सुख-सुविधाओं के साथ-साथ बढ़ रहीं बीमारियाँ

शहरीकरण और पैसे कमाने की ललक ने इंसान के स्वास्थ्य को खा लिया है। आज के समय में पूरी तरह स्वस्थ इंसान को ढूँढ पाना घास में सुई ढूँढने के बराबार है। हालात ये हो चुके हैं कि गर्भ में पलने वाले बच्चे भी बीमारियों का घर बन रहे हैं। इंसानों का स्वास्थ्य बिगड़ने के कई कारण हैं। खानपान, वायुमंडल, पानी, दवाइयाँ, कीटनाशक, हानिकारक रसायन, प्लास्टिक, एल्युमीनियम, नशा, भागदौड़, तनाव, चिन्ता, चिड़चिड़ापन, बिगड़ती दिनचर्या, घंटों तक मोबाइल का इस्तेमाल, छोटी-छोटी बीमारियाँ होने पर लापरवाही एवं नीम-हक़ीमों के चक्कर में पड़ना, ये सब बीमारियों के वे कारण हैं, जिन्हें ज़्यादातर लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

आज के समय में इंसान सिर्फ़ शारीरिक रूप से ही बीमार नहीं है, बल्कि मानसिक रूप से भी बीमार हो चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें, तो चिन्ता और अवसाद के चलते ही संसार के 25 प्रतिशत लोग बीमार हैं। बाक़ी लोगों की बीमारी के कारण दूसरे हैं। दादी-नानी के घरेलू नुस्ख़े लोग अब भूल चुके हैं और किचन में शुद्ध समानांतर मसालों वाला सात्विक भोजन बनना कम हो गया है। उसकी जगह पैकेटबंद, चाइनीज और पश्चिमी खानपान हमारा नियमित आहार बन गया है। व्यायाम, प्राणायाम, योग, सूर्य नमस्कार, सुबह जल्दी उठने का चलन बहुत कम लोगों की दिनचर्या का हिस्सा हैं। सुबह 10:00 बजे के उठने वाले लोग जिम जाकर शारीरिक स्वास्थ्य की अपेक्षा रखते हैं। आयुर्वेद के अच्छे जानकार वैद्यों की कमी देखी जा रही है। जो वैद्य बचे भी हैं, उनका इलाज लंबा और महँगा हो चुका है।

आर्युवेद कहता है कि इंसान की इड़ा, सुषुम्ना और पिंगला नामक तीन नाड़ियाँ ही उसके स्वस्थ और अस्वस्थ होने के बारे में बता देती हैं। इन तीनों नाड़ियों से इंसान के वात, पित्त और कफ का पता चलता है, जिनके बिगड़ने से शरीर को बीमारियाँ लगने लगती हैं। पहले के वैद्य और हक़ीम नाड़ियों की गति को समझते थे; लेकिन एलोपैथिक डॉक्टर बिना मशीनों के बीमारियों का पता लगा ही नहीं पाते। पहले इंसान अभावों में रहता था; लेकिन ज़्यादातर लोग स्वस्थ रहते थे। अब इंसान के पास सुख-सुविधाओं की कोई नहीं है; लेकिन वह अपना स्वास्थ्य खोता जा रहा है। कई कारणों के अलावा कहीं-न-कहीं इसकी मुख्य वजह प्रकृति से खिलवाड़ और बढ़ता शहरीकरण भी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन गंभीर बीमारियों और हर साल बढ़ने वाली नयी-नयी बीमारियों को लेकर कई बार चिन्ता ज़ाहिर कर चुका है। विश्व में अनेक वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ गंभीर और नयी बीमारियों की दवाएँ खोजते रहते हैं। लेकिन इसके बाद भी बीमारियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इन बीमारियों से लाखों लोग हर साल मर जाते हैं।