सावन का महीना शुरू होते ही पूरा भारत शिवमय हो जाता है। भगवान शिव के भक्त अपने-अपने तरीक़े से उनकी आराधना करते हैं। इसी आराधना का हिस्सा कांवड़ लाना भी है। कांवड़ यात्रा आसान नहीं होती है। कांवड़ लाने के कठोर नियम इसे विशेष बनाते हैं।
देखा जा रहा है कि पिछले कुछ वर्षों से ऐसे लोग कांवड़ यात्रा में शामिल होने लगे हैं, जो धर्मार्थ नहीं, बल्कि आनंदार्थ कांवड़ यात्रा लाने जाते हैं। इनमें छोटे बच्चों से लेकर अधेड़ उम्र तक के लोग तो शामिल होते ही हैं, महिलाएँ भी अब शामिल होने लगी हैं। कांवड़ यात्रा को निर्विघ्न और सुविधाजनक बनाने के लिए सरकारें आम सड़कों से लेकर हाईवे तक विशेष व्यवस्था तय करती हैं। तक़रीबन 40 प्रतिशत प्रशासनिक अमला और 60 प्रतिशत से ज़्यादा पुलिस प्रशासन कांवड़ियों की यात्रा सुगम बनाने के लिए लगाया जाता है। इसके अलावा ज़्यादातर राजनीतिक पार्टियाँ, नेता और संगठन कांवड़ियों की सेवा-सुश्रूषा में लग जाते हैं। ठहरने, खाने-पीने और पैर दबाने तक की सेवा के लिए पूरे उत्तर भारत में लाखों कैंप लगा दिये जाते हैं। लेकिन अफ़सोस की बात है कि कांवड़ लाने वालों में अधिकांश कांवड़िये कथित होते हैं, जो नशेड़ी, जुआरी, सनकी, व्यभचारी और उपद्रवी होते हैं। बड़े-बड़े डीजे, उनमें भजनों के नाम पर बजते हुए ऊटपटांग भौंडे गीत इनकी भक्ति के आदर्श बन चुके हैं।

नशे में उपद्रव करना, तोड़फोड़ करना और मारपीट करना इन कथित कांवड़ियों का शौक़ बन चुका है। इनकी कांवड़ को कोई छू ले या न भी छूए, तो इनकी धार्मिक भावनाएँ इतनी आहत हो जाती हैं कि किसी को भी आरोपी बनाकर पीटना शुरू कर देते हैं। हत्या तक पर आमादा हो जाते हैं। वाहन तोड़ देते हैं। सड़क पर बवाल करने लगते हैं। ऊपर से दु:खद यह कि प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस के जवान इनके उपद्रव के आगे विवश दिखायी देते हैं। सरकारों की आज्ञा होती है कि कांवड़ियों को समस्या नहीं होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो हर साल आदेश दे देते हैं कि कांवड़ियों के लिए विशेष व्यवस्था की जाए और उन्हें कोई समस्या न हो। उनके निर्देश पर कांवड़ शिविर लगते हैं। सड़कों की मरम्मत होती है। प्रकाश की पूरी व्यवस्था होती है। वॉच टॉवर और सीसीटीवी कैमरे लगते हैं। फूल बरसाये जाते हैं। शौचालय, स्वच्छ पेयजल और चिकित्सा व्यवस्था की जाती है। खंभों पर प्लास्टिक शीट लगायी जाती हैं। इसके अलावा मांस, मदिरा की दुकानें बंद कर दी जाती हैं। डिवाइडर कट पर बैरिकेडिंग होती है। भोजनालयों पर रेट लिस्ट लगती हैं। उनका मालिक किस धर्म का है; लिखना पड़ता है।
इसके बाद भी कांवड़ियों को नशा करने के लिए शराब से लेकर गांजा, भांग और दूसरे नशीले पदार्थ कहाँ से उपलब्ध हो जाते हैं? यह ईश्वर जानता है या शायद सरकार। हद तो यह है कि कथित कांवड़िये इस बार हिंदुओं के भोजनालयों में तरह-तरह के आरोप लगाकर तोड़फोड़ कर रहे हैं। लेकिन उपद्रवियों पर कोई कार्रवाई नहीं! कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जहाँ इन कथित कांवड़ियों ने भोजन करने के बाद उसमें प्याज के झूठे आरोप लगाकर भोजनालयों पर तोड़फोड़ और मारपीट की। इन कथित कांवड़ियों ने एक जगह भोजन करने के बाद यह कहकर तोड़फोड़ की कि भोजन जूठी थालियों में परोसकर दिया गया। कई जगह मामूली कहासुनी पर ही तोड़फोड़ की। कई भोजनालयों पर भोजन में प्याज होने के आरोप लगाकर इन तोड़फोड़ की है। लूटपाट की है। हैरानी इस बात की है कि पुलिस पीड़ितों के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई कर रही है।

कुछ जगह पर पुलिस द्वारा उपद्रवी कांवड़ियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के भी मामले सामने आये हैं। कथित कांवड़ियों के उपद्रव के बीच पुलिस का यह साहस सराहनीय माना जाना चाहिए। क्योंकि ऐसे लोग कांवड़ के बहाने वही काम करते नज़र आते हैं, जो अपराधी करते हैं। कांवड़ की आड़ में इन्हें राजनीतिक संरक्षण मिल जाता है, जो राजनीतिक पार्टियाँ और नेता अपने फ़ायदे के लिए देते हैं। ऐसे में समझदार पुलिस जवानों का इस तरह के उपद्रवी कांवड़ियों से निपटना, क़ानून-पालन के मूल कर्तव्य की मिसाल है। सभी राज्यों की पुलिस और ज़िला प्रशासनिक अधिकारियों को ऐसा ही करना चाहिए। उपद्रियों को ख़िलाफ़ कार्रवाई करना कोई कांवड़ियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं है और न ही धार्मिक भावना को आहत करना है। यह कार्रवाई इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि कांवड़ की आड़ में उपद्रवी और आपराधिक तत्त्व अराजकता फैला रहे हैं। लूटपाट, मारपीट और तोड़फोड़ कर रहे हैं। नशे में धुत ऐसे लोग धर्म के लिए नहीं, बल्कि ऐश-मौज़ के लिए कांवड़ उठाकर चल देते हैं। पिछले वर्ष कई जगह कांवड़ियों ने उपद्रव मचाया था। कई हत्याएँ तक कर दी थीं। इस बार भी ऐसा न हो, इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस के जवानों को पूरी सतर्कता के साथ मुस्तैद रहना चाहिए और कांवड़ियों के वेश में छिपे अपराधियों को सबक़ सिखाना चाहिए; भले ही सरकारें कुछ भी कहें। क्योंकि ऐसे कथित कांवड़िये, वास्तविक कांवड़ियों के लिए भी सिर दर्द बने हुए हैं। कई बार कांवड़ियों में ही झड़पें होती देखी गयी है। इसकी वजह भी वे उपद्रवी ही होते हैं, जो कांवड़ के बहाने आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने के लिए मौक़े की तलाश में रहते हैं। उपद्रव करने के लिए आमादा रहने वाले ये कथित कांवड़िये प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस के जवानों की नाक में भी दम करके रखते हैं और भक्ति के माहौल को भी ख़राब कर देते हैं।
विशुद्ध भक्ति-भजन बजाने तक से परहेज़ करने वाले ये कथित कांवड़िये वास्तविक भक्ति से भी कोसों दूर होते हैं। गाली-गलोज करना, नशा करना, हुड़दंग करना, वीडियो बनाना, चलती सड़कों पर अजीब से गानों पर नाचने के नाम पर उछलकूद करना और क़ानून की धज्जियाँ उड़ाना इन कथित कांवड़ियों का चलन बन चुका है। ऐसे कथित कांवड़ियों की बदमाशियों के चलते वास्तविक कांवड़ियों को भी बदनामी का बोझ उठाना पड़ता है। वे कांवड़िये, जो धर्म, जाति और क्षेत्र आदि की सीमाओं से परे शिव-भक्ति में मगन होकर कांवड़ को कंधों पर उठाये किसी से बिना सेवा कराये आते-जाते हैं। उन्हें यह भी पता नहीं होता कि रास्ते में उन्हें पानी की बोतल देने वाला किस धर्म से था, किस जाति से था। उनके मुख पर भक्ति की चमक और जिह्वा पर भगवान शिव का सुमिरन होता है। लेकिन हर चुनाव में मनचाही जीत हासिल करने के लिए जबसे धर्म की आड़ में राजनीति होने लगी है, राजनीतिक लोगों ने धार्मिक पाखंडियों को अपना सबसे मज़बूत हथियार बनाया हुआ है। यही लोग उपद्रवी हैं।
ज़ाहिर है कि धर्म के नाम पर सीधे जीत नहीं मिल सकती। इसलिए लोगों को डराना ज़रूरी है और लोगों को डराने के लिए प्रशासनिक ताक़त अपने हाथ में लेने के साथ-साथ अपराधियों की ज़रूरत पड़ती है। अपराधियों को भी खुल्लमखुला अपराध करने के लिए राजनीतिक अपराधियों की ज़रूरत पड़ती है। इस तरह ये दोनों एक-दूसरे के पूरक बन गये हैं। जब भी कोई धार्मिक त्योहार या अनुष्ठान आता है; राजनीतिक अपराधी ऐसे अपराधियों को सक्रिय कर देते हैं, जो धर्म की आड़ लेकर उपद्रव कर सकें। आजकल ऐसा लगभग हर त्योहार पर होने लगा है। चाहे वह त्योहार किसी भी धर्म का हो। जिस धर्म का त्योहार है, अगर उस धर्म के लोग उपद्रव नहीं करना चाहते, तो दूसरे धर्म के लोगों को उपद्रव के लिए उकसाया जाता है। कांवड़ यात्रा में उवद्रवी चाहे जिस धर्म के हों; लेकिन आख़िर हैं वे उपद्रवी ही। उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की सख़्त ज़रूरत है।
हालाँकि इतनी बड़ी संख्या में कांवड़ियों के हरिद्वार पहुँचने से लेकर हरिद्वार से सुरक्षित वापसी तक के लिए उत्तराखंड के प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस प्रशासन की प्रसंशा करनी चाहिए। लेकिन अच्छा हो, जब एक भी शर्मनाक घटना न हो। ऐसा हो भी सकता है कि हर जगह कांवड़िये ही ग़लत न हों। हो सकता है कि कुछ लोग भी कांवड़ियों के साथ भी दुर्व्यवहार कर देते हों। लेकिन कांवड़िये तो भगवान शिव की भक्ति करने निकले हैं। उन्हें क्षमा करना आना चाहिए। उन्हें अपने व्यवहार से ऐसी मिसाल पेश करनी चाहिए, जिससे स्व-धर्म के साथ-साथ दूसरे धर्म के लोग भी प्रभावित हों और उनकी सेवा-सुश्रूषा के लिए मन से आगे आएँ। अन्यथा जिन घटनाओं को कथित कांवड़िये अंजाम दे रहे हैं, उससे सभी कांवड़ियों के साथ-साथ सनातन धर्म और कांवड़ यात्रा बदनाम हो रही है। और यह गौरव की बात नहीं है। इसलिए कांवड़ियों से अनुरोध है कि वे कांवड़ यात्रा को कलंकित न करें।