चुनावी षड्यंत्र

चुनाव आयोग पर लगातार धाँधली करके भाजपा को जिताने के आरोपों के बीच चुनाव आयोग ने मतदान की वीडियो और फोटोज 45 दिन में मिटाने का फ़ैसला लेकर अपने ऊपर चुनावी षड्यंत्र करने का एक और आरोप ख़ुद ही लगा लिया है। क्या चुनाव आयोग सोशल मीडिया पर वायरल चुनावी धाँधली के वीडियो और सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश से डर गया है, जिसमें चुनाव आयोग को किसी भी चुनावी डेटा को डिलीट न करने को कहा गया था?

हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय का आदेश ईवीएम का डेटा सुरक्षित रखने को लेकर था। लेकिन चुनाव आयोग ने वीडियो फुटेज और फोटो डिलीट करने की योजना बनाकर यह साबित कर दिया है कि वह एक पार्टी विशेष को जबरन चुनाव जिताने के रास्ते बंद नहीं करेगा। क्योंकि ईवीएम बदलने और फ़र्ज़ी मतदान के अनेक सुबूत होने के बाद भी न चुनाव आयोग  यह मानने को तैयार है कि चुनावों में धाँधली होती है और न ही निष्पक्षता से चुनाव कराने के लिए अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धता पर खरा उतरने को तैयार है।

कई महत्त्वपूर्ण लोगों ने यहाँ तक आरोप लगाये हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में 100 सीटों पर धाँधली करके भाजपा को जिताया गया है। 2019 में भी 16,00,000 ईवीएम के ग़ायब होने के भी दावे किये गये। 2024-25 में हुए कई विधानसभा चुनावों में भी इस तरह की धाँधली करके भाजपा को चुनाव जिताने के आरोप भी चुनाव आयोग पर लगे। हालाँकि कुछ चुनाव विश्लेषकों ने ऐसे आरोपों का खण्डन हमेशा किया है। लेकिन गड़बड़ियों के दावों के साथ कई ऐसे तथ्य सामने आते रहते हैं, जिनके आधार पर यह भी नहीं माना जा सकता कि चुनाव निष्पक्षता से हो रहे हैं। उदाहरण के रूप में हरियाणा चुनाव में कई ईवीएम ऐसी पायी गयीं, जिनकी बैटरी मदतान के बाद भी 75 प्रतिशत से 98 प्रतिशत तक चार्ज निकलीं। ऐसा असंभव है कि ईवीएम की बैटरी पूरे दिन मतदान के बाद कई दिन स्ट्रॉन्ग रूम में रहने पर भी इतनी ज़्यादा चार्ज रह सके। दूसरा चंडीगढ़ मेयर के चुनाव में निर्वाचन अधिकारी की हरकत किसी से छिपी नहीं है। इसके अलावा ज़्यादातर चुनावों में दूसरे कई ऐसे तथ्य और प्रमाण सामने आये हैं, जिनके होते हुए निष्पक्ष चुनाव की बात गले नहीं उतरती। इतने पर भी हर चुनाव में धाँधली के आरोप के बाद यह कहना कि चुनाव निष्पक्ष हुए हैं और निष्पक्षता के प्रमाण भी सार्वजनिक नहीं किये जाते हैं।

2024 में केंद्र सरकार ने चुनाव संचालन नियम-93(2)(ए) में संशोधन करके वीडियो और फोटो तक जनता की पहुँच को सीमित कर दिया था। अब वीडियो और फोटो 45 दिन में डिलीट करने का चुनाव आयोग का फ़ैसला निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया पर एक कुठाराघात है, जो चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर संदेह को और गहरा करता है। राजनीतिक पार्टियों की चुनावी धाँधली, करोड़ों रुपये का ख़र्च, मतदाताओं को रिझाने के लिए धन, बल, शराब और दूसरे तोहफ़े देने के चलन पर भी चुनाव आयोग कोई रोक नहीं लगाता। अब तो स्थिति यह है कि सत्ताधारी पार्टी की छोटी-छोटी शिकायतों पर भी तुरंत कार्रवाई होती है; लेकिन सत्ता में बैठे नेताओं की गंभीर हरकतों पर भी चुनाव आयोग आँखें मूँद लेता है। विपक्षी पार्टियों की जायज़ शिकायतें भी अनसुनी कर देता है। उनके नामांकन छोटी-छोटी कमियों के बहाने रद्द कर देता है।

विपक्षी पार्टियाँ और लाखों दूसरे लोग कई वर्षों से ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने की माँग कर रहे हैं। लेकिन सत्त पक्ष ईवीएम को छोड़ने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है। चुनाव आयोग की भाषा भी सरकार की भाषा बन चुकी है। केंद्रीय चुनाव आयोग को भारत निर्वाचन आयोग भी कहते हैं, जो कि एक स्‍वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है। चुनाव आयोग का कर्तव्य है कि वह लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव निष्पक्ष कराये। हालाँकि चुनाव आयोग भारत में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव कराने के अलावा राज्‍य सभा से लेकर राष्‍ट्रपति एवं उप-राष्‍ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचन प्रक्रिया का संचालन भी करता है। संविधान का अनुच्छेद-324 चुनाव आयोग को आदेश देता है कि वह स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराये। यही उसका कर्तव्य है। लेकिन चुनाव आयोग में अपने पक्ष के अधिकारियों को नियुक्त करके वर्तमान केंद्र सरकार ने यह साबित कर दिया है कि चुनाव उसके हिसाब से ही होंगे, जिसके लिए चुनाव अधिकारी भी अपनी मर्यादा और कर्तव्य भुलकर नियुक्ति का सरकारी अहसान उतारते नज़र आते हैं।

आगामी चार-पाँच महीने में बिहार में विधानसभा होने वाले हैं। इसके बाद 2026 में भी कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। राजनीतिक पार्टियाँ अभी से चुनाव जीतने के लिए अपनी काली कमायी लुटा रही हैं। जो जितना ताक़तवर है, उसके पास उतना ही ज़्यादा पैसा लुटाने के लिए है। चुनाव आचार संहिता की धज्जियाँ उड़ाने का अधिकार भी उसी के पास है। लेकिन चुनाव आयोग को इससे कोई मतलब नहीं। क्या यह एक चुनावी षड्यंत्र नहीं है?