– इस्लामिक तरीक़े से मुर्दा दफ़नाने के लिए भारत के कई क़ब्रिस्तानों में बिकती है क़ब्रों की ज़मीन !
इंट्रो- हिन्दुस्तान में कई धर्मों के लोग रहते हैं और उनके रीति-रिवाज़ भी अपने-अपने धर्मों के हिसाब से होते हैं। इन्हीं रीति-रिवाज़ों में से एक रिवाज़ इंसानों के मरने के बाद उनके अंतिम क्रिया-कर्म का है, जिसके तौर-तरीक़े सबके अपने-अपने हैं। जैसे हिन्दुओं में शवदाह होता है, वैसे ही मुसलमानों और ईसाइयों में मुर्दे ज़मीन में दफ़नाये जाते हैं। लेकिन भारत के कई शहरों में अब मुर्दे दफ़नाने के लिए लोग पहले से ही क़ब्र की ज़मीन ख़रीदकर बुक कर रहे हैं। दिल्ली के ऐतिहासिक मेहंदियान क़ब्रिस्तान में मुर्दों को दफ़्न करने के लिए क़ब्र की ज़मीन रियल एस्टेट की तरह बेची और ख़रीदी जाती है। इस क़ब्रिस्तान के अलावा दूसरे कई क़ब्रिस्तानों में भी यह सौदा होता है और हज़ारों से लेकर लाखों रुपये तक में क़ब्रों की खुलेआम अग्रिम बुकिंग होती है। कई परिवारों के लोग घर में किसी की मौत से पहले ही कुछ प्रमुख क़ब्रिस्तानों में जगह बुक करने के लिए होड़ करते हैं, जिससे मौत के बाद भी उन्हें सम्मान मिल सके। पढ़िए, तहलका एसआईटी की ख़ास पड़ताल पर आधारित यह रिपोर्ट :-
फ्लैट, कार और विवाह के लिए हॉल बुक करना आम बात है। लेकिन कुछ लोग अब अपने प्रियजनों के लिए क़ब्र भी बुक कर लेते हैं, ताकि मरने के बाद उन्हें दफ़्न करने के लिए हमेशा के लिए एक अच्छी जगह मिल सके। यह प्रवृत्ति, जो पहले खाड़ी देशों में प्रचलित थी; अब भारत में मुसलमानों और ईसाइयों में भी फैल रही है। विडंबना यह है कि अब शान्ति से आराम करने के लिए भी योजना बनाने की आवश्यकता होती है, जिसकी क़ीमत भी चुकानी पड़ती है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रज़ीउद्दीन अहमद अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ पुरानी दिल्ली में जामा मस्जिद के पास दो बेडरूम वाले फ्लैट में रहते हैं। आसमान छूती संपत्ति दरों ने उन्हें उसी घर में रहने के लिए मजबूर कर दिया है, जिसमें वह बड़े हुए थे; लेकिन मृत्यु के बाद की योजना बनाते हुए उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि उनके परिवार के लिए पर्याप्त जगह हो। 52 वर्षीय इस व्यवसायी ने 48,000 रुपये में 12 क़ब्रों की जगह क़ब्रिस्तान में बुक करायी है, ताकि उनके मरने के बाद परिवार के सदस्यों को दफ़नाने के लिए जगह ढूँढने में परेशानी न हो। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, क़रीब एक दशक पहले क़ब्रों की जगह बुक करा चुके अहमद का कहना है कि ‘कौन किसी अजनबी के बग़ल में दफ़्न होना चाहेगा? हम सब एक साथ रहेंगे।’
अहमद के चचेरे भाई शफ़ीक़ रहमान ने अपने दादा के नाम पर 88 क़ब्रें बुक करायी हैं। अहमद के अनुसार, ज़्यादा-से-ज़्यादा क़ब्रों का मालिक होना स्टेटस सिंबल माना जाता है। अहमद एक बड़े परिवार से आता है। दिल्ली के एक अन्य व्यवसायी अखमल जमाल ने दिल्ली के मेहंदियान क़ब्रिस्तान में 58 क़ब्रें बुक करायी हैं। कुछ क़ब्रिस्तान क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग की अनुमति देते हैं, जिसकी दरें 5,000 रुपये से शुरू होकर स्थान के आधार पर लाखों रुपये तक होती हैं; बिलकुल संपत्ति ख़रीदने की तरह। क़ब्र जितनी जल्दी बुक की जाती है, छूट उतनी ही अधिक मिलती है।
‘आप अपने मृतकों को पहले से क़ब्र बुक किये बिना इस क़ब्रिस्तान (मेहंदियान क़ब्रिस्तान) में दफ़्न नहीं कर सकते। एक बार क़ब्र बुक हो जाने के बाद कोई भी अन्य व्यक्ति उस स्थान का उपयोग मुर्दा दफ़्न के लिए नहीं कर सकता। ऐसे भी उदाहरण हैं, जहाँ लोगों ने 10 साल पहले ही क़ब्रें बुक करा ली थीं। इस क़ब्रिस्तान में थोक बुकिंग भी की जा सकती है। यहाँ कई क़ब्रगाहों को एक लाख रुपये में बेचा गया है।’ -मेहंदियान क़ब्रिस्तान में क़ब्र खोदने वाले मुश्ताक़ ने क़ब्र लेने के इच्छुक ग्राहक बनकर पड़ताल करने गये ‘तहलका’ रिपोर्टर को ग्राहक समझकर बताया।
‘मैं इस क़ब्रिस्तान में रहता हूँ और पिछले 10-12 वर्षों से पक्की क़ब्रें तैयार कर रहा हूँ। यहाँ अग्रिम बुकिंग अनिवार्य है। क़ब्र की क़ीमत उसके स्थान पर निर्भर करती है। सभी पसंदीदा प्लॉट या तो बिक चुके हैं या बुक हो चुके हैं। अब उपलब्ध एकमात्र क़ब्र की ज़मीन की क़ीमत 30,000 रुपये है।’ -राजमिस्त्री पप्पू ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा।

‘अग्रिम बुकिंग के लिए हम पूरे 30,000 रुपये पहले ही ले लेते हैं। जगह बुक कर लेते हैं और भुगतान के एवज़ में रसीद जारी कर देते हैं। जब भी परिवार के लोग मुर्दे को लेकर आते हैं, तो वे हमें अग्रिम भुगतान की पर्ची दिखाते हैं और मुर्दे को दफ़नाने के लिए अपनी बुक की हुई जगह ले लेते हैं। अगर कोई इस बात का सुबूत लेकर आता है कि 20-22 साल पहले उसके परिवार के किसी सदस्य को यहाँ दफ़नाया गया था, तो हम उसी क़ब्र को दोबारा खोदकर उसमें मुर्दे को दफ़ना देते हैं।’ -मेहंदियान क़ब्रिस्तान के देखभालकर्ता और ठेकेदार मोहम्मद चाँद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा।
मेहंदियान एक मुस्लिम क़ब्रिस्तान है, जिसे वीआईपी क़ब्रिस्तान के रूप में जाना जाता है। यह नई दिल्ली में दिल्ली गेट के पास लोक नायक जय प्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल के पीछे स्थित एक ऐतिहासिक क़ब्रिस्तान है, जो देश के सबसे प्रमुख क़ब्रिस्तानों में से एक है। लेखिका और इतिहासकार राणा सफ़वी ने अपनी पुस्तक ‘द फॉरगॉटन सिटीज़ ऑफ़ दिल्ली’ में इस परिसर के बारे में लिखा है। उन्होंने बताया है कि क़ब्रिस्तान-ए-मेहंदियान कभी एक विशाल क्षेत्र था, जहाँ कई फ़क़ीरों और आम लोगों की क़ब्रें थीं। मेहंदियान का इतिहास अद्भुत है। 18वीं शताब्दी के अंत में जब प्रसिद्ध इस्लामिक उलेमा (विद्वान), इतिहासकार और दार्शनिक शाह वलीउल्लाह देहलवी का इंतिक़ाल हुआ, तो उन्हें यहीं दफ़नाया गया था।
औरंगज़ेब के इंतिक़ाल से चार साल पहले मुगल वंश के अंत के समय पैदा हुए शाह वलीउल्लाह देहलवी को भारत का सबसे महान् इस्लामिक उलेमा माना जाता है। इस्लाम के दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर बिन अल ख़त्ताब (रज़ि.), जो अपने पिता की ओर से ख़लीफ़ा परिवार के दावेदार हुए; उनके पूरे परिवार को इसी क़ब्रिस्तान में उनके साथ दफ़नाया गया था। आज भी लोगों को उनकी क़ब्र के सामने घंटों बैठकर इबादत (प्रार्थना) और मराक़बह (ध्यान) करते देखा जा सकता है।
नामी उर्दू शायरों में से एक मोमिन ख़ान ‘मोमिन’ को भी इसी परिसर में दफ़नाया गया है। यहाँ बनी अन्य प्रमुख क़ब्रों में स्वतंत्रता सेनानी और इस्लामिक उलेमा मौलाना हिफ़्ज़ुर रहमान सोहरवी, पुरानी और अब बंद हो चुकी उर्दू फ़िल्म पत्रिका ‘शमा’ के पूर्व संपादक यूनुस देहलवी और भाजपा सदस्य सिकंदर बख़्त की क़ब्रें शामिल हैं। पूरे परिसर में क़ब्रों के अलावा शाह वलीउल्लाह देहलवी की दरगाह और एक मदरसा है। शाह वलीउल्लाह के पिता शाह अब्दुर रहीम द्वारा मेहंदियान परिसर में स्थापित मदरसा-ए-रहीमिया भारत के सबसे बड़े मदरसों (शैक्षिक केंद्रों) में से एक है।
मेहंदियान में कई प्रमुख क़ब्रों में से मोना अहमद, जिन्हें भारत की सबसे प्रतिष्ठित ट्रांसजेंडर माना जाता है; और उनके गुरु चमन की क़ब्रें एक छोटे से कमरे में एक साथ स्थित हैं। इन क़ब्रों की चमकदार नीली दीवारों पर क़ुरआन की आयतें लिखी हुई हैं। बैंगनी दीवार पर मोना की एक बड़ी फीकी पेंटिंग लगी हुई है, जिसमें वह एक लंबी सफ़ेद पोशाक में हैं। सन् 2017 में उनका इंतिक़ाल हो गया था। लेकिन देखभाल करने के लिए उनके भतीजे जहाँआरा अभी भी वहाँ रहते हैं। मेहंदियान भारत के सबसे ऐतिहासिक और प्रमुख मुस्लिम क़ब्रिस्तानों में से एक है, क्योंकि इसमें कई इस्लामिक उलेमाओं, स्वतंत्रता सेनानियों, उर्दू कवियों, पत्रकारों, राजनेताओं की क़ब्रें और सबसे बढ़कर शाह वलीउल्लाह देहलवी की दरगाह है। यहाँ बहुत-से क़ाबिल-ए-एहतराम (पूजनीय) लोग दफ़्न हैं, इसलिए ऐसा माना जाता है कि किसी पाक (पवित्र) आदमी के पास रहने (दफ़्न होने) से रूह (आत्मा) को जन्नत (स्वर्ग) जाने में मदद मिलती है; क्योंकि फ़क़ीर पड़ोसी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह आस-पास दफ़्न लोगों के लिए ईश्वर से क्षमा माँगें। इसी विश्वास की वजह से मज़हबी (धार्मिक) हस्तियों के पास वाली क़ब्रों की क़ीमत भी ज़्यादा होती है।
सूत्रों का कहना है कि शाह वलीउल्लाह देहलवी के पैरों की तरफ़ बनी एक क़ब्र 1,80,000 रुपये में बेची गयी थी। कई मुसलमानों के लिए ऐसी महान् हस्तियों के साथ इस क़ब्रिस्तान में दफ़्न होना गर्व की बात है। मुसलमानों में यहाँ दफ़्न होने या अपने परिजनों को दफ़्न करने की होड़ को देखते हुए कुछ लोगों ने मेहंदियान क़ब्रिस्तान में क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग कराने का पैसा लेकर हालात का फ़ायदा उठाना शुरू कर दिया है।
‘तहलका’ रिपोर्टर ने इस बारे में पड़ताल के लिए नक़ली ग्राहक बनकर मेहंदियान क़ब्रिस्तान का दौरा किया। क़ब्रिस्तान के दाख़िली दरवाज़े (एंट्री गेट – प्रवेश द्वार) के बायीं ओर उन्हें अली-मोहम्मद शेर-ए-मेवात फाउंडेशन बोर्ड का कार्यालय दिखायी दिया, जो सन् 2018 में पंजीकृत हुआ था। इसमें बोर्ड के पदाधिकारियों के नाम लिखे हुए हैं। दाख़िली दरवाज़े पर एक चाय विक्रेता ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को मोहम्मद चाँद नामक एक व्यक्ति के पास पहुँचाया, जिसने ख़ुद को क़ब्रिस्तान का रखवाला (देखरेख करने वाला) बताया। रिपोर्टर ने चाँद से कहा कि हम मेहंदियान में दो क़ब्रें पहले से बुक करना चाहते हैं। चाँद पहले तो उलझन में दिखा; लेकिन जब उसे बताया गया कि यह अग्रिम बुकिंग के लिए है; मुर्दे को तत्काल दफ़नाने के लिए नहीं। तब वह रिपोर्टर को एक ग्राहक समझकर संभावित भूखंड (क़ब्र के लिए जगह) दिखाने के लिए ले गया, जहाँ भविष्य में मुर्दा दफ़नाने के लिए उसने रिपोर्टर को क़ब्र की जगह दिखायी, जिसे पैसे देकर लिया जा सकता है।
रिपोर्टर : जगह के लिए आये थे।
चाँद : जगह मतलब?
रिपोर्टर : क़ब्र की जगह।
चाँद : इंतिक़ाल हुआ है?

रिपोर्टर : इंतिकाल नहीं, मतलब वो एडवांस में चाह रहे हैं; ..कब्र की।
क़ब्रों के लिए जगह दिखाते समय ‘तहलका’ रिपोर्टर ने चाँद से पूछा कि क्या उन्हें शाह वलीउल्लाह की दरगाह के अंदर दफ़नाने के लिए जगह मिल सकती है? जो किसी भी मुसलमान के लिए सबसे सम्मानजनक बात है। इसके जवाब में चाँद कहता है- नहीं।
चाँद : यहाँ मिल जाएगी।
रिपोर्टर : अंदर हज़रत के यहाँ नहीं मिल जाएगी?
चाँद : नहीं।
रिपोर्टर : आपका नाम?
चाँद : मोहम्मद चांद।
रिपोर्टर : आप अलीगढ़ से हैं, कौन-सी जगह से…।
चाँद : जमालपुर।
जब हम क़ब्र को पहले से बुक करने के लिए सही भूखंड (ज़मीन के टुकड़े) का चयन करने के लिए क़ब्रिस्तान का दौरा कर रहे थे, तो हमने दो भूखंड देखे। जब दो भूखंडों के बारे में पूछा गया, तो चाँद ने कहा कि वे पहले ही बिक चुके हैं; लेकिन उनके परिवार से कोई भी अभी तक नहीं आया है।
रिपोर्टर : (कुछ ख़ाली दिख रही जगहों की तरफ़ इशारा करते हुए) …ये जो जगह हैं, सब बिकी हुई हैं?
चाँद : ये सब बिकी हुई हैं।
रिपोर्टर : (एक दूसरी जगह की तरफ़ इशारा करते हुए) …ये भी बिकी हुई है?
चाँद : हाँ; अभी तक यहाँ कोई आया नहीं है।
रिपोर्टर : एडवांस में?
फिर चाँद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को क़ब्रों के लिए एक और भूखंड (ज़मीन का टुकड़ा) दिखाया और आश्वास्त करते हुए कहा कि वह जो भूखंड उन्हें दिखा रहा है, उसमें तीन-चार क़ब्रें बन सकती हैं।
रिपोर्टर : अच्छा एक ये जगह है.?
चाँद : (एक क़ब्र के बराबर में जगह की तरफ़ इशारा करते हुए) ये क़ब्र है; इसके बराबर में एक ये जगह है।
रिपोर्टर : अच्छा; एक जगह ये है (एक और जगह की तरफ़ इशारा करते हुए)। …तो ये तो एक ही हुई ना!
चाँद : और हो जाएगी (क़ब्र के लिए दूसरी जगह का इंतज़ाम कराने का आश्वासन देते हुए)।
रिपोर्टर : तीन-चार हो जाएँगी?
चाँद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि पुरानी दिल्ली के मुस्लिम उलेमा और अमीर लोग बड़ी संख्या में इस क़ब्रिस्तान में दफ़्न हैं।
रिपोर्टर : तो इस क़ब्रिस्तान में बड़े लोग दफ़्न होंगे? ..एमपी, एमएलए?
चाँद : उलेमा ज़्यादा हैं। …पुरानी दिल्ली के पैसे वाले लोग भी हैं।
अब चाँद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि वह इस क़ब्रिस्तान को चलाने वाली मेवात फाउंडेशन कमेटी में नहीं हैं, बल्कि वह इस क़ब्रिस्तान का केयरटेकर है और वह क़ब्रों से मुर्दों को बदलने का काम भी करता है।
रिपोर्टर : कमेटी मेंबर हैं आप?
चाँद : नहीं; हम तो केयरटेकर हैं। ..कहाँ क्या करना है? कौन-सी मय्यत को चेंज करना है। (इशारा करते हुए)…इधर से निकालकर, इधर करना है..।
रिपोर्टर : अच्छा; मय्यत भी चेंज हो जाती है?
अब चाँद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को क़ब्र की अग्रिम बुकिंग की दर (क़ीमत) बतायी। उसने कहा कि वह एक क़ब्र के लिए 36,000 रुपये लेगा। चाहे वो जगह दरगाह के अंदर हो या बाहर। उसने ग्राहक बने रिपोर्टर से कहा कि यदि आप क़ब्र की स्थायी संरचना (पक्की क़ब्र) बनाएँगे, तो दर अलग होगी।
चाँद : दो जगह और हैं, वो भी देख लो।
रिपोर्टर : उसका क्या रेट होगा?
चाँद : रेट सब सेम है।
रिपोर्टर : अंदर, बाहर सब क्या है?
चाँद : 30 प्लस हैं।
रिपोर्टर : (आश्चर्य से) …हैं जी!
चाँद : 36,000। …खुदाई है, पत्थर, बॉक्स बनवाना…।
रिपोर्टर : 30,000 क़ब्र का और 6,000 ऊपर का, मिस्त्री-विस्त्री का। ..36,000 की एक क़ब्र?
चाँद : दफ़नाने तक; …उसके बाद कुछ करवाएँगे अलग से, तो उसका अलग चार्ज होगा।
रिपोर्टर : पक्का करवाएँगे…।
चाँद : जो भी करवाएँगे।
जब रिपोर्टर ने यह पूछा कि यदि आज हम एक निश्चित क़ीमत पर क़ब्र बुक करते हैं और मुर्दा तीन-चार साल बाद आता है, तो क्या क़ब्र का भाव बढ़ जाएगा या वही रहेगा? इसके जवाब में चाँद ने कहा कि वह क़ब्र की अग्रिम बुकिंग की रसीद (पर्ची) जारी करेगा। क़ब्र की क़ीमत वही रहेगी; लेकिन वो रसीद मुर्दे को दफ़नाने से पहले हमें (बुकिंग करने वाले को) दिखानी होगी।
रिपोर्टर : अच्छा; अगर हमने आज बुकिंग करवा ली और इंतिकाल हुआ तीन-चार साल बाद, तो क़ीमत बढ़ती है?
चाँद : हाँ, बदलेगी क्यों नहीं; बदलेगी।
रिपोर्टर : तो वो किस हिसाब से होगी?
चाँद : नहीं; आपको वो मतलब नहीं है। …आपके पास तो पर्ची होगी।
रिपोर्टर : आप स्लिप दे देंगे एडवांस बुकिंग की; …और आगे जो क़ीमत बदलेगी. वो भी हमको देनी होगी?
चाँद : नहीं; उसकी कोई ज़रूरत नहीं है। …हमने आपको आज एक चीज़ एक रेट पे दे दी…आगे जो भी रेट बढ़ेगा 10-5 हज़ार उससे हमें क्या; …आपने कोई बिजनेस करने के लिए थोड़ी ले रखी है।
जब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने चाँद से पूछा कि क्या मैं कुछ टोकन मनी का भुगतान करने (बयाना देने) के बाद क़ब्र की अग्रिम बुकिंग की रसीद प्राप्त कर सकता हूँ? तो इसके जवाब में चाँद ने रिपोर्टर को बताया कि अग्रिम बुकिंग की रसीद पूरी रक़म चुकाने के बाद ही दी जाती है, या कम-से-कम हमें (ग्राहक बने रिपोर्टर को) उसे (चाँद को) 10,000 रुपये का एडवांस भुगतान करना होगा।
रिपोर्टर : तो अभी मैं कोई टोकन दे जाऊँ, रसीद काट दो आप?
चाँद : रसीद जब पूरा पैसा आता है, तब देते हैं।
रिपोर्टर : अब मैं आपको 1,000-2,000 दे दूँगा?
चाँद : कम-से-कम 10,000 तो देना होगा।
रिपोर्टर : तो रसीद कट जाएगी?
चाँद : इस टाइम तो वो भी नहीं कटेगी। …ऑफ़िस बंद हो गया अब। …सुबह 8:00 बजे से 1:00 बजे तक होता है।
अब चाँद ने रिपोर्टर को बताया कि उन्हें अपनी क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग के लिए अपना आधार कार्ड देना होगा।
रिपोर्टर : तो चाँद साहब! हमें भी डॉक्युमेंट्स (दस्तावेज़: देने पड़ेंगे क्या? …हम जो एडवांस बुकिंग करवा रहे हैं क़ब्र की, उसके लिए डॉक्यूमेंट्स देने पड़ेंगे?
चाँद : हाँ।
रिपोर्टर : क्या-क्या?
चाँद : आधार की फोटो कॉपी।
जब ‘तहलका’ रिपोर्टर की चाँद से बातचीत चल रही थी, तभी दो आदमी आये और अपनी क़ब्र की अग्रिम बुकिंग के लिए 30,000 रुपये दिये।
रिपोर्टर : ये भी एडवांस बुकिंग हैं, जो दे गये हैं अभी पैसे?
चाँद : जी हाँ।
‘तहलका’ रिपोर्टर ने 72,000 रुपये में दो क़ब्रें बुक करने को कहा। रिपोर्टर ने जब पैसों में कुछ छूट माँगी, तो चाँद ने मना कर दिया। इस बार वह रिपोर्टर को फिर से क़ब्र बुक करने के लिए एक और जगह ज़मीन दिखाने शाह वलीउल्लाह दरगाह के पास ले गया; जो दफ़नाने के लिए एक प्रतिष्ठित स्थान है; जिसके लिए उसने पहले मना कर दिया था।
रिपोर्टर : कुछ कम नहीं होगा 72 हज़ार में?
चाँद : नहीं, चलिए हम आपको एक और जगह दिखाते हैं; …शायद वो आपको पसंद आ जाए।
रिपोर्टर : कल मैं आ जाता हूँ सुबह, क्योंकि अभी तो रसीद मिलेगी नहीं।
चाँद : कल ही लेना।
रिपोर्टर : दो क़ब्रों का 72 हज़ार हो गया हमारा?
चाँद : हाँ।
यह पहली बार नहीं है कि चाँद को क़ब्र की अग्रिम बुकिंग करते हुए कैमरे में क़ैद किया गया हो। 2020 में कोरोना-काल के दौरान भी हमने उनके साथ एक सौदा किया था और मेहंदियान क़ब्रिस्तान में 30,000 रुपये में अग्रिम क़ब्र बुक कराने गये थे और उसे पैसे दिये बिना ही वहाँ से चले गये। उस सौदे में भी चाँद ने हमें (तहलका रिपोर्टर को) पूरे 30,000 रुपये देने के बाद ही क़ब्र के लिए जगह देने का वादा किया था। उसने उस समय भी कहा था कि वह भुगतान के एवज़ में रसीद जारी करेगा, जिसे हमें मुर्दा दफ़्न करने के समय दिखाना होगा। इस बातचीत में ‘तहलका’ रिपोर्टर न केवल फ़र्ज़ी ग्राहक बनकर क़ब्र की एडवांस बुकिंग करवाने के लिए वहाँ गये, बल्कि चाँद से फ़र्ज़ी तौर पर यह भी कहा कि परिवार में किसी की मौत हो गयी है और वह उसे दफ़नाने के लिए मेहंदियान क़ब्रिस्तान आये हैं।
रिपोर्टर : एक इनके रिश्तेदार हैं, उनकी ख़्वाहिश यही है कि वो मेहंदियान में ही दफ़्न हों, तो उसके लिए कोई एडवांस देना पड़ेगा जगह के लिए?
चाँद : पूरा पैसा देना पड़ेगा।
रिपोर्टर : चाहे उनका कभी भी इंतिक़ाल हो?
चाँद : हाँ; उसके लिए हम आपको एक पर्ची देंगे, वो आप लेकर जाना, उसको सँभालकर रखना। जब भी ज़रूरत हो, आ जाना।
रिपोर्टर : और वो क़ब्र की जगह एडवांस में बुक हो जाएगी?
चाँद : उस टाइम पर जब भी आपको ज़रूरत पड़ेगी, तो लेबर चार्ज दो-ढाई हज़ार रुपया देना होगा।
रिपोर्टर : अच्छा; उसका हमें कितना एडवांस देना होगा?
चाँद : वही, 30 हज़ार।
रिपोर्टर : ठीक है।
उस बातचीत में रिपोर्टर के लिए क़ब्र आवंटित करने से पहले चाँद ने उनसे पूछा कि क्या उनके किसी रिश्तेदार को 20-22 साल पहले मेहंदियान क़ब्रिस्तान में दफ़नाया गया था? उस स्थिति में उनके अनुसार, उन्होंने हमारे (रिपोर्टर के) रिश्तेदार की क़ब्र खोदी होगी और दूसरे मृतकों को वहीं दफ़ना दिया होगा। लेकिन रिपोर्टर ने अपने रिश्तेदार के वहाँ दफ़्न होने की बात से मना कर दिया।
रिपोर्टर : वो मय्यत को लेकर आना था।
चाँद : कहाँ से?
रिपोर्टर : शंकरपुर कैंसर से मौत हुई है, घर पर। … डॉक्टर से इलाज चल रहा था। …एक-दो साल पहले डॉक्टर ने जवाब दे दिया था।
चाँद : लेडीज हैं जेंट्स? (महिला हैं पुरुष?)
रिपोर्टर : जेंट्स।
चाँद : जगह देख लीजिए यहाँ।
रिपोर्टर : अंदर नहीं मिल सकती?
चाँद : किसी की है, क्या आपके दादा-परदादा की?
रिपोर्टर : ना। …क्या अंदर नहीं मिल पाएगी जगह?
चाँद : अगर होती, आपके किसी दादा-परदादा की 20-22 साल पहले, तो उसको ख़ुदवा देते।
रिपोर्टर : कितना ख़र्चा होगा चाँद भाई!
चाँद : 30,000 रुपये। (एक जगह की तरफ़ इशारा करते हुए) …यही सबसे अच्छी जगह है।
अब क़ब्रिस्तान में हमारी मुलाक़ात मुश्ताक़ से हुई, जो पिछले 20-22 वर्षों से क़ब्रिस्तान में क़ब्र खोदने का काम कर रहा है। मेहंदियान क़ब्रिस्तान में क़ब्रों की एडवांस बुकिंग कितनी खुलेआम और बड़े पैमाने पर चल रही है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुश्ताक़ ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि क़ब्र की अग्रिम बुकिंग के बिना हम (रिपोर्टर या कोई भी) अपने मृतकों को क़ब्रिस्तान में दफ़्न नहीं कर सकते। उसने रिपोर्टर को क़ब्र की अग्रिम बुकिंग के लिए चाँद से संपर्क करने को कहा।

मुश्ताक़ : चाँद नाम है, ठेकेदार है यहाँ का।
रिपोर्टर : क़ब्र वो ही ख़ुदवाते हैं?
मुश्ताक़ : हाँ।
रिपोर्टर : ये मेंहदियान क़ब्रिस्तान है ना?
मुश्ताक़ : हाँ।
रिपोर्टर : कुछ क्या एडवांस वग़ैरह?
मुश्ताक़ : ये तो वो ही बताएँगे। …आपकी जगह यहाँ पहले से है?
रिपोर्टर : नहीं; हमारी नहीं है। …पहले जगह लेनी पड़ती है क्या?
मुश्ताक़ : हाँ। यहाँ सरकारी नहीं है।
रिपोर्टर : प्राइवेट है ये?
मुश्ताक़ : हाँ। …तो यहाँ जगह आपको लेना पड़ेगा।
रिपोर्टर : अच्छा; क़ब्र की एडवांस बुकिंग करवानी पड़ेगी? …कितना एडवांस देना होगा?
मुश्ताक़ : (एक आते हुए लड़के की तरफ़ इशारा करते हुए) …लड़का आ रहा है, ये बताएगा।
मुश्ताक़ के अनुसार, शाह वलीउल्लाह दरगाह के अंदर क़ब्र के लिए ज़मीन महँगी है। उसने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि वहाँ जगह लेने के लिए उन्हें एक लाख रुपये ख़र्च करने होंगे; वह भी अभी जगह उपलब्ध नहीं है।
रिपोर्टर : अंदर वाली जगह कितने की है, एक लाख की थी?
मुश्ताक़ : नहीं; …थी, अब ख़त्म हो गयी।
मुश्ताक़ ने बताया कि एक बार जब हम (रिपोर्टर) क़ब्र पहले से बुक कर लेंगे, तो कोई भी उसका इस्तेमाल नहीं कर सकेगा। ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने 10 साल पहले ही क़ब्र बुक करा ली थी।
मुश्ताक़ : एक बार जगह मोल ले लोगे, तो हमेशा तुम्हारी हो जाएगी; कोई और नहीं आएगा।
रिपोर्टर : मतलब कि एडवांस बुकिंग करवानी पड़ती है, तब दफ़्न होगा।
मुश्ताक़ : हाँ।
रिपोर्टर : मतलब, एक साल पहले भी करा सकते हैं लोग एडवांस?
मुश्ताक़ : 10-10 साल पहले भी करा लेते हैं लोग।
रिपोर्टर : आप क्या करते हो?
मुश्ताक़ : क़ब्र खोदते हैं।
रिपोर्टर : कितने साल हो गये?
मुश्ताक़ : 20-22 साल।
रिपोर्टर : कितना पैसा मिलता है आपको?
मुश्ताक़ : 400 रुपये।
रिपोर्टर : एक क़ब्र का?
इस सवाल का जवाब न देकर मुश्ताक़ ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि लोग क़ब्रों की थोक बुकिंग करा रहे हैं।
रिपोर्टर : (कुछ ख़ुदी हुई क़ब्रों की तरफ़ इशारा करते हुए) …ये जो आगे वाली क़ब्रें हैं, ये आपने खोदी हैं?
मुश्ताक़ : हाँ।
रिपोर्टर : ये सारी एडवांस बुकिंग वाली हैं?
मुश्ताक़ : सारी नहीं। अब जैसे तुम आये हो, …अब जैसे तुम आ गये हो यहाँ; तो हम…., तीन की ले लो, चार की ले लो जगह।
रिपोर्टर : बिना जगह लिये दफ़ना नहीं सकते?
मुश्ताक़ : हाँ।
इसके बाद मुश्ताक़ ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को पप्पू नाम के एक और आदमी से मिलवाया। पप्पू पिछले 10-12 वर्षों से इस क़ब्रिस्तान में राजमिस्त्री का काम कर रहा है और पक्की क़ब्रें तैयार कर रहा है। उसने भी रिपोर्टर से 30,000 रुपये की अग्रिम धनराशि देकर क़ब्र बुक करने को कहा।
रिपोर्टर : कबसे कर रहे हो आप ये काम?
पप्पू : 10-12 साल हो गये। …मेरा है मिस्त्री का काम। …क़ब्र को पक्का बनाते हैं।
रिपोर्टर : आप यहाँ रहते हो क़ब्रिस्तान में?
पप्पू : हाँ।
रिपोर्टर : आप मुझे टोटल ख़र्चा बता दो?
पप्पू : टोटल यहाँ का 30,000 आ जाएगा, …और वैसे आप जाइए चाँद भाई बैठे हुए हैं। उनसे बात कर लीजिए, (मोबाइल) नंबर दे रहा हूँ।
रिपोर्टर : क्या हैं वो?
पप्पू : यहाँ के मेन ही समझो।
रिपोर्टर : ये मेवात फाउंडेशन किसकी है?
पप्पू : उन्हीं की है।
मेहंदियान क़ब्रिस्तान में क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग पर टिप्पणी करते हुए प्रसिद्ध इस्लामिक स्कॉलर डॉ. मक़सूद उल हसन क़ासमी कहते हैं- ‘मेहंदियान क़ब्रिस्तान में चल रही यह धाँधली बहुत-ही चौंकाने वाली प्रथा है। इसे तुरंत बंद किया जाना चाहिए। पूरी जगह पर अवैध क़ब्ज़ाधारियों ने क़ब्ज़ा कर रखा है और इसे उनसे मुक्त कराया जाना चाहिए।’

‘मेहंदियान भारत का एक ऐतिहासिक क़ब्रिस्तान है, जहाँ प्रसिद्ध इस्लामिक उलेमा शाह वलीउल्लाह देहलवी की दरगाह स्थित है। हर मुसलमान को इंतिक़ाल के बाद वहाँ दफ़्न होने पर फ़ख़्र (गर्व) होता है। क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग से एकत्र किया गया पैसा कहाँ जा रहा है? इसकी जाँच होनी चाहिए।’ -डॉ. क़ासमी कहते हैं।
उन्होंने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि भारत में सभी क़ब्रिस्तान वक़्फ़ बोर्ड के अंतर्गत आते हैं और मेहंदियान क़ब्रिस्तान भी वक़्फ़ बोर्ड की संपत्ति है। उन्होंने कहा कि वक़्फ़ बोर्ड के पदाधिकारियों को मेहंदियान में इस अग्रिम बुकिंग प्रथा पर तुरंत रोक लगानी चाहिए। एक अन्य इस्लामिक स्कॉलर ख़ालिद सलीम ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग अवैध है और मेहंदियान क़ब्रिस्तान वास्तव में वक़्फ़ बोर्ड की संपत्ति है।
सलीम ने बताया कि अली मोहम्मद शेर-ए-मेवात फाउंडेशन की शुरुआत इस्लामिक नेता अली मोहम्मद ने की थी, जो हरियाणा के मेवात से आये थे और दिल्ली के मेहंदियान में बस गये थे। उन्होंने बताया कि वह राजनीतिक रूप से जुड़े हुए व्यक्ति थे और इंदिरा गाँधी सहित उस समय के कांग्रेस नेताओं के साथ उनके घनिष्ठ सम्बन्ध थे। उन्होंने कहा कि इसी फाउंडेशन के बैनर तले उन्होंने भूमि पर नियंत्रण हासिल किया था।

मुस्लिम क़ब्रिस्तानों की तो बात ही क्या करें, ईसाई क़ब्रिस्तानों को भी इसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। क़ब्रों की बढ़ती संख्या और क़ब्रिस्तानों में कम पड़ती जगह के कारण माँग बढ़ रही है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है, मरने वालों को दफ़नाने के लिए जगह की तेज़ी से कमी पड़ती जा रही है। मुर्दों को दफ़्न करना सचमुच एक गंभीर मामला बन गया है, ख़ासकर ग़रीबों के लिए। कई शहरों से क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग की ख़बरें आ रही हैं, फिर भी इस प्रथा को रोकने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, टीडीपी नेता मोहम्मद अहमद ने हैदराबाद में वक़्फ़ बोर्ड के अधिकारियों को ऐसे अवैध सौदों के बारे में सूचित किया; लेकिन इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गयी। इसके अलावा इस तरह के गंभीर सौदों में धोखाधड़ी के आरोप भी बड़े पैमाने पर लग रहे हैं। एक व्यक्ति ने दावा किया कि उसके पिता ने एक क़ब्र बुक करायी थी; लेकिन जब उनका इंतिक़ाल हुआ, तो पता चला कि क़ब्रिस्तान के देखभालकर्ता ने उस जगह को किसी और को बेच दिया है। इससे भी ग़लत यह रहा कि उसने हमें पैसे वापस करने से भी इनकार कर दिया। सूत्रों से यह भी पता चला है कि जब 2004 में भाजपा नेता सिकंदर बख़्त का इंतिक़ाल हुआ, तो उन्हें एक ऐसी क़ब्र में दफ़नाया गया, जिसकी बुकिंग पहले ही 75,000 रुपये में हो चुकी थी। बाद में यह राशि पहले वाले मूल ख़रीदार को वापस कर दी गयी।
अब जबकि सरकार यह सुनिश्चित करने पर ज़ोर दे रही है कि वक़्फ़ संशोधन विधेयक-2024 संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाए, तो उम्मीद है कि मुस्लिम क़ब्रिस्तानों के बारे में ‘तहलका’ की यह पड़ताल, जहाँ वक़्फ़ संपत्ति होने के बावजूद क़ब्रें पहले ही बेच दी जाती हैं; अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करेगी और इस तरह की ग़ैर-क़ानूनी चलन के ख़िलाफ़ त्वरित कार्रवाई करेगी।