रोक नहीं है। किसानों को उनके खेतों में ज़हरीली दवाएँ लगाने के लिए उकसाया जाता है। जबकि ये कीटनाशक ऐसे ज़हरीले रसायन हैं, जो कृषि कीटों को मारने के के बाद अपना असर फ़सल उत्पादों पर छोड़ देते हैं और इन्हें खाने वालों में समस्याएँ पैदा करते हैं। इससे बचने के लिए किसानों को पशुपालन में विकास को बढ़ावा देने और फीड आवश्यकताओं में कटौती करने की ज़रूरत है। क्योंकि कीटनाशक ज़हरीली दवाओं से रोग बढ़ने के अलावा हमारी उम्र कम करती है और की आनुवंशिक रोगों को बढ़ाने के लिए ख़तरनाक हैं। कीटनाशकों का प्रयोग पशुओं के लिए भी नुक़सानदायक है, जिसका अर्थ है कि आप इनका जितना अधिक उपभोग करेंगे, संभावित जोखिम उतना ही अधिक होगा।

कुछ लोग फलों और सब्ज़ियों में रसायनों का प्रयोग बेधड़क होकर खुलेआम करते हैं। इससे प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाली शुद्ध सब्ज़ियाँ और शुद्ध फल ज़हरीले हो जाते हैं। रसायनों और कीटनाशकों पर कई देशों में प्रतिबंध होने के अलावा कई खाद्य पदार्थों को बेचने वालों से लेकर सरकारें परीक्षण करवाती रहती हैं। लेकिन हमारे यहाँ कभी अचानक कोई मिलावटी सामान पकड़ा जाता है, तब पता चलाता है कि लोग पूरी तरह ज़हर खा रहे थे। अफ़सोस कि कुछ दिन बाद फिर से लोग भूल जाते हैं और वही खाने की चीज़ें फिर बाज़ार में धड़ल्ले से बिकने लगती हैं। ऑस्ट्रेलिया में पिछले 30 वर्षों से फलों और सब्ज़ियों में कीटनाशक अवशेषों के स्तर पर बारीक़ी से निगरानी की जा रही है। कीटनाशकों जैसे कृषि रसायनों के सही प्रयोग की निगरानी के लिए वहाँ की सरकार ने कई उपज-निगरानी कार्यक्रम चला रखे हैं। इससे किसान इस बात का ख़याल रखते हैं कि जब उनका उत्पाद बाज़ार में जाए, तो उसमें कोई रसायन न हो। हमारे यहाँ इस तरह की कोई जाँच न पहले होती है और न बाद में। हमारे देश में हर साल ज़हरीला भोजन करने के कारण लाखों लोगों की मौत होती है। करोड़ों लोग पेट के रोगों से परेशान हैं और दूसरे रोगियों की संख्या भी बहुत बड़ी है। इसलिए हमारे देश में ज़हरीले खाद्य पदार्थ बिकने पर तुरंत रोक लगनी चाहिए और मिलावटख़ोरों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए। अगर केंद्र सरकार इस तरफ़ ध्यान देकर जैविक खेती करने और मिलावट रोकने के लिए क़दम उठाए, तो देश के लोगों को शुद्ध खान-पान उपलब्ध कराने में कम-से-कम 25 से 30 वर्ष से अधिक समय लग जाएगा। आज काफ़ी संख्या में लोग जैविक उत्पादों की माँग कर रहे हैं। लेकिन भ्रष्टाचारियों की रिश्वत की भूख के आगे उनकी माँग का कोई असर नहीं होता है और मुनाफ़ाख़ोर जीत रहे हैं।