हिंदुस्तान में हर घर और हर व्यावसायिक केंद्र को 24 घंटे बिना रुकावट के बिजली आपूर्ति एक बड़ी समस्या बनी हुई है। अभी हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में भी बिजली आपूर्ति का संकट लगातार बना हुआ है। इसके अलावा बिजली के बिलों से लोग परेशान हैं। जिन घरों में दो-चार बल्ब और एक-दो पंखे भी लगे हैं, उनका बिल भी हज़ारों रुपये महीने का आ रहा है। दिल्ली जैसे राज्य में पिछली आम आदमी पार्टी की पिछली सरकार ने बिजली न बनाने के बावजूद 24 घंटे 200 यूनिट तक मुफ़्त और उससे ऊपर की यूनिट पर सस्ती बिजली की उपलब्धता के सपने को ज़रूर पूरा किया, बाक़ी किसी भी राज्य या शहर में अभी तक यह मुमकिन नहीं हो सका है। इसकी वजह बिजली उत्पादन के सीमित संसाधन और कोयले पर बिजली आपूर्ति की बड़ी निर्भरता है। सौर ऊर्जा यानी ग्रीन एनर्जी एक ऐसा प्राकृतिक स्रोत है, जिसकी हर प्राणी, पेड़-पौधे को तो ज़रूरत होती ही है, इससे घरों में रोशनी फैलाने से लेकर उद्योग धंधे भी चलाये जा सकते हैं और इसका सबसे सस्ता और सुलभ माध्यम हैं- सोलर पैनलों का विस्तार। आज दिल्ली हो चाहे मुंबई हो, कलकत्ता हो चाहे मद्रास या फिर किसी भी राज्य के किसी बड़े शहर से लेकर छोटे-छोटे गाँव हों, वहाँ सोलर पैनल से सौर ऊर्जा यानी ग्रीन ऊर्जा सस्ती, टिकाऊ और आसानी से उपलब्ध हो पा रही है। मेरे ख़याल को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे हर घर और हर व्यावसायिक केंद्र को 24 घंटे सस्ती बिजली मिल सके, जिसके लिए सौर ऊर्जा से अच्छा संसाधन कोई दूसरा नहीं है।
बहरहाल, ग्रीन एनर्जी और औद्योगिक क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र की मोदी सरकार और ओडिशा सरकार ने हाल ही में मेक इन ओडिशा कॉन्क्लेव 2025 के तहत तक़रीबन 22,700 करोड़ रुपये के एमओयू सिर्फ़ ग्रीन एनर्जी के लिए साइन किये हैं। इस व्यापार समझौता कॉन्क्लेव का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। इस दौरान उन्होंने हिंदुस्तान में ग्रीन एनर्जी हब बनने की ओडिशा की ज़रूरतों और महत्त्वाकांक्षा के बारे में बताया। उम्मीद है इससे ओडिशा जैसा पिछड़ा राज्य भी ग्रीन एनर्जी और औद्योगिक विकास में बुलंदियों को छुएगा। यह समझौता भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी अवाडा ग्रुप के साथ ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी की उपस्थिति में हुआ है। इस दौरान ओडिशा सरकार में उद्योग सचिव हेमंत शर्मा ने बताया कि ओडिशा खनिज पदार्थों के मामले में काफ़ी महत्त्वपूर्ण राज्य है। पहले यहाँ के 50 फ़ीसदी खनिज पदार्थ, जिनमें स्टील, एल्युमीनियम और दूसरे कई पदार्थ हैं, दूसरे राज्यों, ख़ास तौर पर झारखंड, बिहार, छत्तीगढ़ में चले जाते थे। हालाँकि हम जून 2023 में एक लॉन्ग टर्म लिंकेज फार्म सी फॉर रॉ मैटेरियल लेके आये थे, जिसमें हमने गारंटी दी थी कि जो प्लांट्स ओडिशा में लगेंगे, आयरन हो, सीसा हो, निकल हो या बॉक्साइट हो, इन खनिजों में जितना खनिज ओडिशा माइनिंग कार्पोरेशन निकालती है, उसका 70 फ़ीसदी लोकल इंडस्ट्रीज के लिए रिजर्व होगा। पहले इनको मिलेगा। अगर लोकल इंडस्ट्री नहीं लेंगी, तो उसे बाहर राज्यों में भेजा जाएगा। हालाँकि अभी वो 70 फ़ीसदी पर नहीं पहुँच पाये हैं, वो अभी 50 फ़ीसदी के आसपास ही है। लेकिन इस बार जो हमने क़रीब कई छोटी-बड़ी कम्पनियों के साथ एमओयू साइन किये हैं, उससे लगता है कि यहाँ के खनन से मिलने वाले खनिज पदार्थों का राज्य में ही 70 से 80 फ़ीसदी तक उपयोग हो सकेगा।
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पूरे देश की कई बड़ी कम्पनियों ने यहाँ औद्योगिक संभावनाएँ देखते हुए ओडिशा में उद्योग स्थापित करने में रुचि दिखायी है। कालाहांडी जो कभी कई समस्याओं के लिए जाना जाता था, आज वहाँ औद्योगिक विकास काफ़ी हो चुका है। बड़ी बात यह है कि हमने इस बार छोटे उद्योगपतियों को भी आमंत्रित किया था, जिसमें से बहुतों की रुचि ओडिशा में प्लांट लगाने की जगी है। हमने इथेनॉल ग्रेन बेस्ड भी दो-तीन साल पहले ही कम्पनियों को अलाउ कर दिया था। अब कम्पनियाँ कई चीज़ों से इथेनॉल बनाकर ऑयल मार्केटिंग कम्पनियों को दे सकती हैं।
विनीत मित्तल ने बताया कि अवाडा ग्रुप ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में काम करती है। हम लोग क़रीब 20,000 मेगावाट के प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं। पूरे देश में आज ग्रीन एनर्जी की माँग हो रही है। आज के लोग बहुत ज़िम्मेदार हैं और वे ग्रीन एनर्जी की उपयोगिता समझ रहे हैं। लोग ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि शहरों में भी ग्रीन एनर्जी पाने के लिए सोलर पैनल लगा रहे हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि एक बार पैसा लगाने के बाद न सिर्फ़ 24 घंटे उन्हें बिजली मिल सकेगी, बल्कि उसका ख़र्चा भी दोबारा नहीं करना पड़ेगा। बिना पैसे के तो कुछ नहीं हो सकता; लेकिन इस क्षेत्र में बार-बार पैसा लगाने या कहें कि बहुत पैसा लगाने की ज़रूरत ही नहीं है। ईश्वर ने हमें प्राकृतिक रूप से बहुत संपन्न बनाया है और हमें उसका इस तरह उपयोग करना चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ी को भी उसका फ़ायदा मिल सके।
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दरअसल, आज पूरी दुनिया में ग्रीन एनर्जी प्राप्त करने की होड़-सी लगी हुई है; लेकिन हिंदुस्तान में इसके प्रति अभी भी जागरूकता और प्रोत्साहन की कमी नज़र आती है। सौर ऊर्जा के ज़रिये ग्रीन एनर्जी यानी सूरज से बिजली उत्पादन के मामले में हिंदुस्तान अभी भी 10वें स्थान पर है, जबकि दुनिया में बिजली खपत करने वाला सबसे बड़ा तीसरा देश हिंदुस्तान है। तीन साल पहले इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) की इंडिया एनर्जी आउटलुक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2040 तक औद्योगिक विकास की वजह से हिंदुस्तान में बिजली की माँग बढ़ती रहेगी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल, 2015 में साल 2022 तक हिंदुस्तान में 175 गीगावाट ग्रीन एनर्जी उत्पादन का जो लक्ष्य तय किया था, हिंदुस्तान अभी उसमें बहुत पीछे है और अभी तक अनुमानित तौर पर 100 गीगावाट के लक्ष्य को भी नहीं छू सका है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रीन एनर्जी के उत्पादन मामले में हिंदुस्तान अभी तक सिर्फ़ 54 फ़ीसदी यानी तक़रीबन 94 गीगावाट का लक्ष्य पर ही पहुँच सका है। साल 2015 में हिंदुस्तान तक़रीबन 40 गीगावाट ग्रीन एनर्जी का उत्पादन कर रहा था, जबकि खपत के लिहाज़ से हिंदुस्तान को 250 गीगावाट ग्रीन एनर्जी की ज़रूरत है। देश के सिर्फ़ दो राज्य कर्नाटक और गुजरात ही ग्रीन एनर्जी उत्पादन के लक्ष्य का 70 फ़ीसदी का आँकड़ा छू सके हैं। इसके अलावा ग्रीन एनर्जी उत्पादन मामले में तमिलनाडु और राजस्थान 69 फ़ीसदी और आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश क्रमश: 47 फ़ीसदी, 47 फ़ीसदी और 43 फ़ीसदी ग्रीन एनर्जी उत्पादन के आँकड़े को छू सके हैं। उत्तर प्रदेश इस मामले में अभी बहुत पिछड़ा है, जो अभी तक सिर्फ़ 27 फ़ीसदी ग्रीन एनर्जी के उत्पादन के लक्ष्य को छू सका है। कई राज्य तो इससे भी पिछड़े हुए हैं।
बहरहाल, समस्या यह है कि एक तरफ़ बिजली कम्पनियों को बिजली काफ़ी सस्ती पड़ती है, वहीं उपभोक्ताओं को यह काफ़ी महँगी पड़ती है। इसका हिसाब इंटरनेट जैसा ही है, जो कि कम्पनियों को बहुत सस्ता और उपभोक्ताओं को बहुत महँगा पड़ता है। यही वजह है कि जो कम्पनियाँ पानी, कोयले और दूसरे संसाधनों से बिजली बनाकर उनकी सप्लाई कर रही हैं, वो कभी नहीं चाहतीं कि हिंदुस्तान सौर ऊर्जा यानी ग्रीन एनर्जी से संपन्न हो। क्योंकि जब उपभोक्ताओं को सस्ती और सुलभ बिजली आपूर्ति होने लगेगी, तो उनके करोड़ों रुपये सालाना का बिजली आपूर्ति का धंधा न सिर्फ़ मंदा होगा, बल्कि उन्हें मोटा मुनाफ़ा भी नहीं मिल सकेगा। सोलर पैनलों से ग्रीन एनर्जी पर सबका अधिकार होना चाहिए और इसे एक जन्मसिद्ध अधिकार की तरह ही सबके लिए सुलभ उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जिसमें केंद्र सरकार से लेकर हर राज्य की सरकार को आगे आना होगा। लेकिन केंद्र सरकार और राज्य सरकारें ग्रीन एनर्जी के भी दाम वसूलना चाहती हैं, जिसके लिए इस मामले को केंद्रीय मुद्दा माना जा रहा है। हालाँकि मुझे नहीं लगता कि सौर ऊर्जा का बाज़ारीकरण होना चाहिए। हाँ, अगर कोई इस सौर ऊर्जा से औद्योगीकरण करके मुनाफ़ा कमा रहा है, तो उसके लिए बिल की व्यवस्था ज़रूर होनी चाहिए; लेकिन घरेलू उपयोग के लिए इसके दाम नहीं वसूले जाने चाहिए।
दिल्ली जैसे राज्यों का हाल यह है कि यहाँ साल के तक़रीबन 10 महीने घरों में एसी चलते हैं। नवंबर, 2024 तक हिंदुस्तान के कई राज्यों में गर्मी ही रहती है। वहीं कई राज्य ऐसे हैं, जहाँ साल भर तक गर्मी ही रहती है। केंद्रीय बिजली मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक, दिसंबर 2024 में देश में बिजली खपत बढ़कर तक़रीबन 130.40 बिलियन यूनिट, जो दिसंबर, 2023 की तुलना में क़रीब छ: फ़ीसदी से भी ज़्यादा थी। क्योंकि दिसंबर, 2023 में बिजली की माँग 123.17 बिलियन यूनिट थी। इसकी वजह शहरों में सर्दी के समय हीटर, गीजर और ब्लोअर चलना बताया जाता है। गर्मियों में एसी, कूलर और पंखों के चलते खपत बढ़ती है।
केंद्र सरकार कह रही है कि उसने बिजली उत्पादन बढ़ाने में काफ़ी सफलता हासिल की है; लेकिन बिजली आपूर्ति के मामले में अभी भी समस्याएँ कम नहीं हुई हैं। आम उपभोक्ताओं के लिए न सिर्फ़ महँगी बिजली एक समस्या बनी हुई है, बल्कि 24 घंटे बिजली आपूर्ति भी एक बड़ी समस्या है। बिजली आपूर्ति में बाधा और महँगी बिजली के चलते किसानों को भारी नुक़सान उठाना पड़ता है।
केंद्र सरकार छूटे हुए घरों के विद्युतीकरण के लिए पुनरुद्धार वितरण क्षेत्र योजना (आरडीएसएस) के तहत राज्य सरकारों का सहयोग कर रही है। इसके अलावा प्रधानमंत्री जन-मन के तहत सभी चिह्नित पीवीटीजी (विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह) परिवारों को ऑन-ग्रिड बिजली कनेक्शन के तहत आरडीएसएस के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, वित्त पोषण की भी मंज़ूरी देने की दिशा में काम हो रहा है। पिछले साल लोकसभा में भी बिजली आपूर्ति की समस्या को लेकर सवाल उठे थे। लेकिन ज़रूरत समाधान की है, जिसके लिए ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में काम करने वाली कम्पनियों को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत भी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)