महँगे हुए खाद्य तेल, किसानों को क्या फ़ायदा ?

– पाम ऑयल पर आयात शुल्क लगना अच्छी बात, लेकिन खाद्य तेलों में इसकी मिलावट रुके

योगेश

पाम ऑयल पर केंद्र सरकार ने आयात शुल्क शून्य से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया है। किसान लंबे समय से पाम ऑयल पर आयात शुल्क लगाने और खाद्य तेलों में पाम ऑयल की मिलावट रोकने की माँग कर रहे थे। इसी महीने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि लंबे समय से किसानों की माँग पर निर्णय लेते हुए केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों के आयात शुल्क को ज़ीरो (0) फ़ीसदी से बढ़ाकर 20 फ़ीसदी कर दिया है। लेकिन पाम ऑयल पर ही आयात शुल्क 20 प्रतिशत नहीं हुआ है, बल्कि पाम ऑयल से ज़्यादा आयात शुल्क रिफाइंड ऑयल पर 13.75 प्रतिशत बढ़कर 35.75 प्रतिशत हो गया है। पाम ऑयल पर आयात शुल्क लगने से इसका कुल प्रभावी शुल्क 27.5 प्रतिशत हो गया। हालाँकि केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार ने सन् 2023 में पाम ऑयल का आयात शुल्क घटाया था, जो सन् 2021 में 17.5 प्रतिशत था।

अब आयात शुल्क बढ़ने से रिफाइंड ऑयल और दूसरे खाद्य तेल महँगे होने लगे हैं। अभी तक जो सरसों का तेल 130 रुपये से लेकर 140 रुपये किलो था, उसका भाव बढ़कर 150 रुपये से 170 रुपये किलो हो चुका है। इसके अलावा सोयाबीन, मूँगफली, तिल और दूसरे खाद्य तेलों का भाव भी 15 रुपये लीटर से 25 रुपये लीटर तक बढ़ गया है। त्योहारी सीजन में खाद्य तेलों के महँगे होने से कम कमायी वाले लोगों को तकलीफ़ हो रही है। गाँवों में जिन लोगों के पास सरसों हैं, उन्हें छोड़कर तेलों की महँगाई से सब परेशान हैं। पाम ऑयल और रिफाइंड ऑयल पर आयात शुल्क बढ़ने से किसानों को लाभ तब हो सकता है, जब उनकी तिलहन वाली फ़सलों के दाम अच्छे मिलें। हालाँकि अभी तक किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से भी भाव नहीं मिल पा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा तय सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,650 रुपये प्रति कुंतल है; लेकिन किसानों को सरसों का भाव 5,000 रुपये प्रति कुंतल से ज़्यादा नहीं मिल पा रहा है। मूँगफली का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6,783 रुपये प्रति कुंतल है। लेकिन किसानों को मूँगफली का भाव 6,000 रुपये प्रति कुंतल भी नहीं मिल पा रहा है। तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 9,267 रुपये प्रति कुंतल है; लेकिन किसानों को तिल का भाव 8,500 रुपये प्रति कुंतल के आसपास ही मिल पा रहा है। सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,892 रुपये है; लेकिन इसका भाव भी सोयाबीन उगाने वाले किसानों को सरकारी भाव के हिसाब से नहीं मिल पा रहा है। सूरजमुखी का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी 7,280 रुपये प्रति कुंतल है; लेकिन सूरजमुखी उगाने वाले किसान भी कम भाव मिलने को लेकर पिछले कई वर्षों से सरकार से शिकायत कर रहे हैं। किसानों के अधिकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ आड़तियों को मिलता है, जो किसानों की फ़सलें मंडी पहुँचने से पहले ही सस्ते भाव में नक़द ख़रीद लेते हैं। मंडी तक जो मध्यम और बड़े किसान पहुँच जाते हैं, उनकी फ़सलों में मंडी विभाग के अधिकारी और फ़सलों को ख़रीदने वाले मुंशी कमी बताकर भाव गिराने की कोशिश करते हैं। लेबी पर कई अन्य तरह की अड़चनें फ़सलों की ख़रीदारी को लेकर पैदा कि जाती हैं। किसानों की शिकायत रहती है कि उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य पहले ही नहीं मिल पाता है और अगर कुछ फ़सलों का मिलता भी है, तो उसका भुगतान तुरंत नहीं मिलता। किसानों की ये समस्याएँ कोई आज की नहीं हैं; उन्हें कई स्तरों पर हमेशा से तंग किया जाता है।

तिलहन वाली फ़सलों का भाव अच्छा न मिलने के चलते किसानों ने इन फ़सलों को उगाना कम कर दिया है, जिससे देश की बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्य तेलों की आपूर्ति पूरी नहीं हो पाती। केंद्र सरकार खाद्य तेलों की आपूर्ति पूरी करने के लिए पाम ऑयल और रिफाइंड ऑयल को बाहर से मँगाती है। जब सन् 2023 में केंद्र सरकार ने पाम ऑयल पर से आयात शुल्क घटाया, तो खाद्य तेलों में इसका आयात बढ़ने के साथ-साथ इसकी मिलावट भी बढ़ गयी और इसका बुरा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा। हमारे देश में पाम ऑयल का आयात शुल्क बढ़ने से खाद्य तेलों में इसकी मिलावट कम नहीं होगी। क्योंकि व्यापारियों ने आयात शुल्क का ख़र्च निकालने के लिए खाद्य तेलों को महँगा कर दिया है। इसके लिए मिलावटी लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी होगी। किसान आन्दोलन से लेकर आज तक किसान लगातार अपनी माँगों को केंद्र सरकार के सामने रख रहे हैं। किसानों की इन माँगों में न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारंटी क़ानून बनाने की माँग भी शामिल है। लेकिन केंद्र सरकार किसानों की हर माँग को अनसुना कर रही है। देशवासियों के बिगड़ते स्वास्थ्य और किसानों को तिलहनी फ़सलों का अच्छा भाव न मिलने के चलते पाम ऑयल के निर्यात पर 90 प्रतिशत निर्यात शुल्क बढ़ाने और खाद्य तेलों में पाम ऑयल की मिलावट को पूरी तरह प्रतिबंधित करने के लिए किसान महापंचायत ने 11 सितंबर, 2024 को देश के प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखकर प्रार्थना की थी। इससे पहले भी किसान महापंचायत ने कई बार खाद्य एवं विपणन मंत्रालय से लेकर प्रधानमंत्री से पाम ऑयल की खाद्य तेलों में हो रही मिलावट को रोकने और पाम ऑयल पर आयात शुल्क बढ़ाने को लेकर माँग की थी।

पाम ऑयल के बारे में डॉक्टर बताते हैं कि यह खाने लायक नहीं होता है और न ही जल्दी पचता है। पाम ऑयल ताड़ के पेड़ के फलों से निकलता है, जो उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में उगते हैं। इस तेल को पचाने के लिए गर्म स्थानों पर रहने लोगों की क्षमता ज़्यादा होती है। इसका उपयोग डिटर्जेंट पाउडर, साबुन और लिपस्टिक, ब्लीच आदि सौंदर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है। पाम ऑयल का उपयोग जैव ईंधन के रूप में भी किया जाता है। लेकिन हमारे देश में इसे खाद्य तेल के रूप में उपयोग किया जाने लगा है, जिससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। मिलावट करने वाले इसका व्यापार करके अंधाधुंध कमायी कर रहे हैं; क्योंकि यह खाद्य तेलों से काफ़ी सस्ता पड़ता है। हमारे देश के अलावा इसका व्यापार कई एशियाई देशों में होता है; लेकिन विकसित देशों में इसे नहीं खाया जाता है। इस तेल का उपयोग पैकिंग वाले फूड में ज़्यादा होता है, जिससे लंबे समय तक खाने की चीज़ें ख़राब नहीं होती हैं। आइसक्रीम बनाने में पाम ऑयल का उपयोग होने लगा है, जो बहुत नुक़सान पहुँचाने वाला होता है। शरीर में विटामिन-ए की कमी को दूर करने वाली दवाओं में भी पाम ऑयल का उपयोग होता है। इसके अलावा मलेरिया, दिल के रोगों, कैंसर और दूसरी कई बीमारियों को ठीक करने वाली दवाओं में भी पाम ऑयल का उपयोग किया जाता है। लेकिन पाम ऑयल के अच्छे खाद्य तेल के रूप में खाने की सलाह कभी डॉक्टर नहीं देते हैं। पाम ऑयल को अगर खाना ही पड़े, तो इसकी मात्रा दो से 10 प्रतिशत से ज़्यादा खाद्य तेलों में नहीं होनी चाहिए।

हमारे देश में भी ताड़ की खेती हो रही है। हमारे देश में पाम ऑयल उत्पादन 4,00,000 टन है। वित्त वर्ष 2030-2031 तक पाम ऑयल का उत्पादन बड़कर 1.2 मिलियन से 1.5 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुँचने की उम्मीद है। हमारे देश मे अभी ताड़ की खेती 3,75,000 हेक्टेयर तक फैली है। अगले साल तक ताड़ की खेती बढ़कर 4,55,000 हेक्टेयर से ज़्यादा होने की संभावना है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी साल 1990 के दशक से ताड़ की खेती होती रही है। साल 2016 से अब तक अकेले नागालैंड में ताड़ की खेती में 3,000 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन हमारे देश में खाद्य तेलों की बढ़ती माँग के कारण केंद्र सरकार ने 1990 के दशक से आयात पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश की थी; लेकिन पिछले कुछ वर्षों से पाम ऑयल पर आयात शुल्क शून्य होने से इसका आयात बढ़ गया और आयात बढ़ने से ही इसकी मिलावट खाद्य तेलों में बढ़कर 40 प्रतिशत से 74 प्रतिशत तक पहुँच गयी, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक है। हमारे देश में पिछले दो दशकों में पाम ऑयल की खपत में लगभग 230 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। आज हमारा देश पाम ऑयल का विश्व में सबसे बड़ा आयातक है। आज हमारी रसोइयों में खाद्य तेलों में मिलावट के रूप में लगभग 56 प्रतिशत से ज़्यादा पाम ऑयल पहुँच चुका है, जो हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ रहा है।

वित्त वर्ष 2015-16 से केंद्र सरकार ने तिलहन और पाम ऑयल को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय मिशन की शुरुआत की। राष्ट्रीय मिशन – पाम तेल (एनएम ईओ-ओपी) नीति-2021 के साथ केंद्र सरकार अब पाम ऑयल और तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने पर ज़ोर दे रही है। हमारे देश में 90 प्रतिशत से ज़्यादा पाम ऑयल इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड से आता है।

वन विभागों ने राष्ट्रीय वन सर्वेक्षणों की रिपोर्ट में भ्रामक रिपोर्ट में ताड़ की खेती से हमारे पर्यावरण को होने वाले नुक़सान को छुपाया है, तो डॉक्टरों ने पाम ऑयल के खाने से होने वाले स्वास्थ्य नुक़सान नहीं बताये हैं। खाद्य तेलों को बेचने वाली कम्पनियों ने भी अपने तेल की बोतल पर उसी तेल के बारे में शुद्ध या 100 प्रतिशत शुद्ध लिख रखा है, जिससे उपभोक्ता भी पाम ऑयल को बिंदास होकर खा रहे हैं।

पाम ऑयल पर आयात शुल्क लगाने और खाद्य तेलों में पाम ऑयल की मिलावट रोकने के लिए किसानों ने केंद्र सरकार तक कई बार अपनी आवाज़ पहुँचाने की कोशिश की; लेकिन किसान सफल नहीं हुए। किसानों की सरसों की फ़सल सस्ती ख़रीदारी जाने के कारण 06 अप्रैल, 2023 को पूरे देश के किसानों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर सरसों सत्याग्रह के नाम से प्रदर्शन करके उपवास किया था। लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी माँगों को अनसुना कर दिया। अब पाम ऑयल का आयात शुल्क 20 प्रतिशत करके केंद्र सरकार ने अपना राजस्व बढ़ाने का इंतज़ाम किया है। इसका पाम ऑयल की मिलावट पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पाम ऑयल की मिलावट रोकने के लिए पूरे देश की जनता को इसका विरोध करना पड़ेगा।