डिजिटल भीख !

अब स्कैनर से डिजिटल भीख माँगने का बढ़ रहा चलन

इंट्रो- भिक्षावृत्ति भारत में एक ऐसा व्यवसाय बना हुआ है, जिसमें लाखों लोग घुसे हुए हैं। कोई मजबूरी में भीख मांगता है, तो कोई आलस की वजह से। जबसे सरकार ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिया, तबसे भिखारियों को मिलने वाली भीख में कमी आने लगी, जिसे देखते हुए भिखारियों ने भी डिजिटल भिक्षावृत्ति का रास्ता अपना लिया, ताकि उन्हें ज्यादा भीख मिल सके। क्यूआर कोड ने खनकते सिक्कों का स्थान ले लिया है और भिखारी भीख लेने के लिए नकदी रहित इस तरीके को तेजी से अपना रहे हैं। भिखारी किसी भी हाल में भीख पाने के लिए गली के नुक्कड़ों से लेकर दरगाह तेजी से क्यूआर कोड और डिजिटल ट्रांसफर को अपना रहे हैं। इसी विषय पर इस बार ‘तहलका’ ने पड़ताल की है। तहलका एसआईटी की ख़ास रिपोर्ट :-

सरकार के डिजिटल इंडिया अभियान में एक अजीब मोड़ यह आया है कि देश के भिखारी भी कैशलेस भीख लेने का निर्णय तेजी से ले रहे हैं। कुछ लोग अब अपने गले में क्यूआर कोड की तख्तियां लटकाए रहते हैं या अपने साथ टैबलेट रखते हैं, जिससे राहगीरों को स्कैन करके भीख देने का विकल्प मिलता है। जिन भिखारियों के पास व्यक्तिगत डिजिटल पहुंच नहीं है, वे अपने पड़ोस के विश्वसनीय दुकानदारों पर इसके लिए निर्भर रहते हैं – जो उनके साथ अपना क्यूआर कोड या यूपीआई आईडी साझा करते हैं और भिखारियों की ओर से दान स्वीकार करते हैं और उसके बराबर की राशि नकद में लौटा देते हैं। जो कार्य कभी हाथ जोड़कर सिक्कों के लिए  किया जाता था, अब वही भिक्षावृत्ति का पेशा ई-वॉलेट और यूपीआई हस्तांतरण के युग में प्रवेश कर चुका है, जहां भीख की भाषा तेजी से डिजिटल कोड में सुनायी देती है।


कुछ लोगों को यह अविश्वसनीय लग सकता है, लेकिन पूरे भारत में भिखारियों ने डिजिटल भुगतान को अपना लिया है, जिससे इस नए युग में भीख मांगने की प्रक्रिया ही बदल गई है। दिल्ली के राजू सिंह को ही लीजिए। उसने कहा-  ‘मैं डिजिटल भुगतान स्वीकार करता हूँ और यह काम पूरा करने और पेट भरने के लिए काफी है।’ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के स्वयंभू अनुयायी राजू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात रेडियो संबोधन को भी सुनने से कभी नहीं चूकते।

राजू ने बताया कि उसे आजीविका का कोई अन्य साधन नहीं मिल सका। कई बार लोग उसे भिक्षा देने से मना कर देते थे, यह कहकर कि उनके पास छुट्टे पैसे नहीं हैं। विशेष रूप से यात्रियों का तर्क है कि ई-वॉलेट और भुगतान एप के युग में नकदी ले जाने की कोई आवश्यकता नहीं रह गई है। इससे राजू को बैंक खाता खोलने और ई-वॉलेट लेने की प्रेरणा मिली। हालांकि अधिकांश लोग अभी भी उन्हें नकदी देते हैं, लेकिन कुछ लोग डिजिटल माध्यम से धन हस्तांतरित करते हैं। खाता खोलने के लिए बैंक ने उससे आधार और पैन कार्ड की माँग की, इसलिए उसने पैन कार्ड बनवा लिया, ताकि उसे डिजिटल तरीके से भी भीख मिल सके। आज राजू दिल्ली भर में डिजिटल तरीके से भीख मांगता है।
‘आज नोएडा मस्जिद में शुक्रवार की नमाज के समय मुझे 4-5 हजार रुपए नकद दान में मिले। चूंकि मेरे पास स्कैनर भी है, इसलिए मुझे डिजिटल भुगतान के माध्यम से भी कुछ पैसे मिले। ठीक-ठीक कितना? यह तो मुझे देखना पड़ेगा।’ – नोएडा मस्जिद में भिखारी मोहम्मद अख्तर ने कहा, जहां हर शुक्रवार को जुमे की विशेष नमाज के लिए बड़ी संख्या में मुसलमान इकट्ठे होते हैं।


‘मैं वर्तमान में बदरपुर, दिल्ली में रह रहा हूं। लेकिन किसी ने मुझे शुक्रवार को नोएडा मस्जिद जाने की सलाह दी और कहा कि वहां भीख मांगना बेहतर होगा। तो मैं यहां आ गया। स्कैनर पाने के लिए मुझे बैंक में खाता खोलना पड़ा।’ – अख्तर ने तहलका रिपोर्टर से कहा।
‘आज जब मैं भीख मांगने के लिए अपने नोएडा स्थित घर से निकली, तो मैंने अपने स्थानीय किराना दुकानदार से कहा कि मैं भीख के डिजिटल हस्तांतरण के लिए उसकी पेटीएम यूपीआई आईडी का उपयोग करूंगी। क्योंकि आज डिजिटल का जमाना है और ज्यादातर लोग इसी तरह भुगतान करना पसंद करते हैं।’ – एक अन्य भिखारी अफसाना ने कहा।
‘आज मैं अपने दो नाबालिग बच्चों नेहा और बिलाल के साथ भीख मांग रही हूं। मैं अपनी बेटी नेहा की शादी करना चाहती हूं, जिसके लिए मैं पैसे इकट्ठे कर रही हूं। मेरे पति निजाम गोरखपुर में घरेलू सहायक के रूप में काम करते हैं और 4-5 हजार रुपए महीने कमाते हैं।’ – अफसाना ने आगे कहा।
‘मैं पिछले 25 वर्षों से इस कब्रिस्तान में भीख मांगकर रह रही हूं। लोग आते हैं और मुझे दान देते हैं। हर शुक्रवार को मुझे लगभग 400-500 रुपए मिलते हैं और ईद पर लगभग 1,500 रुपए मिल जाते हैं। अब मैंने एक छोटी-सी चाय की दुकान खोल ली है, लेकिन जो लोग मुझे लंबे समय से भीख देते रहे हैं, वे अब भी दे देते हैं, या तो नकद में या स्कैन करके। आज मेरे पास स्कैनर भी है और जो लोग डिजिटल रूप से दान देना चाहते हैं, वे इसका उपयोग करते हैं।’  – एक अन्य भिखारी रेहाना खातून ने कहा।
‘यह स्कैनर मेरे स्थानीय दुकानदार इंतजार का है। मैं इससे पैसे इकट्ठा करती हूं और फिर उसकी दुकान से राशन खरीदती हूं। मैं गाजियाबाद में रहती हूँ और नोएडा और शाहीन बाग़ में भीख माँगने आती हूं। सिर्फ शुक्रवार को ही मैं 300-400 रुपये इकट्ठा कर लेती हूं।’ – रेहाना ने आगे बताया।
‘कृपया इस दुकानदार को डिजिटल भुगतान कर दें, हम उससे पैसे ले लेंगे। लेकिन सिर्फ मुझे ही मत दो, दरगाह परिसर में बैठे सभी भिखारियों को दो। अन्यथा मुझे उनके क्रोध का सामना करना पड़ेगा।’ – नई दिल्ली में भारत मंडपम के पास मटकापीर दरगाह पर एक भिखारी गोपीचंद ने कहा।
‘आप इन भिखारियों को देख सकते हैं, ये प्रतिदिन 400-500 रुपए कमाते हैं। इन्हें पैसे मत दीजिए; ये पैसों का दुरुपयोग नशीली दवाओं जैसे अवैध पदार्थों पर करते हैं। इसके बजाय उस पैसे से इन्हें आप चाय या चाय-बिस्कुट का प्रबंध कर दीजिए। वैसे मैं इनकी ओर से डिजिटल भुगतान स्वीकार करता हूं और फिर इन्हें नकदी दे देता हूं।’ – मटकापीर दरगाह के एक दुकानदार इरफान ने कहा।
‘जो लोग हमें डिजिटल रूप से दान देना चाहते हैं, हम उन्हें चाय वाले के पास ले जाते हैं। वे उसे ऑनलाइन भुगतान करते हैं और हम उससे नकद पैसा ले लेते हैं। मैं पिछले 20 साल से मटकेपीर दरगाह पर भीख मांग रही हूं।’ – वहां मौजूद एक अन्य भिखारी गीता ने कहा।
‘हां, मैं उन लोगों से पैसे स्वीकार करता हूं जो भिखारियों को डिजिटल रूप से पैसा देना चाहते हैं, और फिर मैं वह पैसा नकदी के रूप में भिखारियों को लौटा देता हूं। मैं पश्चिम बंगाल से हूं और 20 साल से मटकापीर दरगाह पर चाय की दुकान चला रहा हूं।’ -एक दुकानदार लब करमाकर ने कहा।

उन भारतीय राज्यों में भीख मांगना अवैध है, जहां भीख मांगने के विरुद्ध कानून बने हुए हैं, जिनमें से अधिकांश कानून बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम-1959 पर आधारित हैं। ये कानून भीख मांगने के कृत्य को अपराध घोषित करते हैं और प्राधिकारियों को अनुमति देते हैं कि वे अपराधियों के लिए निर्दिष्ट संस्थानों में भिखारियों को हिरासत में रख सकते हैं। हालांकि भीख मांगने के खिलाफ कोई एकल राष्ट्रीय कानून नहीं है। हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश का अपना कानून है। आलोचकों का तर्क है कि ये कानून पुराने हो चुके हैं, कमजोर लोगों को दंडित करते हैं और गरीबी के मूल कारणों का समाधान करने में विफल हैं।
2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने बॉम्बे अधिनियम की प्रमुख धाराओं को रद्द कर दिया, जिससे राजधानी में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया। न्यायालय ने कहा कि भीख मांगने को अपराध मानना असंवैधानिक है तथा मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। फिर भी, भारतीय दंड संहिता की धारा 363ए के तहत किसी बच्चे का अपहरण करना, उसे अपंग बनाना या भीख मांगने के लिए इस्तेमाल करना अपराध बना हुआ है।
हालांकि उत्तर प्रदेश में भीख मांगना उत्तर प्रदेश भिक्षावृत्ति प्रतिषेध अधिनियम-1975 के तहत अवैध है, जो इसे दंडनीय अपराध बनाता है और गिरफ्तारी तथा अदालती कार्यवाही का प्रावधान करता है। किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम-2015 की धारा 76 के अनुसार, किसी बच्चे को भीख मांगने के लिए नियुक्त करना भी अपराध है, जिसके लिए पांच वर्ष तक की कैद या एक लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
भारत में भिखारियों की संख्या के बारे में कोई आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। संसद में अंतिम बार 14 दिसंबर, 2021 को 2011 की जनगणना के आधार पर डेटा प्रस्तुत किया गया था। इसके अनुसार, भारत में 4.13 लाख से अधिक भिखारी हैं, जिनमें 2.21 लाख पुरुष और 1.92 लाख महिलाएं हैं। 61,000 से अधिक भिखारी 19 वर्ष से कम आयु के थे। पश्चिम बंगाल 81,244 भिखारियों के साथ सूची में शीर्ष पर है, इसके बाद उत्तर प्रदेश (65,835), आंध्र प्रदेश (30,218) और बिहार (29,723) का स्थान है।
आज इस विषय पर पुनः विचार करने का कारण यह है कि भिखारियों में डिजिटल भुगतान की ओर आश्चर्यजनक रुझान आया है। देश के कई हिस्सों से दान एकत्र करने के लिए क्यूआर कोड के इस्तेमाल की खबरें सामने आई हैं, जिससे उत्सुकता पैदा हो गई है। हाल ही में वायरल हुए एक वीडियो में सड़क किनारे एक व्यक्ति खुद को वीआईपी भिखारी कहता हुआ दिखाई दे रहा है और 200 रुपए से कम कुछ भी लेने से इनकार कर रहा है। उसे देखने के लिए भीड़ जमा हो गई, लेकिन किसी ने भी दान नहीं दिया। क्योंकि वह 200 रुपए से कम कुछ भी स्वीकार नहीं कर रहा था।
इस डिजिटल भीख मांगने की सच्चाई जानने के लिए तहलका रिपोर्टर ने नोएडा और दिल्ली में जाकर गहन पड़ताल की। रिपोर्टर की पहली मुलाकात अफसाना से हुई, जो अपने दो नाबालिग बच्चों- बेटी नेहा और बेटा बिलाल के साथ नोएडा की एक मस्जिद के बाहर भीख मांग रही थी। उसने बताया कि वह अपनी बेटी की शादी के लिए भिक्षा मांग रही है। ऐसा करके अफसाना ने तीन अपराध किए- नाबालिगों से भीख मंगवाना, उत्तर प्रदेश में भीख मंगवाना, जहां यह गैरकानूनी है और एक नाहालिग बच्ची की शादी करने का इरादा रखना।
इस बातचीत में अफसाना ने खुलेआम स्वीकार किया कि वह अपनी 15 वर्षीय नाबालिग बेटी की शादी करने के लिए भीख मांग रही है। रिपोर्टर ने उसे याद दिलाया कि लड़की नाबालिग है, जो विवाह के लिए बहुत छोटी है और  महिला से आग्रह किया कि वह बच्चों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करे। हालांकि अफसाना इस बात पर जोर देती हैं कि गरीबी के कारण उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं बचते हैं, इसलिए वह जीवित रहने के तर्क देती है और भीख मांगने को अपनी मजबूरी बताती है। तहलका रिपोर्टर के साथ अफसाना की बातचीत से उसकी हताशा और निराशा दोनों उजागर होती है।

रिपोर्टर : तो आप शादी के लिए पैसे मांग रही हो?
अफसाना : हां भाई जान, कुछ मदद हो जाता है तो?

रिपोर्टर : नेहा तो अभी बहुत छोटी है…कितनी उमर है इसकी?

अफसाना : 15 साल।
रिपोर्टर : इतनी कम उम्र में शादी?….ये तो गुनाह है।

अफसाना : अरे कुछ नहीं तो जुगाड़ तो हो जाएगा.. शादी तो 2-3 साल बाद करेंगे। अब आए हैं तो कुछ जुगाड़ हो जाए…राशन का हो जाएगा?

रिपोर्टर : क्या नाम बताया आपने?

अफसाना : अफसाना।

रिपोर्टर : लड़की बहुत छोटी है.. अभी शादी का मत सोचो; पढाई करवाओ।

अफसाना : भाई जान क्या करें?…गरीब आदमी हैं। दर-दर घूमना भी तो अच्छा नहीं लगता।

तहलका रिपोर्टर ने अफसाना से पूछा कि क्या उसके पास कोई क्यूआर कोड है, जिसके माध्यम से रिपोर्टर उसे पैसे भेज सकें? इसके जवाब में अफसाना ने कहा कि वह नोएडा में अपने स्थानीय किराना दुकान के मालिक की पेटीएम यूपीआई आईडी साझा कर सकती है, जिसके नंबर पर डिजिटल तरीके से भीख के रूप में पैसा भेजा जा सकता है। अफसाना ने बताया कि वह मूल रूप से गोरखपुर, उत्तर प्रदेश की रहने वाली है और पिछले 4-5 साल से अपने दो नाबालिग बच्चों के साथ नोएडा में रह रही है। अफसाना ने बताया कि उनका पति घरेलू सहायक के रूप में काम करता है।
रिपोर्टर : स्कैनर है आपके पास?
अफसाना : स्कैनर तो नहीं है, नंबर है…। लड़की जाती है राशन वाले के दुकान पर…, राशन ले लेगा भाई.. बच्चे भूखे हैं बहुत परेशान हैं।
रिपोर्टर : आपके पास स्कैनर है तो दे दो?

अफसाना : स्कैनर नहीं, नंबर है…नंबर पर पेटीएम कर दो तो हो जाएगा। पेटीएम का नंबर है भाई जान, परेशान हूं बहुत..अफसाना नाम है मेरा, गोरखपुर की रहने वाली हूं।

रिपोर्टर : यहां नोएडा में कैसे?

अफसाना : वहां रहते हैं नोएडा 37 में भाई जान. क्या करें… कुछ बच्चे लोग को खाने के लिए नहीं है।

रिपोर्टर : शादी तो हो गई आपकी?

अफसाना : हां ये बेटी है मेरी।

रिपोर्टर : शौहर क्या करते हैं?

अफसाना : वो झाड़ू पोछा का काम करते हैं… उसमें पूरा नहीं होता है.. अब लड़की के लिए भी तो जोड़ना है।

रिपोर्टर : कितने बच्चे हैं आपके?

अफसाना : दो बच्चे हैं।

रिपोर्टर : क्या नाम है बच्चों का आपके?

अफ़साना : लड़का-बिलाल, लड़की-नेहा।

रिपोर्टर : ये तो हिंदू नाम है! स्कूल नहीं जाते आप लोग?

बिलाल : जाता हूँ।

रिपोर्टर : कौन सी क्लास में?

अफसाना : मदरसे में जाता है।

रिपोर्टर : मदरसा कहां है यहां?

अफसाना : नोएडा में।

रिपोर्टर : कहां रहते हैं आप?

अफसाना : सोमबाजार में, सेक्टर नहीं पता…, सोमबाजार के पीछे झुग्गी है हमारा।

रिपोर्टर : कितने टाइम से रह रही हैं?

अफसाना : 4-5 साल से रह रहे हैं।

रिपोर्टर : आप काम नहीं करतीं?

अफसाना : यहां काम करने के लिए पहचान पत्र मांगते हैं…, लेकिन हमारे पास नहीं है।

रिपोर्टर : तो आप शादी के लिए पैसे मांग रही हो?

अफसाना : हां, भाई जान कुछ मदद हो जाता तो…।

रिपोर्टर : तो शौहर तो आपके 4-5 हजार कमा रहे हैं?

अफसाना : हां. कमा रहे हैं गांव में।

रिपोर्टर : गांव में हैं.. यहां नहीं?

अफसाना : हां।

जब अफसाना से पूछा गया कि क्या दुकानदार, जिसके क्यूआर कोड पर वह हमसे पैसे भेजने का अनुरोध कर रही है, उस दुकानदार पर भरोसा किया जा सकता है कि वह उसे पैसे दे देगा? इस पर अफसान ने जवाब दिया कि वह दुकानदार वास्तव में एक विश्वसनीय व्यक्ति है। सईद नामक एक मुस्लिम व्यक्ति उसके नंबर पर पैसा भेजे जाने के बाद महिला को राशन उपलब्ध कराता है। अफसाना ने यह भी बताया कि जिस दिन वह शुक्रवार की नमाज के दौरान नोएडा की एक मस्जिद में तहलका रिपोर्टर से मिलीं, उस दिन भारी बारिश हो रही थी और इसके चलते उसे भीख नहीं मिली।
रिपोर्टर : अगर आपके पास स्कैनर होता तो मैं मदद कर देता।

अफसाना : नंबर है, राशन वाले का, …थोड़ा बहुत राशन दिला दोगे तो चले जाएंगे।

रिपोर्टर : देखो बहन मेरी, मैं दुकानदार को कर दूं, लेकिन अगर जीत न दे आपको?

अफसाना : देगा. विश्वास है हमको, …वो भी कोई हिंदू नहीं भाई जान.. मुसलमान है।

रिपोर्टर : क्या नाम है दुकानदार का?

अफसाना : मोहम्मद सईद।

रिपोर्टर : तो आप पैसे वैसे ही मंगवाते रहते हो वहां?

अफ़साना : नहीं-नहीं।

रिपोर्टर : फिर?

अफसाना : हम उनको बोल देते हैं कि कोई आपको पेटीएम कर देता है तो हमको राशन दे दो, जितना करेंगे उतने का हमको तेल, चावल, दाल देता है। तो आज आई, मस्जिद में पानी बरसने लगा.., कुछ नहीं मिला।

रिपोर्टर : जुमे की नमाज में आई थीं?

अफसाना : हां…लेकिन कुछ नहीं मिला।

इसके बाद अफसाना ने रिपोर्टर को दुकानदार का नंबर दिया और कहा कि आप पैसे उसके खाते में ट्रांसफर कर दें। उसने बताया कि आज की डिजिटल दुनिया में हर कोई पेटीएम का उपयोग करता है, इसलिए उसने दुकानदार को पहले ही बता दिया था कि भीख मांगते समय वह डिजिटल हस्तांतरण के लिए दानदाताओं के साथ उसका नंबर साझा करेंगी।
अफसाना : हम उसको बोलकर आये हैं ना भाईजान ऐसे हम जा रहे हैं, कोई देगा या नहीं देगा, पेटीएम का आजकल ज्यादा सिस्टम है। तो वो बोल रहा था आप नंबर दे देना, हम राशन दे देंगे। एक दाना भी नहीं है खाने को…5 -6 दिन से बारिश हो रही है।

रिपोर्टर : तो आप उसको बोलकर आयी हो मैं जा रही हूं मांगने?

अफसाना : नहीं मैं कलम-वलम बेचती हूं, मैंने सोचा इसे बेच लूंगी कोई बंदा मिल जाए…, मुझे राशन वाशन दे दे. मैने बोला था एक भाई को…। वो बोला यहां आपका फरियाद कर लो। इधर, भाई जान आप मिल गये।

रिपोर्टर : अगर आपने आपको राशन नहीं दिया? झूठ बोल दिया नहीं मिले पैसे?

अफसाना : नहीं भाई जान, ऐसे नहीं है वो।

रिपोर्टर : क्या नंबर है?

नेहा : 98715XXXXX

रिपोर्टर : इस नंबर पर पेटीएम करना है? …आपका नाम अफसाना है?

अफ़साना : हां, नेहा की मम्मी।

एक सप्ताह बाद शुक्रवार के दिन अफसाना को फिर से नोएडा की उसी मस्जिद में देखा गया। इस बार वह केवल अपने नाबालिग बेटे बिलाल के साथ थी। वह कैमरे में भीख मांगते हुए कैद हो गईं, उनके बेटे ने हाथ में स्कैनर पकड़ रखा था। अफसाना ने तहलका रिपोर्टर को बताया कि चूंकि अब लोग दुकानदार के पेटीएम नंबर पर भरोसा नहीं करते, इसलिए वह भीख मांगने के लिए दुकानदार का स्कैनर अपने साथ ले आई थी। जब अफसाना से कहा गया कि अपने दो नाबालिग बच्चों को भीख मांगने के लिए मजबूर करना अपराध है, तो उसने कहा कि वह गरीब और असहाय है और उन्हें जीवित रहने के लिए पैसे की जरूरत है। उसने यह भी स्वीकार किया कि उन्हें सरकार की राशन योजना के तहत हर महीने पांच किलो मुफ्त अनाज मिलता है, फिर भी वह भीख मांगती रहती हैं।
जब उसका ध्यान इस तथ्य की ओर दिलाया गया कि उत्तर प्रदेश के नोएडा में भीख मांगना भी एक अपराध है, तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। संपर्क करने पर अफसाना के स्थानीय दुकानदार सईद, जिसका फोन नंबर और स्कैनर वह इस्तेमाल करती है; ने स्वीकार किया कि वह उसकी ओर से डिजिटल रूप से भीख का पैसा प्राप्त कर रहा है। अफसाना ने बताया कि चूंकि उनके पास फोन नहीं है, इसलिए वह अपना क्यूआर कोड नहीं रख सकती। इस बीच शुक्रवार को नोएडा की उसी मस्जिद में तहलका रिपोर्टर की मुलाकात एक अन्य भिखारी मोहम्मद अख्तर से हुई, जो हाथ में स्कैनर लेकर भीख मांग रहा था। अख्तर ने स्वीकार किया कि उसने उसी दिन 3-4 हजार रुपए नकद और शेष भीख डिजिटल रूप से अपने बेटे के खाते से जुड़े डिजिटल स्कैन के माध्यम से प्राप्त की। दिल्ली के बदरपुर निवासी अख्तर नोएडा आया था और भीख मांगने लगा था, जो उत्तर प्रदेश में गैर-कानूनी है। उसने बताया कि बैंक खाता खोलने के बाद उसे स्कैनर मिला, जिसका उपयोग अब वह भीख मांगने के लिए करता है।
रिपोर्टर : तो आप बदरपुर से पैसा मांगने के लिए यहां आते हो नोएडा?

अख्तर : हम कभी नहीं आए… बता तो रहे हैं ये भाई घूमते रहते हैं…, कपड़े का काम करते हैं दरी बेचते हैं। तो अन्होंने बताई थी ये मस्जिद, कि वहां चले जाओ, अल्लाह तुम्हारा करा देगा कुछ न कुछ।

रिपोर्टर : यहां पहली बार आए हो?

अख्तर : हाँ, पहली बार।

रिपोर्टर : कितना पैसा मिल गया?

अख्तर :3-4 हजार मिल गए।

रिपोर्टर : स्कैनर पर लिए होंगे आपने?

अख्तर : कुछ स्कैनर पर पहुंच गए…और बाकी ये हैं।

रिपोर्टर : ये सब आज ही का कलेक्शन है?

अख्तर : हां ये अभी का है।

रिपोर्टर : 3-4 हजार हो गए?

रिपोर्टर (आगे…) : स्कैनर पर कितने आ गए?

अख्तर : अब पूछेंगे जाकर….इसमें आवाज ही नहीं आ रही ये मोबाइल में… इसका स्पीकर ख़राब हो गया।

रिपोर्टर : आपका स्मार्टफोन है ना?

अख्तर : हां ये है…इसका स्पीकर खराब हो गया है।

रिपोर्टर : हां तो ये स्कैनर है आपका… इसी से पैसे मांग रहे हैं आप?

अख्तर : ये हमारे बेटे का स्कैनर है…। खाता हमने खुलवाया था…इसमें से निकालकर दे देंगे।

रिपोर्टर : स्कैनर से कितना मिल गया आज आपको?

अख्तर : इसमें तो पूछना पड़ेगा, कितने आए आज, देखा नहीं…., जो कुछ अल्लाह ने भेज दिए होंगे।

उत्तर प्रदेश के जालौन का निवासी मोहम्मद अख्तर भीख मांगने के लिए दिल्ली और फिर नोएडा आया। उसने बताया कि वह अपने भतीजे की सर्जरी के लिए भीख मांगकर पैसे जुटा रहा है।
अब तहलका रिपोर्टर की मुलाकात एक अन्य महिला भिखारी रेहाना खातून से हुई, जो मूल रूप से कानपुर, उत्तर प्रदेश की रहने वाली है और अब नोएडा में रहती है। उसने स्वीकार किया कि वह पिछले 25 वर्षों से कब्रिस्तान में भीख मांग रही है, जो कि उत्तर प्रदेश कानून के तहत एक अपराध है। रेहाना ने बताया कि ईद पर उसे भीख मांगकर लगभग 1,500 रुपए मिलते हैं और हर शुक्रवार को लगभग 400-500 रुपए मिल जाते हैं। उसने मस्जिद के गेट पर एक छोटी-सी चाय की दुकान भी खोली है, जिसका परिसर कब्रिस्तान से जुड़ा हुआ है। उनके अनुसार, वह चाय का स्टाल होने के बावजूद उसे भीख देकर सहयोग करते रहने वाले अपने नियमित परिचितों से नकदी के अलावा भीख प्राप्त करने के लिए स्कैनर का उपयोग भी करती है।

रिपोर्टर : अब पैसे नहीं मांग रहीं आप?
रेहाना : कोई दे गया अपनी राजी-खुशी से तो अलग बात है, तो ले लेती हूं।

रिपोर्टर : नहीं ये आपने बहुत अच्छा काम किया…., स्कैनर भी ले लिया आपने?
रेहाना : ये लगा दिया कंपनी वालों ने फ्री में… पैसा नहीं लिया। वो लगा रहे थे, तब में रोने लगी के मेरे पास कुछ भी नहीं है।

रिपोर्टर : अरे तो आप कैश ले लेतीं…स्कैनर थोड़ी था पहले।
रेहाना : नहीं अब स्कैनर लगा लिया…लड़कों का क्या भरोसा दें न दें।

रिपोर्टर : आप तो अंदर ही रहती हैं ना मस्जिद में?

रेहाना : हां।

रिपोर्टर : पहले भी तो अच्छा कलेक्शन हो जाता था आपका जुमे के जुमे, ईद के ईद…. कितना कमा लेती थीं आप?

रेहाना : ईद पर तो मिल जाता था करीब 1500 और जुमे पर 400-500 रुपये, कोई जाने वाला 500 अलग से दे जाता था।

रिपोर्टर :  यहां कब से रह रही हैं आप…कब्रिस्तान में?
रेहाना : 25  साल हो गए।

रिपोर्टर : अब कोई आपको पैसे देने आता है तो कैसे लेती हो.. स्कैनर से?

रेहाना : जिसको जैसे देना होता है… स्कैनर से या कैश…लोग ऐसे हैं कहते हैं आप बैठी रहो आंटी… मांगा किसी से नहीं…न पहले न अब, ….लोग खुशी से दे जाते हैं।

रिपोर्टर : अभी भी कोई देना चाहे तो दे जाए?

रेहाना : दे जाए…अल्लाह देता है बेटा।

रिपोर्टर : अभी दे जाते हैं लोग…जो पहले दे जाते थे?

रेहाना : हां, अभी एक बंदा 100 दे गया…और एक 20 रुपये।

पड़ताल के दौरान तहलका रिपोर्टर की दो और भिखारियों से मुलाकात हुई- गाजियाबाद की रेहाना और फैजाबाद की रेशमा से, दोनों उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं। दोनों को नोएडा में भीख मांगते हुए पाया गया, जो कि एक आपराधिक काम है, जैसा कि पहले बताया गया है। क्योंकि उत्तर प्रदेश में भीख मांगना गैर-कानूनी है। रेहाना ने दान की अपील वाली एक तख्ती और दान प्राप्त करने के लिए एक स्कैनर ले रखा था। लोग स्कैनर के माध्यम से उसे पैसे देते देखे गए। उसने तहलका रिपोर्टर को बताया कि शुक्रवार को उसे लगभग 300-400 रुपए मिल जाते हैं और वह जिस स्कैनर का उपयोग करती है, जो उनके स्थानीय दुकानदार इंतजार का है।

नोएडा के सोमबाजार में रहने वाली रेशमा ने अपने स्थानीय दुकानदार शहजाद का फोन नंबर दिया, जिसके माध्यम से वह डिजिटल तरीके से भीख प्राप्त करती है। हालांकि जब संपर्क किया गया, तो शहजाद का फोन बंद पाया गया। तहलका की डिजिटल भिखारियों की कहानी अब नोएडा से दिल्ली पहुंच गई है, जहां तहलका रिपोर्टर नई दिल्ली में भारत मंडपम के पास मटकापीर दरगाह में भिखारियों के एक समूह से मिले। उन्होंने सबसे पहले नसरीन से बात की, जो पिछले 35 वर्षों से दरगाह पर रहकर भीख मांग रही थी। वह दिन भर की मामूली कमाई पर अफसोस जताती है और कहती है कि बमुश्किल साठ रुपए, जबकि आज गुरुवार है, जो आमतौर पर बेहतर दिन होता है। उसने इस कमी के लिए बारिश के कारण सड़कों पर पानी भर जाने को जिम्मेदार ठहराया, जिसके कारण लोग बाहर नहीं आ सके। नसरीन के पास भीख लेने के लिए कोई डिजिटल प्लेटफॉर्म नहीं है, इसलिए उसने तहलका रिपोर्टर को दरगाह पर एक फूल विक्रेता को डिजिटल माध्यम से पैसे देने का अनुरोध किया।
नसरीन : स्कैनर उसके पास है.. फूल वाले के पास.. उसमें डाल देना।

रिपोर्टर : आपके पास नहीं है?

नसरीन : हमारे पास नहीं है, वो बांट देते हैं।

रिपोर्टर : आज मिला नहीं कुछ?

नसरीन : नहीं मिला।

रिपोर्टर : आज तो जुमेरात है?

नसरीन : सुबह से सिर्फ 60 रुपये मिले हैं।

रिपोर्टर : जुमे रात को भी 50-60?

नसरीन : पब्लिक बाहर नहीं आ रही ना!

रिपोर्टर : क्यूं?

नसरीन : जगह जगह पानी भरा हुआ है।

रिपोर्टर : नॉर्मल दिन में कितनी हो जाती है आमदनी?

नसरीन : 100 रुपये… ज़्यादा से ज़्यादा।

रिपोर्टर : आप कब से हो दरगाह पर?

नसरीन : 30-35 साल से।

एक अन्य भिखारी गोपीचंद, जो कुछ महीने पहले ही महोबा, उत्तर प्रदेश से मटकापीर दरगाह पर आया था, तहलका रिपोर्टर को दरगाह पर स्थित एक फूल वाले की दुकान पर ले गया। उसने  रिपोर्टर से दरगाह के सभी भिखारियों के लिए दुकानदार को डिजिटल तरीके से भीख के पैसे भेजने को कहा। उसने बताया कि कि अगर पैसा केवल उसके लिए दिया गया, तो बाकी भिखारी उनका जीना दुश्वार कर देंगे।

रिपोर्टर : चलो-चलो स्कैनर पर करवाओ?

रिपोर्टर (आगे…) : हमें इनको पैसे देने हैं, लेकिन इनके पास स्कैनर है नहीं।

गोपीचंद : गोपीचंद को अकेले थोड़ी देने हैं… सबको देने हैं।

रिपोर्टर : ये तुम्हारे पास लाए हैं, पेटीएम के लिए।

इरफान : हां, मुझे कर दो।

गोपीचंद : मेरे को अकेले मत देना…सबको देना: …नहीं तो सब चढ़ जाएंगे मेरे ऊपर।

फूल विक्रेता इरफान, जिसके पास गोपीचंद ने तहलका रिपोर्टर को डिजिटल भुगतान के लिए भेजा था, ने हमें बताया कि भिखारियों का आचरण संदिग्ध है। उसने रिपोर्टर को सलाह दी कि वह भिखारियों को पैसे न दें, बल्कि उनके लिए चाय का प्रबंध कर दें। इरफान के अनुसार, भिखारी प्रतिदिन 300-400 रुपए कमा लेते हैं।
इरफान : भीख मांगने वालों का ये हाल है।

रिपोर्टर : ये कितना काम लेते हैं एक दिन में?

इरफ़ान : कमा लेते हैं 300-400…।

इरफान (आगे…) : आप मेरी बात सुनो… पैसे का तो ये गलत इस्तेमाल करते हैं, आप इन्हें चाय पिला दो।

इरफान से बात करने के बाद तहलका रिपोर्टर की मुलाकात दरगाह की एक अन्य भिखारी गीता से हुई, जो पिछले 20 वर्षों से वहां रह रही है। गीता ने तहलका रिपोर्टर को बताया कि जब भी कोई उसे डिजिटल रूप से भीख देना चाहता है, तो वह उसे दरगाह में चाय की दुकान चलाने वाले लब कर्माकर के पास ले जाती है। लब डिजिटल रूप से धन प्राप्त करता है और बदले में उसे नकदी दे देता है।
गीता : आप चाय वाले के पास स्कैनर पर करा दो। ….देने वाले देते हैं….नहीं देने वाले नहीं देते।

रिपोर्टर : अगर किसी के पास कैश न हो तो वो कैसे करेगा? …हैं नहीं, …देने वाले नहीं देते।

गीता : अरे मेरी बात सुनो…ये लब है इसके पास कर दो।

रिपोर्टर : मटकापीर पर कब से हो?

गीता : हमें 20 साल हो गए।

तहलका रिपोर्टर ने लब कर्माकर से मिलने का निर्णय लिया, जो भिखारियों को डिजिटल माध्यम से मिलने वाली भीख को स्वीकार करता है और बाद में उन्हें नकद राशि के रूप में दे देता है। मूल रूप से पश्चिम बंगाल का रहने वाले लब पिछले 20 वर्षों से मटकापीर दरगाह पर चाय की दुकान चला रहा है। उसेने तहलका रिपोर्टर को बताया कि कई लोग जो दान देना चाहते हैं, वे डिजिटल माध्यम से उसे भुगतान करते हैं और बदले में वह (लब) भिखारियों को नकदी लौटा देता है।
रिपोर्टर : जितनी भिखारी हैं सब कह रहे हैं: ‘लब भाई को दे दो’!

लब : हां, कोई देना चाहता है… कुछ लोग दे जाते हैं हम दे देते हैं…। कैश नहीं होता ना मतलब ये है।

रिपोर्टर : भिखारियों की भी दुआ ले रहे हो आप।

रिपोर्टर (आगे…) : यहां कितना टाइम हो गया आपको?

लब : यहाँ 20 साल हो गए।

डिजिटल भिखारियों के बारे में तहलका की पड़ताल से कई वास्तविकताएं उजागर होती हैं। जैसे- जो लोग बैंक खाते खोलने में सक्षम हैं, वे दान के डिजिटल हस्तांतरण के लिए अपने स्वयं के क्यूआर कोड या फोन नंबर का उपयोग कर रहे हैं। जो लोग ऐसा नहीं कर सकते और किसी कारण से उनके पास क्यूआर कोड या नंबर नहीं हैं, उन्होंने डिजिटल तरीके से भीख देने के इच्छुक दानदाताओं के लिए एक अनूठा विकल्प तैयार किया है, जिसमें वे स्थानीय दुकानदारों के स्कैनर, फोन नंबर या पेटीएम यूपीआई आईडी पर दानदाताओं को भीख देने के लिए प्रेरित करते हैं। जो दुकानदार भिखारियों की भीख लेते हैं, वे भिखारियों को उनके माध्यम से मिली भीख नकदी के रूप में उन्हें लौटा देते हैं। अफसाना को अपने दो नाबालिग बच्चों का इस्तेमाल करके अपनी नाबालिग बेटी की शादी के लिए पैसे मांगते हुए तहलका के खुफिया कैमरे में कैद किया गया। उत्तर प्रदेश के नोएडा में भीख मांगने वाले अन्य भिखारी भी कानून का उल्लंघन कर रहे हैं, क्योंकि राज्य में भीख मांगना गैर-कानूनी है। इस जांच से न केवल अवैधता का पता चलता है, बल्कि जीवनयापन के नाम पर ऐसी प्रथाओं के सामान्यीकरण की चिंताजनक बात भी सामने आती है।