– आतंकित रूप से फैलता जा रहा राजनीतिक डिजिलट हमलों का जाल
इंट्रो- आज के दौर में हर तरफ डिजिटल आतंक फैला हुआ है, जिसके चलते डिजिटल पर मौजूद हर इंसान पर हमला होने का खतरा बना हुआ है। लोग इसके शिकार भी हो रहे हैं। तहलका ने इस बार इसी को लेकर पड़ताल की है। तहलका एसआईटी की यह पड़ताल भारत के राजनीतिक गुप्त ट्रोल नेटवर्क पर एक नज़र डालती है, जहाँ डिजिटल पेशेवरों को रखा जाता है, जिन्हें ऑनलाइन एजेंट या डिजिटल हमलावर भी कहा जा सकता है। इन्हें राजनीतिक लोग अपने प्रतिद्वंद्वियों पर हमला करने और उन्हें बदनाम करने के लिए रखते हैं। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-
‘पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सोशल मीडिया पर एक हफ्ते तक ट्रोल करने के लिए 25 से 50 लाख रुपये दिये जा सकते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए भी यही दर है। यदि आप चाहते हैं कि ट्रोलिंग एक महीने तक जारी रहे, तो इसकी राशि करोड़ों में हो सकती है।’ – यह बात XXXX टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक निदेशक कमल नयन मिश्रा उर्फ रोहन मिश्रा ने तहलका के अंडरकवर रिपोर्टर से कही।
‘पश्चिम बंगाल और बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए मेरे पास प्रति उम्मीदवार 10 लाख रुपए की निश्चित दर है। मैं सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग के माध्यम से किसी भी उम्मीदवार की छवि को पूरी तरह से नष्ट कर दूंगा, चाहे वह किसी भी पार्टी का हो!’- रोहन अपनी सेवाओं के बारे में बताते हुए कहता है।
‘ममता बनर्जी, नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे आसान लक्ष्य हैं, क्योंकि उनके पास मजबूत आईटी टीम नहीं है। दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मनसे प्रमुख राज ठाकरे को ट्रोल करना मुश्किल है, क्योंकि उनके आईटी सेल बहुत मजबूत हैं और उद्धव ठाकरे आसान लक्ष्य हैं, क्योंकि उनके पास मजबूत आईटी टीम नहीं है।’- उन्होंने अपने लक्ष्य-चयन मानदंडों की एक झलक पेश करते हुए तहलका रिपोर्टर से कहा।

नयन मिश्रा उर्फ रोहन मिश्रा
‘भाजपा नीत केंद्र सरकार के कैबिनेट मंत्रियों, उनके वरिष्ठ नौकरशाहों और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर कार्रवाई करना कठिन है। वे कड़ा पलटवार करते हैं और उनकी डिजिटल टीमें इतनी प्रभावी हैं कि इसका उल्टा असर हम पर ही पड़ता है।’ – रोहन ने जोड़ा।
‘भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की ओर से किसी को ट्रोल करना आसान है, क्योंकि वे सत्ता में हैं और अगर हमें कुछ भी होता है, तो वे हमारी रक्षा करेंगे।’ – उन्होंने तहलका को बताया।
‘विभिन्न राजनीतिक दलों के विधायकों और सांसदों को निशाना बनाना आसान है। उन्हें ट्रोल करना आमतौर पर उल्टा नहीं पड़ता। यदि ट्रोलिंग नेपाल से की जाए, तो इसकी दर 2.5 से 3 लाख रुपये प्रति सप्ताह है। यदि यह मलेशिया से किया जाए, तो यह दर बढ़कर चार से पांच लाख रुपए प्रति सप्ताह हो जाती है। नेपाल में दरें कम हैं, क्योंकि वहां ट्रोलर्स का पता लगाना आसान है, जबकि मलेशिया में ऐसा नहीं है। वहां की सरकार भारत के साथ सहयोग नहीं करती, जिससे जांच में बाधा उत्पन्न होती है। यही कारण है कि मलेशिया महंगा है।’ – रोहन ने व्यापार की बारीकियों को समझाते हुए कहा।
‘कांग्रेस शासित कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को ट्रोल करना आसान है; लेकिन उप मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार को नहीं, वह एक मजबूत व्यक्ति हैं और वह पलटवार करेंगे।’ – उसने दावा किया।
‘अब भारत के अंदर से ट्रोलिंग नहीं की जाती। अब यह चीन, पाकिस्तान, मलेशिया और नेपाल जैसे देशों से होता है, जहां पकड़े जाने का जोखिम बहुत कम है। चूंकि भारत के नेपाल के साथ अच्छे संबंध हैं, इसलिए वहां ट्रोलर्स के पकड़े जाने का जोखिम मलेशिया, चीन या पाकिस्तान जैसे देशों की तुलना में अधिक है। यही कारण है कि नेपाल अन्य देशों की तुलना में सस्ता है।’ – रोहन ने कहा।
कुल मिलाकर सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग में लोगों को परेशान करने और कड़ी प्रतिक्रिया भड़काने के लिए जानबूझकर उत्तेजक, आक्रामक या विघटनकारी सामग्री ऑनलाइन पोस्ट करना शामिल है। हालांकि भारत में कोई ऐसा विशिष्ट कानून नहीं है, जो सीधे तौर पर ट्रोलिंग से निपटता हो; लेकिन इससे जुड़ी कई गतिविधियां, जैसे मानहानि, आपराधिक धमकी, दुश्मनी को बढ़ावा देना और यौन उत्पीड़न आदि मौजूदा कानूनों के तहत दंडनीय हैं।
हाल ही में पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब में पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाने के लिए भारत द्वारा चलाए गए सटीक सैन्य अभियान ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम की घोषणा करने के बाद भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री और उनके परिवार को ट्रोल किया गया था। इस ट्रोलिंग की आईएएस और आईपीएस एसोसिएशनों तथा कई राजनीतिक नेताओं ने कड़ी निंदा की और मिसरी का समर्थन किया। पिछले कुछ वर्षों में ट्रोलर्स ने समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को निशाना बनाया है। कुछ को गिरफ्तार किया गया है; लेकिन कई का अब भी पता नहीं चल पाया है।

इस ट्रोलिंग उद्योग की अंदरूनी कार्यप्रणाली को समझने के लिए तहलका ने एक गुप्त जांच की, जो पहले कभी नहीं की गई थी। तहलका ने नोएडा स्थित XXXX टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक-निदेशक कमल नयन मिश्रा उर्फ रोहन मिश्रा से मुलाकात की। यह बैठक नोएडा के एक रेस्तरां में हुई। तहलका रिपोर्टर ने खुद को ऐसे ग्राहक के रूप में प्रस्तुत किया, जो किसी को ऑनलाइन ट्रोल करना चाहते थे।
तहलका एसआईटी द्वारा किए गए स्टिंग के शुरुआती क्षणों में अंडरकवर रिपोर्टर ने रोहन मिश्रा से एक सीधा सवाल पूछा है कि क्या उसने कभी सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग की व्यवस्था की है?
रिपोर्टर : ये बताओ, ट्रोलिंग करवाई है कभी सोशल मीडिया पर?
रोहन : हां, अब तक किस-किसकी करवाई है, बता नहीं सकता आपको, …कभी क्लाइंट के लिए, कभी इंप्लाई के लिए; …हो जाता है सब, पर अकेले नहीं, लिंक में ही करना पड़ता है।
रिपोर्टर : ये चीजें तो ओपनली होती नहीं हैं, अगर आपने कराई है, तो मैं बात करवाऊँ?
रोहन : कराई है। पर किसकी, ये नहीं बताऊंगा; लेकिन कराई है। ये पार्ट ऑफ पीआर ही है (यह पीआर का हिस्सा ही है)।
रिपोर्टर : मैं प्राइज की बात नहीं कर रहा, काम हो जाएगा?
रोहन : काम हो जाएगा।
रिपोर्टर : कराया है आपने पहले?
रोहन : बहुत बार कराया है, एक बात आप कराओगे ना! आप बात ही नहीं करना सेकेंड वाले से, जब तक मैं पहले काम करके न आ जाऊं।
अपने वास्तविक उद्देश्य पर पहुंचने से पहले हमने रोहन से पूछा कि क्या वह राजनेताओं, जैसे विधायकों, सांसदों, मुख्यमंत्रियों और वरिष्ठ नौकरशाहों को ट्रोल कर सकता है? जवाब में रोहन ने स्वीकार किया कि वह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जम्मू-कश्मीर के उमर अब्दुल्ला और बिहार के नीतीश कुमार को ट्रोल कर सकते हैं, क्योंकि इन सभी की आईटी टीम अपेक्षाकृत कमजोर है। रोहन के अनुसार, किसी भी पार्टी के विधायकों और सांसदों को आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। हालांकि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के कैबिनेट मंत्रियों, उनके मुख्यमंत्रियों और वरिष्ठ नौकरशाहों को ट्रोल करना मुश्किल है। उन्होंने बताया कि चूंकि वे सत्ता में हैं और उनके पास मजबूत आईटी टीम का समर्थन है, इसलिए ऐसे प्रयास उन पर ही भारी पड़ सकते हैं। रोहन ने कहा कि अरविंद केजरीवाल को भी ट्रोल करना मुश्किल है, क्योंकि उनके पास एक मजबूत डिजिटल टीम है।
रिपोर्टर : ट्रोलिंग मतलब गालियां बकना?
रोहन : जो भी है, …एब्यूज (दुर्व्यवहार) करना, बुली करना (धमकाना), सब है सोशल मीडिया पर।
रिपोर्टर : आप बताओ, कहां से करवाओगे?
रोहन : नेपाल से।
रोहन (आगे) : प्रोफाइल क्या है?
रिपोर्टर : दो पॉलिटिशियन हैं, दो ब्यूरोक्रेट्स हैं, एक बिजनेसमैन है।
रोहन : क्या, …ग्रेड क्या है इनका?
रिपोर्टर : ब्यूरोक्रेट तो मान लो ए ग्रेड।
रोहन : पॉलिटिशियन में एमएलए का हो जाएगा।
रिपोर्टर : एमएलए का करा दोगे?
रोहन : हाँ, मंत्री का न हो, न कैबिनेट मिनिस्टर का, क्यूंकि उनकी पूरी टीम होती है, उनके साथ दिक्कत है, एमएलए का दिक्कत नहीं है, वो बैकफायर नहीं करते।
रिपोर्टर : मेंबर ऑफ पार्लियामेंट?
रोहन : हां, वो भी चलेगा। बस मिनिस्टर न हो, वो कॉस्टली भी है।
रिपोर्टर : वो देे को तैयार हैं, एक सीएम है।
रोहन : सीएम का तो नहीं हो पाएगा, ..अच्छा, बीजेपी का न हो?
रिपोर्टर : बीजेपी का नहीं है, पर सीएम है, …बीजेपी का न हो ऐसा क्यूं?
रोहन : उनका कंट्रोल है, बड़ी टीम है बीजेपी की।
रिपोर्टर : मतलब आपको पकड़ लेंगे, मगर नेपाल से कर रहे हैं, फिर क्यूं पकड़ पाएंगे?
रोहन : मैं कहता हूं स्टार्टिंग का क्यूं रिस्क लेना, …सीएम भी बड़ा है, पहले बाकी लोगों का देखते हैं।
रिपोर्टर : सीएम दूसरी पार्टी का दे देता हूं?
रोहन : हां, ठीक है।
रिपोर्टर : आप तो बोल रहे थे बीजेपी छोड़कर सबके सीएम हो जाएगा?
रोहन : तहां, आप पार्टी का नाम बताओ?
रिपोर्टर : टीएमसी?
रोहन : फिर तो हो जाएगा, इनका हो जाएगा।
रिपोर्टर : ममता बनर्जी?
रोहन : हां इनका हो जाएगा। कोई दिक्कत नहीं है।
रिपोर्टर : बंगाल की सीएम, हो जाएगा?
रोहन : केजरीवाल में दिक्कत है।
रिपोर्टर : क्यूं?
रोहन : आईटी का बंदा है, उसकी आईटी टीम स्ट्रांग है। …ममता की आईटी टीम स्ट्रांग नहीं है। जम्मू-कश्मीर की भी, मुंबई वाले की है स्ट्रांग।
रिपोर्टर : जम्मू एंड कश्मीर वाले की और ममता की नहीं है?
रोहन : नहीं है।
रिपोर्टर : मुंबई का है, …फडणवीस?
रोहन : हां, …बीजेपी का है न।
रिपोर्टर : ममता का हो जाएगा?
रोहन : ममता का हो सकता है, बिहार का हो सकता है, …नीतीश का भी।
रिपोर्टर ः नीतीश बाबू की ट्रोलिंग हो जाएगी?
रोहन : आराम से।
रिपोर्टर : बीजेपी के साथ है वो तो?
रोहन : हो जाएगी, उसमें बीजेपी का फायदा होगा।
रिपोर्टर : क्यूं? ट्रोलिंग नेगेटिव ही होगी, पोजिटिव तो नहीं होगी?
रोहन : ऑबवियसली।
रोहन ने स्वीकार किया कि भारत में जहां भी भाजपा सत्ता में है, वह आमतौर पर उनके मंत्रियों या विधायकों को ट्रोल नहीं करते हैं। न ही वह राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को निशाना बनाएंगे। उन्होंने कहा कि वह कर्नाटक के वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को ट्रोल कर सकते हैं, लेकिन उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार को नहीं – क्योंकि उनके अनुसार शिवकुमार अधिक प्रभावशाली हैं। रोहन ने दावा किया कि वह केवल उन लोगों पर हमला करते हैं जहां ट्रोलिंग का उल्टा असर नहीं होता। न ही वह राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को निशाना बनाएंगे। उन्होंने कहा कि वह कर्नाटक के वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को ट्रोल कर सकते हैं, लेकिन उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार को नहीं – क्योंकि उनके अनुसार शिवकुमार अधिक प्रभावशाली हैं। उन्होंने कहा कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पास भले ही मजबूत आईटी टीम न हो, लेकिन जामताड़ा जैसे क्षेत्र धोखेबाजों से भरे हुए हैं, जो आसानी से ट्रोलिंग का पता लगा सकते हैं।
रिपोर्टर : किस-किस की ट्रोलिंग हो सकती है, आप बता दो?
रोहन : जहां-जहां बीजेपी एक्टिव है पार्टी में, सत्ता में न हो बस सरकार में, बाकी उनका कर्नाटका में जो हैं कांग्रेस के ही हैं सीएम, उनका हो जाएगा।
रिपोर्टर : डी.के. शिवकुमार?
रोहन : न, उसका नहीं हो पाएगा।
रिपोर्टर : क्यूं?
रोहन : ज्यादा हाइप है।
रिपोर्टर : सिद्धारमैया से ज्यादा?
रोहन : हां।
रिपोर्टर : राहुल-प्रियंका?
रोहन : होने को तो हो जाएगा, …बैकफायर करेगा।
रिपोर्टर : मुझे इनका कराना नहीं है। अपनी जानकारी के लिए पूछ रहा हूं।
रोहन : बैकफायर जितना झेल पाओ, उतना होना चाहिए।
रोहन ने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि ट्रोलिंग के लिए उसे कुछ नहीं होगा। हालांकि उसने बड़ी लापरवाही से बताया कि जवाबदेही से बचने के लिए ऑनलाइन ट्रोलिंग का संचालन चीन, पाकिस्तान, मलेशिया और नेपाल जैसे विदेशी देशों के माध्यम से किया जाता है। उनका दावा है कि भारतीय ऑपरेटर अपनी पहचान छिपाने के लिए राउटर का उपयोग करते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि मूल स्रोत भारत से बाहर का प्रतीत हो।
रोहन : बैकफायर जितना झेल पाओ, उतना होना चाहिए। हम क्या करते हैं, राउटर लगाते हैं, मेरा नाम कहीं नहीं रहेगा। मेरा कुछ नहीं होगा, जो आएगा नेपाल से आएगा, मलेशिया से, चाइना से आएगा, …सबसे बढ़िया चाइना से, लेटेस्ट होगा।
रिपोर्टर : सारे लोग चाइना के होंगे करने वाले?
रोहन : चाइना से।
रिपोर्टर : वो पकड़ में नहीं आते?
रोहन : पकड़ में आते हैं, कुछ कर नहीं सकते ना उनका।
रिपोर्टर : पाकिस्तान से भी होता है?
रोहन : हां, चाइना का वहीं से तो आता है। चाइना का हेडक्वार्टर पाकिस्तान ही है।
रोहन ने तहलका रिपोर्टर को बताया कि अगर भाजपा उन्हें किसी को ट्रोल करने के लिए कहती है, तो वह बिना किसी हिचकिचाहट के ऐसा करेंगे, क्योंकि पार्टी सत्ता में है और अगर ट्रोलिंग के दौरान वह मुसीबत में पड़ गए, तो वह उनकी रक्षा करेगी।
रोहन : दिक्कत क्या आती है, कोई सपोर्ट नहीं करता। अगर बीजेपी कराए, तो कोई दिक्कत नहीं।
रिपोर्टर : अच्छा, बीजेपी चाहे किसी का करवाए?
रोहन : कोई दिक्कत नहीं।
रिपोर्टर : सरकार में हैं, बचा लेगी?
इसके बाद तहलका रिपोर्टर ने रोहन के सामने अपना फर्जी सौदा पेश किया और कहा कि हम चाहते हैं कि एक महिला, जो कथित तौर पर एक प्रेम-संबंधी विवाद में शामिल है तथा एक पुरुष, जो ऑस्ट्रेलिया में रहने वाला एक मनोचिकित्सक है, को सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जाए। रोहन ने यह काम करने के लिए सहमति दे दी और नेपाल से एक सप्ताह तक महिला को ट्रोल करने के लिए 2 से 2.5 लाख रुपए की मांग की। उन्होंने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि भारतीय अधिकारियों को उनका पता लगाने में कम से कम एक दशक का समय लगेगा।
रिपोर्टर : अच्छा, हमें करानी है एक हमारे दोस्त हैं, आस्ट्रेलिया में रहते हैं, एक तो उनकी ट्रोलिंग?
रोहन : प्रोफाइल क्या है?
रिपोर्टर : कुछ नहीं, वो फिसाइकेट्रिस्ट हैं, ब्रिसबेन में रहते हैं, डिटेल मैं दे दूंगा।
रोहन : कुछ चीजें पता होनी चाहिए ट्रोलिंग में…।
रिपोर्टर : सारी चीजें तो ठीक नहीं होती ट्रोलिंग में, …कुछ फर्जी भी होती हैं। … और एक क्लाइंट है, उनका अफेयर चल रहा है किसी से, शादी नहीं हो पा रही, वो लड़की कहीं और शादी कर रही है, लड़की की ट्रोलिंग करवानी है शादी न हो पाए?
रोहन : हो जाएगा, बस फोटो मिल जाए उसका…।
रिपोर्टर : वो सब हम प्रोवाइड करवा देंगे।
रोहन : क्या होता है, आईडी बनती है पहले…।
रिपोर्टर : अब ये लड़की और आस्ट्रेलिया वाले का आप खर्चा बता दो?
रोहन : आप डिटेल दे दो पहले।
रिपोर्टर : वो मैं दे दूंगा, आप आइडिया तो दे दो?
रोहन : लड़की के तो आरएस 2-2.50 लाक लगेगा।
रिपोर्टर : कितने दिन होगी ट्रोलिंग?
रोहन : 7 दिन।
रिपोर्टर : 7 दिन लगातार?
रोहन : मतलब होती रहेगी, फिर शांत बैठ जाएंगे, फिर होगी।
रिपोर्टर : किस प्लेटफार्म पर?
रोहन : इंस्टाग्राम पर, क्यूंकि ट्विटर पर कोई फायदा नहीं है। …अगर पब्लिक फिगर है, तो ट्विटर पर होता है फायदाय। फेसबुक और इंस्टाग्राम सही है इस केस में।
रिपोर्टर : X पर नहीं होता?
रोहन : X एक्स पर होता है, अगर पब्लिक फिगर हो।
रिपोर्टर : लेकिन कहीं पकड़ में न आएं हम लोग?
रोहन : नहीं, पहुंचते-पहुंचते 10 साल लग जाएंगे!
जब तहलका रिपोर्टर ने यह चिंता व्यक्त की कि महिला ट्रोल होने के बाद आत्महत्या कर सकती है, तो रोहन ने हमें इस संभावित स्थिति से निपटने के लिए नेपाल के बजाय मलेशिया से काम करने की सलाह दी। उनके अनुसार, मलेशिया से की गई ट्रोलिंग में पकड़े जाने का जोखिम कम होता है, क्योंकि मलेशियाई सरकार भारतीय अधिकारियों के साथ सहयोग नहीं करती है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यह विकल्प अधिक महंगा होगा, जिसकी लागत प्रति सप्ताह लगभग 4 से 4.5 लाख रुपये होगी।
रिपोर्टर : ऐसा न हो लड़की सुसाइड इत्यादि कर ले ट्रोलिंग के बाद?
रोहन : हां, ये तो है। …लड़की कहां की है?
रिपोर्टर : गुड़गांव की।
रोहन : ये नेपाल से हो जाएगा, मगर कहीं वही गलती न हो जाए।
रिपोर्टर : सुसाइड वाली?
रोहन : हां, क्यूंकि उसमें गवर्नमेंट सपोर्ट नहीं करती। …मलेशिया गवर्नमेंट इंडियन गवर्नमेंट की सपोर्टर नहीं करती…।
रिपोर्टर : मलेशिया से हो जाएगा?
रोहन : हां, मगर 4-4.50 लाख्स स्टार्टिंग है।
रिपोर्टर : और आस्ट्रेलिया वाले का?
रोहन : वो सुसाइड तो नहीं करेगा?
रिपोर्टर : नहीं।
रोहन : वो नेपाल से करेगा। 2.50 लाख्स स्टार्टिंग है, 7 दिन का पैकेज है, 7 दिन लगातार करेगा, …एक हफ्ते का 2.50 लाख।
रिपोर्टर : मतलब एक मंथ करवाते हैं, तो 2.50 लाख मल्टीप्लाई बाई 4, …मतलब 10 लाख हो गया, और मलेशिया से करवाते हैं तो?
रोहन : आरएस 4 से 4.50 लाख से स्टार्टिंग है।
रिपोर्टर : एक हफ्ते का आस्ट्रेलिया वाले का तो 20 लाख पड़ेगा…!
अब बातचीत ट्रोलिंग व्यवसाय के परिचालन पक्ष पर आ जाती है, जहां रोहन भुगतान की शर्तें और सावधानियां बताते हैं। वह अग्रिम भुगतान पर ज़ोर देते हैं कि शुरुआत में 50 प्रतिशत और भविष्य के सौदों के लिए 100 प्रतिशत तक। उन्होंने रिपोर्टर को अधिकारियों द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए कुछ एहतियाती सुझाव भी दिए। उन्होंने कहा कि हमें फोन पर कभी भी ट्रोलिंग के बारे में बात नहीं करनी चाहिए तथा बैठक स्थल पर अपना फोन ले जाने से बचना चाहिए, ताकि हमारी लोकेशन का पता न लगाया जा सके। तीसरा, हमें सीसीटीवी कैमरे वाले स्थानों पर मिलने से बचना चाहिए। उन्होंने रिपोर्टर को भुगतान करने के लिए बैंक से नकदी निकालने के बजाय किसी से उधार लेने की सलाह दी और चेतावनी दी कि यदि उनके साथ कोई अप्रिय घटना घटित होती है, तो कोई भी वित्तीय लेन-देन पुलिस की जांच के दायरे में आ सकता है।
रोहन : जैसे चलते समय आपको एडवांस पेमेंट करना होगा, पहला जील में 70-30 करते हैं, बाकी उसके बाद तो एडवांस लेते हैं पूरा। …पहले पैसा लिया, उसके 7 दिन बाद शुरू करते हैं काम। कुछ कनेक्शन लिया, उसके बाद बहुत अलर्ट रहना पड़ता है। अगर मिलने भी आ रहे हैं, तो फोन से कोई कम्युनिकेशन नहीं रखते।
रिपोर्टर : पकड़े गए, तो पूछते होंगे कहां मिले, कैसे मिले?
रोहन : हां, इसलिए फोन पर बात नहीं करते, लोकेशन ले लिया जहां कैमरा न लगा हो…।
रिपोर्टर : 70 परसेंट एडवांस?
रोहन : पहली बार 50 परसेंट कर देना।
रिपोर्टर : मलेशिया, नेपाल दोनों का 50 परसेंट एडवांस?
रोहन : सबका , ये तो पहली बात है इसलिए मैं कर रहा हूं। इसके बाद जब भी काम होगा, 100 परसेंट पेमेंट होगा। आपका काम आपको लेकर आना है, हमारा काम हमको करना है, …सारा पेमेंट होगा कैश…।
अब चर्चा चुनावी मौसम में ट्रोलिंग पर आ जाती है, जहां रोहन पूरे विश्वास के साथ बिहार चुनाव में किसी भी पार्टी- भाजपा, राजद या जदयू के उम्मीदवारों को निशाना बनाने के लिए अपनी सेवाएं देने की पेशकश करता है, जिसके लिए रोहन प्रति उम्मीदवार 10 लाख रुपए का पैकेज मांगते हैं। उन्होंने एक महीने तक लगातार नकारात्मक ट्रोलिंग के जरिए प्रतिष्ठा को नष्ट करने का वादा किया, जिसका उद्देश्य मतदान तक उम्मीदवार को परेशान करना है। रोहन ने कहा कि राज्य विधानसभा चुनावों में उन्हें भाजपा से डर नहीं लगता, क्योंकि राज्य के मंत्री आपके पीछे उतनी आक्रामकता से नहीं पड़ते, जितनी केंद्र के कैबिनेट मंत्री। उनका कहना है कि उनका दृष्टिकोण बिहार, बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों में एक जैसा है।
रिपोर्टर : अगर बिहार की कोई ट्रोलिंग आती है हमारे पास?
रोहन : हो जाएगी।
रिपोर्टर : आरजेडी की, बीजेपी की या जेडीयू की?
रोहन : हो जाएगी, एक कंडीडेट का 10 लाख लेंगे, …बर्बाद कर देंगे 10 लाख में, …ट्रोलिंग से सब।
रिपोर्टर : है आपका पैकेज?
रोहन : सिर्फ नेगेटिव, …बर्बाद कर देंगे।
रिपोर्टर : कितने दिन?
रोहन : महीना भर चलेगा, ब्रेक दे-देकर चलेगा। मतलब चुनाव तक उसको परेशान करते रहेंगेस चाहे किसी का हो, बीजेपी का या आरजेडी का।
रिपोर्टर : चाहे किसी का भी हो, यहां क्यूं नहीं डर रहे तुम?
रोहन : कैबिनेट मिनिस्टर का ्पना इज्जत है, यहां बिहार में कुछ नहीं, कैबिनेट मिनिस्टर हमारे पीछे पड़ जाएंगे, ये नहीं।
रिपोर्टर : स्टेट के मिनिस्टर नहीं पड़ेंगे? …आपको सेंट्रल से ज्यादा दिक्कत है?
रोहन : सबको है, सिर्फ हमें नहीं।
रिपोर्टर : तो ये 10 लाख आपका एक कैंडिडेट का है?
रोहन : हां, हम चुनाव से 3 महीने पहले स्टार्ट कर देंगे, पहले हम ट्रई करेंगे टिकट उसे मिल जाए, टिकट मिलता है एक महीना पहले, कंफर्मेशन जब आता है ना…।
रिपोर्टर : बंगाल में नेक्स्ट ईयर चुनाव है, वहां क्या हो सकता है?
रोहन : सेम है, बिहार हो गया, बंगाल हो गया, झारखंड हो गया, इन सबका सेम है।
अब रोहन ने रिपोर्टर को दक्षिण भारत में सोशल मीडिया ट्रोलिंग की दरों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत में सोशल मीडिया ट्रोलिंग की दर उत्तर भारत की तुलना में लगभग दोगुनी है। उन्होंने बताया कि इसका कारण यह है कि दक्षिण में लोग आमतौर पर अधिक शिक्षित होते हैं और प्रतिरोध करने में सक्षम होते हैं, जिससे ट्रोलिंग एक जोखिम भरा व्यवसाय बन जाता है। उन्होंने पुष्टि की कि बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और झारखंड जैसे राज्यों में प्रति उम्मीदवार मानक दर 10 लाख रुपए है, जबकि केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में यह कीमत दोगुनी है।
रोहन : साउथ का ज्यादा है, डबल है।
रिपोर्टर : साउथ में डबल क्यूं है?
रोहन : वहां पर लोग ज्यादा पढ़े-लिखे हैं, बैकफायर कर सकते हैं।
रिपोर्टर : मतलब, साउथ में बेवकूफ बनाना आसान नहीं है? कौन-कौन से स्टेट बताए आपने, …बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, यहां 10 लाख पर कैंडिडेट?
रोहन : हां, केरला, कर्नाटका भी हो गया, यहां भी डबल लगेगा।
रोहन आगे चुनावी ट्रोलिंग के पीछे की दोहरी रणनीति के बारे में बताते हैं। सबसे पहले पार्टी टिकट के लिए होड़ करने वालों को निशाना बनाकर ट्रोलिंग की जाती है, जिसका उद्देश्य ग्राहक उम्मीदवार की अपनी संभावनाओं को बढ़ाना होता है। दूसरा एक बार टिकट तय हो जाने के बाद ट्रोलिंग चुनावी मैदान में अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार को नीचा दिखाने पर केंद्रित हो जाती है। लक्ष्य स्पष्ट है- राजनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए प्रतिद्वंद्वी की छवि को नुकसान पहुंचाना।
रिपोर्टर : मान लो मैं चुनाव लड़ रहा हूं, मेरा अपोजिट जो है, उसकी ट्रोलिंग करनी है..?
रोहन : दो तरह से ट्रोलिंग होती है, एक तो वो जो टिकट मांग रहा है और एक वो, जो आगे चल रहा है। टिकट में तो जो आगे है, उसको पीछे करना है ट्रोलिंग से, आपका नाम पैरलल दिख रहा है, तो जो आगे है, उसको डाउन करना है।
रिपोर्टर : ये आप इलेक्शन टिकट की बात कर रहे हैं?
रोहन : टिकट के लिए आप जा रहे हो, उससे पहले।
रिपोर्टर : एक तो ट्रोलिंग ये हो गई, अब दूसरी?
रोहन : वो जो सामने वाला है, उसको डाउन करके, …नेगेटिव ट्रोलिंग से।
अब रोहन ने तहलका रिपोर्टर को सोशल मीडिया पर ममता बनर्जी और नीतीश कुमार को ट्रोल करने की दरें बताईं। उन्होंने दोनों में से किसी को भी ट्रोल करने के लिए प्रति सप्ताह 25 से 50 लाख रुपये की मांग की और कहा कि अगर यह एक महीने तक जारी रहा, तो यह राशि करोड़ों में हो जाएगी। विधायकों और सांसदों के लिए यह दर व्यक्ति की प्रोफाइल के आधार पर 5 से 8 लाख रुपये के बीच होती है।
रिपोर्टर : ममता का किस पर करवाओगे?
रोहन : ट्विटर पर होगा, पैसे ज्यादा लगेंगे। इसमें डर होता है न अकाउंट सस्पेंट होने का।
रिपोर्टर : और नीतीश का?
रोहन : वही सेम है, …25-50 हफ्ते के लग ही जाएंगे।
रिपोर्टर : मतलब, एक महीना करवाएंगे, तो करोड़ से ऊपर हो जाएगा। बस हमारे लिए कोई दिक्कत न हो, देख लेना।
रिपोर्टर (आगे) : एमएलए, एमपी का कितना होगा?
रोहन : 5-7-8 लाख, डिपेंड करता है ना कौन है।
रोहन ने तहलका रिपोर्टर से बातचीत में स्वीकार किया कि 2024 के आम चुनावों के दौरान वह लोकसभा चुनाव लड़ रहे एक उम्मीदवार का सोशल मीडिया अकाउंट हैक करते हुए पकड़ा गए थे। परिणामस्वरूप उसका मूल सिम कार्ड ब्लॉक कर दिया गया और अब वह नया सिम कार्ड इस्तेमाल कर रहे हैं। एक अन्य स्वीकारोक्ति में रोहन ने बताया कि एक बार उनकी पार्टनर को सोशल मीडिया पर किसी को ट्रोल करते हुए पकड़ा गया था, जिसके बाद उन्होंने पकड़े जाने से बचने के लिए अपना लैपटॉप नष्ट कर दिया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि हम (रिपोर्टर) उनके साथ बातचीत करते समय ट्रोलिंग के बजाय नकारात्मक पीआर शब्द का प्रयोग करें।
बातचीत के दौरान रोहन ने दावा किया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान विदेश सचिव विक्रम मिस्री के परिवार की सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग मलेशिया से की गई थी। उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और उसके नौकरशाहों को उनकी शक्ति के कारण ट्रोल करना कठिन है और ऐसा करने का प्रयास उन पर उल्टा पड़ सकता है। उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मनसे के राज ठाकरे को उनकी मजबूत आईटी टीमों के कारण कठिन लक्ष्य बताया, जबकि उद्धव ठाकरे को उनकी कमजोर आईटी व्यवस्था के कारण ट्रोल करना आसान है।
रोहन मिश्रा और उनके पिता उनकी कंपनी के दो निदेशक हैं। आधिकारिक तौर पर उनका नाम कमल नयन मिश्रा है, जैसा कि उनके आधार और पैन कार्ड पर दर्शाया गया है; लेकिन वे रोहन मिश्रा नाम से ग्राहकों से व्यवहार करते हैं। इसी उपनाम से उन्होंने तहलका के रिपोर्टर से मुलाकात की थी। जब उनसे दोहरी पहचान के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि इस तरह के नकारात्मक काम के लिए अधिकारियों से बचना पड़ता है, इसलिए एहतियात के तौर पर वह ग्राहकों के साथ अलग नाम का इस्तेमाल करते हैं।
अपने पिछले ट्रोलिंग कार्य का सबूत दिखाने के लिए पूछे जाने पर रोहन ने कहा कि वे रिकॉर्ड नहीं रखते हैं; विवाद से बचने के लिए कार्य को बनाया जाता है और बाद में नष्ट कर दिया जाता है। उन्होंने इसे एक व्यापारिक रणनीति बताते हुए ग्राहकों के नाम बताने से भी इनकार कर दिया। रोहन ने हमें अपने कौशल का परीक्षण करने के लिए लो-प्रोफाइल सोशल मीडिया ट्रोलिंग का काम सौंपने के लिए आमंत्रित किया। इससे पहले रोहन ने फोन करके रिपोर्टर को बताया था कि वह इस समय एक अन्य सोशल मीडिया ट्रोलिंग परियोजना में व्यस्त हैं।
इस तरह तहलका एसआईटी की पड़ताल भारत में रुपयों के दम पर राजनीतिक ट्रोलिंग की छिपी हुई व्यवस्थित प्रकृति को उजागर करती है, जो एक ऐसा उद्योग है, जो राजनीतिक छत्रछाया में फलता-फूलता है। यह व्यवसाय जोखिम और लाभ के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन बनाते हुए चिंताजनक तरीकों से जनता की राय को आकार देता है।