योगेश
उत्तर प्रदेश सरकार ने दूध में मिलावट रोकने के लिए दूध विक्रेताओं को आईडी कार्ड बनवाने और 500 लीटर दूध उत्पादन वाली डेयरी मालिकों को रजिस्ट्रेशन कराना ज़रूरी कर दिया है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (fssai) ने मिलावटी चीज़ों को रोकने के लिए मुहिम चलाते हुए मिलावटी और नक़ली दूध की बिक्री रोकने के निर्देश दिये थे, जिसके बाद उत्तर प्रदेश के खाद्य सुरक्षा विभाग ने दूध में मिलावट रोकने के लिए सभी दूध विक्रेताओं से आईडी कार्ड बनवाने और 500 लीटर से ज़्यादा दूध के विक्रेताओं और डेयरी मालिकों से रजिस्ट्रेशन कराकर दूध बेचने का लाइसेंस लेने को कहा है। खाद्य सुरक्षा विभाग के सहायक आयुक्त डॉ. सुधीर कुमार सिंह ने बताया है कि उत्तर प्रदेश में अभियान चलाकर दूध बेचने वालों का पंजीकरण कराया जाना तय हुआ है, जिसके अंतर्गत दूध विक्रेताओं को अब आईडी कार्ड लेकर चलना होगा।
इसके अलावा 500 लीटर या इससे ज़्यादा दूध उत्पादन करने वाले डेयरी मालिकों और दूध बेचने वालों को रजिस्ट्रेशन कराकर लाइसेंस लेना होगा, जिसकी फीस 100 रुपये से लेकर 7,000 रुपये तक है, जो डेयरी के आकार, दूध की बिक्री और दूसरी स्थितियों के हिसाब से ली जाएगी। यह सब सरकार ने दूध में मिलावट रोकने के लिए किया है। इससे मिलावट करके दूध बढ़ाने वालों की पहचान हो सकेगी और कोई भी नक़ली या मिलावट वाला दूध और दूध से बनी खाने-पीने की नक़ली चीज़ें नहीं बेच सकेगा। दूध बेचने वालों की पहचान के लिए प्रदेश में अभियान चलाया जा रहा है।
खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन ने कुछ दिन पहले खेरागढ़ में नक़ली दूध बनाने की फैक्ट्री पकड़ी थी, जिसमें हर दिन कई कुंटल नक़ली दूध बनाकर लोगों के घरों तक पहुँचाया जा रहा था। पिछले साल डेयरियों, दूध बेचने वालों और चिलर प्लांट से खाद्य सुरक्षा विभाग ने एक ही ज़िले से 246 नमूने लेकर जाँच की, तो उसमें से लगभग आधे 119 सैंपल असली दूध की कसौटी पर फेल हो गये थे। कई जगह बड़ी मात्रा में नक़ली दूध भी पकड़ा गया था। यह हाल एक ज़िले का है, तो पूरे प्रदेश का क्या हाल होगा? इसी को देखते हुए अब दूध बेचने वालों को आईडी कार्ड देने और 500 लीटर या इससे ज़्यादा दूध उत्पादन करने वाली डेरी मालिकों को लाइसेंस देने की ज़रूरत खाद्य विभाग को महसूस हुई। आईडी कार्ड बनने ओर लाइसेंस देने के बाद मिलावटी और नक़ली दूध बेचने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करते हुए उन्हें छ: महीने की सज़ा या 10,000 रुपये का ज़ुर्माना या दोनों हो सकते हैं। लाइसेंस न लेने या आईडी कार्ड न बनवाने वाले दूध विक्रेताओं और डेयरी मालिकों के ख़िलाफ़ भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी। नक़ली दूध और नक़ली दूध से बनी चीज़ें बनाने और बेचने वालों के ख़िलाफ़ हर साल कड़ी कार्रवाई होती है; लेकिन इस पर पूरी तरह रोक नहीं लग सकी है। अब खाद्य विभाग इसे रोकने के लिए पूरी तैयारी कर रहा है।
इसके बाद भी अगर कोई बिना लाइसेंस के दूध बेचेगा, तो उसके ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज होगा और मनमानी की पुष्टि होने पर 2,00,000 रुपये तक का ज़ुर्माना लगाने का प्रावधान होगा, जो ग़लती के हिसाब से कम या ज़्यादा हो सकता है। लाइसेंस लेने वालों और आईडी कार्ड बनवाने वालों को आधार कार्ड की कॉपी, पासपोर्ट साइज के तीन-चार फोटो, आधार से जुड़ा मोबाइल नंबर, पता आदि फार्म में संलग्न करना होगा। दूध बेचने वालों और डेयरी मालिकों को फार्म भरने के 24 से 48 घंटे में आईडी कार्ड और लाइसेंस मिल जाएगा। अगर कोई आईडी कार्ड बनवाकर 500 लीटर या उससे ज़्यादा दूध बेचता पकड़ा जाएगा, तो उस पर भी सख़्त कार्रवाई होगी। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन के खाद्य सुरक्षा अभियान के तहत नक़ली और मिलावटी खाने-पीने की चीज़ों की पहचान का व्यापारियों को प्रशिक्षण दे रहा है। इसके तहत नक़ली और मिलावटी दूध और उससे बनी खाने-पीने की चीज़ों की पहचान भी करायी जा रही है। इस प्रशिक्षण के लिए छोटे व्यापारियों को शुल्क के रूप में 200 रुपये और बड़े व्यापारियों को 708 रुपये जमा करने पड़ रहे हैं। असली और नक़ली के अलावा मिलावटी चीज़ों की पहचान करने के लिए दूध, दूध से बनी दूसरी खाने-पीने की चीज़ें, खाना, मिठाई, पेय और मीट की पहचान करायी जा रही है, जिसमें डेयरी, होटल-रेस्टोरेंट, मिष्ठान भंडार के अलावा अन्य खाद्य पदार्थ और पेय सामग्री से जुड़े व्यापारी प्रशिक्षण ले सकते हैं।
उत्तर प्रदेश के खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने उपभोक्ताओं से भी अपील की है कि वे दूध लेते समय विक्रेता का आईडी कार्ड या लाइसेंस ज़रूर देखें, तब दूध लें। अगर कोई दूधिया अपना आईडी कार्ड या लाइसेंस नहीं दिखाता है या नक़ली या मिलावटी दूध या दूध से बने उत्पाद बेचने वाला नज़र आता है, तो टोल फ्री नंबर- 18001805533 पर सुबह 10:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक सोमवार से शुक्रवार पाँच दिन शिकायत करके उसे सज़ा दिलाने में मदद करें।
लोकसभा में केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल नक़ली और मिलावटी दूध को लेकर सवाल उठा चुकी हैं। उन्होंने लोकसभा में कहा था कि दूध और दूध से बनी खाने-पीने की चीज़ों में मिलावट के सबसे ज़्यादा मामले उत्तर प्रदेश से आते हैं। इसके बाद से दूध और दूध से बनी खाने-पीने की चीज़ों की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए खाद्य सुरक्षा विभाग ने कमर कस ली और दूध बेचने वालों से लेकर दूध से बनी खाने-पीने की चीज़ें बेचने वालों की पहचान में जुट गया। यहाँ सवाल यह भी उठ रहा है कि उत्तर प्रदेश में ज़्यादातर पशुपालक छोटे स्तर पर ख़ुद ही गाँवों, क़स्बों और शहरों में दूध बेचने का काम करते हैं। उनके पास दूध असली होता है; लेकिन पानी ज़्यादातर दूध विक्रेता मिलाते हैं। इससे जाँच करने वालों को उन्हें ग़लत साबित करने का मौक़ा मिल जाएगा और वो उनसे रिश्वत लेना शुरू कर देंगे। दूध पहले ही पशुपालकों के लिए घाटे का सौदा बना हुआ है। अगर कोई पशुपालक असली दूध बेचेगा, तो उसे दूध देने वाले पशु की ख़ुराक भी नहीं मिलेगी। क्योंकि एक गाय या भैंस के दूध से बहुत ज़्यादा फ़ायदा पशुपालक को नहीं होता है।
पिछले साल उत्तर प्रदेश में योगी के शासन वाली सरकार ने देसी गाय पालन को बढ़ावा देने के लिए नंदिनी कृषक समृद्धि योजना लागू की थी, जिसका उद्देश्य दूध उत्पादन बढ़ाने और गायों की देसी नस्लें बचाने व बढ़ाने का था; लेकिन यह योजना सरकार की उम्मीद के मुताबिक सफल नहीं हुई। अब प्रदेश सरकार इस पर उतना काम भी नहीं कर रही है। इस योजना के तहत दलालों और बड़े पशुपालकों ने ख़ूब सरकारी पैसा हड़पा और उस पैसे का उपयोग अपने दूसरे कामों में कर लिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ख़ुद नंदिनी कृषक समृद्धि योजना की शुरुआत की थी, जिसके तहत प्रदेश सरकार ने किसानों को 25 स्वदेशी दुधारू गायों को पालने को कहा था, जिसमें साहीवाल गाय, गिर गाय, थारपारकर गाय और गंगातीरी गाय पालने को कहा गया था।
इस योजना में 62 लाख 50,000 रुपये की लागत सरकार ने निर्धारित की थी, जिसमें से 31 लाख 25,000 रुपये की सब्सिडी तीन बार में देने की योजना रखी गयी। लेकिन इस योजना में दलालों और चालाक डेयरी मालिकों ने ख़ूब पैसा बनाया। इस योजना के तहत डेयरी के लिए आधा एकड़ ज़मीन और गायों के चारे के लिए 1.5 एकड़ ज़मीन वालों को ही लाभ दिया जाना था, जिससे छोटे किसानों और छोटे पशुपालकों को इसका कोई लाभ नहीं मिल सका।
ऐसे ही ही उत्तर प्रदेश सरकार ने नाबार्ड डेयरी योजना का भी ऐलान किया था; लेकिन यह योजना धरातल पर ही नहीं उतर सकी और अब ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश सरकार ही इस योजना को भूल चुकी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश में दूसरी बार शासन है; लेकिन प्रदेश में डेयरी विकास और पशुपालन की गतिविधियाँ ठप पड़ी हुई हैं। गाय को माता कहकर उसके संरक्षण की बात करने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश में गोकशी तक नहीं रोक पा रहे हैं। गायों की दुर्दशा उनके मारे-मारे फिरने से ही देखी जा सकती है।
सन् 2013 में दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अखिलेश यादव के शासन वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने कामधेनु योजना शुरू की थी। इसके बाद 2014 में छोटे पशुपालकों के लिए मिनी कामधेनु योजना और 2015 में एकाध पशु पालने वालों को देखते हुए माइक्रो कामधेनु योजना अखिलेश यादव के शासन वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने चलायी थी। लेकिन सन् 2017 में भाजपा की सरकार उत्तर प्रदेश में बनी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बने, तो उन्होंने एक सप्ताह के भीतर सबसे पहले अपनी पूर्ववर्ती सरकार की कई योजनाओं की तरह कामधेनु योजना को भी ख़त्म कर दिया।
रही-सही कसर गौरक्षा के एजेंडे ने निकाल दी, जिसमें गौरक्षकों के डर से लोगों ने गायों को पालना कम कर दिया। कई लोगों ने गायों का पालन ही बंद कर दिया। गौरक्षा के लिए योगी आदित्यनाथ के शासन वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने गौशालाओं को खोलना शुरू किया; लेकिन आज उत्तर प्रदेश में गौशालाओं की दशा भी अच्छी नहीं है। आज गौमांस से लेकर दूसरे मीट निर्यात में पूरे देश में उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है, जो लगातार बढ़ती जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश से होने वाले कुल मीट निर्यात का 50.34 प्रतिशत हिस्सा उत्तर प्रदेश से ही निर्यात होता है।